BRAND SENSE- Build Powerful Brands Throug… Martin Lindstrom Books In Hindi Summary Pdf

BRAND SENSE- Build
Powerful Brands Throug…
Martin Lindstrom
इंट्रोडक्शन

क्या आपको लगता है कि ये सिर्फ़ एक इत्तेफाक है कि कुछ brand दूसरों से ज़्यादा हिट होते है ? क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि आपकी लाख कोशिशों के बावजूद आपका मार्केटिंग कैंपेन उतना
असरदार नहीं है जितना होना चाहिए था ? क्या आप भी ये चाहते है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग आपके ब्रैड के बारे में जाने, उसे नोटिस करे ? इस किताब में आप सीखेंगे कि पिछले कुछ दशकों में ब्रांडिंग की दुनिया में काफी सारे बदलाव आये है. आप ये भी पढ़ोगे कि मार्केटिंग के लिए बेहद जरूरी है कि सिर्फ़ आँखों या कानों तक पहुँचने वाली चीज़ से ऊपर उठे. आप इस किताब में भी पढ़ोगे कि कैसे अपने बैंड के हर छोटे-बड़े हिस्सों पर अलग-अलग नजर डालते हुए उसे एक ऑब्जेक्टिव की तरह लिया जाए. इस किताब में आप पढ़ेंगे कि आने वाले वक्त में brand का फ्यूचर क्या होगा. आप सीखोगे कैसे एक सेंसरी बैंड क्रिएट किया जाता
है जो ज़्यादा से ज़्यादा कंज्यूमर्स की नजरों में आये. इस किताब से आपको कुछ ऐसी इम्पोर्टेट टीचिंग यानी
सीख मिलेगी जो दुनिया के सभी बड़े धर्म हमें सिखातेतो क्या आप तैयार है अपने बैंड को अपनी तरक्कीका जरिया बनाने के लिए ?

A Cottage Industry Turns Professional आज की दुनिया में जहाँ ज़बरदस्त कॉम्पटीशन है, वहां
सक्सेसफुल मार्केटिंग कैंपेन और यूनिक branding मिलकर तय कर सकते है कि प्रॉडक्ट सक्सेसफुल
रहेगा या फेल. लेकिन आज की इस भाग-दौड़ भरी दुनिया में जहाँ हमारे आस-पास रोज़ ही कुछ ना कुछ
नया होता है वहां ये बड़े अफोसस की बात है कि कुछ मार्केटिंग कैंपेन्स लोगों की नजरों से बड़ी जल्दी उतर
जाते है. अगर आपका मार्केटिंग कैम्पन ने कंज्यूमर्स का ध्यान आकर्षित करने में नाकामयाब रहा तो इसका सीधा मतलब है कि आपने एक मौक़ा गँवा दिया क्योंकि branding का मेन गोल ही प्रॉडक्ट को
सक्सेसफुल बनाना है. कुल मिलाकर ब्रैड बिल्डिंग एक टू-सेंसरी अफेयर रही है, जो मेनली या तो साईट ( जैसे मैगजीन में एडवरटाईजिंग) या साउंड (जैसे रेडियो पर एडवरटाईजिंग) पर या फिर दोनों (जैसे टीवी पर
एडवरटाईजिंग) पर फोकस करती है. Brand और branding भी कई स्टेज के साथ ईवोल्व हुई है, जो साल 1950 में ” यूनिक सेलिंग प्रोपोजीशन” यानी USP से शुरू हुई थी जब सिर्फ़ एक ख़ास टाइप का प्रॉडक्ट ही available हुआ करता था और हर प्रॉडक्ट अपने आप में अलग हुआ करता था.

फिर इसके बाद 1960 के दौर में आया” ईमोशनल सेलिंग प्रोपोजीशन” यानी ESP, जहाँ लोग ईमोशनल
रीस्पोंस की वजह से मिलते-जुलते प्रोडक्ट्स के बीच कोई एक प्रॉडक्ट अपनी पसंद का चुनते थे. इसका
एक बढिया एक्जाम्पल है कोक और पेप्सी. यहाँ तक कि आज भी कई लोग कोला की एक कैन के बजाए
सिर्फ नाम के दीवाने है. 1980 में “ऑर्गेनाईजेशनल सेलिंग प्रोपोजीशन” यानी OSP का दौर आया जहाँ बैंड के पीछे जो ऑर्गेनाईजेशन या कंपनी होती थी, वो खुद बैंड बन जाया करती थी. इसका एक एक्जाम्पल है नाइकी, एक ऐसी कंपनी जिसके एम्प्लोईज़ अपने बैंड के साथ इतने इन्वोल्व हो गए कि उनमे से हर एक एम्प्लोई जब खुद ब्रैड पहन कर काम पर जाता था तो वो एक तरह से कंपनी का अँड एम्बेसडर ही लगता था.
फिर 1990 के टाइम पर” बैंड सेलिंग प्रोपोजीशन” यानी बीएसपी का ट्रेंड चल पड़ा था. इसमें brand
खुद प्रोडक्ट्स से ज़्यादा स्ट्रोंग और इफेक्टिव होते है और प्रॉडक्ट एक्सटेंशन्स खुद ओरिजिनल प्रॉडक्ट
से ज़्यादा प्रॉफिटेबल साबित होता है. इसके कुछ एक्जाम्पल है पोकेमोन, हैरी पॉटर और डिज्नी जैसे
ब्रांड्स. आपने देखा होगा इन brand के कई सारे गेम्स, बाथ प्रोडक्ट्स, बेडिंग वगैरह मार्केट में आते है.
कई कंज्यमर्स ओरिजिनल स्टोरीज से ज्यादा बैंड और ब्रांडेड प्रोडक्ट्स को ज़्यादा अहमियत देते है.

