Brand Failures: The Truth about the 100 Biggest Br… Matt Haig Books In Hindi Summary

Brand Failures: The Truth
about the 100 Biggest Br…
Matt Haig
इंट्रोडक्शन

चैंडिंग अब सिर्फ कंपनी के नाम या लोगों से जुडी हुई नहीं रह गई है बल्कि, अब यह कंपनी के बारे
में बताने और उसे पहचान दिलाने में बहुत बड़ा रोल निभाती है. यह देखा गया है कि लगभग 90%
कंपनियां लॉन्च के 5 सालों के अंदर ही fail हो जाती हैं. आपको क्या लगता है ऐसी क्या कॉमन गलतियां हैं
जिनकी वजह से ये कंपनियाँ fail हो जाती हैं? क्या कोई तरीका है जिससे आप इन गलतियों से बच सकते
हैं? वेल हाँ, एक रास्ता जरूर है. जब भी चैंडिंग की बात आती है तो कई कंपनियों ने गलतियाँ की हैं. इन
गलतियों को पहचानना और उनसे बचना ही आपको सक्सेसफुल होने में हेल्प करेगा. एक बार बैंड बन
जाने के बाद, इसे बहुत ही ध्यान से संभालने की ज़रूरत होती है क्योंकि एक छोटी सी गलती भी बैंड
की पूरी पहचान को बिगाड़ सकती है. इस समरी का aim हैं आपको कोको-कोला, केलॉग्सऔर हार्ले डेविडसन जैसे बड़े-बड़े मल्टी-मिलियनेयर कंपनियों के एग्जाम्पल से यह बताना कि ब्रैडिंग से जुड़े कौन से  ये कहानियां बताते हैं कि फेलियर से पूरी तरह तो बचा नहीं जा सकता पर उनके एग्जाम्पल्स आपको इस फिल्ड की मुश्किलों की पहचान करने में हेल्प करसकते हैं और आप खुद को इन मुश्किलों से बचा सकते हैं. इन सब को ध्यान में रखते हुए, आइए बैंड के बारे में जानते हैं.

Classic Failures
कई लोगों का सोचना हैं कि किसी भी कंपनी की कामयाबी के पीछे उसका प्रोडक्ट होता है लेकिन,
इनकी सोच गलत है. किसी भी कंपनी के सक्सेस में उसके प्रोडक्ट कातो हाथ होता ही हैं, लेकिन सबसे
main चीज़ है ब्रैंडिंग . अच्छा यह बताइए, आपको क्या लगता हैं कि अगर कोई कंपनी अपनी पैंडिंग
और बैंड वैल्यूस पर फोकस नहीं रखती हैं, तो क्या होगा? जब कोई कंपनी जो एक ओरिजिनल प्रोडक्ट
बेचती हैं, अपने कॉम्पिटिटर को कॉपी करते हुए एक “नया” ओरिजिनल प्रोडक्ट बेचने की कोशिश करती हैं,
तो आपका इस बारे में क्या कहना हैं? आपने ठीक समझा. जब भीकोई कंपनी ओरिजिनल होने के बजाय कुछ और करती हैं, तो अक्सर fail हो जाती हैं. यह बहुत ही ज़रूरी हैं कि आप अपने बैंड के वैल्यूस को समझें और हमेशा उन्हें फॉलो करने की कोशिशकरें. अपनी कंपनी के वैल्यूस और बैंड की originality के साथ खेलना सबसे बड़ी गलतियों में से एक हैं, जिसे आपको नहीं करना चाहिए. लेकिन, अगर आप पहले ही यह गलती कर चुके हैं, तो इससे निकलने का क्या कोई रास्ता हैं? क्या कोई यू-टर्न या एग्जिट है?

