It Doesn’t Have to Be
Crazy at Work
David Heinemeier Hansson and Jason Fried
इंट्रोडक्शन(Introduction)
आपने कितनी बार ये फ्रेज़ सुना है “It’s crazy at work”? आपने तो शायद ख़ुद भी इसे कई बार कहा
होगा. अब तो ऑफिस में वर्क लोड, स्ट्रेस कई लोगों के लिए नार्मल बात हो गई है लेकिन ऐसा क्यों ?
आजकल ज़्यादातर हम सब काम को बोझ समझने लगे हैं, काम ख़त्म करने के प्रेशर में हम इतना स्ट्रेस ले लेते हैं कि लगता है पागल हो जाएँगे. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि ये स्ट्रेस और irritation काम पूरा होने के बाद ख़त्म नहीं होते बल्कि हमारे साथ घर तक चले जाते हैं और हमारे आस पास के सभी लोगों पर अपना नेगेटिव असर दिखाने लगते हैं.इतना ही नहीं इन सब के साथ तेज़ी से हो रहे ग्रोथ और एक सक्सेसफुल बिज़नेस बनने का जुनून भी शामिल है जो हमारे काम और स्ट्रेस दोनों को बढ़ाता ही जा रहा है. आजकल हम अनरीयलिस्टिक गोल सेट करने लगे हैं जिसका प्रेशर हम सब पर पड़ रहा है. अपना बेस्ट परफॉर्म करने के बाद भी लोगों को लगता कि वो फेल हो रहे हैं. ये बुक आपको सिखाएगी कि कैसे अपने ऑफिस को काम करने के लिए एक बेहतर जगह बनाया जा सकता है और कैसे एक रिलैक्स्ड माहौल बनाकर काम की क्वालिटी को इम्प्रूव किया जा सकता है.तो आइए बिना देर किए शुरू करते हैं.
इट्स क्रेज़ी एट वर्क (It’s crazy at work)
हम अपने काम में इतने स्ट्रेस्ड और पागल क्यों रहते हैं इसके दो कारण हैं पहला, हमारे काम में कई तरह
के फिजिकल और विसुअल distraction होते हैं जो हमारा ध्यान भटकाते हैं. दूसरा, हम सब पर टॉप
पर रहने और ज़्यादा ग्रो करने का unhealthy जुनून सवार हो गया है जिसके कारण लोगों demands और उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं जिस वजह से उन्हें स्ट्रेस होने लगा है. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग अपना हर पल अब काम करने में बिताने लगे हैं. वो अब ज़्यादा घंटे काम करते हैं, ऑफिस जल्दी पहुँच जाते हैं, देर से घर लौटते हैं और पहले जहां वीकेंड फॅमिली डे और रिलैक्स करने का डे हुआ करता था, उसे भी लोग अब काम करने में बिता देते हैं. अब काम ऑफिस तक सीमित नहीं रह गया उसने घर तक अपना रास्ता बना लिया है. आज के मॉडर्न वर्कर्स के लिए ज़्यादा काम करना,कम नींद लेना, ज़्यादा घंटों तक काम करना जैसे एक रिस्पेक्ट की बात हो गई है. अब आप सोच रहे होंगे कि टेक्नोलॉजी कितनी एडवांस
हो गई है, इन्टरनेट ने लाइफ कितनी आसान बना दी है तो काम का प्रेशर तो कम हो जाना चाहिए लेकिन
असल में इसका बिलकल opposite हआ है. काम का लोड तो हर दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है.
इस बुक के दोनों ऑथर जेसन फ्राइड और डेविड हेनीमियर हैन्सन ने Basecamp नाम की एक
कंपनी बनाई जो स्ट्रेस-फ्री और वेल मैनेज्ड कंपनी का सबसे बेहतरीन एक्जाम्पल है. ये अनरीयलिस्टिक गोल्स बनाने में, देर रात तक काम करने में और काम की वजह से स्ट्रेस लेने में विश्वास नहीं करते और इन सब के बावजूद Basecamp एक अच्छी खासी प्रॉफिट कमाने वाली कंपनी है जो बेहद smoothly काम
करती है. अब सवाल ये है कि वो ये कैसे कर लेते हैं ? उनके पास पैसा कहाँ से आता है? इसका जवाब है, कस्टमर्स. Basecamp एक सॉफ्टवेर कंपनी है. अब आप सोच रहे होने कि ये भी लंबा पैसा बनाने की दौड़ में शामिल होंगे, लेकिन नहीं, बिलकुल नहीं. आपको सुनकर हैरानी होगी कि इस कंपनी में दुनिया भर के 30 अलग अलग शहरों के 54 एम्प्लोईज़ काम करते हैं. वो हफ्ते में 40 घंटे काम करते हैं और गर्मियों के मौसम में सिर्फ़ 32 घंटे. Basecamp सारे एम्प्लोईज़ के वेकेशन का सारा ख़र्च उठाती है .यहाँ तक कि उन्हें उनकी छुट्टियों के पूरे पैसे भी देती है. इस कंपनी को काफ़ी अलग तरह से डिज़ाइन किया गया था कुछ इस तरह कि वो smoothly काम भी कर सकें और कमाल के रिजल्ट भी अचीव कर सकें
गानी तो हंसान को हंसान माटाने हैं गेलोट नहीं रनके यानी वो इंसान को इंसान समझते हैं रोबोट नहीं, उनके एम्प्लोईज़ स्ट्रेस और प्रेशर से कोसो दूर रहते हैं.
