Never Split the Difference: Negotiating As If Your Lif… Christopher Voss and Tahl Raz Books In Hindi Summary

Never Split the Difference:
Negotiating As If Your Lif…
Christopher Voss and Tahl Raz
परिचय (Introduction)

नेगोशिएशन में स्पेशलिस्ट एक फॉर्मर ऍफ़बीआई एजेंट आपको टेन्स और एन्जोएबल एडवेंचर पर ले के जाता है जहाँ आप सिख्नेगे कि बेहद क्रिटिकल सिचुएशंस को कैसे कण्ट्रोल किया जाए. इस बुक समरी से आप जानेगे कि नेगोशिएशन एक psychological प्रोसेस है और इसे हम एक स्किल की तरह आसानी से
सीख सकते हैं। जो टूल्स और टेक्नीक्स नेगोशिएशन में यूज़ होते है, वो बेहद काम के है और यहाँ हम आपको बताएँगे कि कैसे और क्यों ये टूल्स और टेक्नीक्स काम करते है.
द न्यू रूल्स (The New Rules) ऍफ़बीआई में मैंने दो डिकेड्स से भी ज्यादा वक्त गुज़ारा है जिसमे मेरा 15 सालो का न्यू यॉर्क से लेकर फिलिपींस और मिडल ईस्ट तक का नेगोशिएटिंग होस्टिंग सिचुएशन का एस्पिरियेश भी शामिल है. और सच बोलू तो मै इस गेम के टॉप पर हुआ करता था. मै अकेला टॉप क्लास लीड इंटरनेशनल किडनैपिंग नेगोशिएटर था. फिर मैंने हार्वर्ड जाने की सोची जहाँ पर मै क्विक एक्जीक्यटिव नेगोशिएशंन का कोर्स करूँ ताकि मै बिजनेस वर्ल्ड के अप्रोच से भी कुछ लर्न कर सकू.

पिछले तीन डिकेड्स से हार्वर्ड नेगोशिएटिंग थ्योरीज और प्रेक्टिस का सेंटर रहा है. जो टेक्नीक्स हम
ऍफ़बीआई में यूज़ करते है, वो हमेशा ही काम करती है लेकिन मुझे बस इतना ही मालूम है. हमारी टेक्नीक्स
एस्पिरियेश लर्निंग का प्रोडक्ट्स होती थी .; जो एजेंट्स फील्ड में क्रिएट करते थे, बेहद टेन्श और मुश्किल हालातो के बीच नेगोशियेशन करना, एक दुसरे से स्टोरी शेयर करना कि क्या चीज़ फेल हो गयी और
किस चीज़ से सक्सेस मिली. ये काफी अर्जेंट प्रोसेस होता था -हमारी थ्योरीज काम करनी चाहिए क्योंकि
अगर ऐसा नही हुआ तो किसी को अपनी जान से जाना पड़ सकता है. लेकिन मेरा सवाल है कि ये थ्योरीज
काम कैसे करती थी? और यही सवाल मुझे हार्वर्ड लेकर आया.
सबसे ज्यादा तो मै ये सोचकर हैरान था कि हमारी टेक्नीक्स क्या नोर्मल लोगो पर भी काम करेगी जैसे
ये ड्रग डीलर्स, टेरेरिस्ट्स और खतरनाक मुजरिमों पर काम करती है. खैर इस बात का पता तो मुझे जल्दी
ही हार्वर्ड जाकर चल जाएगा क्योंकि बात ये थी कि नेगोशिएशंन को लेकर जो हमारी अप्रोच होती है वो
ह्यूमन इंटरएक्शन के हर डोमेन और हर रिलेशनशिप को अनलॉक करती है. इसलिए ये बुक क्या के बदले
कैसे नेगोशिएट करे, इस पर ज्यादा फोकस करती है.

बी अ मिरर (Be AMirror)
सितम्बर 30, 1993 (September 30, 1993)ये पतझड़ के मौसम की बात है.सुबह करीब आठ बजकर
तीस मिनट पर सेवंथ एवेन्यू और कार्रोल स्ट्रीट इन ब्रूकलीन के चेज़ मैनहैट्टेन बैंक का अलार्म बजा. मास्क
लगाए दो रोबेर्स बैंक लूटने आये थे. बैंक रोबेरी पर तो बहुत सारी मूवीज बनती है लेकिन न्यू यॉर्क में लगभग 20 सालो से ऐसा कोई केस नहीं हुआ था. मैंने इस मिशन में सीखा कि एक गुड नेगोशिएटर्स
किसी भी तरह की पॉसिबल सरप्राइज़ के लिए रेडी रहते है लेकिन ग्रेट नेगोशिएटर्स अपनी स्किल्स यूज़
करने के लिए एक गोल सेट करते है ताकि जो भी सरप्राइज़ है वो खुल जाए. हमारे एस्पिरियेश से
हमने ये सीखा है कि नेगोशियेट करते वक्त मल्टीपल हाइपोथेसिस प्रोपेयर करना बेस्ट तरीका है -कि
ओंनगोइंग सिचुएशन क्या है और क्रिमिनल्स क्या डिमांड कर सकते है -इसलिए जो भी इन्फोर्मेशन उनके
सामने होती है, वो उसे यूज़ करके सही हाइपोथेसिस से मैच कर सके. और सबसे ज़रूरी बात है कि किसी भी नेगोशिएशन को जीतने के लिए आपको आर्ग्युमेंट पर जोर नहीं देना है बल्कि अपना मेन फोकस सामने वाले पर रखो कि वो क्या चाहता है. इस तरीके से आप उन्हें फील करा सकते हो कि वो सेफ है और उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. आपका मेन गोल सामने वाले और उसकी (इमोशनली या दसरी । जरूरत पर होना चाहिए. और ये तभी होगा जब आप उनकी बात ध्यान से सुनोगे, उनके इमोशंस समझने की कोशिस करोगे. एक सबसे बड़ी गलती लोग जो करते है, वो है जल्दबाजी करना. आप जब तक उनकी बात ध्यान से नहीं सुनोगे

