Emotional Intelligence:
Why It Can Matter More …
Daniel Goleman
Introduction
अगर आप सही जगह इस्तेमाल नहीं करते तो आपका आई क्यू (IQ) लेवल हाई होने का कोई फायदा नहीं
है. अगर आपके इमोशंस ही आपके कण्ट्रोल में नहीं है तो फिर जीनियस होने के बावजूद आप लाइफ में
फेल हो जायेंगे. ऐसे भी लोग है जिनका आई क्यू बड़ा हाई था फिर भी वो सेम मिस्टेक रीपीट करते रहते थे.
-यूजवली इसमें उनकी पर्सनल लाइफ इन्वोल्व रहती है. विन्सेंट वेन गोह(Vincent Van Cogh) एक
फेमस एक्जाम्पल है कि कैसे एक जीनियस भी बेड इमोशनल इंटेलीजेन्स से अफेक्टेड हो सकता है. वैसे
सब जानते है कि वो बड़ा ग्रेट पेंटर था, बड़ा टेलेंटेड फिर भी लाइफ टाइम वो मेंटल इलनेस का शिकार रहा.
इंटेलीजेंट होते हुए भी वो जिंदगी भर अपनी फीलिंग्स कण्ट्रोल करने के लिए स्ट्रगल करता रहा.
इसीलिए तो डैनियल गोलमेन का मानना है कि ईआई यानि इमोशनल इंटेलीजेंस “कैन मैटर मोर देन
आईक्यू” (can matter more than IQ”). जबकि एवरेज आई क्यू और गुड ईआई वाले लोग
लाइफ में ज्यादा बैटर परफॉर्म कर पाते है, वही हाई आई क्यू और लो ईआई (low El) वाले लोग
शॉलमोस्ट फेल टी टोने टेने गा है टममेटले कि ऑलमोस्ट फेल ही होते देखे गए है. इससे पहले कि आप अपने बैड लक का रोना रोये, आपको एक बात बता दे – ईआई यानि इमोशनल इंटेलीजेंस इम्प्रूव की जा सकती है. ये गोलमेन की बुक का एक मोस्ट इम्पोर्टेट गोल है – सबसे पहले ईआई के कांसेप्ट को थोरोली डिसक्राइब किया जाये और फिर आपको अपने इमोशनल इंटेलीजेंस को इम्प्रूव करने में हेल्प की जाए.
इमोशंस (Emotions)
आपकी लाइफ में एक भी सेकंड ऐसा नहीं जो इमोशन के बिना गुजरता हो. ये आपकी लाइफ का
एक क्रूशियल पार्ट है इसलिए हमे इस इमोशनल पार्ट के साथ जीना सीखना होगा. मोस्ट इम्पोर्टेट बात है कि
ये इमोशंस हमारी लाइफ के बाकि एस्पेक्ट्स को भी इन्फ्लुयेश करते है -जैसे कि हमारे डिसीज़न मेकिंग
प्रोसेस और थोट्स. जिसका मतलब है कि ई आई हमारे नार्मल इंटेलीजेन्स को भी इन्फ्लुयेश करती है. इसे एक एक्जाम्पल से समझते है – हम सब कभी ना कभी लाइफ में सेड होते ही है, लेकिन एक बात जो आपने
शायद ही नोटिस की होगी कि कैसे सेडनेस हमारे थॉट पैटर्न को इन्फ्लुयेश करती है -तब आप पास्ट के अपने अनप्लीजेंट एक्सपेरियेंशेस को और भी ज्यादा याद करने लग जाते है. मान लो आपका पार्टनर आपको छोड के चला गया
-ये आपके सेडनेस को ट्रीगर कर देगा जिससे आपको अपने पहले वाले ब्रेकअप्स भी याद आने लगेंगे. और
ये सारी मेमोरीज़ आपकी सेडनेस को और भी बड़ा देंगी जिससे आपको अपनी लाइफ मिज़रेबल फील
होने लगेगी. लेकिन अच्छी बात ये है कि ये दुसरे तरीके से भी उतना ही इफेक्टिव है- आप अपने थॉट्स से
इमोशंस को इन्फ्लुयेश कर सकते है. और यही चीज़ गोलमेन की इस बुक का एशेंस है- ताकि ये आपको
हेल्प कर सके एक इमोशनल इंटेलीजेंस बूस्ट करने में,
ब्रेन एंड इमोशंस (Brain and Emotions)
डैनियल गोलमेन(Daniel Goleman) न्यूरोलोजी एक्सपर्ट है जिन्हें ह्यूमन ब्रेन के काम करने के तरीको
के बारे में अच्छी नॉलेज है. उन्होंने एक चीज़ देखी कि हमारे ब्रेन में इमोशंस बड़े डीप लेवल तक होते
है. क्योंकि हमारे ब्रेन में कुछ ओल्ड और कुछ यंगर पार्ट मौजूद होते है. और ऐसा होता है कि जो पार्ट
इमोशंस कण्ट्रोल करता है, ब्रेन का काफी ओल्ड पार्ट होता है -इतना ओल्ड कि ह्यूमेनिटी की शुरुवात के
टाइम से. तो इसका क्या मतलब हुआ ? यही कि हम अपने इमोशंस को एलिमिनेट या इग्नोर नहीं कर
सकते, कभी भी नहीं. क्योंकि इनके होने का कुछ मतलब ज़रूर है. एक्जाम्पल के लिए जैसे अमिगडला
(Amygdala,)एक ऐसा ही इमोशनल ब्रेन सेंटर है जो एक्सट्रीमली ओल्ड है.
ब्रेन का ये पार्ट हमारे यंगर कोर्टेक्स (younger cortex )( सेंटर ऑफ़ इंटेलीजेंस) के डिसीज़न्स ओवरराइड कर सकता है. डैनियल गोलमेन के हिसाब से इसका मतलब होगा कि इमोशंस हमारे माइंड से भी स्ट्रोंग होते है. ऐसा भी हुआ है कि कई एक्स्ट्रा इंटेलीजेंट माइंड प्रॉपर इमोशनल इंटेलीजेंस के बगैर पूरी तरह यूज़लेस प्रूव हुए. विन्सेंट वोंग गोह (Vincent Van Gogh) एक ऐसा ही एक्जाम्पल है – अपने इमोशनल
इश्यूज के चलते इतने बड़े टेलेंटेड पेंटर ने अपनी लाइफ बर्बाद कर ली थी. ऐसे कई और भी एक्जाम्पल
है -जैसे कर्ट कोबेन (Kurt Cobain) और एमी वाइनहाउस( Amy Winehouse) जैसे लोग. ये सब स्मार्ट और अपने-अपने फील्ड के टेलेंटेड लोग थे लेकिन उनकी अपनी इमोशनल प्रॉब्लम्स के चलते
इनकी सारी एबिलिटी बर्बाद गयी.
