THE UNKNOWN BILLIONAIRES – The Life S…
Michael Caldwell
इंट्रोडक्शन
क्या आपको हमेशा ये लगता रहा है कि पैसा सिर्फ़ पैसेवालों के पास होता है और आम लोग कभी
बिल्यनेर नहीं बन सकते? तो आम लोगों को बिल्यनेर बनने के लिए क्या करना होगा? किस तरह के लोग आखिर बिल्यनेर बनते है? क्या आपको लगता है कि बिल्यनेर हमेशा एक ख़ुशहाल और सुकून भरा जीवन जीते हैं?वेल, इस बात का एक सीधा और सिंपल सा जवाब है, पैसा सिर्फ़ उन लोगों की जागीर नहीं है जो अमीरों के यहाँ पैदा हुए है बल्कि आम इंसान भी पैसा कमा सकता है. इतिहास गवाह है कि दुनिया में ऐसे भी लोग है जो पैदा तो अमीर हुए थे पर आखिर में उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी. जबकि कुछ लोग ऐसे भी है जो गरीबी में पैदा जरूर हुए थे पर आज अरबों-खरबों के मालिक है. इस समरी में आप जानोगे कि आप चाहे जो भी है, जिस भी बैकग्राउंड से है, आप भी अमीर इंसान बन सकते है. आपको अपने सपने पूरे करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी होगी, आपके अंदर स्ट्रोंग डेडिकेशन होना जरूरी है, आपको स्मार्ट और पैशनेट बनना होगा ठीक उन अनगिनत बिल्यनेर की तरह जिनके बारे में आप इस बुक में जानेंगे. एक सेल्फ़ मेड बिल्यनेर बनने की इस जर्नी में आप और भी ज्यादा मोटिवेशनल और जोशीला फील करोगे. जो आज सेल्फ़ मेड बिल्यनेर है उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए क्या-क्या किया था, वो सब आप इस बुक में जानेंगे.
तो क्या आप तैयार हैं दुनिया के सेल्फ़ मेड बिल्यनेर में अपनी जगह बनाने के लिए? ये समरी एक
बिल्यनेर जैसी लाइफ जीने का सपना सच करने में आपकी हेल्प करेगी.
Jin Sook Chang (Forever 21)
जिन सुक चैंग और उनके पति कोरियन के नागरिक है जो अपना बिजनेस खड़ा करने का सपना लेकर
लॉस एंजिल्स में आकर बस गए थे. 1981 में अपनी शादी के वक्त जिन सुक सिर्फ़ 18 साल की थी और
उनके पति डॉन वॉन चैंग 27 के. जिन सुक पहले हेयरड्रेसर का काम करती थी जबकि उनके पति
कोरिया में कॉफ़ी डिलीवरी सर्विस स्टार्ट करने वाल पहले इंसान थे.
उन्हें ऐसा लगा कि बिजनेस करने के लिए लॉस एंजिल्स से ज्यादा परफेक्ट जगह हो ही नहीं सकती.
जिस वक़्त वो लॉस एंजिल्स गए थे उन दिनों गारमेंट इंडस्ट्री कोरिया से आए इमिग्रेंट्स और LA- कोरियन
अमेरिकन कम्यूनिटी के लिए एक बिजनेस ट्रेंड हुआ करती थी. डॉन वॉन ने एक गैस स्टेशन में पहरेदार
की ड्यूटी की ताकि वो लोग अपने कपड़ों के रीटेल बिजनेस के लिए कोई सस्ती सी रेंटेड जगह ले सके.
बिजनेस कॉम्पटीशन काफी टफ था, इसलिए जिन सूक और उनके पति को अपने competitors से एक
कदम आगे रखकर चलने की जरूरत थी. जिन सूक को सामान चुनकर बेचने का काम दिया गया और
उनके पति बिजनेसमैन बने. दोनों ने अपने क्लोथिंग स्टोर का नाम रखा ‘फैशन 21’ जहाँ उनका मेन टारगेट
था टीनएज़ कस्टमर्स, वो लोग अपनी बिजनेस स्ट्रेटेजी पर कस्टमर्स की चॉइस के हिसाब से फोकस किया करते थे. डिजाईन, मटीरियल और फीटिंग सब कुछ क्लाइंट्स की पसंद के हिसाब से रखा जाता. उनके स्टोर में वही मिलता था जो कस्टमर्स चाहते थे, इस वजह से उनके क्लाइंट्स दिन ब दिन बढने लगे.