उन्हें फील नहीं होगा कि आपको उनसे सिम्पेथी है. क्योंकि ऐसा ना करने का मतलब होगा उनके ट्रस्ट
और पूरे प्रोसेस को ही डिस्ट्रॉय करना, कई रीसर्चर्स ने ये चीज़ डिस्कवर की है कि आप प्रोसेस को जितना
टाइम देंगे, उतना ही सामने वाला शांत होता जाएगा. और टेक्नीक के साथ आपकी आवाज़ मोस्ट पॉवरफुल
टूल है जो आप यूज़ कर सकते है. हमारी आवाज़ एक की है वर्बल कम्यूनिकेशन के लिए, जिससे आप
सामने वाले को इमोशनली ट्रिगर कर सकते हो जैसे कोई इमोशनल स्विच होता है. जितना हो सके अपनी
आवाज़ को पोजिटिव और प्लेफुल बनाये रखे. इससे आप भी रिलेक्स फील करेंगे और सामने वाला भी.
जब तक आपकी वौइस् टोन सॉफ्ट रहेगी आप डायरेक्ट और पॉइंट टू पॉइंट बात कर सकते है. एक
और टेक्नीक जो हमने सीखी थी वो है मिररिंग यानी इसोप्रक्सिस्म (isopraxism) और ये इमिटेशन के
लिए बहुत ज़रूरी है. ये एक तरह का न्यूरोबिहेवियर है जिसमे दो लोग जो नेगोशिएटिंग कर रहे है, वो एक
दुसरे को कॉपी करते है और कम्फर्ट फील कराते है. ऍफ़बीआई में हम मिररिंग तब करते है जब हम अपने
काउंटरपार्ट के बोले गए मोस्ट क्रिटिकल एक से तीन वर्डस रीपीट करते है. रीपीटिंग से मिररिंग एस्पेक्ट को हम ट्रिगर करते है,

उन्हें जताने के लिए कि हम सेम उनकी तरह है. इस तरह बिना कोई हार्म पहुंचाए हम अपने मिशन में
सक्सेस हो जाते है और क्रिमिल्न्स अरेस्ट हो जाता है. मुझे ये बड़ा रिलेक्स फील कराता है लेकिन साथ
ही मै पॉवर ऑफ़ इमोशंस, डायलाग और ऍफ़बीआई के डेवलपिंग टूल्स ऑफ़ एप्लाइड साइकोलोजिकल
टैक्टिस का भी कायल हो जाता हूँ जो किसी को भी कन्विंस कर सकता है. फाइनली एक्जीक्यूटिव्स
और स्टूडेंट्स के साथ काम करने के बाद मै हमेशा उन्हें ये फील करवाने की कोशिश करता हूँ कि एक
सक्सेसफुल नेगोशिएशन का सीक्रेट राईट होना नहीं है – बल्कि एक राईट माइंडसेट का होना है.


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डोंट फील देयर पेन, लेबल इट (Don’t Feel
Their Pain, Label It)

मै 1998 में न्यू यॉर्क सिटी ऍफ़बीआई क्राईसिस नेगोशिएशन टीम का हेड था. मै हार्लेम में एक हाई
राईज के 27वे फ्लोर पर था. मुझे खबर मिली थी कि इस बिल्डिंग के एक अपार्टमेन्ट के अंदर हथियारों
से लैस कम से कम 3 क्रिमिनल्स छुपे हुए है. काफी टेन्शड सिचुएशन थी. हमे सिखाया गया था कि इस
तरह की कंडिशन में हमे बिलकुल भी इमोशनल नहीं होना है इसलिए हम एकदम न्यूट्रल मोड पर थे. बहुत से रीसर्चर्स मानते है कि नेगोशिएशन में इमोशंस का कोई रोल नहीं है, इसलिए बैटर है कि लोगो को प्रोब्लम से सेपरेट करके देखा जाए.
लेकिन ज़रा सोचो, आप लोगो को प्रोब्लम से कैसे अलग करके देख सकते है जबकि उनके इमोशन ही
प्रोब्लम है? स्पेशिफीकली, जब लोग हाथ में गन लिए हुए बेहद गुस्से में हो और डरे हुये हो. इसलिए एक ग्रेट
नेगोशिएटर कभी भी इमोशंस को इग्नोर नहीं करता. वो लोगो के इमोशन को समझकर उन्हें इन्फ्लुएंश करता है. खैर, बात करते है इस केस की. यहाँ एक प्रोब्लम हमारे सामने थी और वो ये कि जिसमें क्रिमिनल्स छुपे थे रस अपार्टमेंट में कॉल करने के लिए कोई टेलीफोन नंबर हमारे पास नहीं था. इसलिए मुझे डोर पे जाकर बात करनी पड़ी.