1990 खत्म होते-होते ” मी सेलिंग प्रोपोजीशन” यानी एमएसपी का दौर आ गया था. इस वक्त तक कई नई
टेक्नोलोजीज़ आ चुकी थी जिसकी वजह से छोटी क्वांटीटीज़ में प्रोडक्ट्स बनाकर बेचना और प्रॉफिट
कमाना और भी आसान हो गया था. इसलिए कंज्यूमर्स अब अपने brand की ओनरशिप ले सकते थे. इसे
हम कुछ बड़ी कंपनीज़ के जैसे लेवी और नाइकी के एक्जाम्पल से समझ सकते है, जो अपने वेबसाईट के
जरिये प्रोडक्ट्स को कस्टमाईज़ करके बेच सकती थी. और इससे हम आज की और फ्यूचर की
branding ट्रेंड तक पहुंच चुके है जिसे कहते है” होलिस्टिक सेलिंग प्रोपोजीशन” जिसे HSP बोलते है.
आज की इस बदलती दुनिया में जहाँ लोग ऑथेंटिक एक्सपिरिएंस की तलाश में है, brand ऐसे होने
चाहिए जो उनकी ज़रूरतें पूरी कर सके यानी लोग जो चाहते है, brand उन्हें प्रोवाइड कर सके. एचएसपी
brand सेन्सरी ब्राडिंग का फायदा उठाते हुए ट्रेडिशन पर बेस्ड होते है और साथ ही इनमे रिलीजियस ट्रेट्स
भी होते है.

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Martin Lindstrom
Some Companies Are Doing It Right

आज की इस दुनिया में जहाँ एक चीज़ पर ज़्यादा वक्त तक फोकस रखना मुश्किल है, वहां branding
कैम्पेन हर साल एडवरटाईजिंग में ज़्यादा से ज़्यादा पैसा खर्च कर रही है, लेकिन इसके बावजूद ज़्यादा
कन्यूमर्स को अपनी तरफ खींच नहीं पाती. तो क्या अब लोग सेम चीज़े देख-देख कर और सुन-सुनकर इतने बोर हो चुके है कि उन्हें अब कुछ फर्क ही नहीं पड़ता ? इन्सान के पास पांच इन्द्रियां होती है जिन्हें फाइव सेंसेस भी कहा जाता है, यानी देखने और सुनने के अलावा हमारे पास महसूस करने, सूंघने और स्वाद लेने की भी पॉवर है पर इसके बावजूद ज़्यादातर एड कैंपेन अपना मैसेज सिर्फ़ इमेज और साउंड के जरिये देते है. अगर brand अपना मैसेज मैक्सीमम लोगों तक पहुंचाना चाहते है तो उन्हें एड प्रोमोट करने के टू डाइमेंश्न्ल वे से कुछ हटकर सोचना पड़ेगा. उन्हें अपने कंज्यूमर्स को स्मेल, टेस्ट और टच के श्रू अपील करना होगा. ऐसा नहीं है कि सारे brand एक जैसी सोच रखते है, बल्कि कुछ brand ऐसे भी है जो औरों से हटकर एड कैंपेन करते है, इसका एक क्लासिक एक्जाम्पल है सिंगापुर एयरलाइन . 1973 में सिंगापुर एयरलाइन ने अपनी सिंगापुर गर्ल को इंट्रोड्यूस करके branding की दुनिया में एक नया ईतिहास रच दिया था.