दूसरे साल में ही फैशन 21 की सेल पहले साल की सेल $35,000 के मुकाबले $700,000 तक पहुँच
गई थी और इसका सारा क्रेडिट जिन सूक को जाता था जो ट्रेंडी कपडे चुनने और फेमस डिज़ाइनर्स के
डिजाईन कॉपी करने में माहिर थी. उनके डिजाईन और स्टाइल के कपड़े लिमिटेड होते थे जो सिर्फ़ एक
हफ्ते तक ही अवलेबल रहते थे. अगले हफ्ते फिर नया डिजाईन आ जाया करता था. इस स्ट्रेटेज़ी के कारण
कस्टमर्स उनके स्टोर में कपड़े खरीदने के लिए टूट पड़ते थे क्योंकि उन्हें पता होता था कि अगर ये मौका
छूट गया तो वो डिजाईन उन्हें दोबारा नहीं मिलेगा. 2005 तक सूक और उनके पति ने पूरे देश में 355
स्टोर खोल डाले थे. 2014 आते-आते दुनिया भर में उनके 500 स्टोर खुल चुके थे. अब उन्होंने अपने
बिजनेस का नाम बदलकर ‘फॉरएवर 21’ रख लिया था. उनकी कहानी से ये बात साबित हो गई कि अगर
इंसान के अंदर जुनून हो तो वो क्या नहीं कर सकता, यहाँ तक कि एक फॉरेन देश में भी सक्सेसफुल हो
सकता है. बाकि कंपनियों की तरह चैंग कपल और उनके ‘फॉरएवर 21′ को भी कई मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा, कई तरह के ईल्जाम झेलने पड़े और वो कई विवादों से घिरे रहे. उन पर कॉपीराईट उल्लंघन और लेबर लॉ तोड़ने जैसे ईल्जाम भी लगे.
उनकी कंपनी के 19 वर्कर्स ने उन पर ईल्जाम लगाया था कि कंपनी में उन्हें बेहद बुरी हालत में काम करना
पड़ा था. 2001 में एशियन पैसिफिक अमेरिकन लीगल सेंटर ने इन वर्कर्स की तरफ से उन पर एक केस फाइल किया और ‘फॉरएवर 21’ को $4 मिलियन में मामला सैटल करना पड़ा था. इसी साल ‘फॉरएवर 21’ के खिलाफ एक नेशनल बॉयकाट लॉन्च किया गया और ये मामला भी 2004 में जाकर शांत हुआ. ये कुछ केस थे जो ‘फॉरएवर 21’ के खिलाफ फ़ाइल किये गये और सैटल कर लिए गए और बाकि दूसरे केस भी इसी तरह सल्टाए गए थे. इन विवादों और मुश्किलों के बावजूद ‘फॉरएवर 21’ और जिन सूक को और उनके कस्टमर्स को इन बातों से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. कस्टमर्स पर उनके फेवरेट ब्रांड के नेगेटिव फीडबैक का कोई इम्पैक्ट नहीं हुआ. लोग आज भी ‘फॉरएवर 21’ के स्टोर में जाकर शॉपिंग करना पसंद करते है और उनके अफोर्डेबल यानी किफ़ायती डिज़ाइनर कपड़ों के दीवाने है.
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Michael Caldwell
Ingvar Kamprad (IKEA )
इंग्वार कैमप्राड 1926 में स्वीडन में पैदा हुए उनकी परवरिश एगनयार्ड नाम के गाँव में एक फार्म में हुई थी
जिसका नाम था एल्मटेरिड. इंग्वार बेहद सिंपल लडके थे लेकिन उनके सपने बहुत बड़े थे. इंग्वार एक बड़ा
बिजनेस खड़ा चाहते थे और इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कोई मौका नहीं चूका.
बचपन में इंग्वार अपने आस-पडोस में साईकल चलाकर माचिस के डिब्बे, घर में सजाने का सामान
और ऑफिस में इस्तेमाल की जाने वाली चीज़े बेचा करते थे. जब वो 17 साल के हुए तो उनके पिता
ने उन्हें एक अच्छा स्टूडेंट होने के एवज़ में ईनाम के तौर पर बिजनेस में लगाने के लिए पैसे दिए ये
साल 1943 की बात है जब उन्होंने अपने फेमस ब्रैंड ‘आईकिया’ (IKEA) की फाउंडेशन रखी.