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5 डोमेन्स ऑफ़ इमोशनल इंटेलीजेंस (5 Domains of Emotional Intelligence)
ईआई एक काम्प्लेक्स कांसेप्ट है, लेकिन अगर हम इसे छोटे-छोटे पीस में डिवाइड करके देखे तो इन्हें समझना ईजी हो जाएगा.
1. नोइंग वंस इमोशन्स ( अपने इमोशंस को पहचाने) Knowing one’s emotions – बहुत लोग अपने इमोशंस समझ ही नहीं पाते और फिर ऑटोमेटिक वे में एक्ट करने लगते है. जैसे कि हम सब कभी ना कभी किसी बात को लेकर जेलस होते है क्योंकि ये एक नेचुरल इमोशन है. लेकिन जब हम ऐसे इमोशंस को एक्सेप्ट नहीं करते तो दूसरो के लिए बुरा सोचना शुरू कर देते है. अपनी फीलिंग्स को एक्सेप्ट करना ही गुड इमोशनल इंटेलीजेन्स का फर्स्ट स्टेप है. ऐसे कई तरीके है जिनसे हम अपने अंदर ये चीज़ ट्यून इन कर सकते है, जैसे कि “- मेडिटेशन एक अच्छा तरीका है. और इसके लिए आपको एक्सपर्ट होने की
ज़रूरत नहीं है. बस आराम से बैठो, स्लोली डीप ब्रीथ लो और माइंड को शांत रखो. हालांकि आपके माइंड में काफी बाते घूम रही होंगी: “क्या मैंने अवन ऑफ किया ? या अरे! कल तो मेरा एक असाइनमेंट है” लेकिन कोई बात नहीं, अपने माइंड में थॉट्स चलने दो, लेकिन ध्यान रहे कि ये ख्याल आये और चले जाये वर्ना ये आपके माइंड और जजमेंट पॉवर को क्लाउड कर देंगी. जब आपका माइंड रोज़ की चिक-चिक से फ्री हो जायेगा तो आपके लिए अपने इमोशनल स्टेट को पर्सीव करना ईजी हो जायेगा. जैसे मान लो आज आप पूरा दिन फ्रस्ट्रेटेड रहे, आप थोड़ी देर के लिए भी मेडिटेशन करेंगे, आप देखेंगे कि सारा दिन आप अपने पार्टनर के साथ हुए फाईट को लेकर परेशान थे. लेकिन आपकी डेली की अनइम्पोर्टेट चीजों ने इस रियल रीजन को क्लाउड कर दिया था.
2. इमोशनल मैनेजमेंट Emotional Management- हालांकि ऑथर इस बात पे जोर देता है कि इमोशंस हमारे इंटेलीजेंस को कैसे इन्फ्लुयेंश करते है लेकिन ये वन वे स्ट्रीट नहीं है. और ज्यादा स्पेशिफिक वे में बोले तो आप कुछ हद तक अपने इमोशंस कण्ट्रोल कर सकते है, डिपेंड करता है कि आप किस चीज़ पर फोकस कर रहे है. ये टॉपिक स्टेट ऑफ़ फ्लो के काफी क्लोज है जिसे “फ्लो” बुक में काफी अच्छे से एक्स्प्लेन किया गया है.: द साईंकोलोजी ऑफ़ ऑप्टीमल एक्स्पिरियेंश”. खाली दिमाग शैतान का घर” नये कहावत यहाँ अप्लाई होती है क्योंकि खाली बैठे रहने से हमारे माइंड में नेगेटिव इमोशंस पैदा होते है. बुक में काफी अच्छे से एक्स्प्लेन किया गया है.: द साईंकोलोजी ऑफ़ ऑप्टीमल एस्पिरियेंश”. खाली दिमाग शैतान का घर” नये कहावत यहाँ अप्लाई होती है क्योंकि खाली बैठे रहने से हमारे माइंड में नेगेटिव इमोशंस पैदा होते है.
इसके बजाये किसी एक चीज़ पे फोकस करो और जितना हो सके उतनी देर तक कंसेंट्रेशन बना के
रखो. लेकिन इस बीच अपना फोन या सोशल मिडिया अकाउंट चेक ना करे, अगर आपको अपने इमोशंस
मैनेज करने है तो कुछ टाइम के लिए इन चीजों को भूलना होगा. बेशक मॉडर्न टेक्नोलोजी हमे काफी
हेल्प करती है लेकिन अक्सर हम इसका मिसयूज़ भी करते है. जैसे कि साईंकोलोजिस्ट प्रूव कर चुके है
कि जो लोग ज्यादा डिप्रेशन में रहते है या अन्क्सियस (anxious) होते है वो सोशल नेटवर्क में बाकियों से
ज्यादा टाइम एक्टिव रहते है. अपनी प्रोब्लम्स सोल्व करने और कुछ प्रोडक्टिव करने के बजाये ये डिप्रेशड
लोग (depressed ) बेकार ही अपने सोशल नेटवर्क प्रोफाइल को घंटो स्क्रोल करते रहते है. जिन लोगो को एंगर मैनेजमेंट की प्रोब्लम होती है उनके लिए 10 सेकंड्स रुल सबसे बेस्ट है. और ये रुल बड़ा ही सिम्पल है -जब भी आपको लगे कि गुस्सा आ रहा है तो आराम से बैठ काउंटिंग करने लगो 7 से लेकर 10
तक, ये टेक्नीक बड़ी इफेक्टिव है, यहाँ तक कि बेहद गुस्से और इम्पल्सिव लोगो को भी ये टेक्नीक बड़ी हेल्पफुल लगी.
इसकी प्रेक्टिस करने के लिए पहले तो आप एंगर के फर्स्ट साइन्स को पहचाने जैसे कि अपटाईटनेस, मसल्स में टेन्शन फील होना या फिर डीजीनेस. इन सिम्प्टम्स के बाद ही असली गुस्सा शुरू होता है. लेकिन जैसे ही आपको ये सिम्पटम्स दिखे आप तुरंत 10 सेकंड्स वाली एकसरसाइज़ करना शुरू कर दे और फिर आप देखो कि आप कैसे अपने गुस्से में कण्ट्रोल कर लेते हो.