इससे पहले एयरलाइन के एडवरटाईजिंग कैम्पेन में हमेशा फिजिकल एक्सपिरिएंस पर हो फोकस
किया गया था- जैसे कैबिन के डिजाईन, खाना जो फ्लाईट में सर्व किया जाता है, कम्फर्ट और प्राइसिंग
वगैरह. तब तक एयरलाइन को कभी भी फुल सेंसरी एक्सपिरिएंस का ख्याल तक नहीं आया था
जो वो सच में ऑफर कर सकते थे. पर सिंगापुर एयरलाइन पहली ऐसी कंपनी बनी जिसने एयर ट्रेवल
के इमोशनल एक्सपिरिएंस पर बेस्ड कैम्पेन निकाल कर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया था, उन्होंने अपने ब्रैंड को बड़े ही केयरफूली डिजाईन किया था. एक आम एयरलाइन से एक एंटरटेनमेंट कंपनी
बनकर, उन्होंने अपनी एक नई पहचान बनाई. उन्होंने औरों से हटकर ऐसे बैंड टूल्स अडॉप्ट किये जिसने
सारा गेम ही चेंज कर दिया था. उन्होंने अपने स्टाफ की uniform के लिए सबसे बढिया सिल्क का इस्तेमाल किया जो उन्हें केबिन डेकोर से मैच करता था. स्टाफ के लिए ड्रेसिंग कोड काफी स्ट्रिक्ट था. हर छोटी-बड़ी चीज़ का ध्यान रखा जाता था, यहाँ तक कि एयरहोस्टेस को एक खास ढंग से मेक-अप करने कहा गया था. और यही सिंगापुर गर्ल एक आईकन बन गई. केबिन क्रू मेंबर्स को सेलेक्ट करने के लिए बड़ा स्ट्रिक्ट क्राइटेरिया रखा गया था. जैसे कि क्रू मेंबर की उम्र छब्बीस से ज़्यादा नहीं हो सकती थी और उनकी बॉडी ऐसी हो कि वन साइज़ uniform में फिट हो सके और साथ ही इस जॉब के लिए किसी एड मॉडल जैसा खूबसूरत होना पहली शर्त थी.

इनकी ट्रेनिंग भी आम फ्लाईट अटेंडेंट से अलग होती थी, उन्हें हर चीज़ के लिए स्पेशल इंस्ट्रक्शन दी गई
थी जैसे कि पैसेंजर्स से कैसे बात करनी है, केबिन में चलना-फिरना कैसे है, और ये भी कि खाना कैसे सर्व
करना है. यानी कुल मिलाकर सिंगापुर एयरलाइन का स्टाफ सिर से पैर तक एक चलता-फिरता बैंड लगता था. दरअसल सिंगापुर एयरलाइन एक असली सेंसरी ब्रैंड एक्सपिरिएंस क्रिएट कर रही थी, जो पैसेंजर्स को सुनने और देखने से कही ज़्यादा फील करने के मौके देती थी, यहाँ तक कि उनके कैप्टेन की अनाउंसमेंट भी एड एजेंसी से स्क्रिप्ट होकर आती थी. और branding उस वक्त अपने पीक पर पहुँच
गई जब एयरलाइन ने “Stefan Floridian Waters” इंट्रोड्यूस किया. एक ऐसा अरोमा जो उनके इस सेंसरी एक्सपीरिएंस के लिए खासा तौर पर डिजाईन किया गया था. कई लोगों को ये एक अलग तरह की फेमीनाईन, स्मूथ और एक्ज़ोटिक एशियन स्मेल लगती थी. ये सेंट फ्लाईट अटेंडेंट के परफ्यूम की
खुशबू बन गई थी और टेकऑफ से पहले दिए जाने वाले हॉट टोवेल्स से भी यही खुशबू आती थी. यानी ये खुशबू सिंगापुर एयरलाइन की पहचान बन गई थी जो उनके हर प्लेन में इस्तेमाल की जाती थी. इन सभी बदलावों ने सिंगापुर एयरलाइन की अपनी एक ब्रैंड इमेज बना दी थी. सिंगापुर एयरलाइन के रेगुलर ट्रेवलर्स को प्लेन में चढ़ते ही भीनी-भीनी खुशबू के साथ अपनी कई खुशनुमा ट्रिप याद आ जाया करती थी और इस तरह सिंगापुर एयरलाइन का बैंड अपने लॉयल पैसेंजर्स की खूबसूरत यादों का हिस्सा बनने में कामयाब रहा.

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Smash Your Brand

आपने देखा होगा कि कोक बोतल की शेप अपने आप में अनोखी है. अगर कोई कोक की बोतल तोडकर
कूड़े में भी फेंक दे तो भी आप उसे आसानी से पहचान जायेंगे. ठीक यही बात आपके ब्रैड पर भी लागू होनी
चाहिए. आप अपने बैंड को स्मैश भी कर दे तो भी उसके डिफरेंट कंपोनेंट अपने आप में इतने अनोखे हो
कि अलग से पहचाने जाए. कभी आपने सोचा है कि अगर आपका लोगों ना रहे तो क्या होगा ? जो कंपोनेंट बगे क्या वो अभी भी आपके बैंड को ? अगर आपका जवाब ना है तो वक्त आ गया है कि अपने ब्रैड को स्मैश करने का और ये सोचने का कि कौन सा ऐसा अंडरलाईंग पार्ट है जो काम नहीं कर रहा. किसी भी ब्रैड को सक्सेसफुल बनने के लिए ये ज़रूरी है कि उसका हर हिस्सा इंडीपेंडेट काम करे और साथ ही बैंड से भी जुड़ा रहे और बाकी हिस्सों के मुताबिक़ रहे. जब आप अपने बैंड को स्मैश करने की सोचे तो कम से कम इन बारह कंपोनेंट्स को जरूर ध्यान में रखे जो इस तरह है”: आपकी पिक्चर- क्या आपके और brochure एडवरटाईजिंग की पिक्चर आपके बैंड के बारे में कुछ बताती है ? क्या ये आपके बैंड को बिल्ड करने में हेल्प करती है या फिर जेनेरिक और स्टीरियोटिपिकल है ?