सबसे पॉपुलर सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों में से एक ने जब अपने ओरिजिनल प्रोडक्ट को बदलने की कोशिश
की, तोउस कंपनी को काफी नुकसानझेलना पड़ा था. उन्होंने अपने बैंड वैल्यूस के साथ खिलवाड़ किया
और अपने कॉम्पिटिटर की नकल करने की कोशिश की. यह कंपनी थी कोका-कोला,जो बहुत लंबे वक्त तक एक कामयाब कंपनी रही हैं. 1985 में कंपनी ने अपने सबसे पॉपुलर ड्रिंक को “न्यू कोक” नाम के एक नए ड्रिंक के साथ बदलने का फैसला किया. इसके पीछे की वजह थी कॉम्पिटिटर पेप्सी-कोला.
कंपनी के इस फैसले को पूरी तरह से समझने के लिए, आइए थोड़ा पीछे चलते हैं. कोका-कोला का main
कॉम्पिटिटर पेप्सी कोला नाम का ब्रैंड था. उनके बीच काफी लंबे वक्त से कॉम्पिटिशन चल रहा था. यह सब
सेकंड वर्ल्ड वॉर के फ़ौरन बाद 1950 में शुरू हुआ था. पेप्सी से ज़्यादा कोक बिका करते थे. कंपनी का
success ratio 5:7 था. लेकिन, अगले दस सालों में कोको-कोला से ज़्यादा पेप्सी ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खिंच लिया था. पेप्सी यंगलोगों के बीच ज़्यादा पॉपुलर होने लगा, इस तरह पेप्सी कोका-कोला के लिए खतरा बन गया था. 1970 के दशक में, पेप्सी ने पेप्सी चैलेंज नाम का एक चैलेंज शुरू किया, जिसका मकसद था यह टेस्ट करना कि कस्टमर्स कौन सा डिंक पसंद करेंगे- मीठी पेप्सी या फेमस कोका-कोला? हैरानी की बात यह हैं कि ज्यादातर लोगों ने कोका-कोला से ज़्यादा मीठी पेप्सी के taste को पसंद किया. यह चैलेंज 1980 के सालों में जारी रहा. पेप्सी ने अपने प्रोडक्ट मार्केटिंग और प्रमोशन के लिए माइकल जैक्सन और डॉन जॉनसन जैसे बड़ी सेलिब्रिटीस के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किए.

कोक को डर लगने लगा कि वह मार्केट में अपनी फर्स्ट पोजीशन खो देगा. कंपनी अब न सिर्फ अपने main
कॉम्पिटिटर पेप्सी से बल्कि स्प्राइट, फैंटा और डाइट कोक जैसे कई दूसरे ड्रिंक्स के सामने अपना शेयर खो
रही थी. 1983 में, कोक का मार्केट शेयर अपने सबसे लोअर लेवल 24% तक गिर गया था, जिससे कंपनी में
डर पैदा हो गया. पेप्सी अब भी उनका पीछा कर रही थी. दुनिया भर में इसके अच्छे डिस्ट्रीब्यूशन की वजह से
कोक अब भी कॉम्पिटिशन में आगे था. हालाँकि, यह  सिर्फ वक्त की बात थी कि पेप्सी ने बाजी मार ली और
उनका नंबर वन पोजीशन छीन लिया. कोक को पता था कि इसके लिए कुछ तो करना होगा.
कंपनी ने देखा कि main प्रॉब्लम प्रोडक्ट के taste की वजह थी क्योंकि वे पेप्सी के taste चैलेंज में
हार गए थे. इसलिए, कोक ने फैसला किया कि यह उनके main प्रोडक्ट कोका-कोला को न्यू कोक
नाम के एक नए प्रोडक्ट के साथ बदलने का वक्त हैं. हालाँकि, कंपनी ने अपने ब्रैंड के पॉवर को बहुत कम
मान लिया था जब पब्लिक के सामने कंपनी ने अपने इस डिसीज़न को अनाउंस किया, तो काफी लोग परेशान हुए, और उन्होंने नए प्रोडक्ट को पूरी तरह से बॉयकॉट करने का फैसला किया. जब न्यू कोक को मार्केट में उतारा गया, तो कंपनी की सेल्स में तेजी से गिरावट आई. इसके अलावा, लोग नाराज हो गए थे क्योंकि जिस प्रोडक्ट को वे पसंद करते थे, वह अब उन्हें नहीं मिल था. इससे कंपनी के पास अपने main प्रोडक्ट को मार्केट में वापस लाने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा. इस तरह कोका-कोला ने चैंडिंग के इम्पोर्टेस को सीखा और यह भी जाना कि कैसे भेंडिंग प्रोडक्ट से कहीं ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट होती है.