छ घंटे तक हमे कोई रीस्पोंस नहीं मिला तो हमे लगा शायद वहां पर कोई नहीं है. लेकिन तभी पास वाली
बिल्डिंग से एक स्नाइपर ने हमे बोला कि उसने पर्दा हिलता हुआ देखा है. फिर धीरे से अपार्टमेंट का डोर
खुला, एक औरत बाहर निकली जिसके पीछे तीनो क्रिमिनल्स बाहर आये. जब तक हमने उन्हें हथकड़ी
नहीं पहना दी, कोई कुछ नहीं बोला. लेकिन मेरे माइंड में एक सवाल था” तुम लोग छह घंटो तक चुपचाप बैठे रहे तो फिर अचानक बाहर क्यों आये? तुमने खुद को पोलिस के हवाले क्यों किया? मेरे इस सवाल का तीनो ने सेम जवाब दिया कि” हम मरना नहीं चाहते थे लेकिन आपने हमे शांत कर दिया था”.
दरअसल जब हमे उन लोगो की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो दरवाजे पे जाके उन्हें बोला” ऐसा लगता
है तुम बाहर नहीं आना चाहते. शायद तुम्हे लगता है कि डोर ओपन होते ही हम तुम पर गोलियों की बौछार
कर देंगे और शायद तुम लोग जेल भी नहीं जाना चाहते हो”. एक्चुअल में ये एक टेक्टिकल एम्पैथी थी जिसमे
हम उनकी फीलिंग्स और माइंडसेट समझने की कोशिश करते है, उनकी खामोशी को सुनने की कोशिश करते है. फिर हम रिएलाइज कर लेते है कि अब सिचुएशन का आउटकम क्या होने वाला है.ये एक तरीका है

जिसमे किसी के इमोशंस को हम वेलिडेट करने के लिए लाउडली एकनॉलेज करते है और नेगोशिएशन
की लेंगुएज में इसे लेबलिंग बोलते है. ये काफी हेल्प करता है खासकर तब जब सामने वाला बेहद गुस्से में
हो या डरा हुआ हो. इसमें कई सारे स्टेप्स होते है, फर्स्ट है दूसरो के इमोशंस को डिटेक्ट करना फिर आप उसे
लाऊडली लेबल करते हो और लास्ट में साइलेंस. लेबल फेंको और चुपचाप वेट करो ताकि आप उनकी बात
सुन सको. लेबल अपना काम खुद कर लेगा. बीवेयर”एस”- मास्टर”नो” (Beware “Yes” – Master “No”)
चलो एक सिनेरियो इमेजिन करते है जो हम सबने एक्स्पिरियेश किया है: आप घर में हो कि तभी आपका
फोन बजता है और आप देखते हो कि टेलीमार्केटर का फोन है. वो आपको कोई वाटर फ़िल्टर, मैगजीन
सबक्रिप्शन या ऐसी ही कोई चीज़ का ऑफर दे रहा है. पहले वो आपसे आपका नाम पूछेगा फिर कुछ ऐसी
ही गोल-गोल बाते करेगा. वो अपनी पिच डालेगा. वो आपके कैसे भी करके फंसाने की कोशिश करेगा. वो
आपकी एक भी बात नहीं सुनेगा. आपको लग रहा होगा कि आप उसके शिकार हो लेकिन सच यही है कि
उसने आपको फंसा लिया है. अब हम इस सेल्स मेन की सेलिंग टेक्निक पर गौर करते है.

ये हमसे किसी भी कीमत पर हाँ बुलवा लेते है जैसे कि हम ना बोल नहीं सकते है. और बहुत से लोग वाकई
में मना नहीं कर पाते. क्योंकि नो हमारे लिए एक नेगेटिव वर्ड है, रिजेक्शन का वर्ड. लेकिन नेगोशिएशन
में हां बोलकर आप बुरे बनते है, सामने वाले को इससे और ज्यादा गुस्सा आता है. एक अच्छे नेगोशिएटर
के लिए ना बोलना प्योर गोल्ड है. ये नेगेटिव तो है लेकिन आपके और सामने वाले दोनों को समझ आता
है आप एक दुसरे से क्या चाहते है. “नो” बोलकर हम नेगोशिएशन की शुरुवात करते है. ये उसका एंड नहीं
है. हम ना बोलने से डरते है लेकिन ये एक तरह का प्रोटेक्शन है.
इसका मतलब है कि मैंने सारे आप्शन कंसीडर कर लिए है लेकिन मै सबको मना कर रहा हूँ. और इसके
अलावा लोगो को लगता है कि वो कण्ट्रोल में है. जब हम लोगो को अपने ऑफर या आईडिया के लिए
ना बोलने की फ्रीडम देते है तो उन्हें एक सेंस ऑफ़ सिक्योरिटी या पीस की फीलिंग आती है. “नो” “हां” का
अपोजिट है लेकिन हम इसे अवॉयड नहीं कर सकते. लेकिन हमे ये भी नहीं भूलना है कि हमारे नेगोशिएशन
का फाइनल गोल हाँ है हालाँकि स्टार्टिंग में इसे यूज़ मत करो. क्योंकि फिर आपके अपोजिटर को लगेगा
कि आप उसे ओवरपॉवर करना चाहते हो. इसलिए उसे ना बोलने दो. उन्हें ज्यादा सिक्योर फील होगा. और कभी-कभी तो सामने वाले को बातो में उलझाये रखने के लिए उनसे जबर्दस्ती ना बुलवाना पड़ता है. लेकिन कैसे? उनके इमोशंस या उनकी नीड्स को जानबूझ कर मिसलेबल करके आप ये कर सकते है.