आपका कलर- हम लाल रंग को कोक के साथ और पीले को मैकडोनाल्ड्स से जोड़कर देखते है. तो
आपके बैंड से कौन सा कलर जुड़ा है ? अगर आपका लोगों कहीं नहीं दिख रहा हो तो क्या तब भी लोग
सिर्फ़ कलर से आपका बैंड पहचान पायेंगे ? आपकी शेप- कोक बोतल की अपनी एक शेप है. McDonald’s में भी गोल्डन आर्च है. बार्बी डॉल की शेप बाकियों से एकदम अलग है. आप इन
brand के शेप बिना कंपनी के logo के भी देख ले तो तुरंत पहचान लेते हो, चाहे उसका कुछ पार्ट ही क्यों
ना दिख रहा हो. तो ऐसे ही आपको भी अपने ब्रैड की एक स्पेशिफिक शेप डिसाइड करनी होगी, एक ऐसी
शेप जो यूनिक हो और भीड़ में भी पहचानी जा सके. आपका नाम- McDonald’s अपने प्रोडक्ट्स
के नाम में एमएसी मैक या एमसी लगाता है जैसे बिग मैक, मैकमफिन्स, मैकनगेट्स वगैरह जिसे देखते ही
लोग समझ जाते है कि ये McDonald’s का फूड मेन्यू है. तो क्या आपके ब्रैड का नाम भी सिर्फ एक
नाम ही है या आपके प्रॉडक्ट की पहचान है ? आपकी लेंगुएज़-करीब 74% कंज्यूमर्स “क्रंच”
वर्ड को Kellogg’s से जोड़कर देखते है और दुनिया की करीब 80% पोपुलेशन” फेंटेसी” ड्रीम्स” और मैजिक जैसे वर्ड्स डिज्नी के साथ जोड़कर देखती है. तो क्या कोई ऐसा वर्ड भी है जो आपके बैंड को डिफाइन करता है ?

आपका आईकन- सक्सेसफुल आईकन वही होते है जो कंप्यूटर स्क्रीन, सेल फोन और बिलबोर्ड पर
आसानी से समझ में आ जाए. आपका साउंड- सक्सेसफुल brand कुछ साउंड्स पर बेस्ड होते है जैसे उनका बैकग्राउंड म्यूजिक, रिंग टोन, म्यूजिक जो स्टोर्स में प्ले होता है, वगैरह-वगैरह आपकी नेविगेशन- नेविगेशन वो तरीका है जिससे आप सेल फोन पर अपना रास्ता ढूंढ लेते हो, या कोई वेबसाईट या फिर कोई डिपार्टमेंट स्टोर. इसलिए ये जरूरी है कि नेवीगेशन हमेशा कंसिस्टेंट रहना चाहिए और ये आपके ब्रैड का एक केरेक्टर लगे. ये इसलिए जरूरी है ताकि आपके कस्टमर्स आसानी से कभी भी आपके बैंड तक पहुँच सके.
आपका बिहेवियर- बिहेवियर भी कंसिस्टेंट होना चाहिए जिससे आपके कस्टमर्स को पता लग सके कि
उन्हें क्या एक्स्पेक्ट करना है. अब जैसे रिचर्ड ब्रैनसन को ही ले लो, वर्जिन एयरलाइन के फाउंडर. उनका
ह्यूमर और मजाकिया अंदाज़ वर्जिन स्टाइल का दूसरा नाम बन गया था, जो ट्रेडिशनल वैल्यूज को भी बड़े
हल्के तरीके से लेते थे. आपकी सर्विस-क्या आपकी सर्विस औरो से कुछ अलग है ? क्या उसमे कुछ खास बात है? या आप भी औरों की तरह वही सेम सर्विस दे रहे हो? क्या आपके ब्रैंड की कोई ऐसी खासियत है जो इसे औरो से अलग करे ?

आपका ट्रेडिशन- ट्रेडिशन जितना स्ट्रोंग होगा, उतना ही बेहतर आपके ब्रैड को डिफाइन करेगा.
आपके रिचुअल्स- ज़्यादातर रिचुअल कस्टमर्स के द्वारा बनाये गए होते है. अपने कस्टमर्स के साथ
एक स्ट्रोंग रिश्ता बनाने के लिए रिचुअल सबसे बढ़िया तरीका है. Branding का मतलब है अपने ब्रैड को एक ऐसी पहचान देना जो लोगों के दिमाग में बैठ जाए. और अगर आप इसे एक स्मैशेबल तरीके से कर पाए तो इस बात की पूरी गारंटी है कि आप एक सक्सेसफुल ब्रैंड बना सके.

