The Five Dysfunctions of a Team Patrick Lencioni Books In Hindi Summary

  1. 1.        
    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    The Five Dysfunctions of a Team

    पेट्रिक लेंसीओनी कोई रेंडम बन्दा नहीं है कि अचानक से एक दिन ओर्गेनाइजेश्नल
    डिसफंक्शन पर किताब लिखने की सोचे. जी वो ओर्गेनाइजेशनल हेल्थ एंड मैनेजमेंट की एक
    कंसल्टिंग फर्म के सीईओ है. मतलब कि उन्हें अपने वर्क फील्ड में बहुत ज्यादा
    एक्स्पिरियेश है. और मोस्ट इम्पोर्टेट बात कि उन्हें पता है कि वे किस बारे में बात कर रहे है.

    2.       “फाइव डिसफंक्शन्स ऑफ़ अ
    टीम” (“Five Dysfunctions of a Team”)

    एक बड़ी इंट्रेस्टिंग बुक तो है कि साथ ही काफी यूज़फुल भी है – पेट्रिक अपनी अमेजिंग स्टोरीटेलिंग
    स्किल्स से आपको एक अनोखी जर्नी पर लेके जाते है. उनकी ये बुक बाकी दूसरी सेल्फ
    हेल्प और पर्सनल डेवलपमेंट बुक्स से एकदम डिफरेंट है । इसमें वो आपको लीडरशिप स्टोरी सुनाकर टीम मैनेजमेंट के बेसिक्स समझाते है. इस बुक की हिरोइन” कैथरीन पीटरसन कंपनी की सीईओ है, उसे कम्पनी को चलाने के लिए काफी स्ट्रगल और हार्ड वर्क करना पड़ता है. उसे रियेलाइज होता है कि उसकी कंपनी में ग्रेट, एक्स्पिरियेश्ड (experienced,) और इंटेलीजेंट लोग है फिर भी सब मिलकर टीम की तरह काम नही करते है. तो इस स्ट्रगलिंग कंपनी के शू पेट्रिक श्रू लेंसीओनी रीडर्स को समझाने की कोशिश करते है कि टीम वर्क कितना इम्पोर्टेट है. इसके अलावा वो आपको टीम के मेन फाइव डिसफंक्शन रिमूव करने में भी हेल्प करेंगे:
    1. एब्सेंट ऑफ़ ट्रस्ट Absence of trust
    2. फियर ऑफ़ कॉफ्लिक्ट Fear of conflict
    3. लैक ऑफ़ कमिटमेंट Lack of commitment
    4. अवॉयडेंस ऑफ़ अकाउंटेबिलिटी Avoidance of accountability
    5. इंटेंशन टू रिजल्ट्स Inattention to results
    इन फाइव प्रोब्लम्स को एक पिरामिड की तरह इमेजिन करो जिसके बोटम में ट्रस्ट है,
    क्योंकि बाकी सारी चीज़े ट्रस्ट पर डिपेंड करती है. जैसे-जैसे हम इस पिरामिड के
    ऊपर चढ़ते जायेंगे हमारी प्रोब्लम्स और स्पेशिफिक होती जाएँगी.


    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    ट्रस्ट (Trust)

    किसी भी हेल्दी टीम फंक्शनिंग के लिए ट्रस्ट ही फर्स्ट स्टेप होता है. अगर आपस में
    म्यूचअल ट्रस्ट और में एक्सेप्टेन्स (acceptance) नहीं है तो टीम बिखर जाती है.. सिंपल वर्ड्स में बोले
    तो ट्रस्ट का मतलब है कि अपने साथ उठने बैठने वालो के साथ हम फ्रैंक और अच्छे ढंग
    से पेश आते है. आपके वर्कप्लेस में ट्रस्ट कुछ ऐसे काम करता है –मान लो आपको एक प्रोजेक्ट में कुछ हेल्प चाहिए. वैसे तो ये प्रोजेक्ट आपको अकेले करना था लेकिन अब आपको लगता है कि आप अकेले इसे फिनिश नहीं कर पाओगे. तो अब, अगर आपके वर्कप्लेस में ट्रस्टिंग और ओनेस्ट एनवायरमेंट (honest environment) है तो आप अपने किसी भी कलीग को हेल्प के लिए बोल सकते है और वो आपकी हेल्प कर भी देगा. लेकिन इसके उलटे अगर आपके वर्कप्लेस का एनवायरमेंट एकदम हार्श और कम्पटीटिव है और कोई भी किसी पर ट्रस्ट नहीं करता तो ऐसे में ना तो आप किसी से हेल्प मांगेंगे और ना ही कोई खुद आपकी हेल्प के लिए आएगा. होगा ये कि शायद लास्ट में आपका प्रोजेक्ट जैसे का तैसा पड़ा रहे।