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ट्रिगर द टू वर्ड्स देट इमीडिएटली ट्रांसफॉर्म एनी नेगोशिएशंस (Trigger the Two Words that Immediately Transform Any Negotiation)

ऑगस्ट, 2000 की बात है. एक इस्लामिक मिलिटेंट ग्रुप अबू सैयद ने अनाउंस किया कि उन्होंने जोलो
आईलैंड में जहाँ उनका बेस है, एक सीआईए एजेंट को पकड़ लिया है. ये जगह साउथ फिलिपीन्स में आती है.
24 साल के उस अमेरिकन एजेंट का नाम था जेफरी स्चिल्लिंग, जिसे अब मिलिटेंट ग्रुप ने होस्टेज बना रखा
था और उसे छोड़ने के वो लोग $10 मिलियन मांग रहे थे. जब ये इंसिडेंट हुआ तब मै एक सुपरवाइज़री
स्पेशल एजेंट( एसएसए) के तौर पर ऍफ़बीआई के एलीट क्राइसिस नेगोशिएशन यूनिट (सीएनयू) के साथ
काम कर रहा था.
मै स्चिल्लिंग केस हैंडल कर सकता था क्योंकि एक तो मै फिलिपिंस में कुछ टाइम रह चूका था और दूसरा
मेरा टेरेरिज्म का बेकग्राउंड भी था. लेकिन इस केस पर नेगोशिएशन करते हमे चार महीने हो चुके थे लेकिन टेरेरिस्ट टस से मस नहीं हो रहे थे. तब मैंने डिसाइड किया कि अब रिसेट स्विच करना होगा. मैंने सोच लिया था कि हम एक्टिव लिस्निंग अर्सेनल (active listening arsenal) के लिए हर एक टेक्टिक यूज़ करेंगे : 1) इफेक्टिव पॉज (Effective pausesसाइलेंस इज़ पॉवरफुल (silence is powerful).

ये प्रिंसिपल एडवेर्सरी को एंकरेज करेगा जोकि उनका रेबेल लीडर अबू सबाया था जिसे टेरेरिस्ट सोशियोपेथ
किलर के नाम से भी जाना जाता था. 2) मिनिमल एंकरेजर्स (Minimal encouragers) साइलेंस
के बाद हम ईजी सेंटेंस से स्टार्ट करेंगे जैसे कि “एस”, “ओके”. “आई सी”, ताकि सबाया को लगे कि हम पूरी
तरह उसकी बात सुन रहे है 3) मिररिंग (Mirroring): हम उससे आयूं नहीं करेंगे बल्कि हम वही रीपीट करेंगे
जो सबाया बोलेगा 4) लेबलिंग (Labelling) हम सबाया की फीलिंग्स को समझने की कोशिश करेंगे और
फिर उसे लेबल करेंगे. जैसे एक्जाम्पल के लिए हम बोल सकते है “ये तो बड़ी गलत बात है, बड़ा दुख हुआ
सुनकर, मै समझ सकता हूँ कि तुम्हे इतना गुस्सा क्यों आ रहा है” 5) पैराफ्रेज़ (Paraphrase) हम सबाया
की बात को अपने वर्ड्स में रीपीट कर रहे थे.
हम खाली सुन नहीं रहे थे बल्कि समझ भी रहे थे 6) फाइनली, हम इसे समराईज करेंगे: सामने वाले के
इमोशंस को समझना और उसे रीश्योर कराना. स्पोइलेर अलर्ट (Spoiler alert) हमारा मेथड काम कर रहा
था. क्योंकि सबाया अब पैसे की बात भी नहीं कर रहा था. जेफरी स्चिल्लिंग को एक खरोंच भी नहीं आई, वो
सही-सलामत अपनी फेमिली के पास लौट आया था. दो हफ्ते बाद सबाया ने हमारे फिलिपिनो मिलिट्री ऑफिसर बेंजी को कॉल करके पुछा कि उसका प्रोमोशन हुआ या नहीं”