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Idea Failures

आपको क्या लगता हैं कि अक्सर ब्रैड क्यों fail हो जाते हैं? कुछ लोग कह सकते हैं कि इसके पीछे गलत
आइडिया या सही रिसर्च न करना बड़ी वजह हो सकती है. वे बिल्कुल सही कहते हैं. ऐसा अक्सर तब होता हैं
जब कोई बैंड अपने करंट प्रोडक्ट को नए तरह से बनाने की कोशिश करता हैं. अभी चल रहे प्रोडक्ट में
कोई नया ट्विस्ट देने की कोशिश करने से बैंड fail भी हो सकते हैं. आजकल, पैंडिंग सिर्फ प्रोडक्ट्स के बारे में नहीं हैं. यह बैंड के बारे में जानने के बारे में हैं. सबसे बेस्ट ब्रैड भी कस्टमर्स से ऐसी चीजें नहीं खरीदवा सकते
जिन्हें वे खुद खरीदना नहीं चाहते. अब आप पूछ सकते हैं कि कंपनियां ऐसे प्रोडक्ट बनाती ही क्यों हैं जब उन्हें पता हैं कि उनका प्रोडक्ट fail होने जा रहा हैं? वजह साफ हैं. कंपनियों को यह भ्रमहोता हैं कि वे अपने कस्टमर्स को ज़्यादा जानते हैं.
आपने केलॉग्स का नाम तो सुना ही होगा. वाकई में, यह सबसे अच्छी कंपनियों में से एक हैं, जो ब्रेकफास्ट
के लिए मशहूर हैं. इन्होंने भी अपने एक प्रोडक्ट में गलती की थी, यह प्रोडक्ट था क्लियर मेट्स. उनका आइडिया क्लियर था. क्लियर मेट्स एक छोटा सा बॉक्स था जिसमें सीरियल के साथ दूध, एक डब्बा और एक प्लास्टिक का चम्मच पैक किया जाता था. इतना सिंपल आईडिया fail कैसे हो सकता था? इसमें क्या गलत हुआ होगा?

खैर, इस प्रोडक्ट के fail होने की वजहथी दूध. डिज़ाइन किए गए कंटेनर पैक की वजह से दूध को
फ्रीज में रखने की ज़रूरत नहीं थी लेकिन कस्टमर्स को गर्म दूध का आईडिया पसंद नहीं आया. इस प्रॉब्लम
को ठीक करने के लिए, kellogs ने प्रोडक्ट को रेफ्रिजरेटर में स्टोर करने का फैसला किया ताकि
कस्टमर्स को ठंडा दूध मिल सके. इसने कस्टमर्स के लिए और भी ज़्यादा कन्फ्यूज़न पैदा कर दिया क्योंकि
उन्हें सीरियल को cereal के साथ रखे देखने की आदत थी, न कि रेफ्रिजरेटर में. इस प्रोडक्ट के fail होने में दूसरा बड़ा कारण था
एडवर्टिजमेंट. इस एड में कंपनी ने दिखाया कि जब पेरेंट्स सो रहे होते हैं,तो छोटे बच्चे खुद ही सीरियल
खाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन यह आईडिया गलत था क्योंकि इस प्रोडक्ट का पैकेज यूज़ करने में
बिल्कुल भी आसान नहीं था. प्रोडक्ट के taste और प्राइस ने भी प्रोडक्ट के नाकाम होने में कंट्रीब्यूट किया.
गर्म दूध ने सीरियल का taste बिगाड़ दियाथाऔर साथ ही प्रोडक्ट को कई कस्टमर्स ने महंगा भी बताया
था. Kellogs के सीरियल मेट्स की नाकामी से जो सबसे इम्पोर्टेन्ट लेसन सीखा जा सकता हैं. वह हैं कस्टमर को कभी भी कन्फ्यूज़ न करना और साफ़ साफ़ मैसेज़ देना. इस प्रोडक्ट को कहीं भी खाए जा सकने वाले रेडीमेड स्नैक के तौर पर इंट्रोड्यूस किया गया था.हालांकि, कंपनी ने यह भी कहा कि इसे रेफ्रिजरेटर में स्टोर करने की ज़रूरत हैं जिसने कस्टमर्स को कन्फ्यूज़ कर दिया था. इसके अलावा, इस प्रोडक्ट को दूसरे मिल्क प्रोडक्ट्स के साथ बेचा गया था.

यह तो क्लियर था कि इसे दूसरे सीरियल प्रोडक्ट्स के साथ रखने की ज़रूरत थी. अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए सही जगह पर रखना आपकी सोच से कही ज़्यादा ज़रूरी होता हैं.