    इसी तरह आप शायद इतने टेंशन में आ जाए कि सारा टाइम अपने प्रोजेक्ट को पूरा करने में ही लगा
    दे. लैक ऑफ़ ट्रस्ट के ये कुछ बेहद बुरे कोनसिक्वेंसेस (consequences ) होते है –अनहेल्दी
    कोम्प्टीटिवनेस और बर्न आउट सिंड्रोम (burn-out syndrome.) बर्न आउट सिंड्रोम के
    बारे में हम सब जानते है. लेकिन ये बात सब नही जानते कि बर्न आउट सिंड्रोम उन
    एम्प्लोयीज़ में ज्यादा होता है जो अपना वर्क रिलेटेड स्ट्रेस अपने कलीग्स या बोस
    के साथ शेयर नहीं कर पाते. इस बुक के ऑथर एक्सप्लेन करते है कि पर्सनल एक्सपिरियेंश शेयर करने से ट्रस्ट इम्प्रूव किया जा सकता है. टीम बिल्डिंग्स इसके लिए एक ज़रूरी
    शर्त है -ताकि को-वर्कर्स मिले और आपस में स्टोरीज शेयर करे.जैसे कि आप सारा काम
    खुद अकेले करने के बजाये कलीग्स की हेल्प ले सकते हो. इसमें शर्माना नहीं चाहिए क्योंकि आप भी उनके काम आ सकते हो. किसी की हेल्प के लिए कुछ ऐसे बोल सकते हो: “हे, जब मैंने ये प्रोजेक्ट लिया था तो बड़ा ईजी लग रहा था लेकिन अब लगता है कि मुझे हेल्प की ज़रूरत पड़ेगी. क्या तुम कुछ हेल्प
    करोगे,?” हेल्प मांगने के और भी तरीके है -हेल्प ऑफर करो. दूसरो की हेल्प करने में पीछे मत
    हटो-लेकिन हमे गलत ना समझो क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि आप हेल्प करने की पोजीशन में नहीं होते है. तो क्या हुआ ? आप अपना पॉइंट रख सकते है कि आप क्यों हेल्प नहीं कर सकते. क्या आपने सोचा है कि एब्सेंस ऑफ़ ट्रस्ट का होना कैसा लगता है ? इमेजिन करो कि लोगो की एक टीम जहाँ लोग अपनी वीकनेस एक दुसरे को शो नहीं कराना चाहते. अब इस टीम में प्रोग्रामर्स है जो एक एप्लीकेशन बनाने की कोशिश में लगे है लेकिन बना नहीं पा रहे. क्योंकि उनमे से कई लोग ये बात एक्सेप्ट करने को तैयार ही नहीं है कि उन्हें प्रोग्रामिंग के बारे में सारी नोलेज नहीं है. अब क्योंकि ये प्रोग्रामर्स अपनी मिस्टेक्स और वीकनेसेस छुपा रहे है इसलिए इनके पास इतना टाइम और एनेर्जी नहीं है कि ये एक दुसरे की हेल्प कर सके. और आपस में उनकी फाईट भी होती रहती है -हमे गलत नहीं बोल रहे, कोनफ्लिक्ट्स (conflicts)होना नार्मल चीज़ है
    लेकिन प्रॉब्लम तब आती है जब लोग एक दुसरे परbपर्सनल अटैक करने लगते है तब बात वही
    की वही रह जाती है. इसीलिए जो लोग ऐसे अनट्रस्टिंग वर्क एनवायरमेंट मेंbकाम करते है वो अक्सर
    काफी रिवेंजफुल भी होते हैb-ये लोग अपनी इंसल्ट कभी नहीं भूलते और जैसे हीbचांस
    मिलता है अपनी भड़ास निकाल देते है. और जब b इस तरह की कोई डिसफंक्शनल टीम होती है
    तो उसbटीम के मेम्बर आपस में बात नहीं करते ख़ासकर हेल्प मांगने के बारे में सोच
    भी नहीं सकते. फिर ऐसे माहौल टीम के मेम्बर आपस में बात नहीं करते ख़ासकर हेल्प मांगने
    के बारे में सोच भी नहीं सकते. फिर ऐसे माहौल में कंस्ट्रक्टिव क्रीटीज्म का तो
    सवाल ही नहीं उठता और ये चीज़ किसी भी बिजनेस के लिए एक खतरे की घंटी है. तो एक
    टूस्टिंग टीम कैसी होती है? चलो एक बार फिर प्रोग्रामर्स के एक्जाम्पल से समझते है. सबसे पहले तो ऐसी टीम के लोग अपनी शोर्टकमिंग्स, मिस्टेक्स और लैक ऑफ़ स्किल्स को लेकर फ्रेंक होते है यानी अपनी कमियां छुपाते नहीं है. जब एक बैक एंड डिज़ाइनर कोई प्रॉब्लम फेस कर रहा होता है तो वो अपने बॉस के पास जाने से डरेगा नहीं. और सबसे इम्पोर्टेट बात कि उसका बॉस ये नहीं बोलेगा : “व्हट ? मै तुम्हे प्रोब्लम सोल्व करने के लिए सेलेरी देता हूँ” अगर तुमसे नहीं होता तो कोई और कर लेगा!”. इसके एकदम उलटे, ट्रस्टिंग टीम का बॉस पहले तो उस प्रोग्रामर की अप्रोच की रिस्पेक्ट करेगा कि वो हेल्प के लिए आया. और फिर अपने एम्प्लोयी की हेल्प करने की पूरी कोशिश भी करेगा. एक ट्रस्टिंग टीम के मेम्बर एक दुसरे की मिस्टेक एक्सेप्ट करने को रेडी रहते है और कोई रिवेंज वाली फीलिंग नहीं रखते. लेंसीओनी आयूं करते है कि एक ट्रस्टिंग एनवायरमेंट डेवलप करने के लिए अपने को-वर्कर्स की हिस्टरी जानना सबसे बैटर रास्ता है. क्योंकि इसके पीछे एक गुड रीजन ये है कि जब आप लोगो को अच्छ से समझते हो तो आप फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (Fundamental Attribution
    Error) करने से बचते है. हम आपको इस साईंकोलोजिकल फेनोमेंनॉन के बारे में बाद में बताएँगे. फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (Fundamental Attribution Error) तब होता है जब आप किसी के बिहेवियर पर बगैर सोचे समझे रिएक्ट करते है. मान लो जैसे कि आप किसी बड़ी कंपनी में कई सारे एम्प्लोयीज़ के साथ काम करते है लेकिन आप सबको जानते नहीं है. आप अपनी टेबल पर बैठकर काम कर रहे है कि तभी आपका कलीग गुस्से में आपके पास आकर कुछ कम्प्लेंट करने लगता है जिसके लिए वो आपको ब्लेम कर रहा है. अब अगर आप फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर कर रहे है तो आपको लगेगा कि आपका कलीग एक नर्वस और फ्रस्ट्रेटेड बंदा है और ऐसे इंसान के साथ काम करना इम्पोसिबल है. दुसरे वर्ड्स में बोले तो आपको यही लगेगा कि उसकी कुछ पर्सनल प्रॉब्लम है इसीलिए वो इस तरह बिहेव कर रहा है. लेकिन सोचो ज़रा, अगर आपने उसकी पर्सनल हिस्ट्री पता की होती तो आप समझ सकते कि उसके इस गुस्से के पीछे एक वजह है. उसका अभी-अभी डिवोर्स हुआ है और वो काफी बुरे टाइम से गुज़र रहा है क्योंकि उसे अपने बच्चो की कस्टडी चाहिए. ये सब जानने के बाद आपका व्यू पॉइंट एकदम बदल जाएगा और आप उसके साथ सॉफ्ट वे में बात करोगे.

