The 80/20 Principal Book summary In Hindi

The 80/20 Principle: The
Secret of Achieving More…
Richard Koch
इंट्रोडक्शन (introduction)

क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ कम्पनिज़ दूसरों के कम्पैरिज़न में ज्यादा पैसा क्यों कमाती है ? ये एक
मिलियन डॉलर क्वेश्चन (question) है जो सब पूछते हैं लेकिन हर कोई जवाब सुनने के लिए तैयार नहीं
होता. क्या आप उनकी सक्सेस का सीक्रेट जानने के लिए रेडी हैं ? क्या इसलिए कि उनमें टैलेंट है ? या ये सिर्फ लक है और कोई कैलकुलेशन नहीं? जवाब बहुत सिंपल है . फर्स्ट , टेक इट इजी. ये आपकी
फॉल्ट नहीं है और आप किसी से कम नहीं हैं . अगर आप इस सीक्रेट को जान गए और उसे अप्लाई करने
लगे तो आप बहुत अच्छे रिजल्ट्स अचीव कर सकते इस बुक में, आप टॉप सक्सेसफुल बिज़नेस्सेस के
एक रूल के बारे में जानेंगे और ये भी जानेंगे कि कैसे उन्होंने सच में सक्सेसफुल हो कर दिखाया. ये न तो
लक है, न ही टैलेंट इसलिए आपको किसी से भी खुद को compare करने की ज़रुरत नहीं है . ये एक सिंपल फैक्ट है . वो जानते हैं कि कैसे अपनी एनर्जी और रिसोर्सेज को उन चीज़ों पर फोकस करना
है जो सबसे ज्यादा मायने रखती है . 80/20 प्रिन्सिपल इसी बारे में है . एक बार जब आप जान जाएँगे कि ये कैसे काम करता है, तो वो आपको बदल कर रख देगा . तो क्या आप इस चेंज के लिए तैयार हैं ? क्योंकि ये बुक आपके बिज़नेस , आपकी लाइफ और आपकी ओवरआल हैप्पीनेस को बदल देगी, इसलिए फोकस्ड रहिएगा.

वेलकम टू द 80/20 प्रिन्सिपल (Welcome to the 80/20 principle)
बर्नार्ड शॉ ने एक बार कहा था कि रिज़नेबल आदमी सोसाइटी के रूल्स को फॉलो करके जीने की पूरी
कोशिश करता है. लेकिन अनरिज़नेबल आदमी ट्राय करता है कि सोसाइटी उसके बनाये हुए रूल्स को
फॉलो करे. बर्नार्ड शॉ के अनुसार अनरिज़नेबल आदमी वर्ल्ड को चेंज करने में केपेबल होता है . अलग तरह से कहें तो, अगर आप अलग तरह से सोचते हैं, तो आप कुछ भी बदल सकते है. बचपन से हमें यही सिखाया गया है कि हम जो कुछ भी चाहते हैं उसे अचीव करने के लिए हमें अपना 100% देना होगा . हम बचपन से ये बिलीव करते आये हैं कि हमारे एक्शनस के सेम रिजल्ट्स होते हैं. हम यही सोचते हैं कि हर दिन, हर कस्टमर, ओप्पोर्तुनिटी बिल्कुल सेम होती है. ये सोच गलत है . अगर आपको अभी भी ऐसा लगता
है कि अपने काम में 100% सचीत करने के लिए  आपको अपना 100% देना होगा, तो आपको अपनी सोच को अपग्रेड करने की ज़रुरत है.

हमारे सोचने का तरीका दुनिया को बदल सकता है हमें स्मार्ट बनना होगा और सोचना होगा कि कम
कोशिश कर के ज्यादा रिजल्ट्स कैसे हासिल किया जा सकता है सोचिये अगर आप ऐसा कर पाए, तो
आपकी जॉब , हैप्पीनेस और लाइफ कैसी होगी. 80/20 प्रिन्सिपल ये बताता है कि हम 80%
रिजल्ट्स सिर्फ 20% एफ्फर्ट्स कर के अचीव कर सकते हैं ये प्रिन्सिपल आपके लाइफ के हर एरिया में
अप्लाई किया जा सकता है. अगर आप 8०/२० की तरह सोचना स्टार्ट करते हैं, तो आपको समझ में आएगा कि आप 80 % प्रोफिट्स कमा सकते हैं सिर्फ 20% कास्ट पर . तो बाकी 80 परसेंट का क्या? क्या वो इम्पोर्टेन्ट नहीं हैं ? इसका जवाब ये है कि जब आप ये सोचना शुरू करेंगे कि क्या ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है, तो आपको ये पता चलेगा कि आपके लिए क्या काम कर रहा है और क्या नहीं. फिर आप उन चीजों पर ज्यादा फोकस कर पाएँगे जो सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है उन बेनिफिट्स के बारे में सोचिये , जिनसे आपको
प्रॉफिट होगा अगर आप सिर्फ अपना 20 परसेंट समय और एफ्फ (efforts) उस काम में लगा रहे
होंगे जो पहले आपके लाइफ का 100 परसेंट लेता आपकी लाइफ हमेशा के लिए चेंज हो जाएगी.