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Brand Extension

ब्रैड एक्सटेंशन का मतलब हैं अपने मौजूदा बैंड के ही नाम में, प्रोडक्ट के कई नए कैटेगरी को जोड़ना. कई
कंपनियों का मानना हैं कि यह एक अच्छा आईडिया होता हैं क्योंकि ज़्यादा प्रोडक्ट कैटेगरी का साफ़
मतलब हैं ज़्यादा सेल्स. शॉर्ट टर्म के लिए यह बहुत अच्छा हो सकता हैं, लेकिन, लॉन्ग टर्म में, यह बैंड के
वैल्यू को कम कर सकता हैं. अगर सही ढंग से किया जाए,तो ड एक्सटेंशन का फायदा हो सकता हैं. इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल डाइट कोक हैं, जो दुनिया में सबसे पॉपुलर कोल्ड ड्रिंक में से एक हैं. आपको क्या लगता हैं कि कोका-कोला सक्सेसफुल क्यों हैं जबकि ज़्यादातर दूसरी बड़ी कम्पनियाँ बैंड एक्सटेंशन को अप्लाई करने में नाकाम रही हैं? ऐसा माना जाता हैं कि सबसे सक्सेसफुल बैंड वह होते हैं जो अपनी ट्रेडिशन खुद बनाते हैं या जिन्होंने अपने कस्टमर्स को ट्रेडिशन बनाने में हेल्प की हैं. ऐसी ही एक कंपनी हैं हार्ले डेविडसन. इस ब्रैड के कस्टमर्स इसे बेहद पसंद करते हैं. यह उनके लिए मोटरसाइकिल से कहीं बढ़कर होता हैं. यह उस आज़ाद ख़याल से प्यार करते हैं जो इस बैंड की पहचान हैं. हालाँकि, इस कंपनी ने भी कई गलतियाँ कीं हैं ऐसी ही एक गलती थी बैंड एक्सटेंशन. लंबे वक्त तक, कंपनी ने अपने बैंड को समझा और यह जाना कि कस्टमर्स इसे इतना प्यार क्यों करते हैं. तो कंपनी ने फैसला किया कि वो लिमिटेड मोटरसाइकिल बेचेंगे. इससे लोगों में इसके लिए मिस्ट्री पैदा होने लगी जिसने बेशुमार कस्टमर्स को अट्रैक्ट किया.

1990 के सालों में, कंपनी अपने रास्ते से भटक गई. उन्होंने टी-शर्ट, सिगरेट लाइटर और सॉक्स जैसे प्रोडक्ट
की कई अलग-अलग कैटेगरी लॉन्च करना शुरू कर दिया. उन्होंने परफ्यूम, आफ्टर शेव, नेक टाई और यहां तक कि बच्चों के कपड़े भी बेचना शुरू कर दिया था. मोटरसाइकिल से प्यार करने वालों को ये ब्रैंड
एक्सटेंशन ज़रूरत से ज़्यादा लगा. हार्ले डेविडसन अपने माचो स्टाइल के लिए जाना जाता है. इसके
लॉयल कस्टमर अपनी बॉडी पर कंपनी के logo का टैटू भी बनवाते हैं. इन नए प्रोडक्ट्स से काफी कस्टमर्स खुश नहीं थे और उन्होंने कंपनी को क्रिटिसाइज़ भी किया. इसका कंपनी पर बुरा असर पड़ा. कंपनी को जल्दी ही अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कस्टमर्स से माफी मांगी. कंपनी ने बाक़ी सभी प्रोडक्ट्स को बनाना बंद कर दिया. यह याद रखना बहुत ज़रूरी हैं कि चैंडिंग में हमेशा ज़्यादा करना अच्छा नहीं होता है. एक ही बैंड के अंदर कई प्रोडक्ट जोड़ने से कुछ वक्त के लिए सेल्स से बढ़ सकती हैं, पर इससे लंबे वक्त में बैंड कमजोर पड़ सकता है. इसके बजाय कुछ बैंड वैल्यूस बनाकर उन पर अपना फोकस रखना ज़्यादा फायदेमंद हो सकता हैं.