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From 2-D to 5-D Branding

अब तक मार्केटिंग सिर्फ़ टू डाइमेंशनल रही है जहाँ सिर्फ़ साईट और साउंड पर फोकस रहता है, ट्रेडिशनल
मार्केटिंग में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि पांचो सेंसेस पर फोकस किया गया हो. लेकिन देखा जाये
तो ज़िदगी के हर पहलू में पांचो सेंसेस उतनी ही इम्पोर्टेट है. आज जब कंज्यूमर्स की शॉपिंग हैबिट
सोफिस्टीकेटेड होती जा रही है, तो मार्केट में वही brand बिजनेस कर सकते है जो कस्टमर्स को
लुभाने के लिए मल्टीडाईमेंशनल सेंसरी अप्रोच अप्लाई करते है. आखिरकार हमारी सेंसेस अलग-अलग नही बल्कि साथ में इस्तेमाल होने के लिए ही बनी है. यही वजह है कि हम अक्सर नाक से भी खाना टेस्ट कर लेते है, यानी खुशबू से ही पता लगा लेते है कि खाना कैसा बना है या अपनी अंगुलियों से ही खाने का रंग-रूप पहचान लेते है और आँखों सुनने का काम लेते है. तो जब कोई प्रॉडक्ट हमारी हर एक सेंस को अपील करता है, हमा उस प्रॉडक्ट की क्वालिटी को अपने नजरिये से तौल लेते है, और साथ ही ब्रैड की वैल्यू का अंदाजा भी लगा लेते है. और जो ब्रैड जितनी ज़्यादा सेंसेस को अपील कर पायेगा, हमारी सेंसरी मेमोरीज़
उतनी ही ज़्यादा एक्टिवेटेड होंगी, जिससे बैंड और कंज्यूमर के बीच उतना ही मजबूत बांड बनेगा.

साउंड जब हमारे कानो पर पड़ता है तो हम सुन पाते है, लेकिन हमारा सुनना हमारी उस एबिलिटी पर डिपेंड
करता है जो साउंड को प्रोसेस और respond करता है. बँड साउंड किसी प्रॉडक्ट की क्वालिटी और
फंक्शन को देखने के हमारे नजरिये में बदलाव ले आता है. अगर ब्रैड साउंड नहीं होगा तो ये नजरियां खुद ही
कमज़ोर हो जाता है. इसे देखने का एक और इम्पोर्टेट पहलू है, प्रॉडक्ट से जेनरेट होने वाला वो साउंड्स जो काफी अहम रोल प्ले करता है. जैसे कि हम उस जापानी कार मेन्यूफेक्चरिंग कंपनी का एक्जाम्पल ले सकते है, जिन्होंने अपनी गाड़ियों में दरवाजे कुछ इस तरह से डिजाईन किये थे कि दरवाजा बंद होते ही बाहर का कोई शोर सुनाई नहीं देता था. साथ ही उन्होंने एक ऐसी स्पेशल डोर सील भी क्रिएट की थी जो लो-फ्रीक्वेंसी वाईब्रेशन दरवाजे पर ही ट्रांसमिट करके एक क्वालिटी साउंड रीलीज़ करती थी. कस्टमर टेस्ट ड्राइव पर जाए, उससे पहले ही कार डोर बंद होते ही उसे एक साउंड आता था, और बस, इतना ही बहुत था कस्टमर को डिसाइड करने के लिए कि उसे गाड़ी लेनी है या नहीं लेनी. Branding में विज़न यानी दूर की सोच, का हमें शा से ही अहम रोल रहा है. आप किसी भी ख़ास और बड़े ब्रैड को ले लीजिए, लगभग सबका ही एक कॉमन फीचर है, उनका खास डिजाईन. इसके अलावा कलर, शेप और साइज़ भी काफी इम्पोर्टेट फैक्टर हैं जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए. इनमे से हर एक फीचर प्रॉडक्ट को एक ख़ास फ़ीलिंग देने में हेल्प करता है.