    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    टू टाइप ऑफ़ कंफ्लिक्ट (Two Types of
    Conflict)

    सारे कंफ्लिक्ट बुरे नहीं होते. दो टाइप के कंफ्लिक्ट होते (conflicts)- एक होते
    है पर्सनल और दूसरा प्रोफेशनल टाइप के जोकि अक्सर कॉन्सेप्ट्स के उपर होते है. लेकिन पर्सनल
    कांफ्लिक्ट्स नहीं होने चाहिए -क्योंकि हर बार आप ओवरइमोशनल होकर सामने वाले के लिए नेगेटिव सोचने लगते हो, आपके मन में जेलेसी, नफरत और कॉम्पटीशन की फीलिंग्स आने लगती है. लेकिन कलीग्स के बीच अगर कॉन्सेप्ट्स का कंफ्लिक्ट है तो ये एक ऑब्जेक्टिव चीज़ है इसमें आप पर्सनल चीज़े इन्वोल्व नहीं करते. हालाँकि कई बार इसमें भी लोग इमोशनल हो जाते है लेकिन ये इमोशंस हेल्दी होते है और होने भी चाहिए क्योंकि आप दुसरे के आईडियाज और आर्ग्युमेंट्स पर रिएक्ट करते हो.
    जैसे मान लो कि स्टीव जॉब्स अपने एक मैनेजर के पास आकर बोलता है” “
    देखो, इस तरह की हरकत जो तुमने की है कोई बेवकूफ ही करेगा, मुझे तो ये समझ नहीं आता कि तुम्हे मैंने जॉब पे रखा ही क्यों?”.
    अब आप खुद ही सोचो क्या ये सही तरीका है अपने एम्प्लोयीज से बात करने का? इसके
    बजाये जॉब्स. अगर कुछ इस तरह बोले: “ देखो, मुझे लगता है कि तुमसे एक बड़ी मिस्टेक हुई है, मै
    जानता हूँ कि तुमहरा इंटेंशन नहीं था लेकिन ऐसा हुआ है. मै तुम्हारी नॉलेज और एक्सपिरिएंश की वैल्यू
    करता हूँ लेकिन तुम्हारे जैसे एक्सपर्ट से मुझे ये एक्सपेक्टेशन नहीं है कि तुम इस टाइप की मिस्टेक रीपीट करोगे.” इसलिए मुझे बताओ कि ऐसा क्यों हुआ?” इस एक्जाम्पल में स्टीव जॉब्स ज्यादा अंडरस्टेंडिंग और वार्म रोल में है, और सबसे बड़ी बात कि वो उस मैनेजर
    को पर्सनल लेवल पर जाके कुछ नहीं बोल रहे बल्कि सिर्फ एक्सप्लेनेशन मांग रहे है.
    हमे ये समझने की बहुत ज़रूरत है कि इन दो टाइप्स के कांफ्लिक्ट्स के बीच डिफ़रेंस है. कुछ लोग सोचते है कि किसी भी टाइप का कांफ्लिक्ट्स अच्छा नहीं है इसलिए इसे अवॉयड किया जाए. इससे होता ये है कि ऐसे लोग अपने ओपिनियनकभी शेयर ही नहीं कर पाते है. लेकिन देखा जाए तो ये कितनी गलत बात है -लोग कांफ्लिक्ट्स के डर से चुप है, अपना सजेशन देने से डरते है. हम एक डेमोक्रेसी में रहते है जहाँ सबको अपनी बात कहने का हक़ है. और डाइवरसिटी ऑफ़ ओपिनियन काफी मैटर करती है. अपने एम्प्लोयीज़ का माइंड स्टेट जानने का सबसे अच्छा तरीका है रेगुलर स्टाफ मीटिंग. इन मीटिंग्स में बॉस को कुछ ऐसे बिहेव करना चाहिए
    “द फर्स्ट अमोंग इक्वल पीपल”. उसे श्योर करना होगा कि हर चीज़ बगैर किसी
    रिसट्रिकशन (restricting) और डीबेट के ऑर्डर में रहे. एक अच्छा सीईओ सबके ओपिनियन सुनने के बाद ही अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू रखता है. इस तरह से आप अपनी मीटिंग में बेकार की बटरिंग, चापलूसी और डिसओनेस्ट क्लेम्स को अवॉयड कर सकते है. मोस्ट इम्पोर्टेटली कि आप अपने एम्प्लोयीज़ को एंकरेज करेंगे कि वो फ्रेंक और ऑनेस्ट अप्रोच के साथ अपना काम करे क्योंकि उनके मन में कंफ्लिक्ट का कोई डर होगा ही नहीं. मगर ऐसा भी ना हो कि आपको कांफ्लिक्ट्स से प्यार ही हो जाए –इस बुक के ऑथर इसे कुछ इस तरह एक्सप्लेन करते है: मुझे नहीं लगता कि कोई भी हर वक्त
    कांफ्लिक्ट्स पसंद करेगा, लेकिन लाइफ में अगर थोडा अनकॉमफ्रटेबल (uncomfortable)फील ना हो तो ये रियल लाइफ नहीं है. हमे हर हाल में अपना काम करते रहना है” स्टीव जॉब्स अक्सर अपने इन्वेस्टर्स के साथ बहस में पड़ जाते थे, उनके आईडियाज इतने बोल्ड और इनोवेटिव होते थे कि बाकी लोग कोई क्रूशियल स्टेप लेने से डरते थे. लेकिन स्टीव जॉब्स कांफ्लिक्ट्स से घबराते नहीं थे, उन्हें पता था कि उन्हें क्या चाहिए और इसीलिए कभी पीछे नहीं हटते थे.
    हालाँकि वे इस बात का पूरा ख्याल रखते थे कि पर्सनल मैटर्स डीबेट में इन्वोल्व ना
    हो. वो लोगो से सिर्फ अपने आईडियाज पर बात करते थे और ये चीज़ उनके आस-पास रहने
    वालो को धीरे-धीरे समझ आती थी. आई-फोन को मार्किट में इंट्रोड्यूस करने से पहले
    यही हुआ. जॉब्स के इन्वेस्टर्स इस बिजनेस अपोरच्यूनिटी को लेकर श्योर नहीं थे, फिर
    भी स्टीव जॉब्स ने उनकी इस कंज़रवेटीव्नेस (conservativeness) सोच को और डर को
    कभी भी क्रीटीसाइज़ नहीं किया. वे बस आई-फोन की क्वालिटी पर बात करते रहे और
    अल्टीमेटली वर्ल्ड का सबसे पोपुलर फ़ोन बनाकर ही दम लिया.