एग्जाम्पल के लिए, अगर आप अपने ब्रैड के वैल्यूस को सॉफ्ट और फेमिनाइन मानते हैं, तो मेंस प्रोडक्ट
जैसे कि रेज़र या शेव बेचना एक बेकार आईडिया होगा. हमेशा याद रखिए कि एक बैंड जो एक साथ
सब कुछ करने की कोशिश करता हैं, वह आमतौर पर fail हो जाता हैं. हार्ले डेविडसन को जल्द ही अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने इस प्रॉब्लम को सुलझाया. इससे उनका बैंड बचा रहा. आपको क्या लगता हैं कि अगर उन्होंने जल्दी कोई एक्शन नहीं लिया होता तो क्या होता?

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PR Failures

हर कोई अपनी लाइफ में गलतियाँ करता हैं. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि सबसे फेमस बैंड भी कुछ
गलतियाँ कर चुके हैं. लेकिन, जिस तरह से वे अपनी गलतियों को हैंडल करते हैं, वही मायने रखता हैं. जब
कोई कंपनी अपने कस्टमर्स के सामने अपनी प्रॉब्लम या मुश्किल दौर को लेकर ट्रांसपेरेंट होने का फैसला करती हैं, तो उन्हें और भी ज़्यादा रिस्पेक्ट मिलती हैं. दूसरी तरफ, अगर कोई कंपनी अपनी खामियों को छिपाने की कोशिश करती हैं तो यह उनके लिए खतरा बन सकती हैं.
कई कंपनियां को लगता हैं कि किसी क्राइसिस से निपटने का सबसे बेस्ट तरीका हैं उस प्रॉब्लम को
नकार देना. लेकिन, वे यह भूल जाते हैं कि एक सक्सेसफुल ब्रैड बनाने के लिए कस्टमर्स की सभी
जरूरतों को पूरा करनापड़ता हैं. इसका मतलब यह भी है कि भले ही कंपनी क्राइसिस से गुज़र रही हो,
कस्टमर्स को इसके बारे में साफ़-साफ़ बताया जाए. एक कामयाब बैंड को बनाने के पीछे उसके पब्लिक
रिलेशन का भी बहुत बड़ा योगदान होता हैं. 1980 के सालों में, एक्सॉन वाल्डेज़ ऑइल टैंकर यह अमेरिकन हिस्ट्री का सबसे बड़ा तेल रिसाव था.

बाद में पता चला था कि शिप का कैप्टन और तीसरा साथी दोनों ही शराब पी रहे थे. घटना के घंटों बाद भी
उनके खून में बड़ी मात्रा में शराब पाई गई थी. इसके लिए कैप्टन को 90 दिनों की जेल की सज़ा मिली और
भारी फ़ाईन भी देना पड़ा. कंपनी ने इस प्रॉब्लम को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. यहां तक कि उन्होंने मीडिया से बात करने से भी इनकार कर दिया. कंपनी के चेयरमैन ने कहा कि उनके पास इंटरव्यू देने या फिर बात करने का समय नहीं है. असल में कंपनी में मीडिया का सामना करने की हिम्मत नहीं थी. इसके अलावा, हफ्ते के बाद भी तेल रिसाव को कंट्रोल नहीं कर पाई थी. हजारों बैरल तेल गिर चुके थे. आखिर में कंपनी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जो बहुत बुरी रही. जब कंपनी ने अपनी सफाई में जो भी कहा वो मछुआरों और दूसरे लोगों के बयान से बिलकुल उल्टा निकला, तो बात और भी ज़्यादा बिगड़ गई थी.
जब चेयरमैन से मीडिया ने कंपनी के तेल से फैली गंदगी को साफ करने के प्लान के बारे में पूछा गया, तो
उन्होंने अपनी बात को बदलने की कोशिश की और सवालों को नजरअंदाज कर दिया. इससे कंपनी के लिए
बहुत बड़ी प्रॉब्लम खड़ी हो गई.