3. मोटिवेट योरसेल्फ Motivate yourself-इसका बेस्ट तरीका है कि आप खुद को टाइम टाइम पे रिवार्ड करते रहे. लेकिन इस चक्कर में ओवर द टॉप ना चले जाए. क्योंकि अक्सर लोग रीवार्ड्स के एडिक्टिव हो जाते है. रिवार्ड आपका अल्टीमेट गोल नहीं है. ये तो बस आपको आपके गोल में मोटिवेट करता है. हर रोज़ बाहर जाकर पार्टी करने के बजाये आप कुछ स्पेशल ओकेज्न्स (special occasions.) का वेट करे इससे आपको और मज़ा आएगा और रिवार्ड का भी ज्यादा इफेक्ट पड़ेगा. मोटिवेशन के लिए रीजनेबल और अटेनेबल गोल्स सेट करे. जैसे कि आपको अपनी इमोशनल इंटेलीजेंस इम्प्रूव करनी है तो ये कोई ईजी टास्क नहीं है, आपको इसे कुछ छोटे-छोटे गोल्स में डिवाइड करना होगा जो आप इज़ीली पा सके. अब जैसे आप अपनी दमोशनल मैनेजमेंट इम्प्रव करना चाहते है तो पहले दुसरे डोमेन जैसे कि एमपेथी को इम्प्रूव करने की कोशिश करे.
एसेंस में आपके गोल कुछ ऐसे होने चाहिए :
1. मोडरेटली हार्ड (Moderately hard)- ज़ाहिर है आप कोई ऐसा टास्क तो चूज़ करेंगे नहीं जो बहुत
ईजी या बहुत हार्ड हो, क्योंकि ईजी गोल्स आपको मोटिवेट ही नहीं करेगा और ज्यादा हार्ड टास्क आपको
फ्रस्ट्रेट कर सकता है.
2. यू शुड गेट इंस्टेंट फीडबैक (You should get instant feedback)- जब तक आपको अपने
एक्श्न्स का आउटकम पता नहीं होगा आप कभी भी इम्प्रूव नहीं कर सकते.
3. फेलर इज नोट एन ऑप्शन, इट इज अ मस्ट (Failure is not an option, it is a must)!:
अगर हर चीज़ प्लान के हिसाब से चलने लगे तो समझो आप galat ट्रेक पर हो. एक चीज़ हमेशा याद रखो
कि फ्रस्ट्रेटिंग एक्सपिरियेंश कहीं न कहीं आपको पीछे खीचने की फिराक में रहते है. आपको “फ्लो” बुक में
अपने गोल्स के बारे में और जानने का मौका मिलेगा: “फ्लो: साइकोलोजी ऑफ़ ऑप्टीमल एक्स्पिरियेंश”
4. एमपेथी (Empathy)- ये एक कोर ह्यूमन केरेक्टरस्टिक है क्योंकि हम इसके बिना रह ही नहीं सकते. फिर भी आज के टाइम में हम लोग अनएमपेथेटिक और इनडिफरेंट होते जा रहे है. और साईंकोलोजिस्ट इस प्रोब्लम को लेकर परेशान है. एक तरफ तो आजकल वायलेंस (violence) इतना बढ़ गया है कि हमें इसकी आदत सी हो गयी है और लोग टीवी वगैरह में इतना ज्यादा वायलेंस वाले प्रोग्राम देखने लगे है कि दूसरो को तकलीफ में देखके भी लोगो को अब फर्क नहीं पड़ता. और ये चीज़ बेहद डेंजरस है हमारे फ्यूचर के लिए क्योंकि हेल्दी ह्यूमन रिलेशनशिप के लिए हम इंसानों में एमपेथी होना बेहद ज़रूरी है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि हम एमपेथी इम्प्रूव कर सकते है बस आपको इसके एस्पेक्ट्स पर थोडा वर्क करना होगा.
A. ओब्ज़ेर्व अदर्स (Observe others)- अक्सर हमें पता ही नहीं चल पाता कि हमारे फ्रेंड्स या फेमिली
क्या फील कर रहे है, हम उनकी फीलिंग्स की परवाह नही करते लेकिन उनके साथ थोडा टाइम स्पेंड करके
हम ओब्ज़ेर्व कर सकते है कि किसी सब्जेक्ट पर उनकी फीलिंग्स क्या है या वो कैसे रिएक्ट करते है..
B. अंडरस्टेंड अदर्स (Understand others)-
जिससे आपकी बात हुई उस इंसान से बात करने के बाद खुद से ये पूछे: “इस इंसान को क्या फील होता
होगा? उसके इमोशंस क्या होंगे? कुछ बिहेविरियल साइंटिस्ट (behavioral scientists) इसे
कोगनिटिव पार्ट (cognitive part) ऑफ़ एमपेथी बोलते है.
C. रीजोनेट विद अदर्स (Resonate with others)- ये लास्ट और मोस्ट इम्पोर्टेट पार्ट है और शायद सीखने के लिए सबसे मुश्किल वाला भी. दूसरो के साथ सही तरीके से रीजोनेट (resonate) करने के
लिए आपको उनकी जगह खुद को रखके सोचना होगा. ये एक दो धारी तलवार जैसी चीज़ है क्योंकि बहुत
ज्यादा रीजोनेटिंग(resonating ) भी अच्छी बात नहीं है. डैनियल गोलमेन (Daniel Goleman) उनके बारे में बताते है जिन्हें अलेक्सीथीमिया(alexithymia) होता है ऐसे लोगो के पास अपने इमोशंस ज़ाहिर नहीं
कर पाते क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता कि कैसे अपने अंदर की फीलिंग्स को बाहर लाये. लेकिन हम सब
भी कभी न कभी ये चीज़ एक्स्पिरियेश करते है- बट ऐसा कितनी बार हुआ कि आपको कुछ फील हुआ
लेकिन आप उसे बोल नहीं पाए ? आपको जवाब देने की ज़रुरत नहीं, ये सबके साथ होता है. जैसा हमने
पहले मेंशन किया कि कुछ ऐसे मेथड्स है जिनसे आप अपनी इनर स्टेट को इम्प्रूव कर सकते है- जैसे कि आप मेडीटेट कर सकते है.. और भी कई टेक्नीक्स है- अगर आप साईंकोलोजी को लेकर क्यूरियस है तो इमोशंस पर बुक्स पढ़ सकते है. और भी बहुत से मेथड है जिनमे में से कोई ना कोई आपके लिए राईट होगा.