इंग्वार ने आईकिया नाम अपने नाम के पहले दो अक्षर, अपने फार्म एल्मयार्ड और अपने गाँव का नाम
एगुनयार्ड के नाम के इनिशियल्स पर रखा था. हालाँकि इंग्वार ने अपनी एजुकेशन कम्प्लीट नहीं की थी
लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपना सपना पूरा करके दिखाया. वो इसे एक स्टेपिंग स्टोन मानते थे जिसने उन्हें अपना खुद का बिजनेस खड़ा करने का एक्साईमेंट दिया था. इंग्वार का विज़न आईकिया को लेकर कुछ यूं था कि ये कंपनी उनके लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए है. उनका गोल लोगों को सस्ता मगर यूनीक डिजाईन का फर्चिनर अवलेबल कराना था.
जल्द ही आईकिया ऐसे सेल्फ़ असेंबल्ड, यानी ख़ुद जोड़ना, फर्नीचर और होम डेकोर्स के लिए फेमस हो
गया जो कस्टमर्स को खुद अपना फर्नीचर एसेम्बल करने की एक सेटिसफेक्टरी फीलिंग देता था. एक और
फैक्टर था जिसने आईकिया को पॉपुलर बनाया वो ये कि डिसलेक्सिया होने के बावजूद इंग्वार ने प्रोडक्ट्स
का नाम रखने के लिए नंबर्स यूज़ करने के बजाए स्वीडिश नाम रखे थे. उन्होंने अपने फर्नीचर के नाम
स्वीडिश शहरों के नाम से लेकर स्वीडिश आदमी और औरतों के नाम पर रखे ताकि इंग्वार को नाम याद
रखने में आसानी हो. जब कस्टमर्स उनसे होम डेकोर और फर्नीचर्स खरीदते है तो आईकिया अपने कस्टमर्स को एक अलग ही एक्सपीरीएंस देती है. कस्टमर्स उन फर्नीचर्स पर बैठ सकते है, उन्हें छूकर देख सकते है कि ये पीस उनके घर में कैसा लगेगा या उसे यूज़ करने का एक्सपीरियंस कैसा रहेगा.
आईकिया को भी दूसरे बिज़नस की तरह कुछ कंट्रोवर्सीज़ फेस करनी पड़ी. उनमें से एक कंट्रोवर्सी
ये थी कि कस्टमर्स के मन में आईकिया के प्रोडक्ट्स की ड्यूरेबीलीटी और quality को लेकर डाउट था.
उन्होंने कहा कि आईकिया अपने प्रोडक्ट्स में चीप मटीरियल यूज़ करता है इलसिए उनके प्रोडक्ट लॉन्ग
लास्टिंग नहीं होते. कंपनी की सबसे बड़ी कंट्रोवर्सी ये थी कि आईकिया के प्रोडक्ट बनाने के लिए जर्मनी की जेलों में कैदियों का इस्तेमाल किया गया और उनका फ़ायदा उठाया गया. जबकि सच तो ये था कि आईकिया डायरेक्ट उन कैदियों के साथ काम नहीं करवाता था बल्कि एक एजेंसी इन कैदीयों के जरिए आईकिया के लिए प्रोडक्ट्स बनाया करती थी. इस मामले ने काफी तूल पकड़ा जिससे आईकिया की इमेज़ को एक ऐसी कंपनी के तौर पर काफी धक्का लगा जो एवरेज कंज्यूमर्स को सपोर्ट करती है. मामले को शांत करने के लिए आईकिया ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए कहा कि वे कैदियों का शोषण नहीं कर रहे थे. हालाँकि ये मामला फिर भी शांत नहीं हुआ. एक और बड़ी कंट्रोवर्सी उन्हें तब फेस करनी पड़ी जब
इंग्वार ने 1994 में एक प्रो नाज़ी मीटिंग अटेंड की. हालाँकि उन्होंने इस ईल्जाम से इनकार नहीं किया
बल्कि उन्होंने अपनी इस गलती के लिए पब्लिकली माफ़ी भी मांगी. जल्द ही उन्होंने एक मेमो भी रिलीज़
प्रोडक्ट्स बनाया करती थी. इस मामले ने काफी तूल पकड़ा जिससे आईकिया की इमेज़ को एक ऐसी कंपनी के तौर पर काफी धक्का लगा जो एवरेज कंज्यूमर्स को सपोर्ट करती है. मामले को शांत करने के लिए आईकिया ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए कहा कि वे कैदियों का शोषण नहीं कर रहे थे. हालाँकि ये मामला फिर भी शांत नहीं हुआ.