It Doesn’t Have to Be
Crazy at Work
David Heinemeier Hansson and Jason Fried
बरी द हसल (Bury the hustle)
आजकल के नए बिजनेसमैन बड़ी अजीब सी बात कहते हैं कि “आपको टैलेंटेड होने की ज़रुरत नहीं है,
आपको बस कड़ी मेहनत करने की ज़रुरत है, आपके गोल्स को इससे कोई मतलब नहीं है कि आप कैसा
फील करते हैं.” इस सोच की शुरुआत उन लोगों को होप देने के लिए हुई थी जिनमें कॉन्फिडेंस की कुछ
कमी है और जो आगे निकलना चाहते हैं लेकिन इसका रिजल्ट कुछ और ही हुआ. इस सोच से कुछ ही लोगों
को सक्सेस मिली है लेकिन ज़्यादातर इससे बर्बाद ही हुए हैं जिन्होंने जी तोड़ मेहनत भी की लेकिन उनके
हाथ कुछ नहीं आया. सच तो ये है कि आपको कुछ अचीव करने के लिए हर समय काम में लगे रहने की ज़रुरत नहीं है. आपको अपने लिए समय निकालने की, अपने बच्चों के साथ खेलने की, अपने हॉबी को पूरा करने के लिए समय निकालना चाहिए. इसके साथ साथ अपने फिजिकल और मेंटल हेल्थ का ख़याल रखना भी बहुत ज़रूरी है. कभी कभी कुछ ना करना और सिर्फ़ रिलैक्स करना हमारी हेल्थ के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है लेकिन आज रिलैक्स करना लोगों को waste ऑफ़ टाइम लगने लगा है
डोंट चेंज द वर्ल्ड (Don’t change the world)
टेक्नोलॉजी के इम्प्रूवमेंट और समय के साथ बिज़नेस का डेफिनिशन बदल गया है. पहले की तरह, अब
बिज़नेस का मतलब सिर्फ एक अच्छा प्रोडक्ट या सर्विस डिलीवर करना नहीं है. अब तो सब नंबर वन
बने रहने की होड़ में लगे हुए हैं कि कौन पहले कोई इनोवेटिव आईडिया लेकर आएगा, जिसके बारे में
किसी ने ना पहले कभी सुना होना देखा हो. बिज़नेस तो अब दुनिया को बदलने के बारे में हो गया है.
लेकिन Basecamp में इन सब चीज़ों की जगह नहीं है. Basecamp में बिज़नेस का मतलब है एक
दूसरे के साथ सहयोग करना और अपनी टीम के लिए इजी कम्युनिकेशन बनाए रखना. इनका फोकस तो बस एक कमाल के प्रोडक्ट को बनाने पर रहता है. इनका फोकस दुनिया को बदलने या किसी और चीज़ पर नहीं हैं और सच पूछो तो ऐसी सोच में कुछ गलत नहीं है. ज़रूरी तो नहीं कि हर बिज़नेस कोई ना कोई रेवोल्यूशन लेकर आए. आपको ये सोचना बंद करना होगा कि आपको दुनिया में कोई चेंज लाना है या एक नई हिस्ट्री लिखनी है. जब हमारी ख्वाइश हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो हम पर बर्डन भी बहुत बढ़ने लगता है.जब आप अपनी सोच को थोडा बदलेंगे तब आपको परा दिन नॉन-स्टॉप काम में डूबे रहने का बहाना नहीं बनाना पड़ेगा. आप अगले दिन भी अपना काम पूरा कर सकते हैं.इससे आपकी पर्सनल लाइफ और हेल्थ दोनों खराब होने से बचेगी.