इस आईडिया को पहली बार 100 साल पहले विलफ्रेडो पेरेटो ने इंट्रोड्यूस किया था. 19th सेंचुरी में
वो इंग्लैंड के अमीर लोगों के वेल्थ को स्टडी करने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने देखा कि बहुत कम लोग
अमीर थे. वो सरप्राइज नहीं हुए क्योंकि उन्होंने यही सोचा था. फिर उन्होंने वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन (पैसा किस तरह से सोसाइटी में बंटा हुआ है ) और इंग्लैंड में रहने वाले लोगों के बीच रिलेशनशिप को स्टडी करने की
कोशिश की. इस स्टडी के बाद उन्हें पता चला कि सिर्फ 20% इंग्लिश सिटीजन्स के पास 80% पैसा है . इस
डिस्कवरी ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस दुनिया में कोई बैलेंस नहीं है. इसलिए उन्होंने पुराने
समय और जगहों के अमीर लोगों के बारे में अपनी स्टडी को चालू रखा. वो बहुत सरप्राइज हुए कि हर
केस में एक ही रूल अप्लाई होता है. वो ये सोचने लगे कि: क्या इस प्रिंसिपल को लाइफ के
दूसरे एरिया, जैसे कि इकॉनमी, में अप्लाई किया जा सकता है ? यहां से 80/20 प्रिंसिपल स्टार्ट हुआ .

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हाउ टू थिंक 80/20 (How to think 80/20)

हमने अभी सीखा था कि छोटी चीज़ों से भी बड़े रिजल्ट्स मिल सकते हैं, और कभी कभी बड़ी चीजें
भी कम रिजल्ट्स देती हैं. यही सिंपल सेंस में 80/20 प्रिंसिपल है. तो इस प्रिन्सिपल को रियल लाइफ में
कैसे अप्लाई किया जा सकता है? पहले आपको अपने लाइफ पर फोकस करने की जरूरत है, उसको स्टडी
कीजिये , फिर देखिये कि आप अपने लाइफ को इम्प्रूव (improve) करने के लिए कौन से चेंजेस अपनी
लाइफ में ऐड कर सकते हैं . अच्छे रिजल्ट्स अचीव करने के लिए आपको बहुत ज्यादा हार्ड वर्क करने की
ज़रुरत नहीं है. आपको स्मार्ट बनना होगा और ये समझना होगा कि किस काम को करने में कम मेहनत करनी पड़ती है और सबसे ज्यादा प्रॉफिट होता है. कुछ भी चेंज करने से पहले टाइम ले कर ध्यान से सोचिये. ऐसा करने के दो तरीके हैं. आप 80/20 की तरह सोच सकते हैं या अपने लाइफ के उस एरिया को स्टडी कर सकते हैं जिसे आप चेंज करना चाहते हैं. फिर जब आप अपना 20% ढूंढ लेंगे, उन कारणों को स्टडी कीजिये, उन पर फोकस कर के उन्हें ठीक करने कि कोशिश कीजिये और फिर बाकी 80% सेम उसी तरह बनाने की कोशिश कीजिये.

एक्जाम्पल के लिए , ऑथर के एक टीचर ने उन्हें एक लाइफ को बदल देने वाली एडवाइस दी. उन्होंने उससे
कहा कि वो शुरू से लेकर एंड तक कभी कोई बुक नहीं पढ़ें ,जब तक कि वो रियल में उसको एन्जॉय नहीं
करना चाहते हों तो. अगर वो उस बुक से कुछ सीखना चाहते हैं , तो उसे स्मार्ट बनना होगा . उन्होंने उसे एंड को ध्यान से पढ़ने को कहा , फिर इंट्रोडक्शन को और फिर से एंड को पढने के लिए कहा . उनके हिसाब से ये काफी था क्योंकि लगभग सारी बुक्स इंट्रोडक्शन और एंड दोनों में सब कुछ समझा देती है. अगर उसे उस बुक से और इनफार्मेशन चाहिए , तो सीधे उस पार्ट पर जाना चाहिए जिसकी उसे ज़रुरत है . उसे पूरी बुक पढने की कोई ज़रुरत नहीं है . ऑथर को ये समझ में आया कि उनके टीचर उन्हें बुक कम पढ़कर ज्यादा सीखने के लिए कह रहे थे . ये एक इजी तरीका था और खत्म होने में कम समय लगता था. उन्होंने सोचा कि अगर ये एग्जाम में भी काम करेगा तो क्या होगा ? फिर उन्होंने 100 एग्जाम के सैम्पल्स को स्टडी किया. उन्होंने देखा कि स्टूडेंट्स को जितना पढ़ाया जाता था उसमें से सिर्फ 20 % पार्ट में से ही 80% एग्जाम के क्वेश्चनस (questions) आये थे. पहले उन्होंने ये सोचा कि ऑक्सफोर्ड का एजुकेशन सिस्टम स्टुपिड था. लेकिन टाइम बीतने के साथ उन्हें लगने लगा कि शायद उनके टीचर्स उन्हें , रियल वर्ल्ड जैसे वर्क करता है, उसके लिए रेडी कर रहे थे.