एक और बड़ी कंट्रोवर्सी उन्हें तब फेस करनी पड़ी जब इंग्वार ने 1994 में एक प्रो नाज़ी मीटिंग अटेंड की.
हालाँकि उन्होंने इस ईल्जाम से इनकार नहीं किया बल्कि उन्होंने अपनी इस गलती के लिए पब्लिकली
माफ़ी भी मांगी. जल्द ही उन्होंने एक मेमो भी रिलीज़ किया जिसका टाईटल था “द ग्रेटर मिस्टेक ऑफ़ माय
लाइफ. इंग्वार के आईकिया का विज़न आज भी वही है और वो अपने प्रोडक्ट्स की quality इम्प्रूव करने के लिए सस्टेंनेबल मटीरियल जो वो यूज़ करते है, उसे डबल करना चाहते है. आज की तारीख में इंग्वार ने कंपनी के बोर्ड में पोजीशन ले रखी है और अपने तीनों बच्चों को उन्होंने पावर दी है कि वो आईकिया के विज़न और लॉन्ग टर्म स्ट्रेटेज़ी को आगे बढ़ाएं.
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Michael Caldwell
Bob Parsons (Go Daddy)
बिल्यनेर बनने से पहले बॉब पार्सन्स की फेमिली बाल्टीमोर में पैसों की तंगी का सामना कर रही थी.
पार्सन्स अपनी फेमिली के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए जी-तोड़ मेहनत किया करते थे. पैसे कमाने
के लिए पार्सन्स ने क्या-क्या पापड़ नहीं बेले. उन्होंने न्यूज़पेपर डिलीवरी बॉय से लेकर गैसोलीन बॉय और
यहाँ तक कि कंस्ट्रक्शन साइट में मज़दूरी भी की. पार्सन्स ने पैसे कमाने के लिए तो काफी मेहनत की
पर स्कूल में उनकी परफोर्मेंस कुछ ख़ास नहीं रही. वो बताते है कि स्कूल में उन्हें बहुत कम ग्रेड्स मिलते
थे और वो सिर्फ़ हाईस्कूल तक ही पढ़ पाए क्योंकि 1968 में उन्हें मरीन कॉर्प्स में भारती कराया गया था.
उनके टीचर्स ने डिप्लोमा लेने में उनकी मदद की ताकि वो मिलिट्री में भारती हो सकें.
पार्सन्स ने यूनाइटेड स्टेट्स मरीन कॉर्प्स ज्वाइन किया जहां 1969 में जंग के लिए उन्हें विएतनाम भेज दिया
गया. हालाँकि उन्हें जल्द ही वापस घर भेज दिया गया क्योंकि जंग के दौरान एक धमाके में वो बुरी तरह
घायल हो गए थे. वो कई महीनों तक हॉस्पिटल में रहने के बाद ठीक हुए. उसके बाद उन्होंने एक स्टील मिल में मजदूर के रूप में काम किया. पार्सन्स बताते है कि बेशक उन्हें अच्छी सैलरी मिल रही थी पर ये जगह उनके लिए ठीक नहीं थी क्योंकि इस काम में बेहद खतरा था.