मेक इट अप एज़ यू गो (Make it up as you go)
Basecamp अपने प्रोडक्ट या कंपनी के लिए बड़े बड़े प्लान नहीं बनाता बल्कि इसकी शुरुआत भी किसी
प्लान से नहीं हुई थी. पिछले 20 सालों से वो सिचुएशन को समझकर कर अपना अगला कदम उठाते हैं.अब
आप सोचेंगे कि ये लोंग टर्म के लिए तो प्लानिंग हुई ही नहीं तो आप बिलकुल करेक्ट हैं. Basecamp हर
एक possibility की ताक में नहीं रहते, वो बस उस मौके को देखते हैं जो ठीक उनके सामने होता है.
लोंग टर्म की प्लानिंग करना आपको एक झूठी सेंस ऑफ़ सिक्यूरिटी देता है और आप इस बात को नकार
नहीं सकते कि हम में से कोई नहीं जानता कि आने वाले दिनों में या सालों में क्या होने वाला है. आप
जितनी जल्दी इस बात को स्वीकार कर लेंगे आपके उतना अच्छा होगा कि क्या पता लोंग टर्म की प्लानिंग
आपका एक गलत डिसिशन हो जो आपके पूरे फ्यूचर को रिस्क में डाल सकता है. लोंग टर्म प्लानिंग में corporates की चिंता का एक बड़ा हिस्सा इस एहसास से आता है कि कंपनी जानती है कि वो कुछ गलत कर रही है लेकिन उसे ठीक करने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि उन्हें अपने प्लान से भटकना नहीं है, उन्हें हर हाल में उसे फॉलो करके काम को कम्पलीट करना है. लेकिन बिज़नेस ओनर्स को ये बात समझनी होगी कि एक फ्लॉप आईडिया फ्लॉप ही होता है और उसे सिर्फ इस वजह से पूरा करना कि आपने उसकी शुरुआत कर दी है, टाइम, एनर्जी और रिसोर्सेज को बर्बाद करने जैसा है.
अब इससे अलग, Basecamp में हर 6 हफ्ते में एक बार मीटिंग बुलाई जाती है ताकि वो डिसाइड कर सकें
कि अगले 6 हफ़्तों के समय में उन्हें क्या क्या करना है. उनका बस यही एक प्लान होता है और इसने उनके
लिए मैजिक की तरह काम किया है. अगर आप शोर्ट टर्म के लिए प्लान बनाते हैं तो उसमें कभी भी आसानी
से कुछ भी चेंज किया जा सकता है जिससे हम पर किसी बात का कोई प्रेशर नहीं होता. ये हमें रिलैक्स
रहने में मदद करता है. जब हम लोंग टर्म के लिए प्लानिंग करते हैं तो उसमें कई तरह के रिस्क का ख़तरा
बना रहता है क्योंकि बहुत सी चीजें हमारे कंट्रोल में नहीं होती और इस वजह से ये हमारी स्ट्रेस का कारण
बन जाता है. Basecamp का मानना है कि बड़ी बड़ी प्लानिंग करने के बजाय छोटे स्टेप्स लेकर आगेबढ़ने में ही समझदारी है और उनकी ये सोच बिलकुल सही भी है.
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David Heinemeier Hansson and Jason Fried
प्रोटेक्शनिज्म (Protectionism)
कंपनी ट्रेडमार्क और मुकदमों के ज़रिए अपने प्रोडक्ट को प्रोटेक्ट करना पसंद करती है.वो अपने डेटा, ट्रेड
क्रेट, पैसे सबको प्रोटेक्ट करते हैं. लेकिन अक्सर कंपनी का जो सबसे ज़रूरी asset होता है वोउसे
प्रोटेक्ट करना भूल जाते हैं जो है अपने एम्प्लोईज़ का टाइम और अटेंशन, कंपनी इन्हें जी भर के यूज़ करती
है लेकिन इस बात पर कभी ध्यान नहीं देती.उन्हें लगता है कि ये एक ऐसा asset है जो कभी ख़त्म नहीं होगा लेकिन वो समझते ही नहीं कि ये कंपनी का सबसे कीमती asset भी है. Basecamp ख़ुद पर अपने एम्प्लोईज़ के टाइम और अटेंशन को प्रोटेक्ट करने की ज़िम्मेदारी लेता है. एक्जाम्पल के लिए, Basecamp में स्टेटस मीटिंग नहीं की जाती. ये ऐसी कांफ्रेंस होती है जहां एक आदमी एक प्लान के बारे में बात करता है और उसके बैठ जाने के बाद दूसरा किसी और प्लान के बारे में बात करता है और ये सिलसिला चलता रहता है. लेकिन असल में ये सिर्फ़ समय की बर्बादी है और कुछ नहीं. हालांकि सुनने में ये एक efficient स्ट्रेटेजी लग सकती है लेकिन असल में एक ही समय में इतने सारे लोगों को एक साथ लेकर आना inefficient भी है हालाकि सुनने में ये एक efficient स्ट्रटजा लग सकती है लेकिन असल में एक ही समय में इतने सारे लोगों को एक साथ लेकर आना inefficient भी है और costly भी. इस तरह की लंबी मीटिंग से सबके कई घंटे खराब हो जाते हैं जिन्हें productively यूज़ किया जा सकता था. इन स्टेटस मीटिंग्स के बजाय Basecamp अपने एम्प्लोईज़ को कंपनी की वेबसाइट पर रोज़ या वीकली अपडेट लिखने के लिए कहता है ताकि जब दूसरे लोगों के पास समय हो तब वो इसे आसानी से पढ़ सकें.इस तरह, Basecamp उन मीटिंग में बर्बाद होने वाले कई घंटे बचाता है और अपने लोगों को काम परफोकस करने और अपने टाइम को efficiently यूज़ कर क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने में मदद करता है.