& Biscuits Thee (The Underground Cult)
यहाँ पर अब सवाल आता है कि इस प्रिन्सिपल ने दुनिया में कैसे कंट्रीब्यूट किया? आप सोच रहे होंगे कि
ये प्रिन्सिपल कहां यूज़ किया गया है. अभी तक इसे बहुत बार अप्लाई किया जा चुका था . उस पहली वेव (वेव मतलब अचानक से कुछ होना जो तेज़ी से बढ़ जाता है, जैसे कि कोई इवेंट का नाम ,जिसने दुनिया को बदल कर रख दिया) क्वालिटी कण्ट्रोल वेव है. यहां 80/20 का प्रिन्सिपल अप्लाई किया गया उन प्रोडक्ट्स को स्टडी करने के लिए जो कोई प्रॉफिट नहीं कमा रहे थे . रिजल्ट्स ने ये पूव (prove) किया कि अगर आप सब चीज़ों पर फोकस करने के बजाय उन 20 परसेंट अच्छी क्वालिटीज़ पर फोकस करते हैं जिसकी वजह से वो प्रोडक्ट बिक सकता है, तो आपको 80 परसेंट प्रॉफिट जल्दी मिलेगा, और वो भी कम एफ्फर्ट्स कर के .अगर सब कुछ इतना आसान था , तो प्रोडक्ट्स में क्वालिटी की कमी क्यों थी? इसका जवाब ये है कि
हर कोई इस प्रिन्सिपल को यूज़ नहीं कर रहा था. आज तक, 80/20 प्रिन्सिपल सिर्फ कुछ ही के लिए
एक सीक्रेट टूल की तरह था. वो कुछ, वर्ल्ड के सबसे सक्सेसफुल बिज़नेस्सेस हैं. अपने बिजनेस में इस प्रिन्सिपल को अप्लाई करने के लिए, आपको ट्राय करना होगा कि कम से कम एफर्ट से ज्यादा प्रॉफिट कमाया जा सके . इसमें आपको अपने बिज़नेस के हर आस्पेक्ट को इन्वोल्व करना होगा: सबसे प्रॉफिटेबल प्रोडक्ट्स , मार्केट और कस्टमर्स पर फोकस करना होगा।

इस प्रिन्सिपल का एक अच्छा एक्जाम्पल वो है जिसे जोसेफ जुरान ने 1950 में किया था. उन्होंने क्वालिटी
कण्ट्रोल पर एक रेवोलुशन शुरू की थी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कम्पनीज को अपने खराब प्रोडक्ट्स को स्टडी करना चाहिए और उन कारणों को ढूंढना चाहिए जिसकी वजह से वो मार्केट में
बिक नहीं पाए. प्रोब्लम्स को समझ लेने के बाद, उन्हें सिर्फ सबसे इम्पोर्टेन्ट क्वालिटीज़ (20 %) पर फोकस
करना चाहिए, फिर उन्हें इम्प्रूव करने की कोशिश करनी चाहिए. उनका मानना था कि इन 20 परसेंट क्वालिटीज़ को ठीक करने से प्रोडक्ट बिकने लगेंगे. ये सब डिपेंड करता है कस्टमर्स पर और वो क्या चाहते हैं उस पर. 100 परसेंट क्वालिटी को इम्प्रूव करने की कोशिश करना इम्पॉसिबल है. उन्होंने इन प्रोब्लम्स को “वाइटल फ्यू ” (vital few) कहा. ये तरीका यूज़फुल साबित हुआ. जापानी कंपनी ने इस प्रिन्सिपल को अप्लाई करना शुरू कर दिया और उन्होंने अपने प्रोडक्ट्स के द्वारा मार्केट पर कब्जा कर लिया. इस सोच ने बिज़नेस की दुनिया को बदल कर रख दिया . वेस्ट कन्टरीज में भी कम्पनीज ने 80/20 principle को अपनाना करना शुरू कर दिया. वो टोटल या परफेक्ट क्वालिटी की जगह , सिर्फ उस 20 परसेंट पर फोकस करने लगे जिसकी वजह से प्रोडक्ट्स बिक सकते थे और 80 परसेंट ज्यादा प्रॉफिट हो सकता था.

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व्हाई योर स्ट्रेटेजी इस रॉग? (Why your strategy is wrong)

आप सोच रहे होंगे कि आपकी कंपनी तो अपना बेस्ट दे रही है, और आप और आपके एम्प्लाइज भी अपना
बेस्ट दे रहे हैं. लेकिन आप पूरी तरह से गलत हैं. क्या आपकी स्ट्रेटेजी गलत है? हाँ , है. अब आप बोलेगें क्यों? क्योंकि हम स्योर हैं कि आपको पता नहीं है कि आपका पैसा कहां से आता है या आप इसे असल में कहां खो रहे हैं. और हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि आप इतना सब कुछ बहुत कम प्रॉफिट पाने के लिए तो कर नही रहे हैं. आपको अपनी स्ट्रेटेजी के ओवरव्यू (ब्रीफ स्टडी ) स्टडी की ज़रुरत नहीं है. आपकी कंपनी को “अंडरव्यू” की ज़रुरत है. ये इस बात की डीप स्टडी है कि आपका बिज़नेस आपके लिए कैसे काम कर रहा है. आपको पता होना चाहिए कि आपका पैसा कैसे कमाया जा रहा है. आपको अपने बिज़नेस के उन एस्पेक्ट्स की पहचान करने की ज़रुरत है जो आपको सबसे ज्यादा प्रॉफिट दे रहे हैं. इसमें आपके प्रोडक्ट्स , आपके कस्टमर्स, और कुछ भी जो पैसा ला रहा है वो सब शामिल है . अपने प्रोडक्ट्स के बारे में ज्यादा जानने के लिए, आपको पिछले मंथ(month) की गई सेल्स को स्टडी करना होगा. अपने कस्टमर्स के बारे में ज्यादा जानने के लिए, आपको उन कस्टमर्स या कस्टमर ग्रुप्स पर फोकस करना होगा जो आपके प्रोडक्ट्स को सबसे ज्यादा खरीदते हैं.

