High Output Management Andrew Grove. Books In Hindi Summary Pdf

High Output Management
Andrew Grove
इंट्रोडक्शन

हर रोज़ ना जाने कितनी ही नई कंपनी शुरू होती है पर उनमें से बहुत कम ऐसी होती है जो लंबे वक्त तक
मार्केट में टिक पाती है. कुछ कंपनीज़ ग्लोबल लेवल तक की सक्सेस अचीव करती है और कुछ का बुरी
तरह दिवाला निकलता है. इस किताब में हम कुछ ऐसे ट्रिक्स और फ़ॉर्मूलाज़ सिखिंगे जिससे कभी अगर हम अपनी खुद की कंपनी स्टार्ट करना चाहे तो उसे एक हाई परफोर्मिंग कंपनी बना सके और जो टॉप लेवल की सक्सेस अचीव कर सके. सबसे पहले हमें ये सीखना होगा कि प्रोडक्शन के बेसिक रूल्स क्या हैं और कैसे हम कम कॉस्ट वाली हाई क्वालिटी प्रोडक्ट बनाकर मार्केट में launch कर सकते है. ये याद रखिये कि कस्टमर्स बेवकूफ नहीं है बल्कि काफी स्मार्ट होते है, अगर आप उनके साथ कोई ट्रिक खेलने की कोशिश करेंगे तो उन्हें तुरंत पता चल जाएगा. तो इसलिए आपको प्रोडक्शन गेम का मास्टर बनना पड़ेगा और अपने कॉम्पटीटर्स से हर हाल में आगे निकलना होगा.
दूसरी बात: आपको ये सीखना है कि अपने एक्श्न कैसे प्लान करने है. आपको ये सीखना होगा कि कैसे
मार्केट स्टडी करके और अपने करंट स्टेट के हिसाब से चलते हुए आपको एक गैप ढूंढ निकालना है जो आपको इक्वेशन के दोनों किनारे मिलाने में हेल्प कर सके.

तीसरी बात: इस किताब से हमें सिखाती है कि हम डिफरेंट टाइप के यूनिट्स और ओर्गेनाइजेशन बना
सकते हैं और क्योंकि ये किताब आपको सक्सेसफुल होने के तरीके सिखाती है तो ये आपको एक ऐसी
ओर्गेनाईजेशन क्रिएट करने में हेल्प करेगी जो दोनों यूनिट टाइप के साथ चल सकती है. इस तरह की
कंपनी को हम हाइब्रिड (hybrid) ऑर्गनाईजेशन भी बोलते है. इसके अलावा आप सीखोगे कि कैसे एक ग्रेट मैनेजर बना जाए जो अपने टास्क सक्सेसफूली हैंडल कर सके. आप सीखोगे कि अपनी टीम को रिव्यू करना क्यों जरूरी होता है और साथ ही उन्हें जज करना भी उतनी ही जरूरी है ताकि हमें पता चल सके कि हम टीम को रीवार्ड देना है और कब उन्हें वार्निंग देनी है. फाइनली, ये किताब हमें सिखाती है कि अपनी
टीम को ट्रेन कैसे करना है. आपकी टीम में सिर्फ नए मेंबर्स को ही नहीं बल्कि पुराने मेंबर्स को भी लगातार
इम्प्रूवमेंट करने की जरूरत पड़ती है. इस किताब से अपने टीचिंग मटेरियल्स क्रिएट तो सीखोगे ही साथ ही
ये भी सीखोगे कि कैसे आप अपनी कंपनी के लिए और भी ज्यादा वैल्युएबल बन सकते हो. ये किताब आपके लिए एक बेहद वैल्युएबल बिजनेस रीसोर्स साबित होगी. आप इसमें कई सारी वैल्युएबल स्किल्स सीखोगे जो आपको बिजनेस में काफी हेल्प करेगी और इन लेसंस से सीख कर आपका बिजनेस पहले से कई गुना ज्यादा ग्रो करेगा.

The Basics of Production:
Delivering a Breakfast

जब आप प्रोडक्शन वर्ड सुनते है तो आपके माइंड में जरूर बड़ी-बड़ी कंपनी आती होगी. लेकिन ऐसा जरूरी
नहीं है क्योंकि एक सिंपल और छोटा सा ऑपरेशन भी सेम प्रिंसिपल ऑफ़ प्रोडक्शन फॉलो करती है जो
बड़ी-बड़ी कंपनी करती है. प्रोडक्शन का सबसे इम्पोर्टेन्ट प्रिंसिपल है टाइम ऑफसेट. ये तब होता है जब मैनेजर कम कॉस्ट में भी बेस्ट क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने की कोशिश करता है. हर ऑपरेशन को प्रोडक्शन का प्रोसेस, असेंबली और टेस्ट फॉलो करना चाहिए. जैसे कि एक्जाम्पल के लिए मान लो आप एक वेटर
की जॉब करते हो. और आपका काम है एक फिक्स टाइम के अंदर सिंपल ब्रेकफ़ास्ट बनाकर तैयार करना.
जब रेस्टोरेंट में कस्टमर्स आकर टेबल पर बैठता है तो आपके पास एक टाइम स्पान होता है, यानी आपके
पास तीन मिनट होते है. आपके ब्रेकफ़ास्ट का मेन्यू होना चाहिए: हॉट बटर टोस्ट, तीन मिनट तक उबाले गए सॉफ्ट बॉयल्ड egg और एक कप गर्मा-गर्म कॉफ़ी. अब आपको स्मार्ट और फ़ास्ट होना पड़ेगा ताकि आप ये तीनो आइटम सेम टाइम में तैयार कर सके जिससे कि आपके कस्टमर की टेबल तक ये तीनो चीज़े तीन मिनट में पहुंचे.