एक ऐसी ही इंडस्ट्री है कार इंडस्ट्री जहाँ शेप का काफी इम्पोर्टेट रोल है. अक्सर शेप ही वो मोस्ट इम्पोर्टेट फीचर होता है जो किसी भी मॉडल की कार को पोपुलर बनाता है. अब जैसे आप वोल्क्सवैगन बीटल को ही
देख लो या फिर हमर जो हमें एक मिलिट्री गाड़ी की याद दिलाती है. हम अक्सर किसी बैंड की क्वालिटी को लेकर अपनी राय इस बेस पर बनाते है कि वो हमें कैसा फील देता है. आप कभी भी एक ऐसे डिजिटल कैमरा के प्रीमियम प्राइस नहीं देना चाहोगे जो आपको ऐसा लगे जैसे कि सस्ते प्लास्टिक से बना हो, इसके साथ ही वेट यानि प्रॉडक्ट का वजन भी काफी इम्पोर्टेट है. आज के टाइम में जहाँ इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट्स छोटे और हल्के होते जा रहे है, वही हम जानबूझ कर भारी प्रोडक्ट्स पर जोर देते है, क्योकि हमें ये गलतफहमी है कि चीज़ अगर भारी है तो क्वालिटी भी बढिया होगी. इसी वजह से कंपनी Bang & Olufsen, जो लक्ज़री हाई-फाई बनाती है, वो अपने रिमोट कण्ट्रोल हमेशा भारी वज़न वाले बनाते है. स्मेल और टेस्ट एक दूसरे से जुड़े हुए है. अरोमा या सेंट हमारी याददाश्त को काफी हद तक इन्फ्लुएंस करते है, ये इतने पॉवरफुल होते है कि हम सोच भी नहीं सकते. रिसर्च से भी ये बात प्रूव हुई है कि किसी अच्छी खुशबू से नाक में घुसते ही हमारा मूड 40% तक सही हो सकता है, ख़ासकर तब जब उस ख्श्बू से हमारी कोई मीठी सी याद जुडी हो.

फूड इंडस्ट्री के अलावा branding में टेस्ट का कोई ख़ास इस्तेमाल नहीं होता, फिर भी कई बार
इस एरिया को भी एक्सप्लोर किया गया. इसका एक एक्जाम्पल है टूथपेस्ट. इसमें टेस्ट है, स्मेल है और
टेक्सचर भी है. जिनमें से कोई भी दूसरे प्रॉडक्ट लाइन पर अप्लाई नहीं होता जो बैंड बेचता है. ज़रा
सोचो क्या होता अगर बड़े टूथपेस्ट बैंड की स्मेल और टेस्ट उनके टूथब्रश, टूथपिक्स और फलोस में मिल
सकता! तो फ्यूचर ऑफ़ ब्रैड बिल्डिंग इस बात पर निर्भर करता है कि ब्रैड हमारी किस सेंस को अपील करने
वाला है, और फिर उसी हिसाब से नए सेंसरी अपील इन्वेंट किये जायेंगे और अंत में सारे सेंसेस को एक
साथ इस्तेमाल करके और ज़्यादा बेहतर,मजबूत और लम्बे वक्त तक चलने वाला ब्रैड क्रिएट किया जा
सकेगा.

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Stimulate, Enhance, and Bond:
Crafting a Sensory Brand

आप अगर अपने कंज्यूमर्स के साथ एक ईमोश्न्ल branding चाहते हो तो आपके बैंड की सेंसरी
branding में कुछ अनोखापन जरूर होना चाहिए. एक सक्सेसफुल सेंसरी बैंड इस बात का पूरा ध्यान
रखेगा कि उसका ब्रैड हमेशा वही डिलीवर करे जो कस्टमर्स की डिमांड है. सेंसरी branding एक
प्लेटफॉर्म क्रिएट करता है जो प्रॉडक्ट एक्सटेंशन को साथ में जोड़ता है, साथ ही इसका भी ध्यान रखता
है कि आपके हर एक प्रॉडक्ट को branding एक्सपीरिएंस का फायदा पहुंचे. सक्सेसफुल branding कैंपेन वाली कंपनियाँ नीचे दिए इन छह बेसिक स्टेप फॉलो करना कभी नहीं भूलती, चलिए हम इनमे से हर एक स्टेप को अलग-अलग लेते है:
1. सेंसरी ऑडिट: (Sensoryaudit)
अपने बैंड को एक सेंसरी पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखो, पता करो आपका बैंड कौन-कौन सी सेंसेस को
अपील करता है. पहले से मौजूद सेंसरी टचपॉइंट को बिल्ड करो, सेंसरी इंवोल्वमेंट कंसिस्टेंट और ऑथेंटिक
होने चाहिए. सेंसरी टचपॉइंट के अलावा भी अपनी पोस को मोनिटर करो

2. ब्रैंड स्टेजिंग (Brand staging)
आप सक्सेसफुल brand से काफी कुछ सीख सकते हो, इन कंपनीज़ का एक्जाम्पल लो जिन्हें आप जैसे ही चलेंजेस फेस करने पड़ते है, साथ ही ऐसी कंपनीज से भी सीखने की कोशिश करो जो अपने फील्ड की लीडर है, और जिन्होंने अपने ब्रैड को स्कसेसफुल बनाने में सारे सेंसेज़ का बखूबी इस्तेमाल किया है.
3. बैंड ड्रामेटाईजेशन (Brand dramatization) अपने बैंड को एक पर्सनेलिटी की तरह लो, अगर
आप सेंसरी अपील को स्ट्रोंग बनाते हो तो उसका कंज्यूमर्स की आपके लिए जो फीलिंग और इमोशंस है, उस पर क्या असर पड़ता है ? आप अगर ये चाहते हो कि लोगों आपके ब्रैड को एक परफेक्ट ब्रैड समझे
तो उसके लिए आपकी सेंसरी प्रायोरीटीज़ क्या होनी चाहिए ?
4. ब्रैड सिग्नेचर (Brand signature)
आपका ब्रैड सिग्नेचर ही है जो आपकी यूनिक बनाता है और अपनी पर्सनेलिटी शो करता है. यही वो तरीका
है जिससे आप डिफरेंट सेंसरी टच पॉइंट्स के जरिये कंज्यूमर्स को एक यूनिक ब्रांडेड सेंसरी एक्सपिरिएंस
प्रोवाइड कराते है.