विएतनाम वॉर और स्टील मिल की जॉब ने उन्हें काफी कुछ सिखाया इसलिए पार्सन्स अब एक बेहतर
इंसान बनना चाहते थे. उन्होंने बाल्टीमोर यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया. उन्होंने मेजर सब्जेक्ट के तौर पर
एकाउंटिंग चूज़ की क्योंकि कैटेलॉग में यही सबसे पहला कोर्स लिखा हुआ था. इसके अलावा बिजनेस में
उनकी दिलचस्पी भी थी. पार्सन्स के अंदर सीखने का शौक पैदा हो गया था. उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ ग्रेजुएशन कम्प्लीट की और एक सर्टिफाईड अकाउंटेंट बन गए. उन्होंने कई कंपनियों के लिए काम किया और इसी दौरान एक नया शौक उन्हें लगा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का. कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखने के बाद पार्सन्स ने एप्पल || खरीदा और इसके ऑपरेटिंग सिस्टम और प्रोग्रामिंग लेगुएज़ को स्टडी करना शुरू कर दिया. उन्होंने कभी कोई प्रोग्राम नहीं खरीदा था क्योंकि वो खुद अपने कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम बनाते थे. पार्सन्स ने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में काफी कुछ सीखा क्योंकि उन्हें इसका हद से ज्यादा शौक था. एक रात उन्हें ख्याल आया कि क्यों ना वो खुद का सॉफ्टवेयर बनाकर बेचे, हो सकता है
दूसरे लोग उनका सॉफ्टवेयर खरीदना चाहे. बस फिर क्या था, उन्होंने पार्सन्स टेक्नोलॉजी खोल
ली और सॉफ्टवेयर बनाकर बेचने लगे. लेकिन जल्द ही उन्हें ये भी पता चल गया कि बनाने और बेचने में काफी फर्क होता है. सॉफ्टवेयर बनाने के चक्कर में पार्सन्स करीब-करीब दिवालिया हो चुके थे और तीसरी कोशिश में जाकर सस्केसफुल हुए थे. लेकिन इस एक्सपीरीएंस ने उन्हें एक सबक सिखाया कि अगर इंसान पहली बार कोशिश करे और फेल हो जाए तो उसे हार नहीं माननी चाहिए. हो सकता है कि आपका तरीका गलत हो, इसलिए अपने तरीके चेंज करो और फिर से ट्राई करो. 1994 में पार्सन्स ने अपना बिजनेस $64 मिलियन में इन्टूइट को बेच दिया और हवाई चले गए. बाद में उन्होंने गो डैडी की शुरुवात की. ये एक ऐसी कंपनी है जो सस्ते प्राइस में वेबसाईट एड्रेस और उससे रिलेटेड सर्विस प्रोवाइड करती है. शुरुवात में गो डैडी की जर्नी भी उतनी स्मूद नहीं रही. उन्हें Super Bowl एडवरटीज़मेंट में काफी पैसा इन्वेस्ट करना पड़ा जो हालाँकि कंट्रोवर्शियल था पर काफी इफेक्टिव भी रहा. 2011 में पार्सन्स की मेहनत रंग लाई जब वो गो
डैडी का 2/3rd हिस्सा $2.25 मिलियन और $930 मिलियन में बेचने में कामयाब रहे और वो भी
कैश में, बेशक उन्होंने सीईओ की पोस्ट छोड़ दी थी पर वो कंपनी के सबसे बड़े शेयरहोल्डर है जो एक एक्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे है. पार्सन्स और उनकी वाइफ ने एक फाउंडेशन भी स्टार्ट की है जो एड्स के मरीजों और बेघर लोगों की मदद करती है. उनका मानना है कि दुनिया में हर बच्चे को बेस्ट एजुकेशन, बेस्ट हेल्थकेयर और एक स्ट्रेस फ्री माहौल मिलना पार्सन्स कहते है कि वो इस दुनिया में खाली हाथ आये है और जो कुछ उन्होंने कमाया है यहीं से कमाया है इसलिए अपनी दौलत का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों में बाँटकर उन्हें बेहद ख़ुशी मिलती है.
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Michael Caldwell
Hamdi Ulukaya (Chobani)
हम्दी उलुकाया की फेमिली के पास एक डेयरी फार्म था जो एर्ज़िनकैन, टर्की (Erzincan, Turkey,) में फेटा
चीज़ बनाते थे. यहीं पर हमदी पले-बढ़े थे. वो अपने डेयरी फार्म में काम करते थे और खुद को ‘डेयरी बॉय’
बोला करते थे. उन्होंने टर्की में पॉलिटिक्स की पढाई की और बाद में इंग्लिश पढने के लिए यू. एस. चले गए.
2003 में उलुकाया ने एक brochure में दिए गए एडवरटीज़मेंट को देखकर अपनी ग्रीक योगर्ट कंपनी
की शुरुवात की. ये एड एक योगर्ट प्लांट के बारे में था जो सेल पर लगा हुआ था. ये प्लांट उनके अपने चीज़
बनाने वाले फार्म से ज्यादा दूर नहीं था. वो इस 90 साल पुराने प्लांट में गए और मैनेजर के साथ पूरा प्लांट
देखने के बाद उन्होंने उस प्लांट को खरीदने का फ़ैसला लिया. हालाँकि उलुकाया के एडवाईजर ने उन्हें ये प्लांट ना खरीदने की सलाह दी थी पर उलुकाया अपने फैसले पर डटे रहे. वो हमेशा यही सोचा करते थे कि अमेरिकन योगर्ट ग्रीक या टर्की योगर्ट जैसे टेस्टी क्यों नहीं होते. उन्होंने प्लांट के बचे-कुचे एम्प्लोईज़ को हायर किया और उन्हें अपनी कंपनी में स्टॉकहोल्डर बना दिया.