ये टास्क सुनने में ईजी लग सकता है पर इस तरह का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में और किसी भी कंपनी या फैक्टरी के प्रोडक्शन सिस्टम में कोई खास फर्क नहीं है. आपका जॉब प्रोडक्ट डिलीवर करना है जोकि एक तीन मिनट में तैयार होने वाला क्वालिटी ब्रेकफास्ट है जो कम से कम रेट में सही टाइम पर आपके कस्टमर की भूख मिटाता है. यही वजह है कि कस्टमर आपके रेस्टोरेंट में आते हैं क्योंकि आप उन्हें ताज़ा और स्वादिष्ट नाश्ता कम कीमत पर प्रोवाइड कराते हैं. अपने कस्टमर्स की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए
आपके पास एक ऐसी किचन भी होनी जरूरी है जहाँ खाने बनाने का सारा सामान मौजूद हो. या तो आपके
पास खूब सारे इक्विपमेंट होने चाहिए या फिर बहुत सारे वेटर. या फिर आपके पास रेडी मेड ब्रेकफास्ट की
एक बड़ी इन्वेंट्री हो, यानी हर हाल में आपको इस काम के लिए अच्छा-खासा पैसा खर्च करना पड़ेगा जोकि
एक स्मार्ट डिसीजन नहीं माना जायेगा वो भी तब जब आप प्रॉफिट कमाने के लिए बिजनेस कर रहे हो.
प्रैक्टिकल होने का मतलब है कि आपको कम लागत में और सही टाइम पर कस्टमर्स तक फ्रेश और बढ़िया
ब्रेकफ़ास्ट डिलीवर करने के इनोवेटिव तरीके सोचने होंगे. आपको अपने खर्चे कम करने होंगे ताकि आप एक कॉम्पटीटिव रेट पर ज्यादा से ज्यादा कस्टमर्स को लुभा सके..

तो इसका बेस्ट सोल्यूशन होगा प्रोडक्शन फ्लो का ध्यान रखना, आपको देखना होगा कि आपके ब्रेकफ़ास्ट
मेन्यू में कौन सी डिश है जो सबसे इम्पोर्टेट है और जिसे बनाने में सबसे ज्यादा टाइम लगता है. कॉफ़ी एक ऐसा आइटम है हमेशा गर्म और रेडी रहती है, बस आपको कप में डालनी होती है. टोस्ट भी बनाने में बहुत ईजी है. अब आता है ब्रेकफ़ास्ट का मेन पार्ट जो है सॉफ्ट बॉयल्ड egg . अंडो की क्वालिटी और फ्रेशनेस काफी मैटर करती है. अगर आप अंडे ज़्यादा बॉयल्ड या ठंडे सर्व करोगे तो कस्टमर शिकायत करेंगे, तो ज़ाहिर है कि आप अपनी रेपुटेशन खराब नहीं करना चाहोगे. अब क्योंकि अंडे उबालने में सबसे ज्यादा टाइम लगता है तो इसे तैयार करना आपके प्रोडक्शन प्रोसेस का सबसे फर्स्ट स्टेप होना चाहिए. तो ब्रेकफ़ास्ट की
शुरुवात अंडे उबालने से कीजिये, फिर अगली डिश तैयार कीजिये जो अंडे से थोडा कम टाइम लेती है यानी
कि टोस्ट क्योंकि कॉफ़ी तो तुरंत रेडी हो जाती है और काफी देर तक गर्म भी रहती है. जब तक अंडे बॉयल होंगे तब तक आप टोस्ट को गर्म करके उनमे बटर लगा कर तैयार कर सकते है. और लास्ट में आपको कॉफ़ी कपों में उड़ेलनी है. जब तक टोस्ट और कॉफ़ी रेडी होगी तब तक गर्मा-गर्म अंडे भी सर्व करने के लिए तैयार हो जायेंगे. तो इस तरह आप कम खर्चे में एक बेस्ट क्वालिटी ब्रेकफ़ास्ट बनाकर बेच सकते है, और इसी को हम प्रोडक्शन टाइम ऑफसेट्स बोलते है. इस एक्जाम्पल में प्रोडक्शन का प्रोसेस है अंडे उबालना और टोस्ट तैयार करना. और असेंबली का मतलब है तीनो आइटम्स एक साथ प्लेट में डालकर सर्व करना. और टेस्ट में हम चेक करते है कि कॉफ़ी गर्म है या नहीं या फिर अंडे ठीक से उबले है या नहीं.