उसने एडमिट किया कि वो जेफरी को जान से मारने वाला था. उसने कहा” मुझे नहीं पता कि आपने मुझ पर
क्या जादू किया कि मै रुक गया लेकिन आपकी ट्रिक काम कर गयी”. 2002 में फिलिपीन मिलिट्री यूनिट के साथ शूट आउट में सबाया मारा गया. बेंड देयर रिएलिटी (Bend Their Reality) 2004 में एक दिन मंडे मोर्निंग की बात थी. हैती की कैपिटल पोर्ट-औ-प्रिंस (Haiti, Port-au-Prince,) में ऍफ़बीआई ऑफिस में एक फ़ोन आया. कॉल करने में वाला हैती के एक वेल-नोन पोलिटिशियन का भतीजा था. उसकी आंटी किडनैप हो गयी थी और किडनैपर $150,000 मांग रहे थे. उस दिनों हैती में पोलिटिकल उथल-पुथल चल रही थी क्योंकि रिबेलियंस ने प्रेजिडेंट जीन बर्टरेंड एरिसटाइड (Jean Bertrand Aristide,)को पोस्ट से हटा दिया था. और तभी से दुनिया में हैती की इमेज एक हाईएस्ट किडनैपिंग रेट वाली कंट्री की बन गयी थी. उस वक्त मै ऍफ़बीआई का लीड इंटरनेशनल किडनैपिंग नेगोशिएटर था.
हर घंटे मुझे कोई ना कोई एब्डक्शन और अटैक की न्यूज़ मिलती थी. ये केस थोडा अजीब था. उस औरत
का भतीजा पहले सोच रहा था कि किडनैपर्स को पैसे देदे. उसका ये डिसीजन ओब्विय्स था. लेकिन ये अप्रोच गलत है: क्योंकि ऐसे कई सारे वीक स्पॉट्स होते है, कई अनक्लोज्ड नीड्स होती है और एक बार अगर आप इन चीजों को समझ जाओ तो कई सारे ऐसे सोल्यूशंस निकल कर आते है जिससे सामने वाले की नीड्स या एक्सपेक्टेशन चेंज हो जाती है.

नेगोशिएशंस में जो चीज़ सबसे ज्यादा क्रूशियल होती है वो है टाइम. डेडलाइन्स काफी डेंजरस होते है क्योंकि
जल्दबाजी में हम कोई गलत बात बोल सकते है या कोई गलत स्टेप उठा सकते है. जब डेडलाईन सामने
होती है तो हम स्ट्रेस में आ जाते है और इसीलिए जल्दबाजी में एक्शन ले बैठते है. लेकिन एक अच्छा
नेगोशिएटर जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं लेता. वो अपना माइंड एकदम शांत रखेगा. क्योंकि एक बार ये
ट्रिगर हो गया तो आपको ऐसी हालत में फंस जायेंगे जहाँ रिएक्टिव बिहेवियर्स और बेड चॉइस लेने के पूरे
चांसेस है.
अगर हम इंटरनेलाईज़ कर सके कि बेड डील से बैटर है कि हम कोई डील ही ना करे, तब पेशेंस रखना काफी थ्रेटनिंग हो जाता है. और डेडलाईन से ज्यादा इम्पोर्टेट चीज है प्रोसेस में एंगेज होना और उसकी ड्यूरेशन को एस्टीमेट करना. सिचुएशन को कण्ट्रोल करने के लिए सामने वाले को कन्विंस करना होगा कि अगर ये डील फेल हुई तो नुकसान उनका होगा. इस चीज़ को हम बेन्डिंग देयर रिएलिटी बोलते है. किसी भी ऑफर को मानने से पहले उन्हें बताओ कि अंजाम कितना बुरा हो सकता है, उनके इमोशंस को इन्फ्लुयेश करने की कोशिश करो. इस तरह आप उन्हे रेशनल साइड दिखाकर इररेशनल डिसीजन लेने से रोक सकते है.

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क्रिएट द इल्यूजन ऑफ़ कण्ट्रोल (Create the illusion of Control)

जेफरी स्पिल्लंग का केस खत्म होने के एक महीने बाद स मनीला लौटने का आर्डर मिला. उसी
डेंजरस मिलिटेंट ग्रुप अबू सैय्यद ने, जिसने पहले स्चिल्लिंग को उठाया था, इस बार दोस पाल्मास प्राइवेट
डाइविंग रिसोर्ट पर अटैक करके 20 लोगो को होस्टेज बना लिया था जिनमे तीन अमेरिकन्स भी थे. मार्टिन
एंड ग्रेसिया बुर्ट्स और गुइल्लेर्मो सोबेरो. (Martin and Gracia Burnham, and Guillermo Sobero.)ये शुरुवात से ही बड़ी डरावनी सिचुएशन थी क्योंकि किडनैपिंग के दुसरे ही दिन इलेक्टेड प्रेजिडेंट ग्लोरिया मकापगल- अरोयो (Gloria Macapagal-Arroyo,) ने अबू सैय्यद पर पब्लिकली आल आउट वॉर का ऐलान कर दिया था.
बड़े दुःख के साथ बताना पड़ रहा है कि इस क्राइसिस का एंड जून में एक गनशॉट्स के बीच हुआ था. और ये
मेरी ऑफिशियली सबसे बड़ी हार थी. लेकिन फ्यूचर सक्सेस के लिए फेलर्स भी उतने ही ज़रूरी होते है. दोस
पाल्मास (The Dos Palmas) क्राइसिस से एक बात समझ आई कि हम लोग आज भी स्टीरियोटाइप
थिंकिंग रखते है कि नेगोशिएशन एक रेसलिंग मैच जैसा है जहाँ हमारा एक ही मकसद होता है, अपने विरोधी को हराना, अपना बेस्ट ट्राई करना और उम्मीद कभी ना छोड़ना.