5. पे अटेंशन टू योर रिलेशनशिप्स (Pay attention to your relationships)- जो लोग एमपेथेटिक होते है, वो दूसरो के साथ अपने रिलेशन को लेकर एक्स्ट्रा केयरफुल रहते है. बेशक मिसअंडरस्टेंडिंग होने के चांसेस हर रिश्ते में रहते है लेकिन सबसे इम्पोर्टेट बात ये है कि कोई भी इस्श्यू सही ढंग से सुलझा लेना चाहिए. मान लो आपकी अपने फ्रेंड से फाईट हो गयी है लेकिन फिर भी अपना गुस्सा ठंडा करके आप उसे कॉल ज़रूर करे. क्योंकि बड़े लोग कोई दुश्मनी नहीं रखते और ना ही उनमे बदले की फीलिंग होती है. अब लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि हमेशा आप की माफ़ी मांगो –बल्कि इसके एकदम उलटे आपका इमोशनल इंटेलीजेंट जानता है कि कब आपको सॉरी बोलना है और कब नहीं. ऐसे कई मौके होंगे जब आपकी एक सॉरी बिगड़ी बात बना देगी. लेकिन अगर गलती आपकी नहीं है तो भी आपको मैटर सोल्व करने में पीछे नहीं हटना चाहिए, आप कुछ यूं बोल सकते है : “देखो, मै समझ सकता हूँ कि तुमने ऐसा क्यों किया, लेकिन मेरी भी थोड़ी गलती थी लेकिन एक दुसरे को ब्लेम करने से क्या होगा? अब झगड़ा खत्म करते है क्योंकि तुम एक अच्छे दोस्त हो” ह्यूमन रिलेशनशिप को लेकर साईंकोलोजिस्ट एक अच्छी एडवाईस देते है: जिस नज़रिये से हम दुनिया को देखते है वो हमारे इमोशंस डिसाइड करते है. क्योंकि वर्ल्ड को लेकर हमारी नॉलेज इनडायरेक्ट होती है. तो शायद अब आप पूछो कि “मै कैसे इसे अपनी इमोशनल लाइफ में एम्प्लोय करूँ? वेल, मान लो आप अपने पार्टनर से नाराज़ हो, और अब आपको बहुत गुस्सा आ रहा है,
आप अपने एक्श्न्स कण्ट्रोल नहीं कर पा रहे. लेकिन जब आप शांत होंगे तभी आपको सिचुएशन ज्यादा
क्लियर वे में नजर आएगी. और तभी आपको पता चलेगा कि आप उसे कुछ ज्यादा ही गलत समझ बैठे.
या फिर मान लो कि आपका पार्टनर आपको बार बार कॉल कर रहा है और आपको ये चीज़ बड़ी फ्रस्ट्रेटिंग
लगती है. और जब आपको ये भी लगता है कि वो आपको कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा है या रही
है तब आपका गुस्सा फूट पड़ता है. इसके बजाये आप खुद से बोले: “अगर वो मुझे बार-बार फ़ोन कर रही है
या रहा है तो क्या हुआ? ज़रूरी नहीं कि वो कण्ट्रोल फ्रीक हो, ये भी तो हो सकता है कि उसे मेरी ज्यादा
फ्रिक हो,
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एसेंस में आपके गोल कुछ ऐसे होने चाहिए :
1. मोडरेटली हार्ड (Moderately hard)-
ज़ाहिर है आप कोई ऐसा टास्क तो चूज़ करेंगे नहीं जो बहुत ईजी या बहुत हार्ड हो, क्योंकि ईजी गोल्स
आपको मोटिवेट ही नहीं करेगा और ज्यादा हार्ड टास्क आपको फ्रस्ट्रेट कर सकता है.
2. यू शुड गेट इंस्टेंट फीडबैक (You should get instant feedback)-
जब तक आपको अपने एक्श्न्स का आउटकम पता नहीं होगा आप कभी भी इम्प्रूव नहीं कर सकते.
3. फेलर इज नोट एन ऑप्शन, इट इज अ मस्ट (Failure is not an option, it is a must)!:
अगर हर चीज़ प्लान के हिसाब से चलने लगे तो समझो आप galat ट्रेक पर हो. एक चीज़ हमेशा याद रखो
कि फ्रस्ट्रेटिंग एक्सपिरियेंश कहीं न कहीं आपको पीछे खीचने की फिराक में रहते है. आपको “फ्लो” बुक में
अपने गोल्स के बारे में और जानने का मौका मिलेगा: “फ्लो: साइकोलोजी ऑफ़ ऑप्टीमल एक्स्पिरियेंश”
4. एमपेथी (Empathy)-
ये एक कोर ह्यूमन केरेक्टरस्टिक है क्योंकि हम इसके बिना रह ही नहीं सकते. फिर भी आज के टाइम में हम लोग अनएमपेथेटिक और इनडिफरेंट होते जा रहे है. और साईंकोलोजिस्ट इस प्रोब्लम को लेकर परेशान है. एक तरफ तो आजकल वायलेंस (violence) इतना बढ़ गया है कि हमें इसकी आदत सी हो गयी है और लोग टीवी वगैरह में इतना ज्यादा वायलेंस वाले प्रोग्राम देखने लगे है कि दूसरो को तकलीफ में देखके भी लोगो को अब फर्क नहीं पड़ता. और ये चीज़ बेहद डेंजरस है हमारे फ्यूचर के लिए क्योंकि हेल्दी ह्यूमन रिलेशनशिप के लिए हम इंसानों में एमपेथी होना बेहद ज़रूरी है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि हम एमपेथी इम्प्रूव कर सकते है बस आपको इसके एस्पेक्ट्स पर थोडा वर्क करना होगा.
A. ओब्ज़ेर्व अदर्स (Observe others)-
अक्सर हमें पता ही नहीं चल पाता कि हमारे फ्रेंड्स या फेमिली क्या फील कर रहे है, हम उनकी फीलिंग्स की परवाह नही करते लेकिन उनके साथ थोडा टाइम स्पेंड करके हम ओब्ज़ेर्व कर सकते है कि किसी सब्जेक्ट पर उनकी फीलिंग्स क्या है या वो कैसे रिएक्ट करते है..
B. अंडरस्टेंड अदर्स (Understand others)-
जिससे आपकी बात हुई उस इंसान से बात करने के बाद खुद से ये पूछे: “इस इंसान को क्या फील होता
होगा? उसके इमोशंस क्या होंगे? कुछ बिहेविरियल साइंटिस्ट (behavioral scientists) इसे कोगनिटिव पार्ट (cognitive part) ऑफ़ एमपेथी बोलते है.
C. रीजोनेट विद अदर्स (Resonate with others)-
ये लास्ट और मोस्ट इम्पोर्टेट पार्ट है और शायद सीखने के लिए सबसे मुश्किल वाला भी. दूसरो के साथ
सही तरीके से रीजोनेट (resonate) करने के लिए आपको उनकी जगह खुद को रखके सोचना होगा. ये
एक दो धारी तलवार जैसी चीज़ है क्योंकि बहुत ज्यादा रीजोनेटिंग(resonating ) भी अच्छी बात नहीं है.
डैनियल गोलमेन (Daniel Goleman) उनके बारे में बताते है जिन्हें अलेक्सीथीमिया(alexithymia.)