सबकी यही दुआ थी कि उलुकाया अपनी कोशिश में कामयाब रहे. उलुकाया एक ऐसा योगर्ट बनाने की कोशिश में जुटे थे जो यू.एस. के कस्टमर्स को पसंद आये. सबसे बेहतरीन ग्रीक योगर्ट की रेसिपी ढूँढने के लिए उन्हें काफी दौड़-धूप करनी पड़ी और आखिरकार उन्हें साउथईस्ट मेडीटेरेनियन में एक ज़बरदस्त रेसिपी मिल गई. उलुकाया ने अपनी कंपनी का नाम ‘चोबानी’ रखा. टर्किश में चोबानी का मतलब होता है “Shepherd” यानी चरवाहा. उनका पहला कस्टमर बना लॉन्ग आईलैंड का एक स्टोर, जिन्होंने 2007 में उन्हें 300 योगर्ट बॉक्स का ऑर्डर दिया. लोगों को ये योगर्ट काफी पसंद आया और सारा स्टॉक हाथों-हाथ बिक गया. सिर्फ़ डेढ़ साल बाद ही चोबानी का काम इतना फ़ैल गया था कि कंपनी में हर हफ्ते 200,000 केस का प्रोडक्शन होने लगा. उलुकाया ने अपने योगर्ट कप की पैकेजिंग का आईडिया भी काफी यूनीक निकाला था. चोबानी बाकि कंपनियों से अलग नहीं थी कि उन्हें खुद को जमाने में प्रॉब्लम फेस ना करनी पड़ी हो. एक टाइम ऐसा भी आया कि कई बड़ी कंपनियाँ उलुकाया का बिजनेस खरीदने के लिए उनके पीछे पड़ गए थे. उल्काया के मना करने पर उन्हें धमकियां दी गई कि उन्हें कॉम्पटीशन का सामना करना पड़ेगा और वो लोग उनके जैसा ही प्रोडक्ट बनाकर बेचेंगे. 2009 में कई बड़ी योगर्ट कंपनियों ने ग्रीक योगर्ट बनाकर बेचना शुरू कर दिया.
अपने कॉम्पटीटर्स से निपटने के लिए उलुकाया ने प्रोडक्शन बढ़ा दिया. कंपनी अब पर हफ़्ते
10,00,000 केस बनाने लगी. चोबानी ने इंटरनेशनल लेवल पर अपनी एक पहचान बना ली थी. हाई डिमांड
के चलते उलुकाया ने डिसाइड किया कि अब कंपनी के लिए एक सीईओ हायर किया जाये जो सारा काम
संभाले. उन्होंने खुद कंटिन्यू नहीं किया. 2014 में उलुकाया के खिलाफ उनकी एक्स वाइफ
ने एक बड़ा केस फ़ाइल किया, उनकी एक्स वाइफ का कहना था कि उलुकाया ने रिश्वत देकर ग्रीक योगर्ट
की रेसिपी हासिल की है. उनकी एक्स वाइफ का ये भी कहना था कि कंपनी के शेयर्स में उसका भी हिस्सा
बनता है लेकिन उलुकाया के लॉयर ने जवाब में कहा कि उसका केस काफी डाउटफुल है.
उलुकाया ने अपने या अपनी कंपनी के खिलाफ लगाये गए ईल्जामों को लेकर कोई सफाई नहीं दी. वो चुप
रहे. वो अमेरिका आकर बेहद ख़ुश थे. उन्होंने यू. एस. के प्रति आभार जताते हुए सिर्फ़ इतना कहा कि
यू. एस. ऐसा देश है जहाँ हर इंसान जो पैशनएट और हार्डवर्किंग है, सक्सेसफल हो सकता है
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Michael Caldwell
S. Truett Cathy (Chick-fil-A)
एस ट्रुएट कैथी (S. Truett Cathy) इंजील दक्षिणी बैपटिस्ट थे जिनका जन्म ईटोंटन, जॉर्जिया में हुआ था.