    अब आप खुद ही सोचो क्या ये सही तरीका है अपने एम्प्लोयीज़ से बात करने का? इसके
    बजाये जॉब्स अगर कुछ इस तरह बोले: “ देखो, मुझे लगता है कि तुमसे एक बड़ी मिस्टेक हुई है, मै
    जानता हूँ कि तुमहरा इंटेंशन नहीं था लेकिन ऐसा हुआ है. मै तुम्हारी नॉलेज और एक्सपिरिएंश की वैल्यू
    करता हूँ लेकिन तुम्हारे जैसे एक्सपर्ट से मुझे ये एक्सपेक्टेशन नहीं है कि तुम इस टाइप की मिस्टेक रीपीट करोगे.” इसलिए मुझे बताओ कि ऐसा क्यों हुआ?” इस एक्जाम्पल में स्टीव जॉब्स ज्यादा अंडरस्टेंडिंग और वार्म रोल में है, और सबसे बड़ी बात कि वो उस मैनेजर को पर्सनल लेवल पर जाके
    कुछ नहीं बोल रहे बल्कि सिर्फ एक्सप्लेनेशन मांग रहे है. हमे ये समझने की बहुत ज़रूरत
    है कि इन दो टाइप्स के कांफ्लिक्ट्स के बीच डिफ़रेंस है. कुछ लोग सोचते है कि किसी
    भी टाइप का कांफ्लिक्ट्स अच्छा नहीं है इसलिए इसे अवॉयड किया जाए. इससे होता ये है
    कि ऐसे लोग अपने ओपिनियन कभी शेयर ही नहीं कर पाते है. लेकिन देखा जाए तो ये कितनी
    गलत बात है -लोग कांफ्लिक्ट्स के डर से चुप है, अपना सजेशन देने से डरते है. हम एक
    डेमोक्रेसी में रहते है जहाँ सबको अपनी बात कहने का हक़ है. और डाइवरसिटी ऑफ़
    ओपिनियन काफी मैटर करती है. अपने एम्प्लोयीज़ का माइंड स्टेट जानने का सबसे अच्छा तरीका है रेगुलर स्टाफ मीटिंग. मिलता ह तब उनक अदर भा एक कामन गालक लिए कमिटमेंट की फीलिंग आ जाती है. वुल्फ ऑफ़ द वाल स्ट्रीट की स्टोरी हर कोई जानता है -जॉर्डन बेलफोर्ट. मूवी मेकर मार्टिन
    स्कोर्सेसे ने इसके उपर ये मूवी बनाई थी. इस मूवी को इसके कंटेंट के लिए क्रिटिक्स भी फेस करना पड़ा -हालाँकि मूवी टीम ने काफी बढ़िया तरीके से शो किया था कि एक लीडर का बिहेवियर किस टाइप का हो. जॉर्डन बेलफोर्ट हमेशा अपने एम्प्लोयीज़ के टच में रहता था। वो सबको पर्सनली जानता था. सबसे बड़ी बात तो ये कि उसके एक्जीक्यूटिव स्टाफ को अच्छे से पता होता था कि उसे क्या चाहिए. और सेम मैसेज वो हर एम्प्लोयी तक पहुंचा देते थे. और क्विक डिसीजन के लिए ये ज़रूरी भी था क्योंकि हर कोईटच में रहता है जिससे इन्फोरमेशन एक पॉइंट से दुसरे पॉइंट तक ईजिली पहुँच जाती है. और फिरhटीम उस इन्फोरमेशन पर क्विकली रिएक्ट करती है. कासकेडिंग कम्यूनिकेशन (Cascadinghcommunication ) का मतलब है कि मोस्ट इम्पोर्टेट डिसीज़न्स एक कंसिस्टेंट मैनर में ट्रांसमिटेड किये जाए. सीईओ का मैसेज एक्जीक्यूटिव मैंनेजर तक फॉरवर्ड किया जाए और फिर बाकी एम्प्लोयीज़ तक भी. यही कासकेडिंग कम्युनिकेशन (cascading communication) एसेंस है -टॉप लेवल की इन्फोर्मेशन को लोवर लेवल्स तक एफीशिएंटली वो सबको पर्सनली जानता था. सबसे बड़ी बात तो ये कि उसके एक्जीक्यूटिव स्टाफ को अच्छे सेपता होता था कि उसे क्या चाहिए. और सेम मैसेज वो हर एम्प्लोयी तक पहुंचा देते थे. और क्विक डिसीजन के लिए ये ज़रूरी भी था क्योंकि हर कोई टच में रहता है जिससे इन्फोरमेशन एक पॉइंट से दुसरे पॉइंट तक ईजिली पहुंच जाती है. और फिर टीम उस इन्फोरमेशन पर क्विकली रिएक्ट करती है. कासकेडिंग कम्यूनिकेशन (Cascading communication ) का मतलब है कि मोस्ट इम्पोर्टेट डिसीज़न्स एक कंसिस्टेंट मैनर में ट्रांसमिटेड किये जाए. सीईओ का मैसेज एक्जीक्यूटिव मैंनेजर तक फॉरवर्ड किया जाए और फिर बाकी एम्प्लोयीज़ तक भी. यही कासकेडिंग कम्युनिकेशन (cascading communication) एसेंस है -टॉप लेवल की इन्फोर्मेशन को लोवर लेवल्स तक एफ़ीशिएंटली फॉरवर्ड किया जाए. जॉर्डन बेलफोर्ट को पता भी नहीं था कि उसका तरीका कैस्केडिंग कम्युनिकेशन (cascading communication) है. मीटिंग्स के टाइम वो एकदम फ्रेंक और ऑनेस्ट वे में अपनी बात बोलता था. और अपने एम्प्लोयीज़ से डायरेक्ट बात करना नहीं भूलता था ताकि वो अपने मैंनेजर्स की कोई भी एरर ओन द स्पॉट ही करेक्ट कर सके