होता है ऐसे लोगो के पास अपने इमोशंस ज़ाहिर नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता कि कैसे अपने
अंदर की फीलिंग्स को बाहर लाये. लेकिन हम सब भी कभी न कभी ये चीज़ एक्स्पिरियेश करते है- But
ऐसा कितनी बार हुआ कि आपको कुछ फील हुआ लेकिन आप उसे बोल नहीं पाए ? आपको जवाब देने
की ज़रुरत नहीं, ये सबके साथ होता है. जैसा हमने पहले मेंशन किया कि कुछ ऐसे मेथड्स है जिनसे आप
अपनी इनर स्टेट को इम्प्रूव कर सकते है- जैसे कि आप मेडीटेट कर सकते है.. और भी कई टेक्नीक्स है- अगर आप साईंकोलोजी को लेकर क्यूरियस है तो इमोशंस पर बुक्स पढ़ सकते है. और भी बहुत से मेथड है
5. पे अटेंशन टू योर रिलेशनशिप्स (Pay attention to your relationships)-
जो लोग एमपेथेटिक होते है, वो दूसरो के साथ अपने रिलेशन को लेकर एक्स्ट्रा केयरफुल रहते है. बेशक
मिसअंडरस्टेंडिंग होने के चांसेस हर रिश्ते में रहते है लेकिन सबसे इम्पोर्टेट बात ये है कि कोई भी इस्श्यू सही
ढंग से सुलझा लेना चाहिए. मान लो आपकी अपने फ्रेंड से फाईट हो गयी है लेकिन फिर भी अपना गुस्सा
ठंडा करके आप उसे कॉल ज़रूर करे. क्योंकि बड़े लोग कोई दुश्मनी नहीं रखते और ना ही उनमे बदले की
फीलिंग होती है. अब लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि हमेशा आप की माफ़ी मांगो –बल्कि इसके एकदम उलटे आपका इमोशनल इंटेलीजेंट जानता है कि कब आपको सॉरी बोलना है और कब नहीं. ऐसे कई मौके होंगे जब आपकी एक सॉरी बिगड़ी बात बना देगी. लेकिन अगर गलती आपकी नहीं है तो भी आपको मैटर सोल्व करने में पीछे नहीं हटना चाहिए, आप कुछ यूं बोल सकते है : “देखो, मै समझ सकता हूँ कि तुमने ऐसा क्यों किया, लेकिन मेरी भी थोड़ी गलती थी लेकिन एक दुसरे को ब्लेम करने से क्या होगा? अब झगड़ा खत्म करते है क्योंकि तुम एक अच्छे दोस्त हो” ह्यूमन रिलेशनशिप को लेकर साईंकोलोजिस्ट एक अच्छी एडवाईस देते है: जिस नज़रिये से हम दुनिया को देखते है वो हमारे इमोशंस डिसाइड करते है. क्योंकि वर्ल्ड को लेकर हमारी नॉलेज इनडायरेक्ट होती है. तो शायद अब आप पूछो कि “मै कैसे इसे अपनी इमोशनल लाइफ में एम्प्लोय करूँ? वेल, मान लो आप अपने पार्टनर से नाराज़ हो, और अब आपको बहुत गुस्सा आ रहा है,
आप अपने एक्श्न्स कण्ट्रोल नहीं कर पा रहे. लेकिन जब आप शांत होंगे तभी आपको सिचुएशन
ज्यादा क्लियर वे में नजर आएगी. और तभी आपको पता चलेगा कि आप उसे कुछ ज्यादा ही गलत समझ
बैठे. या फिर मान लो कि आपका पार्टनर आपको बार बार कॉल कर रहा है और आपको ये चीज़ बड़ी
फ्रस्ट्रेटिंग लगती है. और जब आपको ये भी लगता है कि वो आपको कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रहा
है या रही है तब आपका गुस्सा फूट पड़ता है. इसके बजाये आप खुद से बोले: “अगर वो मुझे बार-बार फ़ोन
कर रही है या रहा है तो क्या हुआ? ज़रूरी नहीं कि वो कण्ट्रोल फ्रीक हो, ये भी तो हो सकता है कि उसे मेरी
ज्यादा फ्रिक हो
Emotional Intelligence:
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डिफरेंसेस बीटविन जेंडर्स (Differences between genders)
जेंडर बेस्ड स्टीरियोटाइप बहुत सारे है लेकिन एक चीज़ बिलकुल सच है कि औरते दूसरो के इमोशंस एकदम
सही समझती है. ज्यादा स्पेशिफिकली बोले तो औरतो में ज्यादा एमपेथी होती है. ये एक सिम्पल फैक्ट बहुत
सी प्रोब्लम क्रियेट करता है – जैसे कि औरतो को कई बार शिकायत होती है कि उनके बॉयफ्रेड या हजबैंड
एकदम कोल्ड नेचर के है. और कई सारी औरते उनकी इस कोल्डनेस को गलत वे में ले जाती है -उन्हें लगता है कि उनके पार्टनर अब उन्हें उतना प्यार नहीं करते या अब नापसंद करने लगे है. लेकिन ये अक्सर सच नहीं होता. तो इसके बाद क्या होता है? औरते कई बार ओवररिएक्ट कर जाती है फिर अपने पार्टनर से इस बात को लेकर फाईट भी कर लेती है. और फिर यही से सारी मुसीबत शुरू होती है. क्योंकि फिर आदमी भी ओवररिएक्ट करने लगते है और बात इतनी बढ़ जाती है कि ब्रेक अप या डिवोर्स पे जाके खत्म होती है. क्योंकि मर्दो को लगता है कि उनकी पार्टनर उन्हें कण्ट्रोल करने की कोशिश कर रही है.
अब दमोशनल इंटेलीजेंस यहाँ पर कैसे काम आता है ? सबसे पहले ये बात ध्यान रखे कि औरते ईआई ये में मर्दो से बैटर होती है जिसका मतलब है कि आदमी लोग ओवररिएक्ट करने से पहले इमोशनल इंटेलीजेंस के बारे एक दो चीज़ जान ले. जैस कि जब आपकी गर्लफ्रेंड रूड वे में बिहेव करे तो आप तुरंत रिएक्ट ना करे. उस टाइम आपको कुछ ऐसा बोलना चाहिए: बिहेव से तुम्हे हर्ट हुआ,
मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, आई एम् सो मैंने ये पहले नोटिस नहीं किया. लेकिन मैंने ये जानबूझ
कर नहीं किया. ये बैटर तरीका है बजाये इसके कि आप एक दुसरे को ब्लेम करे. वहीं दूसरी तरफ औरतो
को भी इमोशनल इंटेलीजेंस के बारे में कुछ सीखना चाहिए. मोस्ट इम्पोर्टेट चीज़ है कि उन्हें ये सोचना होगा
कि बात अगर इमोशनल इंटेलीजेंस की हो तो मर्द बायोलोजिक्ली ही इसमें बुरे है. इसीलिए वो कई बार
दूसरो के इमोशंस समझ नहीं पाते है.
