Predictably Irrational Dan Ariely. Books In Hindi Summary

Predictably Irrational Dan Ariely इंट्रोडक्शन (Introduction) क्या आप स्टारबक्स का सीक्रेट जानना चाहते है? क्या आप स्टीव जॉब्स से कोई बिजनेस टिप लेना चाहेंगे? क्या आपको पता है कि हमारे इमोशंस हमारे डिसीजंस को किस हद तक अफेक्ट कर सकते है? क्या आपको मालूम है कि हम सब किसी भी फ्री चीज़ के लिए एकदम पागल हो जाते है? अगर इन सवालों के जवाब हाँ है तो ये बुक आपके लिए ही बनायी गयी है. आज की आँडियो बुक का टाईटल है प्रेडिक्टेबली इररेशनल जिसे लिखा है डैन अरिएली ने। डैन एक आर्थर , रिर्सचर और प्रोफेसर हैं उन्होने कोर्गनेटिव साईलोजी और बिजनेस एडमिनीसट्रीव में पीएचडी की है। बिहेवियर ईकोनिम्कस तरीका है ये जानने का हमारे इमोशन हमारे डिसीजन को कैसे इफेक्ट करते हैं। लाइफ में ऐसी कई चीज़े है जिन्हें हम अक्सर इग्नोर करते है जैसे कि हमारा बिहेवियर या हमारी डेली लाइफ की सिचुएशंस. ऑथर डैन अरिएली ने इसका जवाब ढूढने की हिम्मत की है कि आखिर हम ऐसा बिहेव क्यों करते है? क्यों लोग प्रेडिक्टेबली इररेशनल होते है? हम अक्सर इररेशनल डिसीजन्स लेते है जबकि हम इस बात को नोटिस तक नहीं करते. जैसे कि एक के साथ एक फ्री का ऑफर सुनकर हम खुद को रोक नहीं पाते है और झट से वो चीज़ खरीद लेते है. या अक्सर हम देखते है कि गप डिनर्स के बाद काफी पिएफ का साथ एक प्राा का जाफर सुनकर मिपु५ को रोक नहीं पाते है और झट से वो चीज़ खरीद लेते है. या अक्सर हम देखते है कि ग्रुप डिनर्स के बाद काफी खाना बच गया है? इस बुक समरी में आप ऐसे पैटर्न्स देखेंगे जो आपने पहले कभी नहीं देखे होंगे. आप अपने और अपने आस-पास के लोगो के बिहेवियर को और अच्छे से समझने लगेंगे. और इस नॉलेज की वजह से आप और ज्यादा कांशीयस और रेशनल डिसीजन ले पायेंगे. तो चलो, स्टार्ट करते है इस बुक समरी से पहला चैप्टर स्टार्ट करते द फालेसी ऑफ़ सप्लाई एंड डिमांड (डिमांड और सप्लाई की फालेसी) The Fallacy of Supply and Demand एक टाइम था कि अगर आपको अमेरिका बढ़िया कॉफ़ी पीनी है तो आपको डंकिन डोनट्स (Dunkin’ Donuts) जाना पड़ता था. यहाँ पर आपको स्माल, मीडियम या लार्ज साइज़ में सही रेट की अच्छी कॉफ़ी मिल जाती थी. और आप चाहो तो उसमे एक्स्ट्रा शुगर या क्रीम भी डलवा सकते हो. फिर होवार्ड स्चुल्त्ज़ (Howard Schultz ) स्टारबक्स का आईडिया लेकर आये. उन्होंने कॉफ़ी पीने का पूरा कांसेप्ट ही चेंज कर दिया. स्चुल्त्ज़ (Schultz ) ने स्टारबक्स कॉफ़ी को बाकि कॉफ़ी शॉप्स से डिफरेंट और यूनीक बनाने के लिए काफी डीप प्लानिंग की थी. ये प्लानिंग इतनी परफेक्ट थी कि स्टारबक्स की कॉफ़ी पीने के लिए लोग लाइन में लगते थे. होवार्ड ने सबसे पहले एम्बिएंस चेंज किया. वो लगते थे. होवार्ड ने सबसे पहले एम्बिएंस चेंज किया. वो स्टारबक्स को यूरोप के कॉफी शॉप्स की तरह बनाना चाहते थे. और उन्होंने कॉफ़ी के लिए हाई क्वालिटी कॉफ़ी बीन्स यूज़ किये जिसकी खुशबू दूर तक फैलती थी. स्चुल्त्ज़ ने स्टारबक्स में कॉफ़ी के आलावा बाकि चीज़े भी रखी जैसे कि पेस्ट्रीज़, केक्स और वाफ्फ्लेस (waffles.) स्चुल्त्ज़ ने अपनी कॉफ़ी को स्माल, मीडियम या लार्ज लेबल ही नहीं दिए बल्कि उन्हें फेंसी नाम भी दिए जैसे टाल, ग्रांडे या वेंटी (tall, grande or venti). कॉफ़ी को और ज्यादा फैशने बल नाम भी दिए गए जैसे मशेएटो (Macchiato,) फ्रेपीचिनो (Frappuccino), कैफे अमेरिकनों या कैप्पूचिनो (Cappuccino). स्टारबक्स का ये अंदाज़ कस्टमर्स को खूब पसंद आया. स्टारबक्स की एक्सपेंसिव कॉफ़ी पीना जैसे एक फैशन हो गया. बेशक ऑफिस में फ्री कॉफ़ी मिलती है मगर लॉयल कस्टमर्स स्टारबक्स की कॉफ़ी को सबसे डिफरेंट बोलते है. उनके लिए ये एक कप कॉफ़ी से कहीं बढकर थी. और यही चीज़ तो स्चुल्त्ज़ चाहते थे कि लोग उनके इस एक्सपेंसिव प्रोडक्ट के दीवाने बन जाए. भी हम कोई नया प्रोडक्ट लेते है तो उसके प्राइस पर हमारा ध्यान सबसे पहले जाता है. बिजनेस ओनर्स कस्टमर्स के इस प्रेडिक्टेबल इररेशनल बिहेवियर को अपने फायदे के लिए यूज़ करते है और प्रोडक्ट्स का रेट बढ़ा कर रखते है. अगर कस्टमर्स वो प्रोडक्ट ख़ुशी-ख़ुशी ले