Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Book in Hindi Summary

Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Henry Cloud and John Townsend इंट्रोडक्शन क्या आपने कभी ख़ुद को ऐसी सिचुएशन में फँसा हुआ पाया है जहां से आप सिर्फ इसलिए निकल नहीं पाए क्योंकि आप ना नहीं कह सके? चाहे वो कोई पार्टी हो या get together ना चाहते हुए भी आपके मुँह से “हाँ” निकल गया. अब इवेंट वाला दिन आने तक आपको गुस्सा आता रहता है, चिडचिडाहट होती है, आपके मन में बेचैनी बनी रहती है. जब लोग हमसे कोई रिक्वेस्ट करते हैं तो हमेशा हाँ में जवाब देना हमारे अंदर गुस्सा पैदा कर देता है. आपका और आपकी अच्छाई का फ़ायदा उठाने के लिए आपको उन पर गुस्सा आने लगता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हो सकता है शायद गलती आपकी हो? हम इतनी जल्दी दूसरों को दोषी ठहरा देते हैं कि हम इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं देते कि हमारी प्रोब्लम को हमने ख़ुद क्रिएट किया है. इस बुक में आप बॉउंडरीज़ यानी सीमा या हद के बारे में जानेंगे. ये सिर्फ़ “ना” कहने के बारे में नहीं है बल्कि आप ये सीखेंगे कि बॉउंडरीज़ कैसे काम करती हैं और आप इसे अपने फ़ायदे के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. आप ये भी सीखेंगे कि किसी भी सिचुएशन को कैसे एनालाइज किया जाए या उसे समझा जाए ताकि आप जान सकें कि कहाँ हाँ कहना अच्छा रहेगा और कहाँ ना. A Day in a Boundaryless Life हम हमेशा अपनी लाइफ को सही तरीके से जीने की कोशिश में लगे रहते हैं और इस पर कंट्रोल बनाए रखना चाहते हैं. लेकिन रियल लाइफ ऐसे काम नहीं करती. हम अक्सर इसका कंट्रोल खो देते हैं और ये बहुत दुःख और तकलीफ़ को पैदा करता है जिन्हें सिर्फ़ दवा की मदद से ठीक नहीं किया जा सकता. हमें लगता है कि बहुत मेहनत करने से हमारा काम बन जाएगा लेकिन कभी-कभी जितना ज़्यादा हम काम करते हैं, अपने गोल्स से हम उतनी ही दूर हो जाते हैं. हम सभी सबके साथ अच्छा बनने की कोशिश भी करते हैं क्योंकि कोई भी दुश्मन बनाना नहीं चाहता. भले ही आप सबसे साथ अच्छे से पेश आने के लिए हमेशा हाँ भी कह दें लेकिन ये भी आपके लिए प्रॉब्लम खड़ी कर सकता है. इस बात को याद रखें कि हम सभी को खुश नहीं रख सकते. अगर आप दूसरों के लिए जिंदगी जीते रहेंगे तो आपकी अपनी जिंदगी स्ट्रेस और दुःख से भर जाएगी. अगर आप नहीं जानते कि आपकी ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं और अगर आप अपने लिए नहीं जीते हैं तो आपको बॉउंडरीज़ की प्रॉब्लम का सामना करना पड़ेगा. जैसे एक घर का मालिक अपने घर के चारों ओर फेंस लगाकर उसे सुरक्षित करता है ठीक वैसे ही आपको भी फिजिकल, मेंटल, सोशल और स्पिरिचुअल बॉउंडरीज़ लगाकर उस सुराक्षत करता ह ठाक वस हा आपका भा फिजिकल, मेंटल, सोशल और स्पिरिचुअल बॉउंडरीज़ सेट करनी होंगी. अगर आप अपने लिए बॉउंडरीज़ सेट नहीं करेंगे तो ये आपको स्ट्रेस और थकान से भर देगा. यहाँ तक कि ये साइकोलॉजिकल बीमारियाँ जैसे डिप्रेशन और चिंता को भी जन्म दे सकता है. शैरी अलार्म की आवाज़ सुनकर जाग गई. उसे दिन की शुरुआत करने में घबराहट हो रही थी. उसे इस बात की चिंता सताने लगी कि कितने सारे काम करने थे. उसकी लिस्ट में सबसे ऊपर लिखा था कि उसे अपनी