चैप्टर 10 (Chapter 10)
ईआई एंड मैंनेजमेंट El and Management इस चैप्टर में, डैनियल गोलमेन एक्सप्लेन करते है कि ग्रुप कॉन्टेक्स्ट में भी ईआई मैटर करता है. इमोशनल इंटेलीजेंस वाले लोगो के एक ग्रुप में सोशल
एटमोसफेयर (social atmosphere) और हार्मोनी इम्प्रूव करना ज्यादा ईजी रहता है. हमें इस एस्पेक्ट के बारे में केयरफुल रहना चाहिए –जैसे कि हमें हाईली इंट्रोवुर्ट (highly introverted) और इमोशनली डिस्टेंट लोगो को ऐसे ग्रुप में मिक्स नहीं करना चाहिए. कुछ लोग अकेले काम करना ज्यादा पसंद करते है तो उन्हें करने दो, उनकी चॉइस की रिस्पेक्ट करो.
gue 11 Chapter 11
ईआई एंड हेल्थ (El and Health)
यहाँ पर मामला कुछ सिरियस हो जाता है, गुड इमोशनल इंटेलीजेंस आपकी लाइफ सेव कर सकते
है. वैसे सुनने में ये थोडा अजीब है लेकिन उसके पीछे साइंटिफिक एविडेंस है. डैनियल गोलमेन ने कई सारी
ऐसी स्टडीज मेंशन की है जो एंगर मैनेजमेंट और हेल्थ के बीच क्या रिलेशशिप है इस बारे में इन्वेस्टीगेट
करती है. ऐसे लोग जो अपना कण्ट्रोल नहीं कर पाते उनके 50 से कम एज में मरने के चांसेस 7 गुना ज्यादा
होते है. ज्यादा गुस्सा करना कई सारी हेल्थ प्रोब्लम्स क्रियेट करता है जिससे डेथ भी हो सकती है. ऐसे लोगो
के लिए कई टाइप की थेरेपी है जिसमे कोगनिटिव बिहेविरियल थेरेपी (Cognitive-behavioral
therapy ) शायद मोस्ट इफेक्टिव होती है जो लोगो को अपने गुस्से पर कण्ट्रोल करना सीखाती है.
हालाँकि कोगनिटिव बिहेविरियल थेरेपिस्ट (cognitive-behavioral therapists ) नहीं जानते कि वो वाकई में लोगो की इमोशनल इंटेलीजेंस इम्प्रूव कर रहे है. इमोशनल इंटेलीजेंस के और भी कई हेल्थ बेनिफिट है. जिनकी ईआई अच्छी होती है उनकी मेंटल हेल्थ भी अच्छी रहती है. जैसे कि हाई ईआई वाले लोग रिजेक्शन और ब्रेकअप्स को बैटर वे में डील कर लेते है. और ऐसा होता है क्योंकि ये लोग:
1. ओपन टूवार्डस देयर ओन इमोशंस (Open towards their own emotions)
सबसे पहले तो आप अपने इमोशंस एक्सेप्ट करना सीखो, ब्रेक अप होने के बाद अक्सर कई लोग अपनी
फीलिंग्स छुपाने की कोशिश करते है, वे बहुत ड्रिंक करना शुरू कर देते है या दिन-रात पार्टी करते है.
लेकिन इससे सिचुएशन और भी खराब होती है. अपने इमोशंस को रिजेक्ट करने के बजाये उन्हें एक्सेप्ट
करना सीखो. अगर रोने का मन है तो रो दो लेकिन फीलिंग्स छुपाओ मत !
2. दे रिफ्रेन फ्रॉम ग्लोबल, यूनिवर्सल सेल्फ इवेल्यूशंस (They refrain from global, universal self-evaluations.)
ब्रेक अप या रिजेक्शन होने के बाद लोग खुद में कमी देखने लग जाते है जोकि गलत है. हालाँकि ये कॉमन
बात है क्योंकि कभी हम खुद को बुरा समझते है और कभी अच्छा. लेकिन प्रॉब्लम तब स्टार्ट होती है जब हम अपने बारे में एक ग्लोबल नेगेटिव व्यू अडॉप्ट कर लेते है. यानी हम हर चीज़ में खुद को कमतर फील करने लगते है. लेकिन हाई ईआई वाले लोगो के साथ ऐसा नहीं होता, उन्हें पता होता है कि उन्हें बेड इसलिए लग रहा है क्योंकि उनका ब्रेक अप हो गया या वे रिजेक्ट हो गए लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वो हर चीज़ में बुरे है. ये एक एसेंशियल पार्ट है -जब हमें बुरा लगता है तो हम अपनी वीकनेस को एक्ज़ाग्रेट(exaggerate) करने लगते है. हाई ईआई वाले लोग इस चीज़ को समझते है इसीलिए वो सेडनेस से जल्दी बाहर निकल आते है.