लेकिन इस मिशन में सबसे इम्पोर्टेन्ट चीज हमने सीखी कि एक सक्सेसफुल नेगोशिएशन वही है जिसमे सामने वाला खुद हमारी हेल्प करे और सोल्यूशन भी खुद ऑफर करे. लेकिन ये तभी होगा जब जब ओपन एंडेड क्वेश्चन्स पूछे जायेंगे. इस टाइप के सवाल कम्युनिकेशन को ईजी बना देते है क्योंकि सामने वाला को फील होता है कि उसकी बात को सुना जा रहा है. ये एक तरह से कण्ट्रोल वाली फीलिंग भी देता है. ओपन
एंडेड क्वेश्चन या जिन्हें कैलिब्रेटेड क्वेश्चन्स भी बोला जाता है, इसमें आपको इस तरह के वर्ड्स या वर्ल्स
अवॉयड करने होंगे जैसे,”केन, ‘इज” ‘आर’ ‘डू’ या डज़. दरअसल इन वर्ड्स को इसलिए अवॉयड करना चाहिए
क्योंकि उनका आंसर एस या नो में होगा और यही हम बिलकुल नहीं चाहते.
इसके बजाये यूज़ करे, वहू, व्हट, व्हेन, व्हेयर, व्हाई और हाउ- इन्हें रिपोर्टर्स क्वेश्चन्स भी बोलते है. लेकिन
मेरे एस्पिरियेश से बैटर होगा कि हम सिर्फ व्हट, हाउ और बीच-बीच में व्हाई से शुरुवात करे. व्हाई भी कभी
बैक फायर कर देता है क्योंकि अक्सर इससे लगता है कि हम सामने वाले को अक्यूज़ कर रहे है. यहाँ मै कुछ ग्रेट ओपन एंडेड क्वेश्चन्स बताता हूँ जो ऑलमोस्ट हर टाइप के नेगोशिएशन में यूज़ किये जाते है :
ये तम्हारे लिए डम्पोर्टेट क्यों है? (What about this is important to you?) मै इसे हम दोनों के लिए कैसे बैटर बना सकता हूँ? (How can | help to make this better for us?) तुम्हारा बिगेस्ट चेलेंज क्या है? (What is the biggest challenge you face?)  जब आप ये क्वेश्चन्स पूछेगे तो सामने वाला खुद ही सोल्यूशन देगा- यानी आपका सोल्यूशन. साथ ही कन्वर्सेशन के बीच मै इम्पोर्टेट इनफोर्मेशन भी रीवील करूँगा.

गारंटी एक्जीक्यूशन (Guarantee Execution) लुसिआना, सेंट, मार्टिन परीश: एक डेंजरस प्रिजन
ब्लोकेड में कुछ आर्ड प्रिजनर्स ने अपने हाथो से चाकू बनाये और वार्डन और स्टाफ को होस्टेज बना लिया.
बड़ी डेंजरस सिचुएशन थी.वैसे प्रीजनर्स स्टाफ को हर्ट नहीं करना चाहते थे वो बस चाहते थे कि सिचुएशन
ओवर हो जाए. प्रोब्लम ये थी कि प्रिजनर्स अब डर रहे थे कि जैसे ही ये ड्रामा खत्म होगा उन्हें बड़ी मार
पड़ेगी..एक नेगोशियेटर के लिए इम्पोर्टेट है कि वो सिर्फ एग्रीमेंट ना करे बल्कि ये श्योर कर ले कि एग्रीमेंट को इम्प्लीमेंट किया जाये. किसी भी एग्रीमेंट की सक्सेस तब है जब होस्टेज आपसे कहे” बैंक यू”.
और नेगोशिएशन को बनाये रखने के लिए, अगर कैलिब्रेटेड” हाउ” क्वेश्चन्स को करेक्टली यूज़ किया
जाये तो ये नो कहने का एक जेंटल तरीका है और ये सामने वाले को गाइड करता है कि वो कोई बैटर सोल्यूशन निकाले- यानी वो सोल्यूशन जो आप चाहते है. एक नेगोशिएटर के तौर पे आपको कई सारे क्रिमिनल्स से बात करनी पड़ती है जो सफ़ेद झूठ बोलते है और आपको अपने एग्रीमेंट से डराने की कोशिश करते है. लेकिन ऐसे हार्ड कोर क्रिमिनल्स के झूठ और गुस्से को हैंडल करने के लिए आपको वर्बल, पारावर्बल ( हाउ इट इज़ सेड) और नॉन वर्बल कम्यूनिकेशन स्किल आनी चाहिए जो नेगोशिएशन में काम आती है.