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Planning: Today’s Actions for
Tomorrow’s Output

प्लानिंग वो चीज़ है जो हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल रहती है. प्लानिंग करना या चीजों को ऑर्गनाइज़ करना सिर्फ मैनेजर का काम नहीं है. प्लानिंग को समझने के लिए आपको अपने प्रोडक्शन
प्रिंसिपल्स को ध्यान में रखना होगा क्योंकि प्लानिंग का मतलब ही है कि हमारे फ्यूचर एक्श्न हमारे हिसाब से चले यानी सब कुछ हमारे कण्ट्रोल में रहे. अगर आप चाहते है कि सब कुछ आपकी प्लानिंग के हिसाब से
चले तो आपको तीन बातो पर फोकस करना होगा. सबसे पहले अपने प्रोडक्ट के लिए आपको मार्केट
ढूंढनी है या फिर कह सकते है कि क्रिएट करनी है. अगर कोई भी आपका प्रोडक्ट खरीदने को तैयार नहीं
है तो फिर इतनी मेहनत करने की या प्लानिंग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दूसरी बात, आपको अपनी
मौजूदा सिचुएशन और काबिलियत को देखकर पड़ेगा. खुद से पूछिए कि आप अभी के हालात में किस
टाइप का प्रोडक्ट हैंडल कर सकते हो. तीसरी बात, आपको स्टेप वन और स्टेप टू के बीच एक टू गैप ढूंढना है, ये गैप आपको भरना होगा और आप ये अपने प्लान में नए टास्क add करके कर सकते हो या अपने करंट प्लान में थोड़ा बदलाव करके कर सकते हो, इससे आपको अपनी मार्केट के लिए एक सही प्रोडक्ट बनाने में हेल्प मिलेगी.

एक बार अगर आपने डिसाइड कर लिए कि आपको क्या करना है, अगला स्टेप आता है: अपने प्लान को
टू टाइम एंगल से देखो यानी अभी के हिसाब से और फ्यूचर के हिसाब से. अपने कस्टमर्स की सिर्फ प्रेजेंट
डिमांड मत देखो बल्कि उनकी फ्यूचर डिमांड भी माइंड में लेकर चलो. अगर ये स्ट्रेटेज़ी अप्लाई करोगे तो आप अपने कॉम्पटीटर्स को पीछे छोड़ते हुए ऐसा प्रोडक्ट्स बना सकते हो जो आपके कस्टमर्स की डिमांड आज भी पूरी करेगा और फ्यूचर में भी. चलिए इसे समझने के लिए एक एक्जाम्पल लेते है. सिंडी एक कंपनी में मिडल मैनेजर और मैं न्यूफेक्चरिंग प्रोसेस इंजीनियर है. उसका काम है अपनी कंपनी के प्लांट में बनने वाले माइक्रोचिप्स की क्वालिटी को मेंटेन रखना और उनमे इम्प्रूवाईजेशन लाना. सिंडी का काम है अपनी कंपनी की दो चीजों पर खास ध्यान देना “ओब्जेक्ट और इन्फ्लुएंस”. ऑब्जेक्ट है न्यू टूल्स प्रोसेस जो उसे टेस्ट करने पड़ते है और इन्फ्लुएंस है लोगो का ओपिनियन जो उसकी प्लानिंग और डिसीजन मेकिंग में काफी इम्पोर्टेट रोल अदा करता है. जैसे कि उसकी कंपनी का डेवलपमेंट इंजीनियर ये बोलकर सिंडी की जॉब में दखल दे सकता है कि वो कोई भी डिसीजन लेने से पहले न्यू प्रोसेस पर ज्यादा एक्सपेरिमेंट ना किया करे. वही दूसरी तरफ प्रोडक्शन मैनेजर चाहता है कि सिंडी न्यू प्रोसेसेस पर ज्यादा से ज्यादा एक्सपेरिमेंट करे.