डोंट चीट स्लीप (Don’t cheat sleep)
जो लोग देर रात तक काम करने और काम के लिए अपनी नींद का सैक्रिफाइस करने की डींग मारते हैं वो
अक्सर ऐसे लोग होते हैं जिनके पास शो ऑफ करने के लिए कोई बड़ी अचीवमेंट नहीं होती. अपनी नींद को
सैक्रिफाइस करना कोई समझदारी नहीं है. साइंस ने बहुत पहले ही इस बात को साबित कर दिया है कि नींद
की कमी का आपकी बुद्धि और क्रिएटिव थिंकिंग पर नेगेटिव असर पड़ता है. नींद की कमी आपको धीरे धीरे
मंदबुद्धि और बेवकूफ़ बनाने लगती है. हो सकता है कि आप इसे नोटिस ना करें लेकिन आपके साथ काम
करने वाले इसे ज़रूर नोटिस करेंगे. इन सब के बावजूद, जो काम शुरू किया है उसे हर हाल में पूरा करना फिर चाहे उसके लिए रातों जागना क्यों ना पड़े, इसे मॉडर्न सोच माना जाता है. जब आपको पूरी नींद नहीं मिलती तो ये सिर्फ़ आपकी इंटेलिजेंस और क्रिएटिविटी को ही कम नहीं करता बल्कि ये आपमें पेशेंस, understanding और टॉलरेंस जैसी qualities को भी कम करने लगता है. आप चिडचिडे और बेचैन हो जाते हैं जो आपके साथ काम करने वालों और आपके परिवार दोनों को तकलीफ पहुंचाने लगता है. नींद बॉडी की एक ऐसी ज़रुरत है जो पूरी ना होने से दुनिया के सबसे अच्छे इंसान को भी एक झटके में सबसे बुरा इंसान बना सकती है. ये लोगों को अलग अलग तरीके से एफेक्ट करता है क्योंकि कुछ लोगों को अपनी लाइफ में और अपने काम में दूसरों की तुलना में ज़्यादा पेशेंस की ज़रुरत में होती है.
Managers को अपने एम्प्लोईज़ को समझने की ज़रुरत होती है और अगर उनमें पेशेंसर understanding की कमी होगी तो ये पूरे टीम पर अपना असर दिखाता है. रात को अच्छी नींद लेना
अगले दिन की शानदार शुरुआत के लिए बेहद ज़रूरी है. अगर आपका माइंड फ्रेश होगा तो आपको अपना
काम करने में कम समय लगेगा उस इंसान की तुलना में जिसके दिमाग ने नींद की कमी की वजह से काम करना ही बंद कर दिया हो. बेशक आप हर वक़्त मीटिंग की डेट चेंज नहीं कर सकते या किसी काम के डेडलाइन को फेल नहीं कर सकते, कभी-कभी आपको प्रोजेक्ट ख़त्म करने के लिए एक या दो घंटे एक्स्ट्रा काम करना पड़ता है या एक रात की नींद को सैक्रिफाइस करना पड़ता है और ऐसा करना बिलकुल गलत नहीं है. आप ऐसा एक बार या दो बार कर सकते हैं और इसका असर अगले दिन तक रहता है लेकिन लंबे समय तक नहीं रहेगा जिससे आपकी बॉडी पर बुरा असर नहीं होगा. चिंता की बात तब होती है जब आप बिना रुके हर रोज़ कम नींद लेते हैं तब ये आपकी प्रोडक्टिविटी को कम करने लगता है.