दो फेमस स्टडीज के हिसाब से कि हम किसी को क्यों लाइक या डिसलाइक करते है. साइकोलोजी के एक
प्रोफेसर अल्बर मेहराबियान ने 7-38-55 रुल क्रिएट किया है. जिसके हिसाब से कोई भी मैसेज 7% ही
वर्ड्स पर बाकी 38% टोन ऑफ़ वौइस्, 55% बॉडी लेंगुएज और बोलने वाले के फेस पर बेस्ड होता है.
तो आप ये रुल कैसे यूज़ करेंगे? पहले वौइस् टोन और बॉडी लेंगुएज पर अटेंशन दो, ये देखो कि सामने
वाला जो बोल रहा है उसके साथ कोम्पेटीएबल है कि नहीं. वो कैसे प्रोनाउन्स का यूज़ करते है, मै, मुझे और
मेरा वर्ड्स का ज्यादा यूज़ करना शो करता है कि वो ज्यादा इम्पोर्टेट नहीं है. (the more usage of I, me, and my indicates how they are not of great importance.) हालाँकि अगर वो कभी भी फर्स्ट पर्सन प्रोनाउन यूज़ नहीं करते तो वो ज्यादा इम्पोर्टेट नहीं है. (the more usage of I, me, and my indicates how they are not of great importance.) हालाँकि अगर वो कभी भी फर्स्ट पर्सन प्रोनाउन यूज़ नहीं करते तो वो ज्यादा इम्पोर्टेट है. ये सब एक गेम जैसा है. उन वर्ड्स के पीछे का मीनिंग हमे पता करना होता है ताकि हम मनमुताबिक एग्रीमेंट कर सके और प्लान स्कसेसफुल हो.

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बार्गेन हार्ड Bargain Hard

कुछ साल पहले मैंने एक रेड टोयोटा 4 रनर देखी थी और देखते ही वो मेरे दिल पे छा गयी. मैंने वाशिंग्टन
डी.सी. मेट्रोपोलीटन के सारे डीलर्स छान मारे. लग रहा था सबको यही गाड़ी चाहिए. फ्राइडे को दोपहर
के टाइम डील फाइनल करने मै एक सेल्समेन से मिला जिसका नाम था स्टेन( Stan). मैंने उसे बताया कि
मुझे वो गाडी कितनी पसंद आई है. “$36,000,” उसने प्राइस बताया. मैंने सर हिलाया और बोला “मेरे
पास सिर्फ $30,000है. मै अभी पे कर सकता हूँ, सब कैश में. लेकिन सॉरी, इससे ज्यादा मै एक पैसा नहीं
दूंगा”. थोड़ी देर तक हमारी नेगोशिएशन चलती रही. और फाइनली मैंने $30,000 में वो गाडी ले ली. मै जीत
गया था. ये टाइम था नेगोशिएशन में बार्गेनिंग का और ये बड़ा इम्पोर्टेट पार्ट होता है जो एंजाईटी और अनफोकस्ड एग्रेशन पैदा करता है. बार्गेनिंग में आपकी नेगोशिएशन स्टाइल एक क्रूशियल वेरिएबल होती है. और एक वेल ट्रेंड नेगोशिएटर के तौर पर आप इन्फोर्मेशन ढूंढ रहे होते हो. इसलिए आप चाहोगे कि सामने वाला पहले अपना प्राइस सेट करे ताकि आप उस हिसाब से अपना प्राइस बोल सके. एक ग्रेट नेगोशिएटर को पता होता है कि वो कहाँ हिट करे कि सामने वाला कमज़ोर पड़ जाए और हार मान ले. लेकिन कैसे? ये आप कर सकते है हाउ क्वेश्चन से नो बोलकर या फिर” व्हट आर वी ट्राइंग टू अकोम्पोलिश हियर?” से.

दूसरी चीज़ जो आप कर सकते है वो ये कि कोन्वेर्सेशन को अनडायरेक्टली मनी इश्यू तक ले जाए जोकि
फाइनल प्राइस सूटेबल बना दे. नेगोशिएशन से पहले आपको बाउंड्रीज सेट करनी होगी और पंच हैंडल
करना सीखना होगा. और ये भी सीखना होगा कि बिना एग्रेसिव हुए पंच बैक कैसे करे. एक्चुअल में प्रोब्लम तो सिचुएशन में है नाकि सामने वाले में. फाइंड द ब्लैक स्वान (Find the Black Swan) 1981, 17 जून वाले दिन सुबह के ठीक 1:30 बजे 37 साल के विलियन ग्रिफिन अपने सेकंड फ्लोर के बेडरूम से निकल कर फर्स्ट फ्लोर के लिविंग रूप में गया. वो रुका, फिर बगैर कुछ बोले सीधा अपनी मदर, स्टेपफादर और एक हैंडीमेन को गोली मार दी. उसकी मदर और हैंडीमेन तो मौके पर ही मर गए लेकिन उसके स्टेप फादर बुरी तरह घायल हो गए थे. ग्रिफिन घर के बाहर गया. उसने एक वर्कमेन और रास्ते में खड़े दो और लोगो पर भी गोली चलाई और फिर भागकर एक बैंक द सिक्योरिटी ट्रस्ट कम्पनी में घुस गया. बैंक के अंदर अफरा-तफरी मच गयी. डर के मारे लोग इधर से उधर भाग रहे थे.