बाकि टीम मैनेजर्स भी सिंडी की डिसीजन मेकिंग को अपनी तरह से इन्फ्लुएंस करने की कोशिश करते रहते है. जैसे कि प्रोडक्शन मैनेजर को प्रोडक्ट्स बनाने की जल्दी रहती है ताकि नए प्रोडक्ट्स जल्द से जल्द
मार्केट में उतारे जा सके. इन सारे इन्फ्लुएंस की वजह से सिंडी एक काउंसलर की तरह काम करती है जिसका काम है इन सारी अलग-अलग डिमांड्स के बीच कोआर्डिनेट करके चलना. उसका एन्वायरमेंट खुद मार्केट में नहीं है बल्कि उसके टीम मैनेजर्स का है. वो सिर्फ प्रोसेस और टूल्स क्रिएट करने के लिए काम करती है जो इन इन्फ्लुएंसर्स को खुश रखता है. यही उसके असली कस्टमर हैं . फिर सिंडी हर टीम की परफोर्मेंस एनाईलाइज करके उसे अपने प्लान्स से कम्प्येर करके देखती है. जहाँ उसे कोई प्रोब्लम नजर आती है, तो वो उसे या तो चेंज करती है या इम्पूव कर देती है. अगर कोई टीम कम्प्लीट रिपोर्ट डिलीवर करने में हमेशा लेट होती है तो सिंडी की जॉब है उस प्रोब्लम के साथ डील करना और बैटर आउटकम के लिए प्लानिंग करना. सिंडी के प्लान हमेशा एक ही गोल पर फोकस करते है और वो है फ्यूचर आउटकम के बारे में सोचना और ऐसे प्लान्स बनाना जिन पर अभी काम करके उस गोल को अचीव किया जा सके. तो ये प्लानिंग करने का सही तरीका. अगर आपके ऊपर भी अपनी टीम के लिए प्लान बनाने की जिम्मेदारी है तो आपको भी अपने एनवायरमेंट और डिमांड ध्यान में रखने होंगे. ये चेक करो कि आप अभी और फ्यूचर में क्या अचीव करना चाहते हो. फिर आप उसी हिसाब से दोनों गोल्स अचीव करने के लिए प्लानिंग कर सकते हो.

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Hybrid Organizations

बिजनेस की दुनिया में दो टाइप की ओर्गेनाइजेशंस होती है. पहले आती है फंक्शन-ओरिएंटेड ओर्गेनाइजेशन
और दूसरी है मिशन-ओरिएंटेड ओर्गेनाइजेशन. मिशन ओरिएंटेड ओर्गेनाइजेशन वो होती है जिसमें
रिपोर्टिंग करने के लिए कोई सेंटर नहीं होता. हर टीम ज़रूरत के हिसाब से इंडीविजुअल लेवल पर अपना
काम करती है और एक दूसरे से एकदम अलग होती है. इस टाइप की ओर्गेनाइजेशन में हर टीम अपनी
लोकेशन खुद बनाती है, अपने लिए खुद मर्चेनडाईज़ खरीदती है, खुद से एम्प्लोईज़ को काम पर रखती है
और खुद ही अपने प्रोडक्ट्स बेचती है. हर टीम को कॉर्पोरेट एक्जीक्यूटिव ऑफिस को हर महीने अपनी
फाइनेशियल रिपोर्ट भेजनी होती है, वही दूसरी तरफ फंक्शन-ओरिएंटेड ऑर्गनाइजेशन पूरी तरह से सेन्ट्रलाइज्ड होते है. जैसे मान लों कि कंपनी के पांच डिपार्टमेंट हैं तो उन पांचो डिपार्टमेंट के लिए पांच
अलग-अलग बिल्डिंग होंगी, और पांचो डिपार्टमेंट में हर फंक्शन के लिए एक टीम जिम्मेदार होगी.
जैसे कि पर्सनल टीम पांचो डिपार्टमेंट के लिए एम्प्लोईज को हायर और मेंटेन करने के काम करेगी.
अब ये बात तय है कि पूरी दुनिया में मैनेजर का ये रोल होता है कि वो एक ऐसी ओर्गेनाइजेशन बनाये जिसमें फंक्शनल और मिशन-ओरिएंटेड अप्रोच का बेलेंस हो.

इस टाइप की ओर्गेनाइजेशन को हम हाइब्रिड ओर्गेनाइजेशन बोलते है. जैसे एक्जाम्पल के लिए
इंटेल ग्रुप एक हाइब्रिड ओर्गेनाइजेशन है. इसमें दोनों डिपार्टमेंट है, फंक्शनल और मिशन-ओरिएंटेड यूनिट.
आप इसे किसी आर्मी यूनिट से कम्पेयर कर सकते है जहाँ पर हर यूनिट ट्रेनिंग और बैटल के हिसाब
से अलग-अलग बंटी होती है, पर सारी यूनिट्स के कपड़ो और खाने-पीने की व्यवस्था एक ही फंक्शनल
डिपार्टमेंट करता है जो सारी यूनिट की जरूरतों का एक साथ ध्यान रखता है. हाइब्रिड अप्रोच फॉलो करके हर यूनिट उस काम पर फोकस कर सकती है जिसके लिए वो बनाई गई है. मान लो यूनिट पर सेल्स की जिम्मेदारी है जो कि फंक्शनल यूनिट है. इस केस में इस यूनिट पर कंपनी की सारी सेल्स एक्टिविटी की जिम्मेदारी होगी, जिसमें डिफरेंट मिशन-ओरिएंटेड डिविजंस जैसे माइक्रोकंप्यूटर ग्रुप भी शामिल होगी.
इंटेल कंपनी को अपनी ओर्गेनाइजेशन चलाने के लिए हाइब्रिड सिस्टम बेस्ट लगता है. पहला तो उनके पास
कंपनी के अंदर ही फंक्शनल यूनिट है और दूसरा वो लोग कॉस्ट कम करने के लिए बाहर से सेल्स पर्सन
हायर नहीं करते. दूसरी चीज़, अगर कोई प्रॉब्लम आती है और चेंज लाने की जरूरत पड़ती है तो, यूनिट आपस में कम्यूनिकेट करके खुद ही प्रॉब्लम सोल्व कर देती है. फाइनली, फंक्शनल ग्रुप्स के साथ मिशन ओरिएंटेड ग्रुप्स साथ लेकर चलने से सभी टीम का फोकस यही रहता है कि वो कम से कम टाइम में क्वालिटी प्रोडक्शन दे सके जिसकी वजह से इंटेल कॉर्पोरेशन प्रॉफिट में रहती है. अगर आपकी कंपनी एक ही स्केल पर चल रही है तो आप भी सेल्स और प्रोडक्टीविटी बढ़ाने के लिए हाइब्रिड अप्रोच ट्राई कर सकते है.