इग्नोर द टैलेंटवॉर (Ignore the talent war)
टैलेंट कोई चीज़ नहीं है जिसे हम किसी से चुरा सकते हैं. हर इंसान की एक इंडिविजुअल एबिलिटी होती है
जिसे प्रैक्टिस के साथ और इम्प्रूव किया जा सकता है. इमेजिन कीजिये कि आपके गार्डन में एक बहुत
खूबसूरत फूल है. अगर आप उसका ठीक से ध्यान नहीं रखेंगे तो एक दिन वो मुरझा जाएगा. लेकिन अगर
आपने मेहनत करके एक ऐसा एनवायरनमेंट बनाया जिसमें वो फूल और ज़्यादा खिल सके तो वो वैसे ही
खूबसूरत बना रहेगा और इतना ही नहीं बल्कि आपका पूरा गार्डन ही सुन्दर फूलों से भर जाएगा.ठीक इसी
तरह अपने टैलेंट और स्किल को भी हार्ड वर्क से इम्प्रूव करते रहने से एक दिन आप उस स्किल में माहिर हो जाते हैं जो आपको भीड़ से बिलकुल अलग बना देता Basecamp में आपको कोई सुपरस्टार नहीं मिलेगा जिन्हें उन्होंने किसी दूसरी कंपनी से चुराया हो या उसे बेटर ऑफर देकर अपनी तरफ कर लिया हो.
लेकिन Basecamp में आपको कई टैलेंटेड लोग मिलेंगे जो सालों से कंपनी के लिए काम कर रहे हैं.
Basecamp ने किसी एक जगह से नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने से टैलेंटेड लोगों को ढूंढ कर अपनी
टीम में शामिल किया है क्योंकि टैलेंट किसी एक जगह तक सीमित नहीं होता या सिर्फ़ बड़े शहरों तक सीमित नहीं होता. एक्जाम्पल के लिए, Basecamp में ओक्ला होमा के एक उम्दा डिज़ाइनर हैं, टोरंटो के एक ब्रिलियंट प्रोग्रामर हैं और टेनीसी की एक कमाल की कस्टमर सर्विस वर्कर काम करती है.सबसे कमाल की बात तो ये है कि इनमें से किसी ने पहले कभी किसी बड़ी कंपनी के लिए काम नहीं किया था. Basecamp लोगों से डिप्लोमा या डिग्री देने के लिए नहीं कहता बल्कि कंपनी चाहती है कि उनके पास एक्सपीरियंस और एक्चुअल काम की नॉलेज हो. Basecamp ने कई बेहतरीन लोगों को काम पर
रखा है इस वजह से नहीं कि वो काम ज्वाइन करने से पहले क्या थे बल्कि इसलिए कि उनमेंकाम ज्वाइन करने के बाद क्या बनने की एबिलिटी है.
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David Heinemeier Hansson and Jason Fried
कैलेंडर टेट्रिस (Calendar Tetris)
आजकल काम करने का एक सिस्टम चला हुआ है जहां लोग दूसरों के काम करने के schedule में
अपनी सुविधा के अनुसार उनके स्लॉट में अपना नाम लिख देते हैं. इस वर्क कैलेंडर पर बहुत कुछ डिपेंड
करता है और इस सिस्टम की वजह से कितना कुछ बर्बाद भी हो जाता है. लेकिन Basecamp में ये करना इतना आसान नहीं है. वहाँ कोई अपनी मर्जी से किसी दूसरे के स्लॉट में अपना नाम नहीं लिख सकता बल्कि वहाँ डायरेक्ट बातचीत करने की ज़रुरत होती है. ज़्यादातर कम्पनी में सब एक दूसरे का schedule
चेक कर सकते हैं, उनके कैलेंडर कभी प्राइवेट नहीं होते. ये कैलेंडर पूरी तरह से खुले और ट्रांसपेरेंट होते हैं
और अक्सर जब कोई अपना कैलेंडर चेक करता है तो उसमें कई चीजें उनके बजाय उनके साथ काम करने