5. इम्प्लीमेंटेशन (Implementation) अब जबकि आपने रिसर्च कर ली है और अपने
मल्टीसेंसरी branding के लिए काफी सोच विचार के बाद प्लान भी बना लिया है, तो अब टाइम आ गया
है, हर डिपार्टमेंट के लिए स्टेप बाई स्टेप इम्प्लीमेंटेशन रिपोर्ट तैयार करने का, जो इस इम्प्लिमेंशन प्रोसेस में
इन्वोल्व होने वाले है. ये नोर्मल मार्केटिंग स्ट्रेटेज़ीज़ और branding ऑपरेशन से अलग है क्योंकि इसमें
रिसर्च , डेवलपमेंट, ऑपरेशन और सेल्स भी शामिल रहती है.
6. ईवैल्यूएशन (Evaluation)
इतना सब कुछ हो जाने के बाद अब टाइम है अपने काम को ईवैल्यूएट करने का. क्या रीवईज्ड सेंसरी बैंड
को वो रिजल्ट्स मिले जिसकी आपको उम्मीद दी ? क्या लोग अब भी आपके बैंड को ऑथेंटिक मानते है ? क्या सेंसरी अपील अपने हेरिटेज के लिहाज़ से सही साबित हुई है ? क्या ये उन क्वालिटीज़ में ईज़ाफा करती
है जो आज से पहले आपके बैंड की पहचान रहे है ? सेंसरी branding कभी पूरी नहीं होती, ये एक
डायनामिक प्रोसेस है जिसे हर वक्त मोनिटर करना पड़ता है. आपको एक सेंसरी पॉइंट ऑफ़ व्यू से अपने
बैंड का स्टेट्स रेगुलर चेक करना पड़ता है ताकि आपको अपना प्रॉडक्ट अवेयरनेस, लॉयल्टी और
मार्केट शेयर की जानकारी मिलती रहे.

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Brand Religion: Lessons Learned

आज के वक्त में जहाँ कोई भी चीज़ फिक्स्ड या सर्टेन नहीं है, लोग ऐसी चीज़े चाहते है जो लम्बे समय तक
टिकी रहे. कई लोग धर्म के प्रति इसलिए आकर्षित होते है क्योंकि उनका धर्म उन्हें एक ठहराव और पहचान
देता है. और हम जानते है कि रिलिजन की हिस्ट्री भी उतनी ही पुरानी है जितनी की इंसान के धरती पर पैदा
होने की, यही वजह है कि लोग रिलिजन को ऑथेंटिक मानते है और उसके साथ एक लाइफलॉन्ग कनेक्शन बना लेते है. रिलिजन इन्सान की ईमोशनल नीड्स को फुलफिल करता है. ये लोगों के विश्वास का एक जरिया है. ये एक तरह की डिपेंडेंसी और ट्रस्ट क्रिएट करता है. बात अगर branding की हो तो हम रिलिजन से भी काफी कुछ सीख सकते है. Branding भी रिलिजन की तरह ही अपने कंज्यूमर्स के साथ एक ऑथेंटिसिटी और लाइफलोंग कनेक्शंस बनाना चाहती है. किसी भी बैंड को रिलीजियस रिलेशनशिप की तरह ही ज़्यादा से ज़्यादा फोलोवर्स बनाने हो तो ये दस रूल्स ध्यान में रखने पड़ेंगे. ये रूल्स वो बेस है जिस पर सभी रिलिजंस की बुनियाद खड़ी है और इसे branding के लिए एक मोस्ट डेफिनीटिव रोल मॉडल की तरह देखा जा सकता है. तो चलिए, इनमे से हर एक रुल पर एक-एक करके लेते है.

1. A Unique Sense of Belonging
हर कोई एक बिलोंगिंग यानी जुड़ाव या कनेक्शन चाहता है. हर रिलिजन लोगों को आपस में जोड़ कर
एक कम्यूनिटी बनाता है. इसी तरह का एक ब्रैड है जो सेंस ऑफ़ कम्यूनिटी बनाने में कामयाब रहा है, वो है
लेगो टॉय कंपनी. आपको दुनिया भर में अलग-अलग एज ग्रुप की करीब 4000 ऐसी लेगो कम्यूनिटी
मिल जाएँगी. एक और एक्जाम्पल है वेट वाचर्स, (Weight Watchers) जिनके 2 मिलियन से
भी ज़्यादा मेंबर हैं और पूरी दुनिया में इनकी सालाना 3000 से भी ज़्यादा मीटिंग होती है.
2. A Sense of Purpose
एक ब्रैड को चाहिए कि वो क्लियर सेंस ऑफ़ पर्पज एक्सप्रेस करे और किसी एक मेमोरेबल लीडर के श्रू
लोगों की नजरो में आये, वर्जिन एयरलाइन के रिचर्ड ब्रैनसन एक ऐसे ही लीडर है जिनकी वजह से लोग उनके ब्रैंड को जानते है.