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Andrew Grove
Modes of Control

बिजनेस में तीन इम्पोटेंट फैक्टर हैं जो आपके कस्टमर्स का बिहेवियर कण्ट्रोल करते है. पहला, आपका फ्री- मार्केट आपकी सेल्स पर सीधा असर डालता है. जो आइटम आप सेल कर रहे हो अगर उसका एक फिक्स्ड प्राइस है जोकि आपके कस्टमर्स को पता है, तो आप उसी प्राइस पर हमें शा वो आइटम बेचने के लिए मजबूर हो जाओगे. आपने अगर ज़रा सी भी कीमत बढाने की कोशिश की तो कस्टमर्स को दूसरी शॉप में जाते देर नहीं लगेगी, जो आपसे कम दाम में वही चीज़ बेच रहा है. हो सकता है कि वहां उन्हें और भी
कम प्राइस में बढ़िया चीज़ मिल जाए. दूसरी चीज़ जो आपके बिजनेस को कण्ट्रोल करती है, वो है कांट्रेक्चुअल ऑब्लिगेशन. जो सर्विस आप दे रहे हो, अगर उसका आपने फिक्स प्राइस नहीं रखा तो आपको अपने क्लाइंट के साथ कॉन्ट्रैक्ट साईन करना पड़ सकता है. इस कॉन्ट्रैक्ट में आपके राईट और ड्यूटी लिखे होंगे.

तीसरी चीज़ है, कल्चरल वैल्यूज. कई बार आपके बिजनेस के प्रोडक्ट या सर्विस हमेशा चेंज होते रहते है,
जिसकी वजह से आप उसका कोई फिक्स प्राइस नहीं रख पाते, ऐसे में कल्चरल वैल्यूज जैसे ट्रस्ट और
लोयलिटी काम आती है, आप अपने कस्टमर्स से बात करते है और आप दोनों के लिए ये किसी सोशल लॉ जैसा हो जाता है जो दोनों के लिए तोड़ना मुश्किल हो जाता है. अब इसे और बेहतर तरीके से समझाने
के लिए मान लेते है कि किसी दिन सुबह आप उठे और देखा कि आपकी गाड़ी का टायर पंक्चर है. आपको रिएलाइज होता है कि अब नया टायर लेने का वक्त आ गया है तो आप नया टायर खरीदने किसी स्टोर पर जाते हो. आप पहले स्टोर पर गए, प्राइस चेक किया, फिर दूसरे स्टोर में चले गए. इस तरह आप दूसरे स्टोर से भी प्राइस चेक करके तीसरे स्टोर में जाते हो और फिर लास्ट में प्राइस कम्प्येर करके वो प्रोडक्ट खरीदोगे जो आपको बेस्ट लगेगा और जिसका प्राइस भी आपको रीजनेबल लगेगा. अब क्योंकि टायर के प्राइस फिक्स्ड होते है, तो अब आपको पता है कि कौन सा स्टोर आपके लिए बेस्ट है, और आप हर बार टायर के लिय वही जाओगे. गाडी ठीक होने पर आप जब घूमने निकले तो रेड लाईट पर आपको रुकना पड़ा. पर क्या आपने गाडी रोकने से पहले ये सोचा कि” मुझे रुकना पड़ेगा” ? नहीं. क्योंकि आप जानते है कि रेड लाईट पर गाड़ी रोकनी पडती है. ये एक कल्चरल लॉ है जिसे हर कोई फॉलो करता है.