वालों द्वारा लिखी हुई होती हैं. जब आप किसी के भी कैलेंडर को चेंज करना इतना आसान बना देते हैं तो लोगों के टाइम टेबल में गड़बड़ी होना तो तय है.जब आप इसे इतना आसान बना देते हैं कि कोई भी किसी पांच मेंबरको मीटिंग में इनवाईट कर सकता है तो बेकार की मीटिंग्स की लाइन लग जाती है लोग इसे अक्सर ये कह कर टाल जाते हैं कि ये तो सिर्फ एक इनविटेशन है. हालांकि ये सिर्फ एक इनविटेशन है लेकिन एम्प्लोईज़ अक्सर ऐसी मीटिंग के लिए मना नहीं कर पाते और कई बार तो इन मीटिंग्स की असल में कोई ज़रुरत होती ही नहीं है. ज़्यादा
लाइब्रेरी रूल्स (Libraryrules)
आज के मॉडर्न ऑफिस में काफी भीड़ होती है और वो शोर से भरे रहते हैं. वहाँ किसी तरह की कोई प्राइवेसी
नहीं होती, समय समय पर कोई ना कोई डिस्टर्ब कर ही देता है. ऐसे ऑफिस को मॉडर्न और अच्छा माना जाता है लेकिन ऐसे ऑफिस सिर्फ एक चीज़ में अच्छे होते हैं : इंडिविजुअल वर्कर की कीमत पर ज़्यादा से
लोगों को ऑफिस में भरने में. ये मॉडर्न ऑफिस अपने वर्कर्स को काम करने के लिए एक शांत माहौल देने में फेल हो जाते हैं. अगर आप अपने काम पर कंसन्ट्रेट ही नहीं कर पाए तो आप अच्छा काम कैसे कर पाएँगे ? एक बंद पर्सनल ऑफिस इस प्रॉब्लम का सबसे अच्छा solution है. लेकिन हर एक एम्प्लोई को प्राइवेट
ऑफिस देने के लिए बहुत बड़ी जगह की ज़रुरत होती है और अगर आप सिर्फ कुछ एम्प्लोईज़ को प्राइवेट
ऑफिस देंगे तो ये भेदभाव और गुस्से जैसी फीलिंग्स को बढ़ावा देने लगेगा.
शिकागो में Basecamp के ऑफिस ने ओपन प्लान ऑफिस की सोच को अपनाया है लेकिन उन्होंने
इसे बड़े ही अलग ढंग से अप्लाई किया. वो उसे एक ऑफिस के रूप में नहीं देखते हैं. इसके बजाय वो उसे
एक लाइब्रेरी के रूप में देखते हैं. अगर आप दुनिया में कहीं भी एक लाइब्रेरी में जाते हैं तो आप उसे लोगों
से भरा हुआ देखेंगे लेकिन इसके बावजूद वहाँ सब चुपचाप अपना काम करते रहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब लोग लाइब्रेरी में जाते हैं तो वो जानते हैं कि वहाँ सब कुछ ना कुछ पढ़ रहे हैं या ढूंढ रहे हैं और उन्हें वहाँ चुप रहना होगा. वो जानते हैं कि लोग कंसन्ट्रेट कर अपने काम को कम्पलीट करने
के लिए वहाँ आते हैं. Basecamp में अगर कोई एम्प्लोई अपनी डेस्क पर है तो लोग मान लेते हैं कि वो गहरी सोच में है और अपने काम को पूरा करने के लिए फोकस कर रहे हैं. जिसका मतलब है कि आप यूहीं टहलते हुए उनके पास जाकर उन्हें डिस्टर्ब नहीं कर सकते. वहाँ हर मेंबर धीमी आवाज़ में बात करता है ताकि आस पास काम करने वाला कोई भी मेंबर डिस्टर्ब ना हो. और कभी कभी कई लोग जब एक साथ मिलकर काम करते हैं या बात करना चाहते हैं तो Basecamp ने कई छोटे छोटे रूम बना रखे हैं जहां लोग जा सकते हैं और वहाँ उन्हें शोर या किसी को डिस्टर्ब करने की चिंता नहीं होती. शायद आपको ये सिस्टम सुनकर अजीब लग रहा होगा कि पता नहीं ये काम करता भी है या नहीं. तो अपने ऑफिस में महीने में एक दिन लाइब्रेरी के रूल्स को फॉलो करने की कोशिश करें और नोटिस करें कि आपको क्या क्या फर्क नज़र आता है. शायद ऐसा भी हो सकता है कि आपके एम्प्लोईज़ खुद ऐसे दिनों को ज़्यादा से ज़्यादा फॉलो करने की डिमांड करें.
ड्रेडलाइन्स (Dreadlines)
आजकल हर काम को पूरा करने के लिए एक टाइम लिमिट सेट की जाती है जिसे डेडलाइन कहते हैं.