इस क्राइसिस के दौरान करीब 7 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. सबसे ज़रूरी बात यह थी कि एक्सॉन ने अपनी रेप्युटेशन खो दी थी और जल्दी ही वो थर्ड पोजीशन पर आ गया था . किसी कंपनी के लिए क्राइसिस के दौरान ईमानदार होना बहुत जरूरी हैं और उसे फ़ौरन फैसले लेने की ज़रूरत होती हैं. एक्सॉन ऐसा नहीं कर पाया था जिसकी वजह से वह तबाह हो गया.
Culture Failures
एक बैंड के लिए अपने टारगेट ऑडियंस और मार्केट को पहचानना और समझना बहुत ज़रूरी हैं. नाइकी,
मैकडॉनल्ड्स और माइक्रोसॉफ्ट जैसे ब्रैड दुनिया भर में पहचाने जाते हैं. यह समझना बहुत ही ज़रूरी हैं कि
अगर कोई प्रोडक्ट एक मार्केट में कामयाब होता हैं, तो इसका मतलब यह नहीं हैं कि वह दूसरे मार्केट में भी
कामयाब होगा. पूरी दुनिया में एक बैंड को चलाना बहुत चैलेंजिंग होता हैं. सिर्फ भाषा और करेंसी बदलने
के अलावा और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत होती है. ब्रैड की कामयाबी तय करने में कल्चर का भी बड़ा
हाथ होता हैं. किसी भी बैंड के अपने कल्चर और इंटरनेशनल मार्केट के कल्चर को समझना दोनों ही
बहुत ज़रूरी हैं. आपको क्या लगता हैं कि अगर आप किसी रेगिस्तान के देश में जैकेट की कंपनी खोलने का
फैसला करते हैं तो क्या होगा? यह हैं कल्चर फेलियर का एक एग्जाम्पल.

Kellogs का सीरियल अमेरिका और ब्रिटेन के मार्केट में बहुत ही पॉपुलर हैं. इसलिए कंपनी को
लगा कि इंडिया में भी उसे उतनी ही सक्सेस मिलेगी. लेकिन, Kellogs भूल गया कि इंडिया में ब्रेकफास्ट
का कल्चर बिलकुल अलग हैं. इंडिया में ब्रेकफास्ट में रोटी-सब्ज़ी का कल्चर हैं, ब्रेकफास्ट में सीरियल खाने का आईडिया इंडियंस के लिए काफी नया था. इस वजह से Kellogs का प्रोडक्ट इंडिया में fail हो
गया. इसके अलावा, प्राइस ने भी इसमें एक इम्पोर्टेन्ट रोल निभाया. केलॉग्स कॉर्न फ्लेक्स अपने कॉम्पिटिटर के प्राइस से तीन गुना ज़्यादा था. ज़्यादातर लोग जो इस सीरियल को खरीद रहे थे, वे इसे कभी कभार ही खरीदते थे. लेकिन, कंपनी को अब भी अपने प्रोडक्ट पर भरोसा था और उन्होंने बिना रिसर्च किए ही अपने दूसरे प्रोडक्ट्स को भी लॉन्च करने का फैसला किया. अगले दस सालों में, Frosties, Special K,
Honey Crunch
और दूसरे प्रोडक्ट्स को इंडियन मार्केट में लॉन्च किया गया . जैसा कि आपने अंदाज़ा
लगा लिया होगा कि यह सब भी वैसे ही fail होने लगे थे.
केलॉग्स ने आम, नारियल, और गुलाब जैसे फ्लेवर को भी लॉन्च किया और देश की परंपरा के साथ फिट
होने की कोशिश की, जो एक बहुत बड़ी गलती साबित हुई लेकिन कंपनी अभी भी हार मानने को तैयार नहीं थी, और उन्होंने बिस्किट को सीरियल के तौर पर बेचने की कोशिश की जो कि एक बहुत बुरा आईडिया था.

बिस्किट बच्चों में पॉपुलर हो गई जिसकी main वजह थी इसकी कम मार्केट कॉस्ट. हालांकि, कंपनी
की सीरियल कैटेगरी अब भी नाकाम थी. आपको क्या लगता हैं कि इंडियन मार्केट में इतनी बड़ी
कंपनी के नाकाम होने की सबसे बड़ी वजह क्या थी? Taste, कॉस्ट या कल्चर ? इंडिया का कल्चर यूरोप
या अमेरिका से बहुत अलग हैं. इंडियंस की प्रोडक्ट खरीदने की आदत और उनका taste बहुत अलग हैं.
इसके अलावा, इतने बड़े और अलग अलग कल्चर से भरे देश में सक्सेस पाना बहुत ही मुश्किल हो सकता
हैं. केलॉग्स को बड़ी कामयाबी मिल सकती थी या कम से कम उसके लाखों के पैसे बच सकते थे अगर उसने पहले ही मार्केट रिसर्च किया होता तो. साथ ही, लोकल कॉम्पिटिटर को कम समझना उनकी बहुत बड़ी गलती थी. आप किसी देश के कल्चर को बदल तो नहीं सकते, लेकिन आप उनके कल्चर में फिट हो सकते हैं. मैकडॉनल्ड्स, नाइकी या माइक्रोसॉफ्ट जैसे इंटरनेशनल बैंड्स का यही सीक्रेट हैं.