रेड लाईट हरी हुई और आप आगे निकल गए, तभी आपने एक एक्सीडेंट देखा. तो आप अचानक गाडी रोक लेते हो और जल्दी से उन लोगो की मदद करने पहुँच जाते हो जिनका एक्सीडेंट हुआ है, तब आप किसी लॉ या खुद अपनी परवाह नहीं करते. क्योंकि आप एक इन्सान के तौर पर अपना फ़र्ज़ निभाने की कोशिश कर रहे हो. आप एक्सीडेंट्स होने से नहीं रोक सकते पर जितनी हो सके घायलों की उतनी मदद करने की कोशिश करते हो. ठीक ऐसे ही force किसी भी बिजनेस को कण्ट्रोल कर सकती है, और एक मैनेजर के तौर पर आप किसी कॉन्ट्रैक्ट के लिए रूल्स सेट कर सकते हो पर आप फ्री मार्केट को कण्ट्रोल नहीं कर सकते. और जहाँ तक कल्चरल वैल्यूज की बात है तो आपको अपने बिजनेस के वैल्यूज और गोल्स रीप्रजेंट करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आपकी टीम में हर मेंबर आपके नक्शे-कदम पर चल सके..

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Performance Appraisal:
Manager as Judge and Jury

एक मैनेजर के तौर पर आपकी रीस्पोंसेबिलिटी है कि आप अपने टीम मेंबर्स की परफोर्मेस रिव्यू करें
जिससे कि आपको पता चल सके कि एम्प्लोईज़ की परफोर्ममेंस कैसी है, उन्हें कहाँ और कितना इम्प्रूवमेंट
करने की जरूरत है और उनकी कमियाँ क्या है. इस इवैल्यूएशन के बाद हर एम्प्लोई को बताए कि आपको
उनकी परफोर्मेंस कैसी लगी. और अगर कोई मेंबर बढिया परफोर्मेंस दे रहा है तो उसे रिवॉर्ड भी जरूर
मिलना चाहिए, तो आप उनसे अगली बार भी बेस्ट परफोर्मेंस की उम्मीद करते हुए उन्हें कुछ इंसेंटिव या
रिवॉर्ड वगैरह देंगे. इवैल्यूएशन का मकसद है अपनी टीम की प्रोडक्टीविटी को लगातार बढ़ाते रहने की कोशिश करना. आप अपना रिव्यू दो पार्ट में डिवाइड कर सकते हो: स्किल्स और मोटीवेशन. अपने टीम मेंबर्स के स्किल लेवल के लिए आपको हमेशा कुछ ऐसे तरीके ढूँढने होंगे जो उनकी कमियों को दूर कर सके. और जहाँ तक मोटिवेशन का सवाल है तो, एक मैनेजर के तौर पर आपको हमें शा अपनी टीम में एक पोजिटिव और कॉम्पटीटिव एनर्जी क्रिएट करनी होगी जिससे हर मेंबर को और ज्यादा मेहनत करने के लिए मोटिवेट हो जाये.

इवैल्यूएशन रिव्यू देते वक्त एक जज की तरह बिहेव करे. एकदम सीधे और सख्त लहजे में अपना रिव्यु
दें. अगर अच्छे रिजल्ट चाहिए नर्मदिली से बात करने के बजाए स्पष्ट अपनी बात कहे कि आप टीम से क्या
चाहते है क्योंकि कंपनी एक बेस्ट टीम के लिए आप के ऊपर डिपेंड करती है इसलिए सिरियस और डायरेक्ट
तरीके से अपने पॉइंट टीम मेंबर्स के सामने रखिये बेशक किसी को बुरा लगे या भला. अब आप पूछोगे कि किस मैं ट्रिक्स पर आपको अपनी टीम ईवैल्यूएट करनी चाहिए. तो यहाँ हम आपको एक एक्जाम्पल देंगे. अगर आपकी टीम में चार लोग है, तो सबसे पहले आपको हर मेंबर्स की परफोर्मेंस चेक करनी होगी, आपको उनकी प्रोग्रेस, पर्फीमेंस, उनकी गोल्स अचीव करने की काबिलियत और हर मीटिंग्स में उनकी पोंमेंस पर आपने जो नोट्स लिखे थे, ये सब चेक कर लीजिये. जो आप उनकी परफोर्मेंस वगैरह के बारे में सोचते हो,
वो सब एक पेपर पर लिख लो, और जितना हो सके उतना डिटेल में लिखो, शायद आपके पास उन स्किल्स
की एक लंबी लिस्ट होगी जिसमें आप अपनी टीम से इम्प्रूवमेंट की उम्मीद रखते हो. अब सेम टारगेट वाली
दो स्किल्स को कम्बाइन करके लिस्ट को और छोटा कर दो. अब टीम के हर मेम्बर को इन मैट्रिक्स का यूज़ करके ईवैल्यूएट करो. आपको पता चलेगा कि कुछ एम्प्लोईज कुछ खास पॉइंट में कमज़ोर है. अगर ये पॉइंट्स आपको बार-बार दिखे तो इसका मतलब है कि आपको उस मेंबर को स्ट्रिक्ट वार्निंग के साथ खुद में इम्प्रूवमेंट लाने के लिए बोलना होगा.