रहे है तो आगे भी लेते रहेंगे. . १ १ पमा ८५ पास. पानसमा प्रोडक्ट ख़ुशी-ख़ुशी ले रहे है तो आगे भी लेते रहेंगे. फिर चाहे उन्हें ज्यादा पैसे क्यों ना खर्च करने पड़े. एक बार प्रोडक्ट को हैबिट लग जाए तो लोग हमेशा खरीदते रहेंगे, और बिजनेस ओनर्स का यही गोल रहता है कि कस्टमर्स को उनके प्रोडक्ट की आदत पड़ जाए. और लोग बार-बार उनके प्रोडक्ट खरीदते रहे. क्या आप एप्पल के फैन है? क्या आपके पास भी आईफ़ोन या मैक है? ये बात तो आप भी जानते होंगे कि एप्पल प्रोडक्ट्स के प्राइस बाकि गैजेट्स से हमेशा महंगे होते है? लेकिन फिर भी आपने एक बार अगर एप्पल के प्रोडक्ट्स यूज़ कर लिए तो शायद आप उनके लॉयल कस्टमर्स बन जाए. हालाँकि बाकि ब्रांड्स में आपको बैटर स्पीक्स और ज्यादा हाई टेक फोंस या लैपटॉप मिल जायेंगे. लेकिन एप्पल के फैन हमेशा ही एप्पल की तारीफ करेंगे. जो लोग इनके प्रोडक्ट यूज़ करते है वो यही बोलते है कि ये सबसे डिफरेंट है, ओरिजिनल है, इनोवेटिव है, यूजर फ्रेंडली है. वेल, यही तो स्टीव जॉब्स की स्ट्रेटेजी है. और एप्पल का तो स्लोगन भी यही है” थिंक डिफरेंटली”. ये एक्सक्ल्यूसिव है. सिर्फ एप्पल कस्टमर्स ही एप्पल सॉफ्टवेयर यूज़ कर सकते है. जब आप कोई आईफोन या मैक लेते हो तो आप इस एलिट एप्पल ग्रुप के मेंबर बन जाते हो. बस आप और आपके जैसे लोगो के पास ही ये प्रिविलेज़ है. तो देखा आपने! आप एप्पल के प्राइस पे अटक गए है. आपको इसके गैजेट्स और एक्ससरीज़ पे ज्यादा पैसा खर्च करना बिलकुल भी बरा नहीं लगेगा जबकि आपको इससे कम पादस या मैक है? ये बात तो आप भी जानते होंगे कि एप्पल प्रोडक्ट्स के प्राइस बाकि गैजेट्स से हमेशा महंगे होते है? लेकिन फिर भी आपने एक बार अगर एप्पल के प्रोडक्ट्स यूज़ कर लिए तो शायद आप उनके लॉयल कस्टमर्स बन जाए. हालाँकि बाकि ब्रांड्स में आपको बैटर स्पीक्स और ज्यादा हाई टेक फोंस या लैपटॉप मिल जायेंगे. लेकिन एप्पल के फैन हमेशा ही एप्पल की तारीफ करेंगे. जो लोग इनके प्रोडक्ट यूज़ करते है वो यही बोलते है कि ये सबसे डिफरेंट है, ओरिजिनल है, इनोवेटिव है, यूजर फ्रेंडली है. वेल, यही तो स्टीव जॉब्स की स्ट्रेटेजी है. और एप्पल का तो स्लोगन भी यही है” थिंक डिफरेंटली”. ये एक्सक्ल्यूसिव है. सिर्फ एप्पल कस्टमर्स ही एप्पल सॉफ्टवेयर यूज़ कर सकते है. जब आप कोई आईफोन या मैक लेते हो तो आप इस एलिट एप्पल ग्रुप के मेंबर बन जाते हो. बस आप और आपके जैसे लोगो के पास ही ये प्रिविलेज़ है. तो देखा आपने! आप एप्पल के प्राइस पे अटक गए है. आपको इसके गैजेट्स और एक्ससरीज़ पे ज्यादा पैसा खर्च करना बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा, जबकि आपको इससे कम प्राइस में दुसरे ब्रांड्स के और भी अच्छे स्पेक्स मिल सकते है. इसीलिए होवार्ड स्चुल्त्ज़ और स्टीव जॉब्स आज इतने सक्सेसफुल बिजनेसमेन है. क्योंकि ये फालेसी ऑफ़ सप्लाई और डिमांड के बारे में जानते है. Predictably Irrational Dan Ariely द टुथ अबाउट रिलेटीविटी (रिलेटिविटी का सच) The Truth about Relativity हमारे सामने जब कोई आप्शन आता है तो हमे कुछ ऐसा चाहिए होता है जिससे हम उसे कम्प्येर कर सके. जैसे मान लो हम आप्शन बी के रिलेटिव आप्शन ए चूज़ करते है. अगर हमारे पास कम्पेरिजन के लिए कोई ऑब्जेक्ट नहीं होगा यानि दोनों में अच्छा कौन सा है, तो हमे डिसाइड करने में प्रोब्लम होगी. जैसे मान लो, एक बार इकोनोमिस्ट मैगजीन में एक एडवरटीज़मेंट आया था जो उनके मन्थली सब्सक्रिप्शन के बारे में था. फर्स्ट आप्शन था $59 में ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन. सेकंड आप्शन था $725 में प्रिंट सब्सक्रिप्शन और थर्ड आप्शन था $725 में प्रिंट और ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन. अगर सिर्फ ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन और प्रिंट ओनली सब्सक्रिप्शन होता तो कस्टमर्स को डिसाइड करने में प्रोब्लम आती कि कौन सा वाला चूज़ करे. कौन सा बैटर है? ऑनलाइन या प्रिंट? असल में उन्हें पहले ये जानने की ज़रूरत है कि उनके लिए कौन सा वाला आप्शन सही है. लेकिन फिर एक और थर्ड आप्शन भी है जिसमे आप प्रिंट और ऑनलाइन दोनों सब्सक्रिप्शन