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Rebranding Failures

हर कंपनी आखिर में पुरानी हो जाती हैं और वक्त के साथ अपना वैल्यू खो देती हैं. क्या आपको लगता हैं कि
कोई कंपनी हमेशा के लिए कामयाब रहेगी अगरवह टॉप पोजीशन पर पहुंचने के बाद कभी कोशिश न करने का फैसला करें? टेक्नोलॉजी के तेजी से बदलने के साथ रोज बहुत से नए बैंड लॉन्च हो रहे हैं. इसका मतलब हैं पहले से मौजूद लोगों के लिए ज़्यादा कॉम्पिटिशन. एक कंपनी को हमेशा अपने आसपास के ट्रेंड के बारे में पता होना चाहिए और अपने सक्सेस को बनाए रखने के लिए अपने कस्टमर्स के बीच एक्साइटमेंट पैदा करते रहना चाहिए. आपको क्या लगता हैं कि ऐसा कैसे किया जा सकता हैं?
इसका जवाब हैं री भेंडिंग . री भेंडिंग का मतलब हैं बैंड को चेंज करना या उसे इस तरह से अपनाना
ताकि वह नई जेनेरेशन के लिए यंग और काम का बना रह सके. इसेहासिल करने के लिए ब्रैड का नाम,
logo या ब्रैड के पूरे आईडिया को ही बदला जा सकता हैं.
टॉमी हिलफिगर सबसे फेमस डिजाइनर कपड़ों के बैंड में से एक हैं जिसके बारे में आपने ज़रूर सुना होगा. यह मार्केट में काफी लंबे वक्त से मौजूद हैं. 1990 के सालों में, कंपनी एक छोटे बैंड से इंटरनेशनल लेवल पर यंग लोगों की पसंद बन गई थी . हालाँकि, साल 2000 में, कंपनी के शेयर प्राइस काफी घटनेलगे थे. इसके पीछे क्या वजह हो सकती थी? किसी भी तरह की कोई भी मुसीबत का कोई इशारा न मिलने के बावजूद शेयर प्राइस में गिरावट क्यों शुरू हुई थी ?

इस गिरावट का main कारण कंपनी का logo था. 1999 में कंपनी ने सोचा कि कस्टमर को शायद कंपनी
का logo पसंद नहीं आता हैं क्योंकि वह बहुत ही सिंपल सा था. इसलिए, कंपनी ने तय किया कि logo
के साइज़ को छोटा किया जाए ताकि वो बेहतर लगने लगेगा. टॉमी हिलफिगर ने अपनी इन्सेक्युरिटी की वजह से कंपनी के वैल्यू को छोड़ दिया था. कंपनी ने ट्रेंड्स को फॉलो करना शुरू कर दिया, लेटेस्ट कपड़े बनाने लगे और राल्फ लॉरेन या गैप जैसी कंपनियों के कैटोगरी में आने लगा.धीरे-धीरे कंपनी ने अपने logo को इस्तेमाल करना छोड़ दिया था . उन्हें लगा कि इससे उनके कस्टमर्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा. 1999 में, कंपनी ने एक सब- ब्रैड – ‘रेड लेबल’लॉन्च किया जिसका कोई logo नहीं रखा गया था. इसके अलावा, इसका प्राइस भी बहुत ज़्यादा था.

एक नॉर्मल टॉमी हिलफिगर कस्टमर के लिए भी यह काफ़ीमहंगा था. कंपनी का एक और गलत कदम था
गलत लोकेशन पर अपना स्टोर खोलना. कंपनी ने जल्द ही अपनी गलतियों से सीखा और 2007 में अपने पुराने बेसिक तरीकों पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन एक ट्विस्ट के साथ. इससे कंपनी एक बार फिर अपनी टॉप पोजीशन पर पहुंच गई. बैंड के logo को कम ज़रूरी मानना एक बहुत बड़ी गलती हो सकती हैं. अपनी कंपनी की पहचान और उसके वैल्यूस से कभी अलग नहीं होना चाहिए क्योंकि ये ही बैंड की पहचान होते हैं.
कन्क्लूज़न