बेटी की ड्रेस को सिलना था, जिसे शैरी ने पिछली रात करने का वादा किया था. लेकिन वो अपना काम नहीं कर पाई क्योंकि उसकी माँ अचानक उससे मिलने आ गई थीं. शैरी अपना काम इसलिए नहीं कर पाई क्योंकि उसकी माँ ने शिकायत की थी कि वो उनके लिए समय नहीं निकालती और ये बात सुनकर शैरी खुद को दोषी मान रही थी. उसे दुःख भी हो रहा था और बुरा भी लग रहा था. लेकिन फिर शैरी ने खुद को ये कह कर मनाया कि घर आने के बाद उसने अपनी माँ को पूरा वक़्त देकर ख़ुश कर दिया था. कुछ दिनों बाद शैरी अपने जॉब में लंच ब्रेक के वक़्त खाने जा रही थी कि तभी शैरी के साथ काम करने वाली एक दोस्त लुइस का फ़ोन आ गया. वो शैरी को अपनी प्रॉब्लम के बारे में बताने लगी. शैरी को अब यहाँ चिडचिडाहट होने लगी क्योंकि वो अपनी प्रॉब्लम शेयर कर अपनी भड़ास निकालना चाहती थी लेकिन लुइस गा तो यशान नहीं देती गाना गन्ने का नटाना चिडचिडाहट होने लगी क्योंकि वो अपनी प्रॉब्लम शेयर कर अपनी भड़ास निकालना चाहती थी लेकिन लुइस या तो उस पर ध्यान नहीं देती या ना सुनने का बहाना ढूँढने लगती. लुइस इतनी देर तक बोलती रही कि शैरी का लंच ब्रेक ख़त्म हो गया, अब यहाँ शैरी ने फ़िर ख़ुद को ये कह कर सांत्वना दिया कि लुइस परेशान थी और ऐसे में उसे एक दोस्त की ज़रुरत थी. शैरी ना सिर्फ़ फिजिकल और सोशल बॉउंडरीज़ सेट करने में फेल रही बल्कि उसने स्पिरिचुअल बॉउंडरीज़ भी सेट नहीं की. एक शाम , शैरी और उसका परिवार साथ बैठकर डिनर कर रहे थे. तभी उनके लोकल चर्च में womens ग्रुप की हेड, फ़ेलिस का फ़ोन आया. उसने शैरी से पूछा कि क्या वो अगले हफ़्ते होने वाले प्रोग्राम में चीज़ों को मैनेज करने के लिए मैगी की जगह काम कर सकती थी? यहाँ शैरी का हाँ कहने का बिलकुल मन नहीं था लेकिन ना चाहते हुए भी उसने हां कह दिया क्योंकि उस काम को मना करने का मतलब था भगवान् के काम को मना करना, जो वो नहीं चाहती थी. शैरी की लाइफ उसके कंट्रोल से बाहर होती जा रही से थी. वो लोगों की हर बात के लिए हाँ कहकर अपनी फीलिंग्स को नज़रंदाज़ कर रही थी. इस वजह से वो दिन-ब-दिन दुखी रहने लगी क्योंकि वो अपने लिए बॉउंडरीज़ सेट नहीं कर पाई. Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Henry Cloud and John Townsend What Does a Boundary Look Like? फिजिकल बाउंडरीज़ को देखना आसान होता है क्योंकि हम आसानी से पहचान सकते हैं कि एक बाउंडरी कहाँ ख़त्म हो रही है और दूसरी कहाँ से शुरू हो रही है. बिलकुल फिजिकल बाउंडरीज़ की तरह हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी अपनी मर्यादा क्रॉस ना करे और हर कोई हमारी ना दिखने वाली इमोशनल बाउंडरी का भी सम्मान करे. बाउंड्री आपको बताती है कि क्या आपका है और क्या आपका नहीं. अपनी बाउंड्री या हद के अंदर आप जो करना चाहते हैं वो कर सकते हैं क्योंकि आप उसके मालिक हैं. इसी तरह, ये बाउंडरीज़ बुरी चीज़ों को बाहर रखकर अच्छी चीज़ों को अपने अंदर बनाए रखती है. बाउंडरीज़ दीवार नहीं है. ये एक फेंस की तरह है जो आपकी रक्षा करती है और इसमें दरवाज़ा भी है. अगर कोई चीज़ आपको परेशान कर रही है तो आपको भगवान् या अपनों के साथ बातचीत कर उसे बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए. अपनी चिंताओं को दूर करना बहुत ज़रूरी है ताकि वो आपको परेशान ना करें. आपको इस बात को याद रखना होगा कि जिंदगी में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें कोई भी आपके लिए कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें कोई भी आपके लिए नहीं कर सकता. इसलिए आपको उन चीज़ों की ज़िम्मेदारी ख़ुद अपने ऊपर लेनी होगी और उसे अपने दम पर करना होगा. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ये कैसे पता चलेगा कि कौन सी चीजें हम अपने दम पर कर सकते हैं और कौन सी नहीं? तो ज़िम्मेदारी दो तरह की होती है. पहला है Load यानी भार, ये वो चीजें हैं जिन्हें आप ख़ुद उठा सकते हैं. दूसरा है burden यानी बोझ. ये वो चीजें हैं जिन्हें उठाने के लिए आपको दूसरों की मदद लेनी होगी. हम जो रोज़मर्रा की चीजें करते हैं वो हैं हमारा भार और आप इसे एक स्कूल बैग जैसा समझ सकते हैं. इसका भार एक स्कूल बैग जितना ही होता है. हम सब ने स्कूल में अपना अपना बैग उठाया है तो इसका भार भी हम उठा सकते हैं, है ना? ये भार हैं हमारी फीलिंग्स, हमारा नज़रिया और ज़िमीदारियाँ जो भगवान् ने हमें दी हैं. हालांकि, इसका भी भार कभी-कभी बहुत ज़्यादा लगने लगता है लेकिन फिर भी हम इसे उठा सकते हैं. तो वहीं, बोझ बड़े-बड़े पत्थरों या रुकावटों की तरह होते हैं. अगर आपने इसे अकेले उठाने की कोशिश की तो ये आपको कुचल भी सकते हैं. जब भी हमारी लाइफ में कोई क्राइसिस या ट्रेजेडी हो जाती है तो हमें दूसरों की मदद लेनी पड़ती है और लेनी भी चाहिए. इस बुक के ऑथर डॉ. हेनरी के पास एक बार एक बूढ़े पति-पत्नी आए. उनका बेटा बिली बिलकुल गैर-ज़िम्मेदार लड़का था. उसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी गैर-ज़िम्मेदार लड़का था. उसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी. उसे ड्रग्स की लत लग गई थी और वो हर वक़्त नशे में चूर रहने लगा था. वो ऐसे लोगों के साथ उठने बैठे लगा जो हर तरह के बुरे काम में लगे हुए थे. उन दोनों ने डॉ. हेनरी से मदद मांगी लेकिन डॉ. ने कहा कि बिली को मदद की ज़रुरत नहीं है. उनका जवाब सुनकर वो दोनों हैरान रह गए. उन्हें डॉ. हेनरी की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. डॉ. हेनरी ने समझाया कि उन्हें और बिली को बस अपनी अपनी बाउंडरीज़ बनाने की ज़रुरत है. उन्हें बाउंडरी बनानी थी ताकि बिली की जो प्रॉब्लम थी वो उनकी ना रहकर बिली की प्रॉब्लम बन जाए. इसके लिए डॉ. हेनरी ने एक एग्जाम्पल दिया कि उन दोनों को अपने बेटे बिली को अपना पड़ोसी समझना होगा. उन्हें इस तरह सोचना होगा कि जब भी वो अपने बगीचे का फ़व्वारा (water sprinkler) चलाते हैं तो उसका पानी बिली के बगीचे में जाता है, उनके नहीं. बिली अपने घर और बगीचे में ख़ुश था क्योंकि उस फ़व्वारे के पानी की वजह से उसके बगीचे की घास हरी-भरी थी. वहीं, पानी की कमी की वजह से उसके माता-पिता के बगीचे की घास मार सूखकर मुरझाने लगी थी. डॉ. हेनरी ने इसका मतलब समझाते हुए कहा कि बिली गैर-ज़िम्मेदार इसलिए था क्योंकि वो जानता था कि उसकी हर प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए उसके माता-पिता मौजूद हैं. इसलिए अब उन्हें बिली की प्रॉब्लम को सोल्व करना बंद करना होगा क्योंकि बिली अब बडा हो चुका था, उसे खुद अपनी गलतियों को बाउंडरी बनानी थी ताकि बिली की जो प्रॉब्लम