अक्सर ये डेडलाइन अनरीयलिस्टिक डेट होते हैं जो आपके काम को एक टाइम लिमिट में बाँध देते हैं और
आपको उस डेडलाइन तक अपना काम ख़त्म करना होता है फिर चाहे उसमें बीच में कितना भी एक्स्ट्रा काम क्यों ना जोड़ा गया हो. यहाँ से प्रेशर और स्ट्रेस की शुरुआत होती है. लेकिन Basecamp में ऐसा कुछ नहीं होता. वहाँ लोग डेडलाइन से डरते नहीं हैं क्योंकि वो ये बात समझते हैं कि प्रोग्रेस करने के लिए समय पर काम पूरा करना कितना ज़रूरी है. तो वो ये कैसे कर लेते हैं? इसका सिंपल लॉजिक ये है कि अगर एक प्रोजेक्ट के लिए आपने डेडलाइन सेट कर दी है तो बाद में उसमें एक्स्ट्रा काम add नहीं किया जाना चाहिए. हाँ, अगर उसमें कोई काम ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट नहीं है तो उसे हटाया ज़रूर जा सकता है. जैसे जैसे प्रोजेक्ट आगे बढ़ता जाता है तो सबसे इम्पोर्टेन्ट काम की लिस्ट को कम इम्पोर्टेन्ट काम से अलग कर दिया जाता है और जो भी टास्क ज़रूरी नहीं है उसे प्रोजेक्ट से हटा दिया जाता है. अब सवाल आता है कि ये कौन डिसाइड करता है कि प्रोजेक्ट में क्या रहना चाहिए और क्या नहीं ? ये उस प्रोजेक्ट पर काम करने वाली टीम तय करती है. जो टीम उस पर काम करती है उनके पास इसका कंट्रोल होना चाहिए. जिसके बाद वो काम को छोटे छोटे टुकड़ों में डिवाइड करते हैं और तय करते हैं कि क्या ज़रूरी है और क्या नहीं.जो काम करने में 6 महीने लग सकते हैं उसे अलग अलग तरीकों से 6 हफ़्तों में भी पूरा किया जा सकता है.इसी तरह, अगर आप पूरी तरह आर्गनाइज्ड नहीं हैं तो कई बार एक छोटे प्रोजेक्ट में भी ज़रुरत से ज़्यादा समय लग जाता है.
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David Heinemeier Hansson and Jason Fried
थ्रीस कंपनी (Three’s company)
Basecamp हर प्रोजेक्ट के लिए तीन लोगों की टीम बनाती है जिसमें दो डेवलपर होते हैं और एक
डिज़ाइनर. वो अपनी टीम पर किसी प्रॉब्लम को थोपते नहीं हैं बल्कि उसे छोटे छोटे टुकड़ों में बाँट देते हैं ताकि तीन लोगों की टीम उसे मैनेज कर सके. Basecamp में बहुत कम मीटिंग बुलाई जाती है
और जब भी मीटिंग होती है तो उसमें कभी तीन से ज़्यादा लोग शामिल नहीं होते. वो कांफ्रेंस कॉल और
चैट के प्रोसेस में भी सेम सिस्टम फॉलो करते हैं. लेकिन तीन ही क्यों ? ऐसा इसलिए क्योंकि तीन लोगों
की टीम के पॉइंट्स शार्प होते हैं. तीन एक odd नंबर है इसलिए इसमें कभी tie की गुंजाइश नहीं होती. चार
लोगों की टीम के साथ प्रॉब्लम ये है कि अगर वो किसी एक डिसिशन पर नहीं पहुंचे तो उन्हें पांचवे मेंबर की
ज़रुरत पड़ती है.पांच या उससे ज़्यादा लोगों की टीम काफ़ी बड़ी हो जाती और चीज़ों को सुलझाने के बजाय
उसे और complicate करने लगती है. एक्जाम्पल के लिए अगर एक छोटे प्रोजेक्ट के काम को कई लोगों में डिवाइड कर दिया जाए तो काम जल्दी पूरा होने के बजाय उसमें ज़्यादा confusion होनेकी possibility है.
छोटी टीम बखूबी एक बड़े प्रोजेक्ट को मैनेज कर सकती है लेकिन अगर एक छोटे से प्रोजेक्ट को एक
बड़ी टीम को सौंप दिया जाए तो ये उनके लिएज़्यादा मुश्किल होता है क्योंकि किसे कितना काम देना
चाहिए, कौन फॉलो अप करेगा ये सब डिवाइड करना मुश्किल हो जाता है.प्रोग्रेस करने के लिए छोटे छोटे
स्टेप्स सही डायरेक्शन में लेना बहुत ज़रूरी है और बड़ी टीम में अक्सर confusion के कारण ये चीजें पीछे
छूट जाती हैं. तीन लोगों की टीम में ज़्यादा अच्छा कम्युनिकेशन और coordination होता है.तीन लोगएक दूसरे से सीधे बात कर सकते हैं, अपनी honest ओपिनियन शेयर कर सकते हैं. इसलिए तीन को एक गोल्डन कॉम्बिनेशन कहा जाता है.