चैंडिंग एक मार्केटिंग स्ट्रेटेजी हैं जिसका यूज़ किसी कंपनी को दूसरी कंपनियों से अलग करने के लिए
और एक अलग पहचान दिलाने के लिए की जाती हैं. इसमें कंपनी के डिजाइन और नाम से लेकर कस्टमर
एक्सपीरियंस और प्रोडक्ट की क्वालिटी शामिल होते हैं. इस समरी में, आपने यह सीखा कि यह क्यों ज़रूरी हैं और यह कंपनी की कामयाबी और नाकामी में इतना बड़ा रोल क्यों निभाती हैं. आइए इस समरी से सीखे गए कुछ दूसरे लेसंस के बारे में बात करते हैं – सबसे पहले, आपने क्लासिक फेलियर के बारे में सीखा. यह बताता हैं कि जब कोई कंपनी अपने कॉम्पिटिशन की वजह से अपने ओरिजिनल प्रोडक्ट को बदलने की कोशिश करती हैं तो वह कैसे fail हो जाती हैं. आपने यह भी जाना कि जब कोई कंपनी बैंडिंग पर ध्यान फोकस नहीं करती और बैंडिंग के वैल्यू को अंडरएस्टीमेट करती हैं, तो कैसे वो बुरी तरह से fail हो जाती हैं.
दूसरा, आपने आइडिया के फेलियर के बारे में सीखा. कंपनियां इसका सामना तब करती हैं, जब उसे भ्रम
हो जाता हैं कि वह अपने कस्टमर्स को अच्छी तरीके से जानती हैं. कोई प्रोडक्ट बनाने से पहले सही रिसर्च करना और उस प्रोडक्ट के बारे में कोई कन्फ्यूज़न पैदा न करना बहुत ही ज़रूरी हैं.

तीसरा, आपने बैंड एक्सटेंशन के बारे में सीखा, जो लॉन्ग टर्म में ब्रैंड के वैल्यू को कम कर सकता हैं.
आपने जाना कि अपने बैंड को कुछ खास वैल्यूस के साथ जोड़ना कितना ज़रूरी होता हैं और कैसे इन
वैल्यूस पर हमेशा फोकस रखना चाहिए. चौथा, आपने PR यानी पब्लिक रिलेशन के फेलियर
के बारे में सीखा. गलतियाँ किसी से भी हो सकती हैं, लेकिन आप उस गलती को कैसे हैंडल करते हैं,
यही बात आपकी कंपनी या ब्रैड के वैल्यू को आगे बढ़ा सकती हैं. कंपनी की खामियों को छिपाने की
कोशिश करने के बजाय हमेशा अपने कस्टमर्स के साथ ईमानदार रहने की कोशिश कीजिए.
पांचवां, आपने कल्चर फेलियर के बारे में सीखा. किसी प्रोडक्ट को लॉन्च करने से पहले मार्केट रिसर्च करना बहुत ज़रूरी हैं. किसी बैंड की कामयाबी तय करने में कल्चर का बड़ा कंट्रीब्यूशन होता हैं. अगर किसी बैंड को एक मार्केट में सक्सेस मिली हैं, तो इसका मतलब
यह नहीं हैं कि उसे दूसरे मार्केट में भी उतनी ही सक्सेस मिलेगी.
 आखिर में, आपने री ब्रैंडिंग के बारे में समझा. आपने सीखा कि नई टेक्नोलॉजी और ट्रेंड के हिसाब से चलना बहुत ही ज़रूरी हैं. नई जेनरेशन तक पहुंच बनाना सक्सेस के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं. कोई भी कंपनी रातोंरात सक्सेसफुल नहीं बनती. वे भी गलतियाँ करते हैं, लेकिन ज़रूरी बात हैं कि इन गलतियों से सीखना चाहिए. यह समझना बहुत जरूरी हैं कि अगर ध्यान दिया जाए तो इन गलतियों से आसानी से बचा भी जा सकता है.

यह काफी हैरानी की बात है कि कैसे भेंडिंग आपको और आपकी कंपनी को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में हेल्प
कर सकती हैं. एक स्ट्रांग ब्रैड आपको सक्सेसफुल होने का बड़ा मौका देती हैं. इस नॉलेज के साथ, अब
आप एक सक्सेसफुल ब्रैड बनाने के सफर को शुरू करने के लिए तैयार हो गए हैं.

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