Emotional Intelligence:
Why It Can Matter More …
Daniel Goleman
बेड इमोशनल इंटेलीजेंस के रीजन्स (Causes of bad emotional intelligence)
जैसा हमने पहले भी बोला कुछ जेंडर ईआई को इन्फ्लुयेंश करते है और हम इस बारे में कुछ कर
सकते लेकिन कुछ बाकी नॉनजेनेटिक फैक्टर्स भी इम्पोर्टेट रोल प्ले करते है -उसमे एक है फेमिली जो
एक इम्पोर्टेट फैक्टर है. इसे और स्पेशिफिक्ली बोले तो आप कैसी फेमिली में पले बड़े है ये चीज़ भी आपकी
इमोशनल इंटेलीजेंस को भी काफी हद तक अफेक्ट करती है. जिन लोगो की फेमिली में प्रोब्लम्स होती
है उनमे रहने वालो का इमोशनल इंटेलीजेंस काफी पूअर रहता है. इस टाइप के लोग अपने और दुसरे
लोगो के इमोशंस से पूरी तरह अनजान होते है,अक्सर गुस्से से फट पड़ते है और अपने इमोशन पर उनका
कोई कण्ट्रोल नहीं होता. कई केस ऐसे भी देखे गए है जहाँ बेड फेमिली एनवायरमेंट की वजह से लोगो में
साइकोपैथी प्रोब्लम्स तक डेवलप हो जाती है. और इस तरह के मेंटल डिसऑर्डर(mental disorder) को लैक ऑफ़ एमपेथी क्लीयरली डिसक्राइब करती है. -जोकि ईआई में मोस्ट इम्पोर्टेट चीज है. और हम सबको पता कि साईंकोपैथ्स क्या करते है -ये लोग लोग ऐसे-ऐसे क्राइम्स करते है कि
हम सोच भी नहीं सकते. इनमे से कुछ लोग तो फेमस सीरियल किलर्स तक बन जाते है जैसे टेड बंडी. वो
अपने पेरेंट्स के साथ रहता था लेकिन उसे मालूम नहीं था कि उसके रियल पेरेंट्स उसे अपने पेरेंट्स
के घर पर छोड़ गए थे. इसलिए टेड बंडी अपने ग्रांड पेरेंट्स के घर पला बढ़ा जो उसकी उतनी केयर नहीं
करते थे- उसके ग्रैंड फादर को खासकर एक मिसफिट रोल मॉडल बोला जा सकता है -क्योंकि वो जानवरों
को टॉर्चर करके खुश होते है और वाकई में बहुत बुरे थे. अब आप ही सोचो इन सब चीजों का टेड बंडी के
माइंड पर कैसा इफेक्ट हुआ होगा,क्योंकि उसके बाद की स्टोरी तो हम सब जानते है. टेड बंडी ने ना
जाने कितने ही लोगो को मौत के घाट उतारा जिनमे ज्यादातर कॉलेज गर्ल्स थी. और उसे कभी भी अपने
किये का पछतावा नहीं हुआ. लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं कि हर कोई जिसका चाइल्डहुड खराब गुज़रा हो, वो
एक साइकोपैथ बन जाए. असल में तो बस एक स्माल पोर्शन ही किसी को फुल ओन साईंकोपैथ बना सकता है. जिसका मतलब है कि जो डेमेज चाइल्डहुड में हुआ उसे बाद में रीवर्ट किया जा सकता है. ये उन लोगो के लिए मेन सोर्स ऑफ़ मोटिवेशन हो सकता है जिनके साथ बचपन में किसी तरह का अब्यूज हुआ हो.
जिन लोगो को सिरियस चाइल्डहुड ट्रौमा (serious childhood trauma ) से गुजरना पड़ा उनके लिए ऐसी कई तरह की साइकोथेरेपीज (psychotherapies) अवलेबल है जो उनके लिए काफी हेल्पफुल प्रूव हुई है. साइकोएनालिसिस ( Psychoanalysis)एक ऐसी ही थेरेपी है जो हमारे पास्ट की गहराई में जाकर काम करती है. हमने सीबीटी (CBT) कोगनिटिव बिहेविरियल थेरेपी (cognitive behavioral therapy) के बारे में पहले भी बताया है. और इस स्कूल ऑफ़ थौट के कुछ वेरियेंट्स इस तरह डेवलप किये गए है जो सेवेरली ट्रामेंटाईजेड (severely traumatized ) लोगो के लिए काफी इफेक्टिवली हेल्पफुल है.
सेम सब्जेक्ट ह्मने चैप्टर 13 में भी डिबेट किया है
इसीलिए हम तुरंत अब 14 चैप्टर पर जाते है.
चैप्टर 14 Chapter 14
टेम्प्रामेंट इज नोट एवरीथिंग (Temperament is not everything)
इस चैप्टर में गोलमेन ने कई सारी स्टडीज के एक्जाम्पल दिए है जिनमे टेमप्रामेंट का टॉपिक इन्वोल्व
है-जैसे कि कोई इंसान किस एनवायरमेंट में कैसे रिएक्ट करेगा. हमारा टेम्प्रामेंट काफी हद तक हमारे
जींस से इन्फ्लुयेंश होता है तो इसलिए इसमें आपका कोई कण्ट्रोल नहीं है. ये आपके अंदर पैदाइशी होता
है. बहुत पुराने टाइम से फिलोसफर्स ने डिफरेंट पैटर्न्स (टेम्प्रामेंट्स) के बिहेवियर नोट किये है जो लोग को अलग अलग ग्रुप में डिवाइड करते है. ऐसे ही एक फिलोसफर थे हिप्पोक्रेट्स जिन्हें फाउंडर ऑफ़ मेडिसिन भी कहा जाता है. उन्होंने लोगो को इन 4 ग्रुप में डिवाइड किया है( आप खुद भी देख सकते है कि आप किस ग्रुप से बीलोंग करते है):
1. कोलारिक (Choleric) -ये रिएक्ट बड़ी जल्दी करते है, इमोशनल होते है और इरीटेबल भी. इनका
एनेर्जी लेवल काफी हाई रहता है और अक्सर ये बड़े इमोशनल और सेंसिटिव मैनर में रिएक्ट करते है. इन्हें
गुस्सा भी बड़ी जल्दी आता है फिर ये इज़ीली शांत नहीं होते. इन्हें लोगो के साथ घूमना फिरना भी काफी पसंद होता है.
2. सेंगुइन (Sanguine)-एक तरह से ये लोग कोलारिक्स टाइप के ही होते है – क्योंकि ये भी उनकी
तरह एक्टिव और एनेर्जी से भरपूर होते है. लेकिन ये जल्दी काम डाउन (calm down) हो जाते है.
इनके इमोशंस भी उतने ही इंटेंस होते है जितने कि कोलारिक्स टाइप के लोगो के. लेकिन ये कूल डाउन
भी उतनी ही जल्दी होते है. ये काफी सोशिएबल होते है और दिल खोलकर हसंते है.
3. मेलेकोलिक (Melancholic)- इस टाइप के लोग उतने सोशिएबल नहीं होते बल्कि थोड़े इमोशनल
होते है. लेकिन ये सेड भी जल्दी हो जाते है क्योंकि ये इमोशनली सेंसटिव होते है. मेलेंकोलिक एनेर्जेटिक और एन्थूजियास्टिक (enthusiastic) नहीं होते है जो भी करते है काफी स्लो करते है. वैसे ये ज्यादा टाइम शांत रहते है.
4. फ्लेगमेटिक (Phlegmatic)--ये लोग भी काफी शांत नेचर के होते है हालांकि ये उतने इमोशनल या
सेंसिटिव नहीं होते, अगर इन्हें गुस्सा आता भी है तो (जोकि बहुत कम होता है) ये जल्दी मान जाते है.