दूसरे आस्पेक्ट्स में वो चीजें हैं जो आप पहले से देख रहे हैं जैसे कि छोटे प्रोजेक्ट्स और बड़े प्रोजेक्ट्स का
कम्पैरिज़न करना. जो भी आपको सबसे ज्यादा प्रॉफिट देता है उसमें आपकी एनर्जी और रिसोर्सेज ज्यादा
लगाना चाहिए. एक और हेल्पफुल तरीका है ,अपने कॉम्पिटिटर को स्टडी करना. जॉर्जिया की इंटरफेस कोऑपरेशन नामक एक कंपनी कारपेट बेचा करती थी. उन्होंने अपने बिज़नेस को स्टडी किया तो देखा कि सभी लोग जो कारपेट खरीदते हैं, उनमें से सिर्फ 20 परसेंट ने कारपेट यूज़ किया था . इसलिए उन्होंने उन कारपेट्स को बेचने से फोकस हटा दिया, जो शायद कभी यूज़ नहीं किये जाएँगे और उन कारपेट्स को रिपेयर करने में शिफ्ट कर दिया जो लोग सच में अपनी डेली लाइफ में यूज़ करते थे. जिस किसी
का कारपेट खराब हो जाता था तो उसे उनकी शॉप में भेज दिया जाता था . एम्प्लाइज कारपेट को रिपेयर
करके और उसे कस्टमर के घर में रीइंस्टॉल कर देते थे. इस कंपनी ने ये जाना कि ज्यादा पैसा कमाने के लिए उन्हें उन कस्टमर्स को टारगेट करना पड़ेगा जिनसे उन्हें सबसे ज्यादा प्रॉफिट हो रहा था. वो थे कारपेट ओनर्स. अब ये कंपनी $ 800 मिलियन की कारपेट सप्लायर बन चुकी है. ये 80/20 प्रिन्सिपल के इनर वर्किंग का एक बड़ा प्रूफ है.

सिंपल इस ब्यूटीफुल (Simple is beautiful)
आपने कभी सोचा है कि क्या आप एक ऐसा बिज़नेस चला सकते हैं जो सिर्फ प्रॉफिट कमाता हो ? कोई
लॉस नहीं, कोई (pain) पेन नहीं, सिर्फ प्रॉफिट. मान लीजिए कि आपने अपने बिज़नेस और अपनी
स्ट्रेटेजी को स्टडी किया है. आपने हर एस्पेक्ट के 20 परसेंट का पता लगाया जो आपको 80 परसेंट
प्रॉफिट दे सकता है . सवाल ये है कि अब क्या करना चाहिए ? यहीं से प्रोब्लम्स स्टार्ट होने लगती हैं. बहुत सारे बिज़नेस ओनर्स अपने 80 परसेंट प्रोडक्ट्स ,जो किसी तरह से मदद नहीं कर रहे हैं, इन प्रोडेक्टस को छोड़ना नही चाहते हैं . वो सिर्फ प्रॉफिट देने वाले 20 परसेंट पर फोकस करने के आईडिया को रिजेक्ट करते
हैं. वो डरे हुए हैं और वो उस बिज़नेस में बिलीव नहीं करते हैं जो 100% प्रॉफिटेबल है. आपको अलग तरह से सोचना होगा. चेंज से लड़िये मत. चेंज लाने वाले बनिए और बस सिंपल रहिये , और सिंपल से ये मतलब नहीं है कि कम का गोल रखिये . बस उस चीज़ से छुटकारा पाईये जो पैसा नहीं कमा रही है, चाहे वो एक प्रोडक्ट , एक प्रोडक्ट फीचर, या कोई एम्प्लाइ हो.