    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    एकाउंटेबिलिटी (Accountability)

    जो लोग वार्म और ट्रस्टिंग एनवायरमेंट में काम करते है, कभी रिसपोंसेबिलिटी से
    नहीं डरते है. इसी तरह अगर लोगो में कमिटमेंट होगी तभी तो उनमे अकाउंटेबिलिटी आएगी. किस भी टीम में जब गुड कमिटमेंट होती है-उसे अपने प्राइमरी गोल्स के बारे में पता होता है
    -अपनी रिसपोंसेबिलिटी पता होती है. गोल्स अगर क्लियर और ट्रांसपेरेंट हो तो आप
    अकाउंटेबिलिटी (accountability) अवॉयड कर ही नहीं सकते. जैसे कि माना कोका-कोला में किसी
    एम्प्लोई को बहुत सारी बोटेल्स बनाने का टास्क मिला है. अब ये एक अनक्लियर गोल है जहाँ आपको पता ही नहीं चल पायेगा कि उस एम्प्लोई ने अच्छा काम किया या बेकार. वही अगर उक्स एम्प्लोई को 1000 बोटल्स बनाने का टास्क मिलता तो उसके काम को जज करना ईजी हो जाता. जिन लोगो में काम को लेकर एनथूयाज्म (enthusiasm) रहता है, उनमे रिसपोंसेबीलिटी भी होती है. यहाँ तक कि ऐसे लोग खुद ही अपने सर रिसपोंसेबिलिटी लेंगे क्योंकि उन्हें काम से प्यार है. तो आप देख सकते है कि अगर आपके पास भी एक हादली मोटीवेटेड और कम्पटीटिव पोगामर्स की टीम है
    तो अकाउंटेबीलिटी खुद ही आ जाएगी. हाँ ये भी ज़रूरी है कि एम्प्लोयीज़ को उनकी
    पूअर परफोर्मेंस को लेकर उनसे जवाब माँगा जा सकता है. लेंसीओनी बताते है कि पूअर
    परफ़ॉर्मर्स को इम्प्रूवमेंट के लिए एंकरेजमेंट की ज़रूरत होती है जो उन्हें मिलनी चाहिए. उन्हें इस बात के लिए इन्सल्ट किया जाना ठीक नहीं होगा. अगर आपको अपने वर्कर्स उतने एफिशिएंट नहीं लग रहे तो उन्हें लार्ज मीटिंग में बुलाकर ह्यूमिलेट मत करो, इसके बजाये उससे पर्सनली जाकर बात करो कि उसे कहाँ प्रोब्लम आ रही है. आप की एंकरेजमेंट उसे इम्प्रूवमेंट का चांस देगी. अकाउंटेबिलीटी का ये मतलब भी है कि जितने भी एम्प्लोयीज़ है, उन सब में सेम लेवल ऑफ़ रिसपोंसेबिलिटी होना ज़रूरी है. जैसे
    एक्जाम्पल लेते है, जो टीम मेम्बर उम्मीद से कम वर्क करते है, अपनी मिस्टेक के लिए अकाउंटेबल होने
    चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं करते बाकी एम्प्लोयीज़ को एक नेगेटिव मैसेज जाएगा, उनकी फीलिंग्स कुछ ऐसी होगी : “आई केन नोट बिलिव दिस! आई ऍम पुटिंग इन आल दिस वर्क एंड सी अदर पीपल गेटिंग अवे विद देयर लेज़ीनेस
    इज़ अनएक्स्प्टेबल” (I cannot believe this! | am putting in all this work
    and to see other people getting away with their laginarnir| am putting in all
    this work and to see other people getting away with their laziness is
    unacceptable.”)