ले सकते है. इसका प्राइस $125 है. इतने में तो सिर्फ प्रिंट सब्सक्रिप्शन मिल रहा है. तो लोग सेकंड आप्शन क्यों चूज़ करेंगे जब उन्हें सेम प्राइस में ज्यादा मिल रहा है? तो मिल रहा है. तो लोग सेकंड आप्शन क्यों चूज़ करेंगे जब उन्हें सेम प्राइस में ज्यादा मिल रहा है? तो देखा आपने. मार्केटिंग एक्सपर्ट्स कस्टमर्स के इस प्रेडिक्टेबली इररेशनल बिहेवियर के बारे में काफी पहले से जानते थे. किसी भी प्रोमो या एडवरटीजमेंट में ये “डेकॉय” यूज़ करते है. ये कस्टमर्स के सामने एक आप्शन रखते है ताकि कस्टमर्स कम्प्येर कर सके. इस केस में “डीकॉय” $725 में प्रिंट ओनली सब्सक्रिप्शन है. और मार्केटिंग एक्सपर्ट्स ने डीकॉय इसलिए रखा ताकि कस्टमर्स उसी ऑप्शन को चूज़ करे जो कंपनी उन्हें वाकई में बेचना चाहती है. इसी डीकॉय की वजह से कस्टमर्स प्रिंट और ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन $725 में लेने को रेडी हो गए, उन्हें ये प्राइस कम्प्येर में काफी रिजनेबल लग रहा था. इस ऑप्शन ने दरअसल उन्हें फील कराया कि उन्हें ऑप्शन 3 में कुछ फ्री मिल रहा है. जबकि उन्हें कुछ भी फ्री नहीं मिल रहा है. गौर से देखे तो उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. क्योंकि इकोनोमिस्ट अपने कस्टमर्स को $59 के बजाये $725 का प्लान बेचना चाहते है. ये डीकॉय इफेक्ट आपको मार्किट के किसी भी में देखने को नेगा. एक और एक्जाम्पल है रेस्ट्रोरेन्ट मेन्यू. ग्रेग रैप एक रेस्ट्रोरेन्ट कन्सल्टेंट है. न्यू यॉर्क के हाई क्लास रेस्ट्रोरेंट्स के लिए मेन्यू बनाना और प्राइस सेट करना उनकी जॉब में शामिल है. उन्होंने एक ऐसी टेक्नीक निकाली है जिससे रेस्ट्रोरेन्ट के मालिक ज्यादा कमाई कर सके. ग्रेग रेस्ट्रोरेन्ट की महंगी डिशेज़ को मेन्यू कार्ड में सबसे है जिससे रेस्ट्रोरेन्ट के मालिक ज्यादा कमाई कर सके. ग्रेग रेस्ट्रोरेन्ट की महंगी डिशेज़ को मेन्यू कार्ड में सबसे नीचे रखते है चाहे वो सबसे कम बिके. क्यों? क्योंकि ये महंगी डिशेज़ एक डीकॉय का काम करती है. बेशक कस्टमर्स ये डिशेज़ आर्डर नहीं करेंगे लेकिन वो सेकंड मोस्ट एक्सपेंसिव मील ज़रूर आर्डर करेंगे. डीकॉय की वजह से कस्टमर्स को लगता है कि उन्हें सेकंड मोस्ट एक्स्पेंसिव मील में कम प्राइस में और बेस्ट वैल्यू मिल रहा है.जैसे कि $700 में सिर्फ पास्ता के बजाए कस्टमर्स $180 का स्टेक चूज़ करेंगे. क्यों? क्योंकि $200 में लॉबस्टर के कम्प्येर में ये उन्हें काफी सस्ता और किफायती लगेगा. तो लास्ट में फायदा आखिर रेस्ट्रोरेन्ट ओनर का ही हुआ ना. द कास्ट ऑफ़ जीरो कास्ट (The Cost of Zero Cost) जीरो कास्ट की कास्ट फ्री ऑफर्स हमेशा ही कस्टमर्स को अट्रेक्ट करता है. जब भी हमे किसी प्रोडक्ट के साथ कुछ फ्री चीज़ दिखती है तो हम तुरंत खरीद लेते है चाहे हमे उसकी ज़रूरत हो ना हो. हमे लगता है कि हमारी सेविंग हुई है मगर सच तो ये है कि वो प्रोडक्ट हमे फिर भी महंगा पड़ा. जैसे एक्जाम्पल के लिए आप स्पोर्ट्स स्टोर में गए. आपको एक खास टाइप के सॉक्स लेने है जैसे कि गोल्ड टो और पैडल्ड हील वाले जो आपको टेनिस की प्रेक्टिस के लिए चाहिए. लेकिन स्टोर में घुसते ही आपने देखा कि एक के साथ एक फ्री सॉक्स का ऑफर है. लेकिन आपको तो टेनिस के सॉक्स चाहिए. फिर A ९ पा प्राप्त लिए पाल. पापा टारमपुतता आपने देखा कि एक के साथ एक फ्री सॉक्स का ऑफर है. लेकिन आपको तो टेनिस के सॉक्स चाहिए. फिर भी आप खुद को ऑफर वाला प्रोडक्ट खरीदने से रोक नहीं पाते है और इस तरह आप वो प्रोडक्ट खरीद लेते जिसकी आपको ज़रूरत भी नहीं थी. एक और एक्जाम्पल लेते है. मान लो आप अमेज़ोन की साईट पे गए. आपको एक बुक लेनी है. लेकिन फिर आपने देखा कि आपके फेवरेट ऑथर की लेटेस्ट बुक आई है जिसका प्राइस है $76.95 और शिपिंग फीस है $3.95. तभी आपको फ्री शिपिंग का ऑफर दिखा, दो बुक्स पर शिपिंग फ्री है. अब आप सोचोगे “वाओ, कितना कूल ऑफर है”. और आप एक और बुक खरीद लेते है जबकि आपको सिर्फ एक ही बुक की ज़रूरत थी और इस तरह आपका टोटल हुआ $31.90. आपको क्या लगा कि आपने कोई ग्रेट डील की है. आपको फ्री शिपिंग मिली है. लेकिन क्या आपने कुछ सेव किया? बिलकुल