स्मॉल का मतलब ये नहीं है कि आपको अपनी कंपनी को एक लिमिट में बाँध कर रखना है. इसे इंटरनेशनल लेवल पर ले जाईये लेकिन इसे सिंपल रखिये. कभी-कभी अलग बैकग्राउंडस के कस्टमर्स को
टारगेट करने से सर्विसेज या प्रोडक्ट्स में कुछ चेंज करने की ज़रुरत होती है. आपको स्मार्ट होना चाहिए
और अपना फोकस उस 20 परसेंट पर ही रखना चाहिए. काम को बहुत ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहिए क्योंकि आप जितना कमा रहे हैं उससे ज्यादा पैसे खो सकते हैं. याद रखिये कि (complexity) कोम्प्लेक्सिटी में ज्यादा पैसा खर्च होता है गुटर रोमेल 39 कम्पनीज के हेड हैं. उन्होंने एक बार इन कम्पनीज के कम्पैरिज़न को स्टडी किया था ताकि ये पता लगाया जा सके कि कौन सी कंपनी पैसा कमाने में सबसे बेस्ट है .
ध्यान से स्टडी करने के बाद, उन्होंने देखा कि जो कम्पनीज सबसे आगे थी, वो कम कस्टमर्स, कम
प्रोडक्ट्स और कम सप्लायरर्स पर फोकस कर रही थीं. उन्होंने अंत में ये कहा कि वो क्वालिटी जो हर
सक्सेसफुल कम्पनी में कॉमन थी वो सिम्प्लिसिटी थी. अंत में, सिंपल हमेशा ज्यादा इम्पोर्टेन्ट होता है. एक सिंपल , स्मार्ट और फोकस्ड बिज़नेस हमेशा ज्यादा अच्छा होता है इसलिए जब आप अपना 20 परसेंट ढूंढ लेते हैं तो बस उन पर फोकस कीजिये और उन चीजों को छोड़ने में डाउट मत रखिये जो असल में इतने इम्पोर्टेन्ट नहीं हैं . अगर आप सक्सेसफुल होना चाहते हैं, तो आपको ब्रेव बनना होगा.

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हुकिंग द राईट कस्टमर्स (Hooking the right customers)
1960 से पहले, सभी कम्पनीज मास प्रोडक्शन यानी बहुत ज्यादा प्रोडक्शन पर फोकस करती थी. 1960
में, थियोडोर लेविट ने एक आर्टिकल लिखा, जिसने बिज़नेस करने के पूरे व्यू पॉइंट (सोच ) को बदल दिया.
ये आर्टिकल प्रोडक्ट्स के बजाय मार्केटिंग और कस्टमर सैटिस्फैक्शन पर फोकस करने के बारे में था.
1990 तक, सक्सेसफुल कम्पनीज ने मार्केट को स्टडी करने के लिए कस्टमर – सेंटर्ड एप्रोच, यानी कि
कस्टमर पर फोकस करके डिसिशन लेना, अप्लाई करना शुरू कर दिया था. ये हिस्ट्री में एक बहुत बड़ा
शिफ्ट(चेंज) था ये सोच पूरी तरह ठीक नहीं था . एक बार कम्पनीज ने कस्टमर्स पर फोकस करना शुरू किया और अलग अलग तरह के लोगों को सैटिस्फैक्शन देने के लिए अपने आप को और बढ़ाने की कोशिश की तो प्रोडक्शन और मार्केटिंग का खर्चा बहुत ज्यादा बढ़ गया . तो ये डीसाइड करने के लिए कि कौन से कस्टमर पर फोकस करना चाहिए, आपको 80/20 को स्टडी करने की ज़रुरत है. आपके बिज़नेस को सबसे ज्यादा प्रॉफिट कराने वाले कस्टमर्स पर फोकस करना चाहिए . उनकी ज़रुरत को स्टडी कीजिये , उन्हें खुश करने के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स बनाइये जिन्हें वो कभी भी कहीं और से नहीं खरीद सकते हों.

एक ब्राडकास्टिंग कंपनी जो WQHT और WRKS रेडियो स्टेशनस की ओनर है, अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी
के कारण बहुत सक्सेसफुल रही है. वो उन थोड़े से लोगों से भी बहुत पैसा कमा लेते थे जो उनके चैनल
को रेगुलर सुनते थे . उन्होंने ऐसा कैसे किया? उन्होंने कहा कि वो अपनी बिज़नेस स्ट्रेटेजी में 80/20 रूल को फॉलो कर रहे थे. वो थोड़े लोग जो उनके चैनल को रेगुलर सुनते थे उन्होंने बस उन्हें अपना टारगेट रखा. फिर उन्होंने सिर्फ उन शोज़ को शुरू किया जिसे उनकी टारगेट ऑडियंस सुनना पसंद करती थी. उन्होंने कहा कि वो हर एक लिस्टनर (listener) पर फोकस करते थे , जो उनके टॉप 20 परसेंट फोल्लोवर्स
में से थे , और कोशिश करते थे कि वो उनके चैनल को लंबे समय तक सुनें. ऐसा करने से इन लोगों ने उन्हें वीक में 12 घंटे सुनने से बढ़ा कर 25 घंटे सुनने लगे . जरा सोचिए कि ये कंपनी कितना पैसा कमा रही होगी ? उन्होंने सिर्फ राईट कस्टमर पर फोकस किया.