ये ईलाका अमेरिका का एक पार्ट है, जिसे बाइबिल बेल्ट का हार्ट कहा जाता है और माना जाता है कि
यहाँ के लोग काफी कंज़र्वेटिव टाइप के क्रिस्चियन होते है. 1946 में कैथी और उनके भाई बेन ने एटलांटा
के बाहर एक छोटे से डाईनर की शुरुवात की. ये तब की बात है जब उनके भाई बेन वर्ल्ड वॉर ॥ में अपनी
सर्विस पूरी करके वापस आये थे. इस डाईनर का नाम उन्होंने ‘Dwarf Grill’ रखा और यही वो जगह थी
जहाँ से उनका उनका फेमस चिकन सैंडविच फेमस होने लगा था. तीन साल बाद एक प्लेन क्रैश में अपने भाई की मौत के बाद कैथी ने पूरा बिजनेस अपने हाथों में ले लिया और जल्द ही उन्होंने एटलांटा के ग्रीनब्रिअर मॉल में अपना पहला Chick-fil-A (चिक-फिल-ए) रेस्टोरेंट खोला, ये 1967 की बात है. अगले पांच दशकों के अंदर Chick-fil-A एक से 1600 स्टोर में बदल गया जो करीब 40 स्टेट में फैले हुए है. केऍफ़सी के बाद दूसरा नंबर Chick-fil-A का ही आता है.
कैथी ने अपनी कंपनी के मिशन में धर्म यानी रिलिजन को जोड़ दिया था. उन्होंने अपनी कंपनी और अपनी
लाइफ की सक्सेस का सारा क्रेडिट बाइबल को दिया. चिक- फिल-ए के मेंबर्स के लिए कुछ धार्मिक शर्ते रखी गई थी. दरअसल कैथी का मानना था कि भगवान और काम एक-दूसरे से जुड़े है या यूं कह ले कि काम का दूसरा नाम ही भगवान है. कैथी इस बात पर भी जोर देते थे कि उनकी कंपनी में काम करने के लिए क्रिस्चियन होना जरूरी नहीं है. लेकिन हाँ बिजनेस बाईबल के प्रिंसिपल्स के बेसिस पर होना चाहिए. उन्होंने इंस्ट्रक्शन दी थी कि सारे फ्रेंचाईजी ओनर्स को चर्च जाने के लिए हर संडे स्टोर क्लोज़ करना जरूरी है और जो इस शर्त को नहीं मानते उन्हें टर्मीनेट कर दिया जाएगा. कंपनी का हायरिंग
प्रोसेस भी कैंडिडेट के फेथ और उसके चिक-फिल-ए के क्रिस्चियन प्रिंसिपल्स को एक्सेप्ट करने पर बेस्ड है.
कैथी ज्यादातर मैरिड लोगों को जॉब पर रखना पसंद करते है क्योंकि उनका मानना है कि वो ज्यादा मेहनती और प्रोडक्टिव होते है. इतना ही नहीं प्रोस्पेक्टिव फ्रेंचाईजी ओनर के फेमिली मेंबर्स को भी हायरिंग
प्रोसेस में शामिल किया जाता है. उनका भी इंटरव्यू लिया जाता है और उनसे कैंडिडेट के बारे में पूछताछ
की जाती है. जिन लोगों की अपनी फेमिली के साथ रिश्ते खराब होते है या जो अपनी फेमिली के ख़िलाफ़
जाते है, उन लोगों को सिलेक्ट नहीं किया जाता. चिक-फिल-ए के अपने कई ऑर्गेनाईजेशन भी है
जिनमें से एक है “विनशेप फाउंडेशन”. ये फाउंडेशन नए ऑपरेटर्स को क्रिस्चियन बेस्ड रिलेशनशिप
बनाना भी सिखाती है. विनशेप कैंप एक स्ट्रोंग फेथ, character और फेमिली रिलेशनशिप डेवलपमेंट का
गोल लेकर चलती है. ये स्टूडेंट्स को scholarship भी देते है जिसके लिए उनकी चर्च अटेंडेंस को ध्यान
में रखा जाता है. ये चिक-फिल-ए के स्ट्रिक्ट क्रिस्चियन प्रिंसिपल्स ही है जिनकी वजह से कई बार एम्प्लोईज़ ने कंपनी पर भेदभाव का आरोप भी लगाया है. ऐसी ही एक