अब, जिन मेंबर्स में स्किल्स की कमी है, तो आपको उनके अंदर वो स्किल्स इम्प्रूव करने के तरीके ढूढ़ने
होंगे. आपको उन्हें हर तरह से मदद करनी होगी क्योंकि एक मैनेजर के तौर पर ये आपकी ही
जिम्मेदारी है. हो सकता है कि कभी आप अपने किसी टीम मेम्बर की कोई ऐसी बात नोटिस कर ले जो आपको खटक रही हो. ऐसे मामलो में शर्म करने और सॉफ्ट लहजे में बात करने से काम नहीं चलेगा. हमेशा याद रखो, कि आप ये खुद के लिए नहीं बल्कि कंपनी और अपने टीम मेंबर्स की बेहतरी के लिए कर रहे है.
एक मैनेजर होना काफी मुश्किल जॉब होती लेकिन ये आप पर है कि आप एक बेस्ट परफोर्मिंग टीम क्रिएट
कर सकते है. रिवार्ड और रिव्यू यूज़ करके आप एक जज और एक बेस्ट दोनों का रोल एक साथ प्ले कर
सकते है.

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Andrew Grove
Why Training Is The Boss’s Job

पहले चैप्टर में हमने सीखा कि एक मैनेजर का काम है अपनी टीम की परफोर्मेंस को इम्प्रूव करते रहना. और इस काम के लिए हम रिव्यु और रिवॉर्ड का सहारा ले सकते है. एक और तरीका है जिसकी हेल्प से मैनेजर अपने टीम मेंबर्स की स्किल्स बूस्ट करने में उनकी मदद कर सकते है,और ये तरीका है ट्रेनिंग.
ज़्यादातर मैनेजर को शायद लगता होगा कि ट्रेनिंग देना उनका काम नहीं बल्कि बॉस का काम है. पर
वो गलत है क्योंकि मैनेजर्स पर अपने एम्प्लोईज़ की स्किल्स इम्प्रूव करने की जिम्मेदारी होती है जिससे वो
और भी ज्यादा प्रोडक्टिव तरीके से अपना काम करे और कंपनी का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाने में अपना सहयोग
दे सके. तो अगर आप भी एक मैनेजर है, और आप ट्रेनिंग स्टार्ट करने की सोच रहे है तो पहले नीचे दिए इन
प्रिंसिपल्स के बारे में गौर कर लीजिये:. पहला प्रिंसिपल: आपकी ट्रेनिंग में वो material इस्तेमाल होना चाहिए जो आपकी कंपनी से रिलेटेड हो. यूं ही कुछ भी अपनी पसंद की चीज़ इस्तेमाल करने से बचे.

दूसरा प्रिंसिपल: आपकी ट्रेनिंग का एक फिक्स्ड शेड्यूल होना चाहिए. ताकि आपकी टीम को पता चल
सके कि ट्रेनिंग कब शुरू हो रही है और वो लोग ज्वाइन कर सके और अपनी स्किल्स इम्प्रूव करने के लिए रेडी हो सके 

तीसरा प्रिंसिपल: आपकी ट्रेनिंग लॉन्ग टर्म होनी चाहिए, सिर्फ एक लेक्चर या एक क्लास से काम नहीं
चलेगा. और ट्रेनिंग की शुरुवात से पहले आपको कुछ चीज़े ब्रेनस्ट्रोम करनी होगी जो आप चाहते है कि आपके टीम मेंबर्स को सीखनी जरूरी है. आप उनसे सीधे तौर पर पूछ सकते है और उनका फीडबैक ले सकते है. फिर डेटा कलेक्ट करने के बाद अपना मैं न्युअल या लेक्चर शुरू करे. ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बोलने के बजाए सीधे तरीके से पहले एक टॉपिक पर चर्चा करे और फिर उसके बाद अगले पर. एम्प्लोईज को ट्रेन करना किसी भी कंपनी के लिए काफी इफेक्टिव होता है. जैसे एक्जाम्पल के लिए इंटेल में एक बार एक एक्सीडेंट हो गया जिसकी वजह से कुछ ही दिनों के अंदर कंपनी को एक मिलियन डॉलर का घाटा उठाना पड़ गया था.