    सबसे इम्पोर्टेट चीज़ है कि आप खुद की रिसपोंसेबीलिटी समझो वर्ना होगा ये कि लोग
    आपको एक हिपोक्रेट (hypocrite) समझेंगे जो सिर्फ लेक्चर देता है. जिससे आपको वो
    रिस्पेक्ट भी नहीं मिलेगी. खासकर जब सब मनमुताबिक़ ना हो तो ये और भी ज़रूरी हो जाता है. तब रियल लीडर आगे बढकर अपनी रिसपोंसेबीलिटी लेता है. एनशिएंट रोमन्स ठीक यही करते थे -जब भी
    अनस्टेबल और वायलेंस (unstable, violence) माहौल क्रिएट होता, एक तानाशाह आगे बढकर पूरी कंट्री का चार्ज ले लेता था. और जब मुश्किल टाइम गुज़र जाता और फिर से शान्ति का माहौल होता था तो वो लीडर खुद ही कम ऑटोक्रेटिक रोल ले लेता था. अपनी दूसरी बुक “द एडवांटेज” में
    लेंसीओनी इस टॉपिक को थोरोली एक्सप्लेन करते है. “कोई भी लीडर अपनी टीम मेंबर्स के लिए अगर एक सेफ एनवायरमेंट क्रिएट करना चाहता है तो उसे खुद आगे आकर कुछ ऐसा करना होगा जो पहले
    अनसेफ और अनकम्फर्टबल लगे, उसे ऐसा कोई रिस्क ज़रूर लेना पड़ेगा ताकि बाकी मेंबर्स
    एक काइंड वे में रिसपोंड करे. जो लीडर होता है वो अपनी टीम के आगे हमेशा एक
    एक्स्ट्राओर्डीनेरी लेवल ऑफ़ सेल्फिसनेस और डेडीकेशन (selflessness and dedication
    ) दिखाता है. और यही बात उसे इतना कॉफिडेंट बना देती है कि सेम चीज़ वो दूसरो से
    भी एक्स्पेक्ट कर सकता है..”

    अकाउंटेबिलीटी के बिना कोई भी टीम ऐसी ही जैसे किसी बास्केटबॉल टीम में सारे
    प्लेयर्स ऍमवीपी बनना चाहे. सेम गोल यानी विनिंग के लिए ट्राई करने के बजाये हर कोई अपने इंडीविजूएल गोल्स के पीछे पड़ा है और टीम गोल को नेगलेक्ट करते रहते है. लेकिन जीतने के लिए उन्हें ये बात समझनी होगी कि टीम में हर एक का डिफरेंट रोल है. टीम में बस एक एमवीपी होता है- लीडर. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि बाकी पोजीशन्स मैटर नही करती. बल्कि बाकी टीम प्लेयर्स भी उतने ही इम्पोर्टेट है जितना एमवीपी लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि एमवीपी को हर टाइम प्रेज़ करो -उन्हें पता है कि वो अच्छा कर रहे है एक स्पोर्टिंग वर्कप्लेस में एम्प्लोयीज़ को समझना होगा कि वो सब एक इंडीसपेंसेबल टीम का पार्ट है जिनके बिना पूरी टीम बिखर जायेगी. इसलिए सबको चाहिए कि एक दुसरे को बैंक बोलते हुए सबकी कंट्रीब्यूशन और हेल्प को एकनॉलेज (acknowledge ) करे.

    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    अटेंशन टू रिजल्ट्स (Attention to Results)