नहीं, बल्कि आपने $15 ज्यादा खर्च किये. लेकिन आप को लगा की आपने पैसे बचाए है. और आप खुश हो गए. क्या आपने ऐसा ही कुछ ग्रोसरी शौपिंग करते टाइम भी देखा है? आप बेसिक सामान लेने जाते है. आपको राइस, ब्रेड, टूथपेस्ट और साबुन चाहिए. लेकिन आपको स्टोर में घुसते ही कोक का एक बड़ा ढेर नजर आता है जहाँ लिखा है” 6 के साथ एक फ्री”. आप कोक लेने तो आये नहीं थे. लेकिन आपने फ्री ऑफर देखा तो आपसे रहा नहीं गया. और फाइनली आप 6 कोक्स खरीद लेते है. क्या आपने कल मेकिंग की नहीं फिर भी वशी-वशी कर्ट A < एक और एक्जाम्पल लेते है. मान लो आप अमेज़ोन की साईट पे गए. आपको एक बुक लेनी है. लेकिन फिर आपने देखा कि आपके फेवरेट ऑथर की लेटेस्ट बुक आई है जिसका प्राइस है $76.95 और शिपिंग फीस है $3.95. तभी आपको फ्री शिपिंग का ऑफर दिखा, दो बुक्स पर शिपिंग फ्री है. अब आप सोचोगे “वाओ, कितना कूल ऑफर है”. और आप एक और बुक खरीद लेते है जबकि आपको सिर्फ एक ही बुक की ज़रूरत थी और इस तरह आपका टोटल हुआ $31.90. आपको क्या लगा कि आपने कोई ग्रेट डील की है. आपको फ्री शिपिंग मिली है. लेकिन क्या आपने कुछ सेव किया? बिलकुल नहीं, बल्कि आपने $15 ज्यादा खर्च किये. लेकिन आप को लगा की आपने पैसे बचाए है. और आप खुश हो गए. क्या आपने ऐसा ही कुछ ग्रोसरी शौपिंग करते टाइम भी देखा है? आप बेसिक सामान लेने जाते है. आपको राइस, ब्रेड, टूथपेस्ट और साबुन चाहिए. लेकिन आपको स्टोर में घुसते ही कोक का एक बड़ा ढेर नजर आता है जहाँ लिखा है” 6 के साथ एक फ्री”. आप कोक लेने तो आये नहीं थे. लेकिन आपने फ्री ऑफर देखा तो आपसे रहा नहीं गया. और फाइनली आप 6 कोक्स खरीद लेते है. क्या आपने कुछ सेविंग की? नहीं, फिर भी आप ख़ुशी-खुशी कई दिनों तक कोक्स पीते रहेंगे. इसी को हम प्रेडिक्टेबली इररेशनल कस्टमर बोलते है. A < Predictably Irrational Dan Ariely द कॉस्ट ऑफ़ सोशल नोर्स (सोशल नॉर्स के कॉस्ट) The Cost of Social Norms लोग बड़ी अपने फ्रेंड्स या रिलेटिव्स की ख़ुशी-ख़ुशी हेल्प करते है लेकिन सेम सर्विस किसी प्राइस में देने को रेडी नहीं होंगे. इस चीज़ को हम सोशल नॉर्स और मार्किट नॉर्स बोलते है. और इन्हें सेपरेटली अप्लाई करना चाहिए. अगर आप इन्हें मिक्स करेंगे तो प्रोब्लम्स हो सकती है. इमेजिन करो कि आप अपनी मदर इन लॉ के यहाँ वेकेशन में गए. और उन्होंने आपकी फेमिली के लिए एक सेल डिनर बनाया है. खाने में रोस्टेड चिकन के अलावा होममेड डिशेज़ भी है जैसेकि बच्चो के लिए स्वीट पोटेटो और मार्शमैलोज़. और मीठे में है पम्पकिन पाई जो आपकी वाइफ की फेवरेट है. आप सब मजे से डिनर करते हो. खाते वक्त आप एक दुसरे को मजेदार किस्से सुनाते हो. फिर डिनर के बाद सब लिविंग रूम में बैठकर ड्रिंक पीते है. इस शानदार डिनर के लिए आप अपनी मदर इन लॉ का शुकिया अदा करते है, अचानक आप अपनी जगह से उठते है और अपना वालेट निकालते है. फिर आप अपनी मदर इन लॉ को पैसे ऑफर करते है. “मोम, आपने आज हमारे लिए जो अमेजिंग डिनर बनाया, ये उसके लिए है” अचानक सब लोग सब चुप हो जाते है. आपकी ये बात किसी को भी अच्छी नहीं लगी सबका मड खराब हो अचानक सब लोग सब चुप हो जाते है. आपकी ये बात किसी को भी अच्छी नहीं लगी. सबका मूड खराब हो जाता है. स्पेशली आपकी मदर इन लॉ को बहुत बुरा लगता है, उनका फेस गुस्से में रेड हो जाता है. और आपकी सिस्टर इन लॉ गुस्से में आपको घूर रही है. आपकी वाइफ भी काफी गुस्सा है, उसने ड्रिंक का गिलास ड्राप कर दिया. अब होगा ये कि नेक्स्ट इयर से आप शायद अकेले घर में टीवी के सामने बैठे पिज़्ज़ा खा रहे होंगे. तो गलती कहाँ हुई थी? दरअसल आपने सोशल नॉर्स को मार्किट नॉर्स के साथ मिक्स कर दिया. सोशल नोर्स वो फेवर्स होते है जो हम अपने करीबी लोगो के लिए करते है. इससे हमारे रिलेशनशिप और भी अच्छे हो जाते है. कोई आपकी हेल्प करे तो ये ज़रूरी नहीं कि आपको उसी टाइम फेवर रीटर्न करना है. अपने फेमिली और फ्रेंड्स की हेल्प करना आपको अच्छा लगता है इसलिए आप ये करते है. और वक्त आने पर वो लोग भी आपके काम आते है. लेकिन मार्किट नॉर्स डिफरेंट होते है. इसमें डायरेक्ट एक्सचेंज होता है. आप काम पे जाते है तो आपको सेलरी मिलती है. आप