कन्क्लूज़न (Conclusion)
तो इस बुक में आपने एक बिज़नेस को सही तरीके से organize करने के बारे में जाना.आपने समझा कि
ऑफिस में कैसे आप छोटे छोटे स्टेप्स को अप्लाई कर के प्रोडक्टिविटी और काम की क्वालिटी को बढ़ा सकते हैं और वो भी अपने एम्प्लोईज़ के स्ट्रेस लेवलको बढ़ाएबिना. स्ट्रेस काम की क्वालिटी को खराब कर देता है. आपने ये भी देखा कि कैसे आज के मॉडर्न ऑफिस का माहौल काम की क्वालिटी के साथ साथ लोगों की पर्सनल लाइफ और हेल्थ को बर्बाद करने लगा है. इस बुक ने आपको सिखाया कि सभी एम्प्लोईज़ को काम में कम्फ़र्टेबल महसूस कराने के लिए एक ऑफिस को कैसे काम करना चाहिए. दूसरों से compare कर के अपनी कंपनी के लिए अनरीयलिस्टिक गोल्स सेट ना करें. कोई लंबे चौड़े गोल सेट ना करके आप अपने माइंड को फ्री रखते हैं जो आपको अपने काम में ज़्यादा फोकस करने में मदद करता है और आप सबसे ज़रूरी चीज़ यानी एक बेहतरीन प्रोडक्ट बनाने में ध्यान लगा देते हैं जिससे आपके कस्टमर भी satisfied होते हैं और आपके एम्प्लोईज़ भी खुश रहते हैं.आपको बस अपने प्रोडक्ट को पहले से बेहतर बनाने और अपने एम्प्लोईज़ को एक स्ट्रेस फ्री माहौल देने पर फोकस करना चाहिए.आपने ये भी समझा कि हद से ज़्यादा काम, जिसे आजकल नार्मल माना जाने लगा है, वो किस तरह आपके टीम के परफॉरमेंस और क्वालिटी को खराब कर देता है.
मॉडर्न ऑफिस के अनरीयलिस्टिक उम्मीदें और डेडलाइन की वजह से लोग स्ट्रेस में रहने लगे हैं. आप
अच्छे से समझ गए होंगे कि काम को हेल्थ से ज़्यादा इम्पोटेंस नहीं दिया जाना चाहिए. आपको अपनी नींद
को सैक्रिफाइस नहीं करना चाहिए सिर्फ इसलिए कि आपको लगता है कि आपको पहले प्रोजेक्ट कम्पलीट
करना है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि काम बहुत स्ट्रेसफुल हो सकता है.लेकिन आपको समझना होगा कि आपके एम्प्लोईज़ मशीन नहीं हैं जो लगातार बिना रुके काम कर सकते हैं इसलिए आपको उन्हें रेस्ट करने का टाइम देना चाहिए.
ए.अगर आपके एम्प्लोईज़ रिलैक्स और शांत होकर काम करेंगे तो आपका काम जल्दी भी ख़त्म
होगा और उसकी क्वालिटी भी टॉप क्लास बनी रहेगी. आज पता नहीं लोग किस जल्दबाज़ी में लगे हुए हैं.
सब बस दौड़ते ही जा रहे हैं, कोई रुक कर आरामनहीं करना चाहता. शायद हमें अपने ऑफिस के वर्क
कल्चर को बदलने की ज़रुरत है. अपने ऑफिस का माहौल एक स्ट्रेसफुल और बिजी जगह के बजाय ऐसा बनाएं जहां लोग जाना पसंद करते हों और अपने काम को एन्जॉय करते हों. सिर्फ अपने कस्टमर को ही नहीं बल्कि अपने एम्प्लोईज़ को भी ख़ुश रखने का aim बनाएं.ये तो कॉमन सेंस है कि जब आप ठंडे दिमाग से पूरा ध्यान लगाकर कोई काम करते हैं तो ना सिर्फ आपका काम जल्दी पूरा होता है बल्कि आप स्ट्रेस से भी कोसो दूर रहते हैं. इस बुक का गोल्डन मंत्र है कि अगर आप बिज़नेस में बने रहना चाहते हैं तो आपको कम चीज़ों पर ज़्यादा फोकस करने की ज़रुरत है ताकि उसकी क्वालिटी ऐसी हो जिसकी कोई बराबरी ना कर सके. ज़रूरी नहीं कि हर बिज़नेस का मकसद दुनिया में एक रेवोल्यूशन लाना हो इसलिए थोडा ठहरना सीखिए, रुकने का मतलब हारना या पीछे रह जाना नहीं होता,बल्कि ये खुद की कदर करना और खुद को रिचार्ज करना होता है. हमें ज़्यादा काम करने की नहीं बल्कि स्मार्टली काम करने की ज़रुरत है