द टॉप 10 बिज़नेस यूजेज़ ऑफ़ द 80/20 PRINCIPLE (The Top 10 Business Uses of the 80/20 Principle)
अब तक हमने सीखा कि 80/20 प्रिन्सिपल को कैसा अप्लाई करना चाहिए. सबसे अच्छी क्वालिटी वाले
प्रोडक्ट्स को चूज़ करने के लिए, उन चीजों की कोस्ट को कम करना चाहिए जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और मार्केटिंग और स्ट्रेटेजी के बारे में भी सीखा . इस प्रिन्सिपल को और भी जगह अप्लाई किया जा सकता है . बिज़नेस का मेन फोकस होता है सही डिसिशन लेना. अगर आप अपने बिज़नेस में बहुत सारे प्रोब्लम्स को फेस कर रहे हैं, तो रुकिए और चैन की सांस लीजिये और पता कीजिये कि कौन सा डिसिशन ज्यादा ज़रूरी है, फिर उस पर फोकस कीजिये. सिर्फ उस पर. सही डिसिशन आप सिर्फ तब ले सकते
हैं जब आप सही सवाल पूछते हैं जैसे कि कौन सी चीज़ अच्छे से काम कर रही है और कौन सी नहीं?
हम आगे किन प्रोब्लम्स को फेस कर सकते हैं? अगर आप कोई डिसिशन लेते हैं और वो ठीक से काम नहीं
करता है, तो अपने माइंड को जल्दी से चेंज कीजिये, स्टबबर्न मत बनिए. अगर आपके डिसिशनस आपको
प्रोफिट करा रहे हैं, तो सोचिये कि आप इससे भी और ज्यादा कैसे कमा सकते हैं  इस प्रिन्सिपल को इन्वेंटरी (inventory मतलब स्टॉक) कण्ट्रोल करने के लिए भी अप्लाई किया जा सकता है. अगर आप अपने स्टॉक को स्टडी करेंगे, तो आपको पता चलेगा कि सिर्फ 20 परसेंट प्रोडक्ट्स को बेच कर 80 परसेंट प्रॉफिट कमाया जाता है . तो आप अपने इन्वेंटरी में वो 80% प्रोडक्ट्स क्यों रखते हैं जो प्रॉफिट नहीं कमा रहे हैं ? क्या आप जानते हैं कि आप इन प्रोडक्ट्स पर कितना पैसा वेस्ट कर रहे हैं? हमें लगता है बहुत ज्यादा.

आप अपने प्रोजेक्ट्स को मैनेज करने के लिए भी 80/20 प्रिन्सिपल को अप्लाई कर सकते हैं. सबसे
पहले, आपको अपने प्रोजेक्ट्स को छोटे छोटे टास्क में डिवाइड करके सिंपल बनाने की ज़रुरत है. फिर
आपको उन 20 परसेंट टास्क्स पर फोकस करना चाहिए जो सबसे ज्यादा प्रॉफिट ला सकते हैं. अपने
प्रोजेक्ट के लिए एक डेडलाइन सेट करना बहुत हेल्पफुल होता है . ये आपको कम समय में ज्यादा
करने के लिए एक पुश(ज़ोर देना) देता है . फिलोफैक्स कंपनी के हेड रॉबिन फील्ड थे. ये कंपनी
बाइंडर्स बेचती थी. ऑथर इस स्टोरी को बताते हैं कि कैसे 1980 में ये कंपनी कण्ट्रोल से बाहर हो गई थी.
उन्होंने सभी टाइप के प्रोडक्ट्स को बनाने के लिए अपने स्टॉक को बढ़ा दिया था. जो बाइंडर्स वो बेच रहे
थे उनमें सभी तरह के साइज़ेस (sizes), स्किन और थीम थे. ये शायाद एक बहुत अच्छी स्ट्रेटेजी लग सकती
होगी , लेकिन इसके रिजल्ट्स बहुत खराब थे .

पहले, आपको अपने प्रोजेक्ट्स को छोटे छोटे टास्क में डिवाइड करके सिंपल बनाने की ज़रुरत है. फिर
आपको उन 20 परसेंट टास्क्स पर फोकस करना चाहिए जो सबसे ज्यादा प्रॉफिट ला सकते हैं. अपने
प्रोजेक्ट के लिए एक डेडलाइन सेट करना बहुत हेल्पफुल होता है . ये आपको कम समय में ज्यादा
करने के लिए एक पुश(ज़ोर देना) देता है . फिलोफैक्स कंपनी के हेड रॉबिन फील्ड थे ये कंपनी
बाइंडर्स बेचती थी . ऑथर इस स्टोरी को बताते हैं कि कैसे 1980 में ये कंपनी कण्ट्रोल से बाहर हो गई थी.
उन्होंने सभी टाइप के प्रोडक्ट्स को बनाने के लिए अपने स्टॉक को बढ़ा दिया था. जो बाइंडर्स वो बेच रहे
थे उनमें सभी तरह के साइज़ेस (sizes), स्किन और थीम थे. ये शायाद एक बहुत अच्छी स्ट्रेटेजी लग सकती
होगी , लेकिन इसके रिजल्ट्स बहुत खराब थे . इससे इन्वेंट्री में बहुत ज्यादा प्रोडक्ट्स भर गए थे. उसे
खरीदने वाला कोई नहीं था . एक और प्रॉब्लम थी ,इन बाइंडर्स में जो नए प्रोडक्ट्स ऐड किये गए थे; वो यूज़
करने में इतने कॉम्लेक्स थे कि इससे सिर्फ कन्फ़्युज़न होने लगी. चए इन कॉम्प्लेक्स, महंगे बाइंडर्स को बनाने में कितना पैसा खर्च किया गया होगा और अब वो सिर्फ स्टॉक में पड़े थे. इससे ये साबित होता है कि स्टॉक मैनेजमेंट आपके बिज़नेस की सक्सेस के लिए कितना इम्पोर्टेन्ट है. जरा