उसने बैंक के नौ स्टाफ मेंबर्स को गन दिखाकर होस्टेज बना लिया और बाकियों को जाने के लिए बोला. इस क्राइसेस ने मुझे ब्लैक स्वान की इम्पोर्टेस रिएलाइज करा दी थी -एक सीक्रेटिव और चौकाने वाली
इन्फोर्मेशन जिसने गेम ही पलट दिया था. ठीक 3 बजे ग्रिफिन ने एक होस्टेज को आर्डर दिया कि वो बैंक
के ग्लास डोर तक जाये. वो 29 साल की औरत थी. सिंगल पेरेंट और एक छोटे लड़के की माँ. ग्रिफिन को
ना तो कुछ सुनाई दे रहा था और ना ही उसे कोई केयर थी. उसने गोली चलाई जो उस औरत की बॉडी को आधे हिस्से में चीरती हुई निकल गयी. बाहर खड़ी पोलिस शॉक्ड रह गयी कि तभी ग्रिफिन बैंक की विंडो तक आया. वो वहां से हटता इससे पहले ही स्नाइपर्स ने उस पर गोलियों की बौछार कर दी. ब्लैक स्वान एक सिम्बल है कि प्रेडिक्शन कितने यूज़लेस हो सकते है, खासकर जब वो किसी पास्ट के किसी सेम एक्स्पिरियेश या सिचुएशन पर बेस्ड हो. नेगोशिएशन में ब्लैक स्वान एक इम्पोर्टेट कांसेप्ट है. कुछ चीज़े ऐसी होती है जिनके बारे में हमें पहले से पता होता है. इसे हम जानी-पहचानी चीज़े बोलते है. लेकिन कुछ ऐसी भी चीज़े है जो हमे मालूम है कि एक्जिस्ट करती है लेकिन हम उन्हें नहीं जानते.

जो हमने कभी इमेजिन नहीं की होती है और अगर वो अनकवर हो जाए तो गेम चेंजर भी हो सकती है. ये
चीज़े होती है ब्लैक स्वान. इस केस में ग्रिफिन ब्लैक स्वान है जो मरना चाहता था लेकिन वो चाहता था
कि पोलिस उसे मारे. ब्लैक स्वांस को ढूंढना और उन्हें समझने के लिए कम्प्लीटली डिफरेंट माइंडसेट की
ज़रूरत पड़ती है. हिडन इन्फोर्मेशन या अननोन को जानने के लिए हमे बहुत सारे सवाल पूछने पड़ते है.
हमे इतना एबल होना चाहिए कि हम नॉन वर्बल क्ल्यूज़ पढ़ सके और उनके रिस्पोंस को ध्यान से सुने. ये कोई नहीं चीज़ नहीं है, हम पिछले चैप्टर में भी ये पढ़ चुके है लेकिन ये थोडा और इंटेंस है. आपको सामने वाले के पर्सपेक्टिव को डीपली समझना होगा.

कनक्ल्यूजन (Conclusion)
अगर हम नेगोशिएशन को एक वर्ड में बोले तो इसका सम होगा- सामने वाले की बात सुनना. जब हम दूसरो की बात सुनते है तो हमे प्रोब्लम के सोल्यूशन मिलते है. लेकिन बोले गए शब्दों के पीछे हमेशा गहरे अर्थ छुपे होते है और वही हमे समझने की ज़रूरत है. ये आपको सामने वाले की नीड्स और वो क्या चाहता है ये चीज़ समझने में हेल्प करती है ताकि वो भी आपकी बात समझे और माने. हर बच्चा, हर डॉक्टर, हर इंजीनियर, या कोई भी इंडीविजुअल ये मानता है कि उसमे कुछ ना कुछ एक्स्ट्राओर्डीनेरी है. लाइफ में कोई पीछे नहीं रहना चाहता, उसे क्या करना है और क्या नहीं ये वो खुद डिसाइड करना चाहता है- सब एक फ्री लाइफ जीना चाहते है. इसलिए दूसरो की सुनो ताकि वो भी बदले में आपकी सुने. मुझे उम्मीद है
कि ये बुक आपको डर का सामना करना सिखाएगी, आपको एंकरेज करेगी कि किसी भी कंफ्लिक्ट को
आप एम्पेथी और पेशेंस के साथ सोल्व करो. आप एक ग्रेट टीचर, वाइफ, हजबैंड, मैनेजर या जो कुछ भी बनना चाहते हो, उसके लिए आपको आर्ट ऑफ़ लिसनिंग सीखनी होगी. नेगोशिएशन के दौरान आपका मकसद दुसरे को ह्यूमिलेट करना या खुद को स्ट्रोंग प्रूव करना नहीं है बल्कि वैल्यू और उस पीरियड को अनकवर करना है.


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