थी वो उनकी ना रहकर बिली की प्रॉब्लम बन जाए. इसके लिए डॉ. हेनरी ने एक एग्ज़ाम्पल दिया कि उन दोनों को अपने बेटे बिली को अपना पड़ोसी समझना होगा. उन्हें इस तरह सोचना होगा कि जब भी वो अपने बगीचे का फ़व्वारा (water sprinkler) चलाते हैं तो उसका पानी बिली के बगीचे में जाता है, उनके नहीं. बिली अपने घर और बगीचे में खुश था क्योंकि उस फ़व्वारे के पानी की वजह से उसके बगीचे की घास हरी-भरी थी. वहीं, पानी की कमी की वजह से उसके माता-पिता के बगीचे की घास मार सूखकर मुरझाने लगी थी. डॉ. हेनरी ने इसका मतलब समझाते हुए कहा कि बिली गैर-ज़िम्मेदार इसलिए था क्योंकि वो जानता था कि उसकी हर प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए उसके माता-पिता मौजूद हैं. इसलिए अब उन्हें बिली की प्रॉब्लम को सोल्व करना बंद करना होगा क्योंकि बिली अब बड़ा हो चुका था, उसे ख़ुद अपनी गलतियों को सुधारना होगा तब जाकर उसमें ज़िम्मेदारी का एहसास जागेगा. अपने हर एक्शन की उसे ख़ुद ज़िम्मेदारी लेनी होगी. मुफ़्त में मिली हुई चीज़ की कोई कद्र नहीं समझता. हमें चीज़ों की वैल्यू तब समझ में आती है जब हमें उसके लिए ख़ुद मेहनत और स्ट्रगल करना पड़ता Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Henry Cloud and John Townsend Boundary Problems अगर आपको अपने लिए बाउंडरी बनाने में दिक्कत हो रही है या दूसरे आपकी बाउंडरी का सम्मान नहीं कर रहे हैं तो यहाँ बाउंडरी की प्रॉब्लम खड़ी हो सकती है. हो सकता है कि आपने फिजिकल, मेंटल, सोशल बाउंडरीज़ बना ली हों लेकिन अगर लोग उसका सम्मान नहीं कर रहे हैं तो आपको लगने लगेगा जैसे कि आपकी कोई बाउंडरी है ही नहीं. तीन तरह की बाउंडरी की स्ट्रगल होती है. पहला है, compliance यानी दूसरों को “ना” कहना सीखना आपकी सीमाओं को मज़बूत करता है. अगर आप हमेशा दूसरों की डिमांड को पूरा करने के लिए हाँ कहते हैं तो ये आपको उनकी डिमांड में छुपी बुराई को देखने से रोकता है. जो लोग हमेशा हाँ कहते हैं उसके पीछे ये कारण है कि ऐसे लोग डरते हैं कि ना कहने पर या तो उन्हें सज़ा मिलेगी या उन्हें सेल्फिश समझा जाएगा. मान लीजिये कि आपके दोस्त एक फ़िल्म देखने का प्रग्राम बनाते हैं लेकिन आप जाना नहीं चाहते क्योंकि उन्होंने जो फ़िल्म सिलेक्ट की है आप उस तरह की फिल्में पसंद नहीं करते और सिर्फ इसलिए कि आप डरते हैं कि मना करने पर वो आपसे नाराज़ हो जाएँगे, आ जानेाि डॉन बुला लिया करता था. ये सभी चीजें स्टीव का भार होनी चाहिए थीं जिसे उसे अपने दम पर मैनेज करना चाहिए था. लेकिन क्योंकि वो दूसरों को कंट्रोल करना चाहता था इसलिए उसने अपना सारा भार फ्रैंक पर डाल दिया था. How Boundaries are Developed जब आपको ज़रुरत हो तब तुरंत उस वक़्त बाउंडरीज़ डेवलप नहीं हो सकती. आपको healthy बाउंडरीज़ बनाने के लिए अपने बीते हुए कल पर नज़र डालनी होगी. हालांकि, ये एक लगातार चलने वाला प्रोसेस है, इसकी फाउंडेशन तब बन जाती है जब आप बहुत छोटे होते हैं. जैसे एक बच्चा धीरे-धीरे teenager और फ़िर एडल्ट में बदल जाता है, उसी तरह बाउंडरी के भी अलग-अलग स्टेज और डेवलपमेंट होते हैं. Bonding या कनेक्शन बाउंडरी बनाने का फाउंडेशन होता है. ये bonding तब बनती है जब हम किसी से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं. इंसान