शिकायत थी एक मुस्लिम एम्प्लोई की जिसे सिर्फ़ इसलिए जॉब से निकाल दिया गया था क्योंकि उसने
Jesus Christ की ग्रुप प्रेयर में शामिल होने से इनकार कर दिया था. 2012 में कैथी के सबसे बड़े बेटे और चिक-फिल-एके प्रेजिडेंट डैन कैथी ने गे मैरिज के खिलाफ एक भड़काऊ बयान दिया था जिसके कारण अलग-अलग ग्रुप के लोगों के बीच एक डिबेट का माहौल बन गया था. डैन ने गे मैरिज को लेकर अपनी असहमति जताई थी जिसके खिलाफ सिविल राईट्स ग्रुप, कॉलेज स्टूडेंट और एलजीबीटी कम्यूनिटी ने जमकर प्रोटेस्ट किया था. मामले को तूल पकड़ता देख कंपनी ने एक स्टेटमेंट जारी किया कि गे मैरिज पर किसी भी तरह के डिबेट को गवर्नमेंट और लॉ पर छोड़ देना चाहिए. 2013 में कैथी रिटायर हो गए और चिक- फिल-ए की ओनरशिप उन्होंने अपने बेटे डैन को सौंप दी. आज भी चिक-फिल-ए अपने क्रिस्चियन प्रिंसिपल्स को फॉलो करते हुए एक मल्टी बिलियन डॉलर कंपनी का खिताब आम लोगों को सस्ता और यूनीक फर्नीचर दें और यही उनकी सेल्फ़ मेड वेल्थ का सीक्रेट है.
साथ ही आपने गो डैडी के फाउंडर बॉब पार्सन्स की कहानी से सीखा कि अगर अपने काम के प्रति आपमें
जुनून है तो आपको सक्सेस हर हाल में मिलेगी. अपनी हॉबी को अपना प्रोफेशन बनाकर एक बिल्यनेर बनने के बाद पार्सन्स ने इस बात को एक्सपीरिएंस किया और अपनी इस अपार सुकेस का सीक्रेट औरों के
साथ बांटा. चोबानी के ओनर हम्दी उलुकाया की कहानी से हमने ये सीखा कि लाइफ में सक्सेसफुल होने के लिए हार्ड वर्क और डेडिकेशन सबसे ज्यादा जरूरी है. दुनिया का सवसे बेस्ट योगर्ट बनाने की जो गहरी इच्छा उलुकाया के अंदर थी उसकी पूरी कीमत उन्हें यू. एस में मिली वो भी मिलियन में नहीं बल्कि बिलियन्स में. आपने यहाँ कैथी, चिक-फिल-ए के फाउंडर की कहानी भी जानी और ये सीखा कि एक अलग बिजनेस प्रिंसिपल आपकी सक्सेस के आड़े कभी नहीं आता क्योंकि चिक-फिल-ए के सेंटर में क्रिश्चियनिटी का कॉन्सेप्ट ही था और यही उनका सबसे बड़ा यू.एस.पी. सवसे बेस्ट योगर्ट बनाने की जो गहरी इच्छा उलुकाया के अंदर थी उसकी पूरी कीमत उन्हें यू. एस में मिली वो भी मिलियन में नहीं बल्कि बिलियन्स में. आपने यहाँ कैथी, चिक- फिल-ए के फाउंडर की कहानी भी जानी और ये सीखा कि एक अलग बिजनेस प्रिंसिपल आपकी सक्सेस के आड़े कभी नहीं आता क्योंकि चिक-फिल-ए के सेंटर में क्रिश्चियनिटी का कॉन्सेप्ट ही था और यही उनका सबसे बड़ा यू.एस.पी. भी बना.
अब तो आप मानोगे कि बिल्यनेर बनना उतना भी नामुमकिन सपना नहीं है चाहे बेशक आपकी शुरुवात
कितनी ही छोटी क्यों ना हो. आपको जरूरत है तो बस फ़ोकस, हार्ड वर्क, डेडीकेशन और एक ऐसी
स्ट्रेटेज़ी की जो आपको बाकियों से यूनीक बनाती हो. तो हमें उम्मीद है कि आपको इन सेल्फ़ मेड
billionaires की कहानियों से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा और आप काफी मोटिवेटेड भी हुए
होंगे.