कुछ सामान खरीदते है तो उसका प्राइस देते है. आप अपार्टमेंट में रहने का रेंट देते है. आप बैंक से लोन लेते है और फिर इंटरेस्ट पे करते है. मार्किट नॉर्स में आपको वही मिलता है जिसके लिए आप पे करते है. हम सोशल सिचुएशन के लिए सोशल नॉर्स एक्सेप्ट करते है और मार्किट सिचुएशन के लिए मार्किट नोर्स. हम सोशल सिचुएशन के लिए सोशल नॉर्स एक्सेप्ट करते है और मार्किट सिचुएशन के लिए मार्किट नोर्स. जैसे हमने पहले वाले एक्जाम्पल में देखा, अगर हसबैंड अपनी मदर इन लॉ को पैसे ऑफर करने के बजाये बैंक यू बोल देता या उन्हें उनके फेवरेट बिस्किट गिफ्ट करता तो उन्हें बहुत अच्छा लगता और उनका रिलेशनशिप और भी स्ट्रोंग हो जाता. सोशल नोर्स में गिफ्ट्स लिए और दिए जाते है. ये लोगो का तरीका है एक दुसरे के लिए प्यार जताने का. ऑथर डैन अरिएली (The author Dan Ariely) ने एक बार एम्आईटी में एक एक्स्पिरिएंस किया था. उन्होंने एक सेट अप रखा जहाँ स्टूडेंट्स को राइट साइड से माउस को यूज़ करते हुए कंप्यूटर स्क्रीन के लेफ्ट साइड में एक बॉक्स के अंदर सर्कल्स ड्रा करने थे. ये काफी ईजी टास्क था. लेकिन जैसे ही स्टूडेंट कोई सर्कल ड्रा करते, एक और सर्कल आ जाता. डैन ने उन्हें पांच मिनट दिए, और इस पांच मिनट मे वो जितने मर्जी उतने सर्कल्स बना सकते थे. उसके बाद वो जा सकते थे. स्टूडेंट्स के फर्स्ट ग्रुप को उन्होंने एक्सपेरिमेंट से पहले $5 दिए. सेकंड ग्रुप को उन्होंने $7 दिए. और थर्ड ग्रुप को उन्होंने कुछ नहीं दिया. स्टूडेंट्स से रिक्वेस्ट की गयी थी कि वो इस रीसर्च में पार्ट ले. आपको शायद लगेगा कि पहले वाले ग्रुप ने सबसे ज्यादा सर्कल्स बनाये होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. फर्स्ट ग्रुप ने एवरेज 159 सर्कल्स बनाये. सेकंड ग्रुप ने 107 सर्कल्स बनाए. और थर्ड गा ने 168 सर्कल्य तनाये थे लाट में रो पता चला कि .. बनाये. सेकंड ग्रुप ने 101 सर्कल्स बनाए. और थर्ड ग्रुप ने 168 सर्कल्स बनाये थे. बाद में ये पता चला कि जिन्हें कोई पैसा नही मिला था उन्होंने ज्यादा आउटपुट दिया. उन्होंने ये सिर्फ फेवर के लिए किया था. लेकिन जिन्हें $5 और $7 की अमाउंट मिली थी, उन्होंने पेमेंट के हिसाब से ही सर्कल बनाये थे. उसके बाद डैन ने एक न्यू स्ट्रेटेजी ट्राई की. फिर एक दिन उन्होंने फेवर के बदले चोकलेट ऑफर की. फर्स्ट ग्रुप को उन्होंने $7 के स्नीकर बार दिए. सेकंड ग्रुप को $5 का गोडिवा चोकलेट बॉक्स मिला. और थर्ड ग्रुप को इस बार भी कुछ नहीं मिला. आपको क्या लगता है कौन से ग्रुप ने ज्यादा सर्कल्स बनाये होंगे? रिजल्ट से पता चला कि सबका आउटपुट ऑलमोस्ट सेम ही था. फर्स्ट वाले ग्रुप ने 162 सर्कल्स बनाये थे, सेकंड ने 169 और थर्ड ने 168 सर्कल्स बनाये थे. तो देखा आपने? गिफ्ट्स सोशल नॉर्स है. क्योंकि उन्हें चोकलेट्स मिले थे इसलिए स्टूडेंट्स ने ख़ुशी से वही किया जो उन्हें करने को बोला गया था. सोशल नॉर्स में हम ज्यादा से ज्यादा देने की कोशिश करते है. लेकिन मार्किट नॉर्स में हम पेमेंट या पैसे की हिसाब से अपना फेवर देते है. जैसे मान लो आपमें बेस्ट फ्रेंड का अपना हॉटडॉग स्टैंड है. एक दिन उसका एक्सीडेंट हो जाता है जिसमे कि उसकी बाजू में चोट लग जाती है. तो वो आपसे एक फेवर माँगता है कि आप एक वीक के लिए उसका हॉटडॉग स्टैंड चला लो. कि सिर्फ आप ही इस वक्त उसकी हेल्प कर सकते हो. और इसलिए आप उसकी हेल्प करने को रेडी हो जाते का गोडिवा चोकलेट बॉक्स मिला. और थर्ड ग्रुप को इस बार भी कुछ नहीं मिला. आपको क्या लगता है कौन से ग्रुप ने ज्यादा सर्कल्स बनाये होंगे? रिजल्ट से पता चला कि सबका आउटपुट ऑलमोस्ट सेम ही था. फर्स्ट वाले ग्रुप ने 162 सर्कल्स बनाये थे, सेकंड ने 169 और थर्ड ने 168 सर्कल्स बनाये थे. तो देखा आपने? गिफ्ट्स सोशल नॉर्स है. क्योंकि उन्हें चोकलेट्स मिले थे इसलिए स्टूडेंट्स ने ख़ुशी से वही किया जो उन्हें करने को बोला गया था. सोशल नॉर्स में हम ज्यादा से ज्यादा देने की कोशिश करते है. लेकिन मार्किट नॉर्स में हम पेमेंट या पैसे की हिसाब से अपना फेवर देते है. जैसे मान लो आपमें बेस्ट फ्रेंड का अपना हॉटडॉग स्टैंड है. एक दिन उसका एक्सीडेंट