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द वाइटल फ्यू गिव सक्सेस टू यू (The Vital Few Give Success to You)

सक्सेस लक की वजह से नहीं बल्कि हार्ड वर्क और सिस्टेमेटिक तरह से काम करने से मिलता है . आपको
इस सीरियस होकर सोचना शुरू करना होगा कि क्या चीज़ है जो सच में पैसा कमा सकती है और फिर
बाकी चीजों को इग्नोर करना होगा . क्या आपको लगता है कि आपके सभी एम्प्लोयीज़ आपकी कंपनी में सेम वैल्यू ऐड करते हैं (वैल्यू ऐड करना मतलब उनके कॉन्ट्रिब्यूशन या काम से कंपनी को क्या फायदा हुआ है) ? सब एम्प्लोयीज़ सेम नहीं होते हैं. सभी सेम वैल्यू ऐड नहीं करते हैं. कुछ आपके काम को खराब कर देते हैं, कुछ सिर्फ पैसेंजर्स जैसे होते हैं , और कुछ बहुत इम्पोर्टेन्ट होते हैं. इसके अलावा, सभी टास्क्स (tasks) भी सेम नहीं होते हैं कुछ टास्क से पैसे कमाए जा सकते हैं , कुछ सिर्फ आपका फोकस खराब करते हैं. ज्यादा प्रॉफिट दिलाने वाले एक्टिविटीज में ज्यादा रिसोर्सेज को यूज़ करना चाहिए.
50/50 की तरह सोचना बंद कीजिये और 80/20 प्रिन्सिपल को अप्लाई करना स्टार्ट कीजिये. अपने
समय के 20 परसेंट को, एनर्जी , आर्गेनाईजेशन , बिज़नेस , एम्प्लोयीज़ पर फोकस कीजिये जो आपको 80 परसेंट प्रॉफिट करवाएँगे . प्रेजेंट में रुक मत जाईये,

आगे बढिए और ये सोचिये कि शायद आज का 20 परसेंट फ्यूचर में काम नहीं कर पाएगा . आगे की
प्लानिंग करना शुरू कर दीजिये . अपने ब्रेन को ऐसे ट्रेन कीजिये कि वो उस 80 परसेंट को ब्लॉक कर दे जो आपके लाइफ और बिज़नेस के सारे आस्पेक्ट्स में कोई काम नहीं कर रहा है. ये सिर्फ एक्शन ले कर ही किया जा सकता है. इसे करना शुरू कीजिये , और अभी शुरू कीजिये . ये स्टोरी एक एक्जाम्पल है इम्पोर्टेन्ट डिसिशन को लेने के बारे में जो आपकी सोच को बदल कर रख देगा. ऑथर के एक फ्रेंड थे. उनके फ्रेंड को अपने एम्प्लोयीज़ के बीच एनुअल बोनस को डिवाइड करने में बहुत मुश्किल हो रही थी. उनके फ्रेंड को पता था कि सौ में से सिर्फ दो एम्प्लाइज की वजह से 50 परसेंट प्रॉफिट कमाया गया था , वो रूल के अगेंस्ट जाकर उन दो एम्प्लोयीज़ को दूसरों से ज्यादा बोनस देने में हिचकिचा रहे थे. हालांकि वो दोनों ये डीज़र्व करते थे उन्हें ऐसा करने में हिचकिचाहट हो रही थी . ऑथर ने अपने फ्रेंड को आईडिया दिया कि वो उन्हें हाफ बोनस दे दें लेकिन उनके फ्रेंड ने ऐसा करने से मना कर दिया. बाद में

अपने एनालिसिस में उन्हें पता चला कि एक एम्प्लोयी ने फर्म के लिए ज़ीरो प्रॉफिट कमाया है , उसे तो ज़ीरो
बोनस मिलना चाहिए, है ना ? भले ही ऐसा करना लॉजिकल था , लेकिन बैंक के हेड ने ऐसा नहीं किया , क्योंकि वो एम्प्लोयी दूसरों के कम्पैरिज़न में ज्यादा पसंद किया जाता था. उनके फ्रेंड मेरिट के बेसिस पर नहीं, बल्कि सोशल रिलेशनशिप्स के बेसिस पर डिसिशन ले रहे थे. ये एक बहुत बड़ी गलती थी. इसकी वजह से उन्हें बहुत लॉस हो रहा था . वो बहुत लकी थे कि उस एम्प्लोयी ने किसी और जॉब के लिए वहां काम छोड़ दिया था . ये फोकस की कमी का एक अच्छा एक्जाम्पल था. उनके फ्रेंड को उन दो एम्प्लोयीज़ पर ज्यादा फोकस करना चाहिए था जो रियल में फर्म के लिए प्रॉफिट कमा रहे थे. अगर वो उन पर ज्यादा फोकस करते और सपोर्ट देते , तो वो फर्म को और ज्यादा प्रॉफिट करवाते. इसलिए अपने बिज़नेस डिसिशन लेने में hesitate मत कीजिये. ब्रेव हो कर उन “वाइटल फ्यू” पर फोकस कीजिये , जो आपके प्रोफिट्स को बहुत ऊँचा ले जा सकते हैं.