Emotional Intelligence:
Why It Can Matter More …
Daniel Goleman
आपको शायद अब आईडिया मिल गया होगा. कुछ टेमप्रामेंट्स अपनी डे टू डे लाइफ मैनेज करने के लिए
बैटर इमोशनल इंटेलीजेंस की ज़रूरत पड़ती है. जैसे एक्जाम्पल के लिए मान लो आप एक कोलारिक
पर्सन हो (आप जल्दी गुस्सा होते हो और फिर जल्दी शांत नहीं होते) और आपके पार्टनर से आपका झगड़ा
हो गया. अब अपने टेमप्रामेंट की वजह से आप ओवररिएक्ट करोगे और शायद बहुत उल्टा-सीधा भी
बोल दो. इस सिचुएशन में सबसे पहले तो आप खुद को ब्लेम मत करो. एट लीस्ट (At least) पूरी तरह से तो नहीं. बेशक आप अपनी मिस्टेक मानो और सामने वाले को अपनी बात समझाने कोशिश करो. मेलेंकोलिक (Melancholics,) जो एक सर्टेन वे में कोलारिक (cholerics) के अपोजिट है, वे भी काफी सेंसिटिव और इमोशनल है. बाहर से ये देखने में बड़े कोल्ड टाइप लगते है लेकिन उनकी फीलिंग्स काफी स्ट्रोंग होती है. और यही से प्रोब्लम स्टार्ट होने लगती है. जिसकी वजह से लोग सोचते है कि मेलेंकोलिक (melancholics) इमोशनलेस है और उन्हें दूसरो की कोई फ़िक्र नहीं है.
अब मान लो आप मेलेंकोलिक टाइप हो और आप एक डेट पे गये, अब क्योंकि आप थोड़े शर्मीले है तो आपको समझ नहीं आता कि अपनी डेट से क्या बात की जाए. और आपको बाद में रियेलाइज होता है कि आपका डेट आपके बारे में ये सोचता है कि आप उसे पंसद नहीं करते. लेकिन यहाँ पर कोई स्ट्रोंग इमोशनल इंटेलीजेंस वाला मेलेकोलिक दूसरो को अपनी रियल फीलिंग्स एक्सप्लेन कर सकता है.
कनक्ल्यूजन Conclusion
अब हम मोस्ट इम्पोर्टेट सब्जेक्ट सम अप करेंगे
1. इमोशंस Emotions- हमारी लाइफ का एक सेकंड भी इमोशन के बिना नहीं गुजरता. ये हमारी
लाइफ का एक क्रूशियल पार्ट है और हमे इसके साथ जीना सीखना होगा. मोस्ट इम्पोर्टेट बात है कि इमोशंस
हमारी लाइफ के बाकी एस्पेक्ट्स भी इन्फ्लुयेश करते है -जैसे कि हमारी डिसीज़न मेकिंग प्रोसेस और हमारे थॉटस जिसका मतलब है कि ईआई नार्मल इंटेलीजेंस को इन्फ्लुयेश करती है.
2. ब्रेन एंड इमोश्सं (Brain and Emotions)-डैनियल गोलमेन(Daniel Goleman) न्यूरोलोजी एक्सपर्ट है जिन्हें ह्यूमन ब्रेन के काम करने के तरीको के बारे में अच्छी नॉलेज है. उन्होंने एक चीज़ देखी कि हमारे ब्रेन में इमोशंस बड़े डीप लेवल तक होते है. क्योंकि हमारे ब्रेन में कुछ ओल्ड और कुछ यंगर पार्ट मौजूद होते है. और ऐसा होता है कि जो पार्ट इमोशंस कण्ट्रोल करता है, ब्रेन का काफी ओल्ड पार्ट होता है – इतना ओल्ड कि ह्यूमेनिटी की शुरुवात के टाइम से. तो इसका क्या मतलब हुआ? यही कि हम अपने इमोशंस को एलिमिनेट या इग्नोर नहीं कर सकते, कभी भी नहीं. उनके होने की एक वजह ज़रूर है.
3. नोइंग वन’स इमोशंस (Knowing one’s emotions)- बहुत से लोग अपने इमोशंस समझ ही
नहीं पाते और फिर ऑटोमेटिक वे में एक्ट करने लगते है. जैसे कि हम सब कभी ना कभी किसी बात को
लेकर जेलस होते है क्योंकि ये एक नेचुरल इमोशन है. लेकिन जब हम ऐसे इमोशंस को एक्सेप्ट नहीं करते तो दूसरो के लिए बुरा सोचना शुरू कर देते है.
4. इमोशनल मैनेजमेंट (Emotional Management)- हालांकि ऑथर इस बात पे जोर देता है कि इमोशंस हमारे इंटेलीजेंस को कैसे इन्फ्लुयेंश करते है लेकिन ये वन वे स्ट्रीट नहीं है. और ज्यादा
स्पेशिफिक वे में बोले तो आप कुछ हद तक अपने इमोशंस कण्ट्रोल कर सकते है, डिपेंड करता है कि
आप किस चीज़ पर फोकस कर रहे है.
5. मोटिवेट योरसेल्फ (Motivate yourself)-इसका बेस्ट तरीका है कि आप खुद को टाइम टाइम पे रिवार्ड करते रहे. लेकिन इस चक्कर में ओवर द टॉप ना चले जाए. क्योंकि अक्सर लोग रीवार्ड्स के एडिक्टिव हो जाते है. रिवार्ड आपका अल्टीमेट गोल नहीं है. ये तो बस आपको आपके गोल में मोटिवेट करता है.
6. एमपेथी (Empathy)- ये एक कोर ह्यूमन केरेक्टरस्टिक है क्योंकि हम इसके बिना रह ही
नहीं सकते. फिर भी आज के टाइम में हम लोग अनएमपेथेटिक और इनडिफरेंट होते जा रहे है. और
साईंकोलोजिस्ट इस प्रोब्लम को लेकर परेशान है. एक तरफ तो आजकल वायलेंस (violence) इतना बढ़ गया है कि हमें इसकी आदत सी हो गयी है और लोग टीवी वगैरह में इतना ज्यादा वायलेंस वाले प्रोग्राम देखने लगे है कि दूसरो को तकलीफ में देखके भी लोगो को अब फर्क नहीं पड़ता. और ये चीज़ बेहद डेंजरस है हमारे फ्यूचर के लिए क्योंकि हेल्दी ह्यूमन रिलेशनशिप के लिए हम इंसानों में एमपेथी होना बेहद ज़रूरी है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि हम अपने अंदर एमपेथी इम्प्रूव कर सकते है.
7. पे अटेंशन टू योर रिलेशनशिप्स (Pay attention to your relationships)- जो लोग एमपेथेटिक होते है, वो दूसरो के साथ अपने रिलेशन को लेकर एक्स्ट्रा केयरफुल रहते है. बेशक मिसअंडरस्टेंडिंग होने के चांसेस हर रिश्ते में रहते है लेकिन सबसे इम्पोर्टेट बात ये कि मिसअंडरस्टेंडिंग को सही ढंग से सुलझा दिया जाये.