हो जाता है जिसमे कि उसकी बाजू में चोट लग जाती है. तो वो आपसे एक फेवर माँगता है कि आप एक वीक के लिए उसका हॉटडॉग स्टैंड चला लो. कि सिर्फ आप ही इस वक्त उसकी हेल्प कर सकते हो. और इसलिए आप उसकी हेल्प करने को रेडी हो जाते हो. लेकिन अगर आपकी किसी फ़ास्ट फूड चेन में जॉब लग जाए तो क्या होगा? तब भी क्या आप फ्री में काम करोगे? उतना ही एफर्ट दोगे जितना अपने फ्रेंड के लिए दे रहे हो? या फिर उतना ही काम करोगे जितनी आपको सेलरी मिलती है? यही पर हमे सोशल और मार्किट नॉर्स के बीच का फर्क पता चलता है. A < Predictably Irrational Dan Ariely द पॉवर ऑफ़ अ फ्री कुकी (फ्री कुकी की पॉवर )The Power of a Free Cookie अक्सर ऐसा होता है कि फ्रेंड्स जब साथ में डिनर करते है तो कई बार पिज़्ज़ा की एक स्लाइस या डोनट् का टुकड़ा या एक सुशी बच जाती है. कोई भी उस पीस को नहीं खाना चाहता. सब एक दुसरे को यही बोलते है” नहीं यार! मै तो पूरा फुल हूँ, तुम ही खा लो” लेकिन कोई भी उस लास्ट पीस को नहीं खाना चाहता. हमारे प्रेडिक्टेबली इररेशनल बिहेवियर का ये एक और एक्जाम्पल है. हम जब ग्रुप में होते है तो हमे सोशल नॉर्स फोलो करने ही पड़ते है. लोगो के साथ हम रिस्पेक्टफूली बात करते है. बड़ा दिल रखकर हम दूसरो की ख़ुशी का ध्यान रखने की कोशिश करते है. लेकिन अगर आप अकेले कुछ खा रहे हो तो शायद पूरा टब आइसक्रीम खत्म कर दोगे. अब इन दोनों सिचुएशन को देखो. मान लो आपकी एक कलीग है जिसका नाम है सुजैन जो आपके ठीक बगल में बैठती है. एक दिन वो 100 चोकलेट चिप कुकीज़ बेक करती है और ऑफिस में सबको बांटती है. अब क्योंकि आप उसके साथ बैठते हो तो वो सबसे पहले आपको ऑफर करेगी. अब चाहे सुजैन के चोकलेट चिप कुकीज़ कितने भी टेस्टी क्यों ना हो, आपके सोशल नॉर्स आपको एक से ज्यादा कुकी लेने से रोकेंगे क्योंकि उस वक्त आप बाकियों के बारे में हो, आपके सोशल नॉर्स आपको एक से ज्यादा कुकी लेने से रोकेंगे. क्योंकि उस वक्त आप बाकियों के बारे में भी सोच रहे है. आप ये सोच रहे है कि सबको कुकीज बराबर मिलनी चाहिए. इसलिए आप एक से ज्यादा नहीं लेते.. लेकिन अगर सुजैन अपनी कुकीज़ के पैसे मांगे तो? क्या होगा अगर वो 5 सेंट्स पर कुकी के हिसाब से बेच रही हो? तब यहाँ सोशल नॉर्स अप्लाई नहीं होंगे. यहाँ मार्किट नॉर्स आ जायेंगे. आप फर्स्ट कस्टमर है तो आप जितनी चाहे उतनी कूकीज़ ले सकते है. फिर चाहे दूसरो के लिए बचे या ना बचे आप टेंशन नहीं लोगे. क्योंकि आपने तो सुजैन से कुकीज़ खरीदी है. आप चाहे एक खरीदो या 10, ये आपकी मर्जी है. एक और सिचुएशन लेते है. मान लो आप क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में गए. उसने सबके लिए ड्रिंक और स्नैक्स तैयार रखे है. तो आप अपने फ्रेंड्स के साथ पार्टी में पहुँचते हो. अपने फ्रेड के घर में आपकी नजर किचेन में रखे थ्री लेयर्ड रेड वेलवेट केक पर पड़ती है. और आपको केक खाने का मन करता है. आपको इतनी क्रेविंग हो रही कि केक आपके माइंड से निकल ही नहीं रहा. आपका बस चले तो आप चुपचाप से लौंड्री एरिया में जाकर पूरा का पूरा केक चट कर जाए. और अगर कोई पूछे तो बोल दे कि पूरा केक डॉग खा गया. लेकिन यहाँ सोशल नॉर्स की सिचुएशन है. आपको एक सोशीएली एक्सेप्टेबल पर्सन की तरह एक्ट करना है. आपको केक का सिर्फ एक पीस लेना पड़ेगा. अगर केक आपको इतना टेस्टी लगा तो आप अपनी क्लासमेट से पूछ लेकिन अगर सुजैन अपनी कुकीज़ के पैसे मांगे तो? क्या होगा अगर वो 5 सेंट्स पर कुकी के हिसाब से बेच रही हो? तब यहाँ सोशल नॉर्स अप्लाई नहीं होंगे. यहाँ मार्किट नॉर्स आ जायेंगे. आप फर्स्ट कस्टमर है तो आप जितनी चाहे उतनी कूकीज़ ले सकते है. फिर चाहे दूसरो के लिए बचे या ना बचे आप टेंशन नहीं लोगे. क्योंकि आपने तो सुजैन से कुकीज़ खरीदी है. आप चाहे एक खरीदो या 10, ये आपकी मर्जी है. एक और सिचुएशन लेते है. मान लो आप क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में गए. उसने सबके लिए ड्रिंक और स्नैक्स तैयार रखे है. तो आप अपने फ्रेंड्स के साथ पार्टी में पहुँचते हो. अपने फ्रेड के घर में आपकी नजर किचेन में रखे थ्री लेयर्ड रेड वेलवेट केक पर पड़ती है. और आपको