3. Take Power from Your Competitors
अपने दुश्मनों को आगे मत निकलने दो. क्योंकि ऐसा हुआ तो कंज्यूमर्स उसी की साइड लेंगे जिसके साथ वो खुद को ज़्यादा बेहतर जुड़ा हुआ महसूस करेंगे. इसका एक एक्जाम्पल है, दो ऐसी कंपनीज जिनका आपस में स्ट्रोंग कॉम्पटीशन रहा है और दोनों ने ही इस बात का जमकर फायदा उठाया, ये ब्रैड है कोक और पेप्सी, खासकर 1970 के दशक में इनकी कोला बैटल काफी इंट्रेस्टिंग थी.
4. Authenticity
ऑथेंटिसिटी का मतलब है कि लोग आपकी असलियत पर भरोसा करके आपको एक्स्पेट करे. और यही वजह है कि हर धर्म के मानने वाले लाखो-करोड़ो की संख्या में होते है. अगर किसी भी बैंड को सक्सेसफुल बनना है तो ऑथेंटिसिटी इसकी पहली शर्त है.
5. Consistency
जब आप किसी धार्मिक स्थान पर जाते है तो आपको पता होता है कि वहां आपको क्या मिलेगा, इससे
आपको एक तरह की स्टेबिलिटी वाली फीलिंग आती है, ठीक यही चीज़ brandको भी अपनी क्वालिटी
और कंसिस्टेंसी मेंटेन करते हुए अपने कंज्यूमर्स को प्रोवाइड करनी है.

6. Perfect World
रिलिजन हमें एक परफेक्ट लाइफ देने का वादा करता है. Brand को भी यही चीज़ अप्लाई करनी चाहिए,
इसके लिए उसे ऐसे प्रोडक्ट्स बनाने होंगे जो कंज्यूमर्स को एक परफेक्ट लाइफ की फीलिंग दे सके. जैसे कि ऑनलाइन गेम्स, एवरक्वेस्ट ऐसे ही कुछ प्रोडक्ट्स है जो कंज्यूमर्स को कुछ ऐसी ही फीलिंग्स प्रोवाइड कराते है.
7. Sensory Appeal
शायद ही कोई ऐसा बैंड होगा जो हमारी सारी की सारी फाइव सेंसेज़ को अपील करता हो, जबकि लगभग हर रिलिजन ऐसा करने में सक्सेसफुल रहता है.
8. Rituals
आपने देखा होगा ट्रेडिशनल सेलीब्रेशन रिचुअल्स के इर्द-गिर्द घुमते है. ज़रा याद करो हम क्रिस्मस और
वेलन्टाईन’स डे पर क्या करते है. अगर किसी बैंड को अपना कस्टमर बेस बढाना है तो उसे भी कुछ रिचुअल्स बनाने पड़ेंगे.

9. Symbols
ज़रा रिलीजियस आइकॉन्स के बारे में सोचिये, brand को भी अपने सारे बैंड कम्यूनिकेश्न में कुछ
ऐसे ही सिम्बल रखने चाहिए.
10. Mystery
जैसे इस धरती पर हम इंसानों पर आने के पीछे कई सारी मिस्ट्री है, वैसे ही brand की भी अपनी कुछ
मिस्ट्री होनी चाहिए. जैसे अब कोका-कोला का सीक्रेट फ़ॉर्मूला ही ले लो. कहा जाता है कि दुनिया में सिर्फ दो ही लोग ये फ़ॉर्मूला जानते है.

Conclusion
इस किताब में आपने पढ़ा कि पिछले कुक दशको में branding की दुनिया में काफी बदलाव आये है,
और branding का स्वरूप काफी हद तक बदला है और ये बदलाव मार्केटिंग के लिए बहुत जरूरी है
क्योंकि आज branding आँखों और कानों तक सिमित नहीं रह गई है. इस किताब से आपने फ्यूचर ऑफ़ ब्रैड बिल्डिंग के बारे में पढ़ा. आपने पढ़ा कि कैसे अपने बैंड को ऑब्जेक्टिव बनाकर एक ऐसा सेंसरी बैंड क्रिएट किया जाए जो आपको कंज्यूमर्स का मैक्सिमम अटेंशन दे सके. आप भी चाहे तो सच में एक पॉवरफुल और स्कसेसफुल ब्रैंड क्रिएट कर सकते है. अपने प्रॉडक्ट पर पूरा भरोसा रखिये और अपनी काबिलियत के दम पर अपने बैंड को सक्सेसफुल बनाइए!

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