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बीइंग फ्री (being free)

80/20 प्रिन्सिपल आपको फ्रीडम दे सकता है. अपने हार्ड वर्क और कभी न खत्म होने वाले एफ्फर्ट्स के
बजाए , आप थोड़े टाइम काम करके ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. आपको बस इस प्रिन्सिपल को अपने
बिज़नेस में सीरियसली अप्लाई करना होगा. हमारा गोल ये नहीं है कि आप बस किसी एक बेनिफिट
के लिए 80/20 की तरह सोचें और बस फिर रुक जाएं. इसका ऐम है आपके ब्रेन को इस तरह ट्रेन करना
कि वो हमेशा 80/20 जैसा ही सोचे. एक बार जब आप उस स्टेट में पहुंच जाएँगे, तो आपके लाइफ का
हर काम अपने ज्यादा से ज्यादा पोटेंशियल तक पहुँच जाएगा. अगर आप ऐसा करते हैं, तो आपके लाइफ में हमेशा प्रोग्रेस होती रहेगी. प्रोग्रेस एक पॉजिटिव एप्रोच है जो आपके लाइफ को ज्यादा इन्जॉयबल बना देगा.
आपको पता होना चाहिए कि अपने एम्बिशन को पाने के लिए हमेशा ज्यादा देर तक काम करने और रातों
की नींद खराब करने की जरुरत नहीं होती है आपको अपने गोल्स तक पहुँचने के लिए दिन भर बिजी रह कर काम करने की ज़रुरत नहीं है. अगर आप 80/20 प्रिन्सिपल को यूज़ करते हैं, तो आप एक स्मार्ट आर्गनाइज्ड लाइफ जी सकते हैं. अपने गोल्स को पाने के लिए कम कोशिश ही काफी होगी.

प्रोग्रेस का मतलब फ्रीडम है. आप जहां हैं बस उससे ही खुश मत हो जाइये, दुनिया हमेशा बदलती रहती है और टॉप पर बने रहने के लिए आपको प्रोग्रेस की रेस में हमेशा जीतना होगा. द डिकलाइन एंड फॉल ऑफ रोमन एम्पायर के ऑथर एडवर्ड गिबन हैं. उन्हें प्रोग्रेस का कैप्टेन माना जाता है. उनका मानना था कि इंसान कभी भी satisfied नहीं होगा . लोग हमेशा परफेक्शन को खोजेंगे. परफेक्शन सिर्फ प्रोग्रेस करके ही हासिल की जा सकती है. वो इस नतीजे पर पहुंचे कि वेल्थ और हैप्पीनेस हमेशा बढ़ती रहेगी. अब आप चाहे जितना भी पैसा कमा रहे हों, हमेशा कोई ऐसा होगा जो आपसे ज्यादा कमा रहा होगा . आपके बिज़नेस में चाहे आप कोई भी स्ट्रेटेजी लगा कर खुश हो रहे होंगे , कोई और आपसे बेटर स्ट्रेटेजी अप्लाई कर रहा होगा तो आप सबसे बेस्ट होने की कोशिश क्यों नहीं करते ? ये तो साबित हो चुका है कि 80/20 का प्रिन्सिपल सभी के लिए काम करता है. अब आपकी बारी है.

कनक्ल्यूजन (conclusion)
इस जर्नी में, आपने इम्पोर्टेन्ट लेसंस सीखे हैं जो आपकी लाइफ को बदल देंगे. आपने सीखा कि आपके
लाइफ को हर तरह से पूरा करना पॉसिबल है. आप कुछ सिंपल ट्रिक्स फॉलो करके कम काम से ज्यादा
पैसा कमा सकते हैं. आपको बस अपने लाइफ को स्टडी करना है फिर उस पर फोकस करने की कोशिश करनी है जो आपको सबसे ज्यादा प्रॉफिट देती हो . चाहे वह पैसा हो या कुछ और, 80/20 प्रिन्सिपल को किसी भी चीज में सक्सेसफुल होने के लिए अप्लाई किया जा सकता है. आपने सीखा कि आपको कैसे अपनी स्ट्रेटेजी चेंज करनी है और उन “वाइटल फ्यू’ पर फोकस करना है जो आपको सक्सेसफुल बनाने में सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हैं . आपने ये भी सीखा कि ज्यादा पैसा कमाने के लिए, आपको सिंपल तरह से सोचना होगा. अगर आपका बिज़नेस बहुत बड़ा है, तो आपको ये डीसाइड करना होगा कि कौन सी चीज़ ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है और कौन सी नहीं और उस चीज़ को छोड़ने के लिए तैयार रहना होगा जो आपको आगे बढ़ने से रोक रही हो. ऐसा करना हार्ड हो सकता है, लेकिन टॉप पर रहने का सिर्फ यही एक तरीका है. आपको ऐसे सोचना होगा कि आपके लिए एक ऐसी लाइफ हो सकती है जहां आप सिर्फ अपना 20 परसेंट दे कर दुनिया से 80 परसेंट वापस ले सकते हैं. यहाँ कोई बैलेंस नहीं है, सिर्फ जो इंटीलिजेन्स यूज करेगा वही अपनी लाईफ में रुल करेगा।इसलिए स्मार्ट बनो, 80/20 की तरह सोचो, फिर दुनिया पर रूल करो.

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