केक खाने का मन करता है. आपको इतनी क्रेविंग हो रही कि केक आपके माइंड से निकल ही नहीं रहा. आपका बस चले तो आप चुपचाप से लौंड्री एरिया में जाकर पूरा का पूरा केक चट कर जाए. और अगर कोई पूछे तो बोल दे कि पूरा केक डॉग खा गया. लेकिन यहाँ सोशल नॉर्स की सिचुएशन है. आपको एक सोशीएली एक्सेप्टेबल पर्सन की तरह एक्ट करना है. आपको केक का सिर्फ एक पीस लेना पड़ेगा. अगर केक आपको इतना टेस्टी लगा तो आप अपनी क्लासमेट से पूछ सकते है कि उसने ये कहाँ से खरीदा. ताकि आप भी वही केक अपने लिए ले सको. Predictably Irrational Dan Ariely द इन्फ्लुएंस ऑफ़ अराउज्ल (The Influence of Arousal) हर इंसान के अंदर डॉक्टर जैकाल और मिस्टर हाइडी छुपे होते है. नोर्मल सिचुएशन में हम डॉक्टर जैकाल की तरह बिहेव करते है. हम रेशनल होते है, अच्छे होते है, गुड मैनेर्ड और सोशिएली एक्सेप्टेबल होते है. लेकिन अक्सर ये भी होता है कि हम अपने इमोशंस में बह जाते है. हमारा एक्सट्रीम गुस्सा, सेडनेस, डर या सेक्सुअल अराऊज़ल कई बार हमसे वो करवा देता है जिसकी हमे उम्मीद भी नही होती. और कुछ सेकंड्स में ही हम मिस्टर हाईडी बन जाते है. कोई इन्सान वायोलेंट यानी हिसक, गुस्से वाला और खतरनाक भी हो सकता है. हमे लगता है कि डिफिकल्ट सिचुएशन में हमारा नॉर्मल सेल्फ डॉक्टर जैकाल हमेशा जीत जाता है और हमारे डार्क साइड मिस्टर हाईडी को कण्ट्रोल कर लेता है. लेकिन यहाँ हम गलत सोच रहे है. क्योंकि अक्सर एंगर इश्यूज, रोड रेज़ एक्सिडेन्ट्स, मर्डर या रेप जैसे क्राइम के पीछे यही सिचुएशन होती है. हमारे अंदर के इमोशंस फूट कर बाहर निकल जाते है और हमारा A८ नाना पा पहा ।तपुररान हाता ९.नार पर के इमोशंस फूट कर बाहर निकल जाते है और हमारा असली चेहरा नजर आता है. डैन अरिएली ने एक बार बर्कले यूनिवरसिटी के स्टूडेंट के साथ एक एक्सपेरिमेंट किया. इस टेस्ट के लिए उन्हें 25 स्टूडेंट्स चाहिए थे. वो जानना चाहते थे कि हमारे डिसीजंस पर हमारे इमोशंस का कितना असर होता है, स्पेशली अगर हम हाइली अराऊजड है. डैन ने कैंपस में एड दे दिया. इसमें जिन स्टूडेंट्स ने पार्ट लिया, वो 18 या इससे उपर के थे और हीटरो सेक्सुअल लड़के थे. ये स्टडी सेक्सुअल अराऊज़ल और डिसीजन मेकिंग को लेकर थी. इसमें एक-एक घंटे के दो सेपरेट सेशंस थे. हर स्टूडेंट को हर सेशन के लिए $10 मिलने वाले थे. और कोई पार्टीसिपेंट अगर चाहे तो बीच में ही छोडकर जा सकता था. बर्कले यूनीवरसिटी के स्टूडेंट्स अचीवर्स माने जाते थे. ये सब स्ट्रेट ए स्टूडेंट्स थे. और सबके सब एकेडेमिक्स, स्पोर्ट्स, आर्ट्स और बाकि एक्टिविटीज़ में एक्सपर्ट थे. और सबका केरेक्टर भी बहुत अच्छा था. इनमे से एक पार्टीसिपेंट रॉय एक टिपिकल बर्कले स्टूडेंट था. वो एक अच्छे केरेक्टर का लड़का था. डैन ने उसे इस एक्सपेरिमेंट्स के बारे में समझाया. पहले तो रॉय को एक कंसेंट फॉर्म भरने को बोला गया जोकि वो जानता था कि बहुत कांफिडेंशियल है. डैन सनापा. पहले तो रॉय को एक कंसेंट फॉर्म भरने को बोला गया जोकि वो जानता था कि बहुत कांफिडेंशियल है. डैन ने पहले से ही इस एक्सपेरिमेंट के लिए यूनिवरसिटी से अप्रूवल ले रखा था. रॉय को तीन सेट्स के सवालों के जवाब देने थे. फर्स्ट सेट सेक्सुल चॉइस को लेकर था. सेकंड डेट रेप पर और थर्ड सेट था सेफ सेक्स के बारे में. रॉय को ऑनलाइन टेस्ट शीट में जवाब देना था. हर सवाल के लिए हाँ या ना के हिसाब से 1-100 के बीच रेटिंग मिलनी थी. रॉय को रूम में अकेले रखा गया. तो रॉय अपने रूम में जाकर ऑनलाइन टेस्ट देने लगा. सवालों के जवाब देते वक्त वो बिलकुल नार्मल था जैसे कि वो एग्जाम पेपर देते वक्त रहता था. सेक्सुल चॉइस वाले कुछ सवाल ऐसे थे” अगर कोई खूबसूरत लेडी आपसे और किसी दुसरे मर्द से एक साथ प्यार करना चाहे तो क्या आप मान जाओगे? क्या आप अपने सेक्सुल पार्टनर को पीटना पसंद करोगे?’ (Would you find it more exciting to spank your sexual partner?” डेट रेप के सवाल कुछ इस तरह थे” क्या आप अपनी डेट को और शराब पीने के लिए बोलोगे ताकि वो आपके साथ खुलकर बिहेव कर सके? अगर लडकी मना कर दे तो भी क्या आप उसे फिजिकल होने के ” आपके साथ खुलकर बिहेव कर सके? अगर लडकी मना कर दे तो भी क्या आप उसे फिजिकल होने के लिए बोलेंगे?’ और सेफ सेक्स के कुछ सवाल ऐसे थे’ क्या आप अपने हर नए सेक्स पार्टनर के साथ कंडोम यूज़ करोगे?” क्या बर्थ कण्ट्रोल सिर्फ लड़की की जिम्मेदारी है”? रॉय ने इन सारे सवालों के नॉर्मल वे में नॉन अराउज़ल स्टेट में जवाब दिए. फिर वो डैन से दुबारा मिला. सेकंड सेशन में रॉय को हाईली अराउज्ड स्टेट में टेस्ट देना था. इस टाइम उसे अपने रूम की लाईट बंद करके टेस्ट देने को बोला गया. रॉय अपने बेड पे लेट गया. वो खुद को अराउज्ड फील कराने के लिए कुछ ऑनलाइन स्टफ देख रहा था और दुसरे हाथ से लैपटॉप पर सवालों के जवाब दे रहा था. कुल मिलाकर डैन की रीसर्च फाइंडिंग्स काफी क्लियर और कंसिस्टेंट थी. रॉय और बाकि 24 स्टूडेंट्स ने अपने नॉन अराउज्ड स्टेट से काफी अलग जवाब दिए थे. ये पता चला कि ये लोग अपने हाइली अराउज्ड स्टेट में काफी इमोरल बिहेव कर सकते थे और इन्हें अनप्रोटेक्टेड सेक्स से भी कोई प्रोब्लम नहीं थी. इस हालत में उन्होंने ऐसे कई सवालों के जवाब हाँ में दिए थे जो वो नॉर्मल हालत में सोच भी नहीं सकते थे. इस टेस्ट से ये प्रूव हो गया था कि हमारे इमोशंस का हमारे मामा गएरा II ला . २। टेस्ट से ये प्रूव हो गया था कि हमारे इमोशंस का हमारे डिसीजन पर काफी गहरा असर पड़ता है. इसलिए हमे सोचे समझे बगैर इमोशन में आकर फैसले नहीं लेने चाहिए. हमे खुद को कण्ट्रोल रखने की कोशिश करनी चाहीये. कहीं ऐसा ना हो कि हमे बाद में पछताना पड़े. जिस वक्त आप गुस्से में होते हो, उस वक्त कोई भी फैसला मत लो. अगर आप बहुत उदास हो तो एक लम्बी वाक ले सकते हो या किसी दोस्त के साथ अपनी फीलिंग शेयर कर सकते हो. हमेशा याद रखें कि जब भी आपके मन में उथल-पुथल हो, खुद को शांत रखो और डीप ब्रीथ लेते रहें. शांत मन से अपनी प्रोब्लम के बारे में सोचोगे तो बैटर सोल्यूशन मिलेंगे. हमेशा ये याद रखो कि एक मिनट रुककर शांति के साथ सोचने से आप अपने रिश्ते, मौका या पूरी लाइफ बचा सकते हो. कनक्ल्यूजन (Conclusion) आपने इस बुक समरी में प्राइस एंकर्स के बारे में पढ़ा. आपने सीखा कि कैसे एंटप्रेन्योर्स अपने प्रोडक्ट्स के हाई प्राइस रखते है और बावजूद इसके लोग इनके प्रोडक्ट्स बार-बार खरीदते है. आपने इसमें डीकॉयज़ (decoys) के बारे में भी पढ़ा. किसी स्टोर की प्रोमोशन में एक डेकॉय जरूर होता है जिससे कस्टमर्स A < प्रोमोशन में एक डेकॉय जरूर होता है जिससे कस्टमर्स ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए अट्रेक्ट होते है. इस बुक में हमने आपको फ्री आइटम्स के इल्यूजन के बारे में भी बताया. एक्चुअल में फ्री आइटम जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं. जो आपको फ्री ऑफर किया जा रहा है, वो दरअसल कभी फ्री नहीं होता. असल में आप उस आइटम का ज्यादा प्राइस देते है. आपने यहाँ सोशल नोर्स और मार्किट नोर्स के बारे में सीखा और ये बात ध्यान में रखो कि गुड रिलेशनशिप मेंटेन करने के लिए हमे ये नॉर्स मिक्स नहीं करने है. आपने इस बुक में सोशली एक्स्टेबल बिहेवियर के बारे में सीखा, आपने ये सीखा कि इमोशंस हमारे डिसीजंस को काफी हद तक इफेक्ट करते है. इसलिए डिफिकल्ट सिचुएशन में हमे सोच-समझ कर फैसले लेने चाहिए. ये कुछ ऐसे प्रेडिक्टेबली इररेशनल बिहेवियर है जो हम इंसानों के अंदर होते है. और इन पर हमारा कोई कण्ट्रोल भी नही होता, कोई भी इस दुनिया में परफेक्ट नहीं है. लेकिन इस बुक को पढने के बाद आप खुद को लेकर थोड़े से और कांशस हो जायेंगे. तो अगली बार जब आप ग्रोसरी स्टोर या शोपिंग माल में जाए, तो खुद में सेल्फ कण्ट्रोल और सेल्फ डिसप्लीन रखे. अगली बार ड्राइव करते वक्त या अपने बॉस से बात करते वक्त अपने को और ज्यादा शांत रखे. और फिर आपको 4 . All Done? Finished लेकर थोड़े से और कांशस हो जायेंगे. तो अगली बार जब आप ग्रोसरी स्टोर या शोपिंग माल में जाए, तो खुद में सेल्फ कण्ट्रोल और सेल्फ डिसप्लीन रखे. अगली बार ड्राइव करते वक्त या अपने बॉस से बात करते वक्त अपने को और ज्यादा शांत रखे, और फिर आपको कभी भी प्रेडिक्टेबली इररेशनल होने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.

Leave a Reply