    अगर टीम में ये सारी क्वालिटीज है –म्यूचवल ट्रस्ट, हेल्दी क्रीटीज्म,
    अकाउंटेबिलीटी, और कमिटमेंट -तभी सब एम्प्लोयीज़ रिजल्ट्स पर ध्यान दे पायेंगे. इम्पोर्टेस इस बात को दी जानी चाहिए कि कलेक्टिव रिजल्ट्स प्रायोरिटी है और उसके बाद इंडीविजुअल अचीवमेंट आती है. इसके अलावा ये भी नोटिस करते रहे कि कहीं एम्प्लोयीज़ टीम गोल को इग्नोर करके इंडीविजुअल गोल्स को इम्पोर्टेस तो नहीं दे रहे. टीम के अंदर कभी भी एक्सट्रीम इंडीविजुएलिस्म (Extreme individualism )नहीं आना चाहिए. जो लोग सिर्फ अपने टारगेट पे ध्यान देते है ऐसे लोग टीम वर्क के लिए ज्यादा मोटीवेट नहीं होते. इसीलिए उनका प्रोडक्टिव लेवल और एफिशियेंशी भी ज्यादा नही होती. और ये पोसिबल है कि दुसरे एम्प्लोयीज़ भी उनकी कॉपी करके अपना-अपना फायदा सोचने लगे- इस सिचुएशन में इंडीविजुयालिज्म (individualism) एक डेडली डिजीज (deadly disease.) की तरह कंपनी में फ़ैल सकता है. हर गुड टीम का एक स्कोर बोर्ड होता है या ऐसी ही कोई चीज़ जहाँ टीम प्रोग्रेस को मार्क किया जाये और साथ ही हर एम्प्लोयीज़ को पता होना चहिये कि ग्रुप गोल्स में में उसका क्या
    कंट्रीब्यूशन है. मान लो जैसे कोई एम्प्लोई एक्सट्रीमली इंडीविजुअलस्टिक (individualistic) है जो
    हमेशा अकाउंटेबिलिटी को अवॉयड करता है, बस उतना ही काम करता है जितना नेसेसरी है और
    हमेशा उसे घर जाने की जल्दी लगी रहती है. अब इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए लीडर इस लेज़ी
    एम्प्लोई के पास जाकर बोलेगा: “देखो, जैसे तुम काम कर रहे हो, मुझे नहीं लगता तुम टीम वर्क को
    वैल्यू देते हो, और अगर तुम टीम वर्क में बिलीव नहीं करते तो मेरे पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखो – जितनी तुम टीम की हेल्प करोगे उतना ही टीम भी तुम्हारी हेल्प करेगी. तुम टीम का पार्ट हो इसलिए अगर टीम प्रोग्रेस करेगो तो तुम भी प्रोग्रेस करोगे. कुल मिलाकर अपने एम्प्लोयीज़ के सामने ये क्लियर कर दो कि कलेक्टिव गोल्स के काम करने से सबको अपने इंडीविजुएल और पर्सनल गोल्स अचीव करने में भी हेल्प मिलेगी. चलो अब बिजनेस और कॉर्पोरेट सेटिंग के अलावा कुछ और बात करते है. जो सोसाइटी कलेक्टिव और ग्रुप गोल्स को ज्यादा वैल्यू करती है, अक्सर एफिशिएंट और हार्डवर्किंग लोगो से भरी होती है. जैसे अब चाइना को ही ले लो. हम यहाँ आपको चाइनीज़ सोसाइटी का लम्बा चौड़ा एक्जामिनेशन नही देंगे. लेकिन आपको पता होगा कि ये सबसे अमीर
    और एडवांस्ड कंट्रीज में से एक है. और एक इम्पोर्टेट बात कि इसमें कम्यूनिज्म (communism) का
    कोई रोल नहीं है. ये चाईनीज सोसाइटी की कलेक्टिव मेंटेलिटी है जिसने कई सौ साल पहले
    ही कम्यूनिज्म को प्रीडेट कर लिया था और यही मेंटलिटी आज के चाइना को रीप्रेजेंट करती है. एक
    एक्जाम्पल है: चाइना और बाकी सारी एशियन कंट्रीज में ये ट्रेंड है की लोगो के लिए
    फेमिली फर्स्ट है.. यही चीज़ चाइनीज़ लोग अपने वर्कप्लेस में भी करते है उनके लिए
    ग्रुप गोल्स फर्स्ट नंबर पे आते है. और जेपेनीज़ लोग तो इससे एक स्टेप और आगे है. ये
    कहना गलत नही होगा कि चाइनीज़ और जेपेनीज लोगो के लिए उनके को-वर्कर्स ही सेंकंड
    फेमिली है. हम ये नहीं बोल रहे कि वेस्टर्न सोसाइटी भी चाइना या जेपेन
    (Japan).जैसी बने लेकिन इनसे काफी कुछ लर्न कर सकते है. खासकर बात अगर टीमवर्क की हो

    The Five Dysfunctions of a Team
    Patrick Lencioni
    कनक्ल्यूजन (Conclusion)

    ग्रुप एफर्ट में कम्प्लीटली कमिटेड रहना एक चीज़ है लेकिन अब्यूज्ड होना, या मेनीपुलेटिंग बिहेवियर
    बर्दाश्त करना एक डिफरेंट चीज़ है. हालाँकि टीम वर्क से आपको वर्क फ्रंट में काफी
    कुछ अचीव हो सकता है लेकिन ऐसा ना हो कि टीम वर्क के नाम पर कोई आपका फायदा उठा ले. जैसे आपका कलीग अपने सारे काम आपसे करवा रहा है -ऐसे में आपको खुद ही कोई स्टैंड लेना पड़ेगा वरना वो आपको यूं ही एक्सप्लोइट करंता रहेगा. आप खुद के लिए खड़े नहीं होंगे तो कोई और क्यों होग?
    इसीलिए ये इम्पोर्टेट है कि आप अपनी रिसपोंसेबीलीटीज़ और ओब्लिगेशंस समझे.. बेस्ट चीज़ ये है कि इस समरी में गुड टीमवर्क और को-ओर्डीनेशन ऑफ़ राइटर्स एंड एम्प्लोयीज़ के लिए भी थैक्स बोला गया है.! हमने यहाँ इस बुक में से कुछ मोस्ट इम्पोर्टेट टेकअवे दिए है:

    5. लोग जब ट्रस्ट करने लगते है तो उन्हें कंफ्लिक्ट का कोई डर नहीं रहता. अपनी टीम
    के कॉमन गोल में उनकी कमिटमेंट पूरी रहती है. एक गुड टीम कॉमन गोल्स के लिए काम करती है. और कमिटमेंट के लिए ज़रूरी है कि आपस कम्यूनिकेशन भी अच्छा हो. जिससे टीम का हर मेंबर के सामने एक बड़ी पिक्चर रखी जा सके.
    6. जो लोग वार्म और ट्रस्टिंग एनवायरमेंट में काम करते है, कभी रिसपोंसेबिलिटी से
    नहीं डरते है. इसी तरह अगर लोगो में कमिटमेंट होगी तभी तो उनमे अकाउंटेबिलिटी आएगी. किस भी टीम में जब गुड कमिटमेंट होती है – उसे अपने प्राइमरी गोल्स के बारे में पता होता है – अपनी रिसपोंसेबिलिटी पता होती है. गोल्स अगर क्लियर और ट्रांसपेरेंट हो तो आप अकाउंटेबिलिटी (accountability) अवॉयड कर ही नहीं सकते. अगर टीम में ये सारी क्वालिटीज है – म्यूचवल ट्रस्ट, हेल्दी क्रीटीज्म, अकाउंटेबिलीटी, और कमिटमेंट -तभी सब एम्प्लोयीज़ रिजल्ट्स पर ध्यान दे पायेंगे.
    -3. फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (Fundamental Attribution Error) लैक ऑफ़ ट्रस्ट का ये मेन
    कलप्रिट (culprits) है. फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (Fundamental Attribution Error) तब
    होता है जब आप सामने वाले के बिहेवियर की वजह समझे बगैर ही किसी कनक्ल्यूजन (conclusions) पर पहुंच जाते हो.
    4. सारे कंफ्लिक्ट बुरे नहीं होते. दो टाइप के कंफ्लिक्ट होते (conflicts)- एक
    होते है पर्सनल और दूसरा प्रोफेशनल टाइप के जोकि अक्सर कॉन्सेप्ट्स के उपर होते है. लेकिन
    पर्सनल कांफ्लिक्ट्स नहीं होने चाहिए – क्योंकि हर बार आप ओवरइमोशनल होकर सामने वाले के
    लिए नेगेटिव सोचने लगते हो, आपके मन में जेलेसी, नफरत और कॉम्पटीशन की फीलिंग्स आने लगती है. लेकिन कलीग्स के बीच अगर कॉन्सेप्ट्स का कंफ्लिक्ट है तो ये एक ऑब्जेक्टिव चीज़ है इसमें आप पर्सनल चीज़े इन्वोल्व नहीं करते. हालाँकि कई बार इसमें भी लोग इमोशनल हो जाते है लेकिन ये इमोशंस हेल्दी होते है और होने भी चाहिए क्योंकि आप पर्सनल अटैक नहीं करते हो बल्कि सामने वाले के आईडियाज और आर्ग्युमेंट्स पर रिएक्ट करते हो

    5. लोग जब ट्रस्ट करने लगते है तो उन्हें कंफ्लिक्ट का कोई डर नहीं रहता. अपनी टीम
    के कॉमन गोल में उनकी कमिटमेंट पूरी रहती है. एक गुड टीम कॉमन गोल्स के लिए काम करती है. और कमिटमेंट के लिए ज़रूरी है कि आपस कम्यूनिकेशन भी अच्छा हो. जिससे टीम का हर मेंबर के सामने एक बड़ी पिक्चर रखी जा सके.
    6. जो लोग वार्म और ट्रस्टिंग एनवायरमेंट में काम करते है, कभी रिसपोंसेबिलिटी से
    नहीं डरते है. इसी तरह अगर लोगो में कमिटमेंट होगी तभी तो उनमे अकाउंटेबिलिटी आएगी. किस भी टीम में जब गुड कमिटमेंट होती है – उसे अपने प्राइमरी गोल्स के बारे में पता होता है – अपनी
    रिसपोंसेबिलिटी पता होती है. गोल्स अगर क्लियर और ट्रांसपेरेंट हो तो आप अकाउंटेबिलिटी (accountability) अवॉयड कर ही नहीं सकते. अगर टीम में ये सारी क्वालिटीज है – म्यूचवल ट्रस्ट, हेल्दी क्रीटीज्म, अकाउंटेबिलीटी, और कमिटमेंट -तभी सब एम्प्लोयीज़ रिजल्ट्स पर ध्यान दे पायेंगे..
    गोल्स अगर क्लियर और ट्रांसपेरेंट हो तो आप अकाउंटेबिलिटी (accountability) अवॉयड कर ही नहीं सकते.
     
    7. अगर टीम में ये सारी क्वालिटीज है – म्यूचवल ट्रस्ट, हेल्दी क्रीटीज्म, अकाउंटेबिलीटी, और कमिटमेंट
    -तभी सब एम्प्लोयीज़ रिजल्ट्स पर ध्यान दे पायेंगे. इम्पोर्टेस इस बात को दी जानी
    चाहिए कि कलेक्टिव रिजल्ट्स प्रायोरिटी है और उसके बाद इंडीविजुअल अचीवमेंट आती है.
    8. अनकंट्रोलड इंडीविजूएलिज्म
    (Uncontrolled individualism) किसी भी टीम की दुश्मन होती है. इस तरह का
    इंडीविजूएलिज्म (individualism) नफरत, जेलेसी और कई सारे नेगेटिव इमोशंस को पैदा करता है. इसके बजाए कलेक्टिव वैल्यूज़ पर फोकस करे जो आपकी टीम को बेनिफिट दे सके.

     

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