उनके सिलिकॉन फेब्रिकेशन प्लांट के अंदर एक मशीन जो मुश्किल और complicated टास्क करती
थी, अचानक खराब हो गई और गलत ढंग से चलने लगी. ये मशीन ऑपरेटर की जिम्मेदारी थी उसे मशीन
डायरेक्शन में आये छोटे से छोटे चेंज को भी देखते ही तुरंत उसे फिक्स कर देना चाहिए . अब क्योंकि उस मशीन का ऑपरेटर इतना स्किल्ड नहीं था तो वो पूरा दिन गलत प्रोसीजर यूज़ करके सिलिकॉन चिप्स बनाती रही. आप सोच सकते है कि उसने एक दिन में कितने सिलिकॉन चिप्स बनाये होंगे! जब मशीन की ये गलती नोटिस की गई तब तक काफी देर हो चुकी थी. वो एम्प्लोई तब तक एक मिलियन डॉलर से भी ज्यादा के सिलिकॉन चिप्स बना चुकी थी. और ये सिलिकॉन किसी काम के नहीं थे तो उन्हें फेंकना पड़ा और इसके साथ ही जो कस्टमर अपने ऑर्डर डिलीवर होने का वेट कर रहे थे, उन्हें अपने ऑर्डर के लिए दो हफ्ते तक और इंतज़ार करना पड़ा. कंपनी में इस तरह की गलतियाँ होती रहती है, हम इन्हें टाल नहीं सकते. पर इस तरह के बड़े नुकसान की जिम्मेदारी किस पर डाली जा सकती है? ज़ाहिर है टीम मैनेजर पर क्योंकि वो अपने एम्प्लोईज़ की खूबियों और कमियों को बेहतर जानता है और अगर उसके किसी टीम मेंबर से कोई गलती हुई है या वो किसी स्किल में कमजोर है तो इसका मतलब मैनेजर ने उसे ठीक से ट्रेनिंग नहीं दी है. अब जब आप जान चुके है कि मैनेजर के लिए अपनी टीम को ट्रेन करना कितना जरूरी है, तो अब आप अपनी टीम के लिए लेक्चर्स तैयार करके एक शेड्यूल सेट कर सकते हो ताकि आपके एम्प्लोईज़ की स्किल्स इम्पूव हो सके और आप अपनी कंपनी के लिए एक बेस्ट टीम तैयार कर सके.

Conclusion
अक्सर माना जाता है कि आर्गेनाइजेशन का मतलब है एक बड़ी कंपनी जिसमें हज़ारो लोग काम करते
है. लेकिन असल में एक कॉफी शॉप भी किसी organization से कम नहीं है और उसे चलाने में
भी वही सारे प्रिंसिपल्स यूज़ होते है जो किसी भी बड़ी कंपनी को चलाने के लिए यूज़ किये जाते है.
इस किताब में आपने सीखा कि प्रोडक्शन के बेसिक रूल्स सीख कर आप कम से कम लागत में भी वैल्युएबल प्रोडक्ट्स बना सकते हो. साथ ही आपने ये भी सीखा कि टाइम ऑफसेट जैसी ट्रिक यूज़ करके आप अपने प्रोडक्शन फ्लो के लूपहोल जान सकते हो और अपने कॉम्पटीटर्स को चारो खाने चित्त कर सकते हो. ये किताब हमें सिखाती है कि हम अपने बिजनेस को इम्प्रूव करने के लिए किस तरह के प्लान बनाएँ जो हमारी मार्केट रिसर्च, करंट एबिलिटी यानी मौजूदा काबिलियत पर और गैप इन बिटवीन यानी खाली जगह भरने की स्ट्रेटेजी पर बेस्ड हो. अगर आपने इस गैप को फिल कर लिया तो समझ लो कि आपने जैकपॉट हिट कर लिया है और आप गेम ऑफ़ मनी जीत लिया है. क्योंकि कोई भी ओर्गनाइजेशन या तो फंक्शनल यूनिट रख सकती है या फिर मिशन ओरिएंटेड यूनिट रखती है तो ये किताब सिखाती है कि हमारा मेन गोल ये होना चाहिए कि हम थोडा और लालची बनते हुए अपनी कंपनी में फंक्शन और मिशन दोनों यूनिट रखे. इस तरह से आप एक हाइब्रिड कंपनी बना सकते है जो कम से कम कॉस्ट में भी ज्यादा प्रोडक्टशन देती है. इसके आलावा इस किताब में आपने तीन मोस्ट इम्पोर्टेट मोड्स ऑफ़ कण्ट्रोल के बारे में सीखा है जो है: आपकी मार्केट , आपके कॉन्ट्रैक्ट और आपके कल्चरल वैल्यूज.

और अगर आप एक मैनेजर है तो ये किताब आपको सिखाती है कि आपका काम एक ऐसी टीम बनाना है
जो आपकी कंपनी में वैल्यू एड करे. और ऐसा करने के लिए आपको लगातार अपनी टीम की परफोर्मेंस चेक और रिव्यु करनी होगी ताकि आप अपने एम्प्लोईज़ को ट्रेनिंग देकर उन्हें ग्रो करने का मौका दे सके.
ये किताब असल में कुछ बेहद सक्सेसफुल और हाईएस्ट परफोर्मिंग टीम्स की गलतियों और सीख पर
बेस्ड समरी की तरह है. इस किताब में जितने भी लेसन दिए गए है, आज की तारीख में और आज के वर्क
सिनेरियो में एकदम सटीक बैठते है. तो अब क्यों ना आप भी इन लेसंस से सीखकर आज से ही खुद की
एक पॉवरफुल टीम बनाने की शुरुवात करे.

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