अकेला नहीं रह सकता इसलिए वो हमेशा गहरे और मज़बूत रिश्तों की तलाश में रहता है. इस कनेक्शन के ज़रिए हमें प्यार, देखभाल और सपोर्ट मिलता है. जिस पल हम इस दुनिया में आए थे, तब से हमें दूसरों की मदद की ज़रुरत पड़ने लगती है. अगर हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता तो हम जिंदा नहीं रह पाते. जन्म के बाद, अक्सर सबसे ज़्यादा ख़याल रखने वाली माँ होती है इसलिए उस समय के दौरान माँ बच्चे में एक गहरा रिश्ता बन जाता है. क्योंकि उस समय माँ और बच्चा हमेशा साथ-साथ होते हैं, बच्चे को और छोटी थे. सारा ने सोचा कि अपनी छोटी-मोटी प्रॉब्लम बताने से सबका टाइम waste होगा और वो सेल्फिश नहीं बनना चाहती थी. बाउंडरी की तीसरी स्ट्रगल है कंट्रोल. कई लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों की सीमाओं का सम्मान नहीं करते और दूसरों की लाइफ को कंट्रोल करना चाहते हैं. क्योंकि वो ख़ुद की जिंदगी की ज़िम्मेदारी नहीं उठाते इसलिए वो दूसरों पर रौब जमाना और उन्हें कंट्रोल करना चाहते हैं. कंट्रोल करने वाले ना सुनना पसंद नहीं करते. वो अपना सारा भार दूसरों के ऊपर डाल देते हैं जबकि असल में हर इंसान को ख़ुद अपना भार उठाना चाहिए. हालांकि, अपने बोझ को उठाने के लिए आप मदद मांग सकते हैं लेकिन भार हमारी ख़ुद की ज़िम्मेदारियाँ हैं जिन्हें हमें अपने दम पर उठाना चाहिए. स्टीव बहुत ज़्यादा कंट्रोल करने वाला आदमी था. वो अपने असिस्टेंट फ्रैंक पर अधिकार जमाने लगा था. कुछ समय बाद फ्रैंक के सब्र का बाँध टूटने लगा और वो जॉब छोड़ना चाहता था लेकिन स्टीव उसे जाने की इजाज़त नहीं दे रहा था. फ्रैंक स्टीव के व्यवहार से बिलकुल थक गया था क्योंकि स्टीव ने कई बार अपनी हद पार की थी. स्टीव अक्सर फ्रैंक को ऑफिस में बिना पैसे दिए ओवरटाइम करने के लिए मजबूर करता. यहाँ तक कि उसने फ्रैंक को दो बार अपनी छुट्टियों का प्रोग्राम बदलने के लिए भी कहा था . वो काम के बारे में डिस्कस करने के लिए अक्सर फ्रैंक को रात बे रात बुला लिया करता था. ये सभी चीजें स्टीव का भार होनी चाहिए थीं जिसे उसे अपने दम पर मैनेज करना चाहिए बुला लिया करता था. ये सभी चीजें स्टीव का भार होनी चाहिए थीं जिसे उसे अपने दम पर मैनेज करना चाहिए था. लेकिन क्योंकि वो दूसरों को कंट्रोल करना चाहता था इसलिए उसने अपना सारा भार फ्रैंक पर डाल दिया था. How Boundaries are Developed जब आपको ज़रुरत हो तब तुरंत उस वक़्त बाउंडरीज़ डेवलप नहीं हो सकती. आपको healthy बाउंडरीज़ बनाने के लिए अपने बीते हुए कल पर नज़र डालनी होगी. हालांकि, ये एक लगातार चलने वाला प्रोसेस है, इसकी फाउंडेशन तब बन जाती है जब आप बहुत छोटे होते हैं. जैसे एक बच्चा धीरे-धीरे teenager और फ़िर एडल्ट में बदल जाता है, उसी तरह बाउंडरी के भी अलग-अलग स्टेज और डेवलपमेंट होते हैं. Bonding या कनेक्शन बाउंडरी बनाने का फाउंडेशन होता है. ये bonding तब बनती है जब हम किसी से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं. इंसान अकेला नहीं रह सकता इसलिए वो हमेशा गहरे और मज़बूत रिश्तों की तलाश में रहता है. इस कनेक्शन के ज़रिए हमें प्यार, देखभाल और सपोर्ट मिलता है. जिस पल हम इस दुनिया में आए थे, तब से हमें दूसरों की मदद की ज़रुरत पड़ने लगती है. अगर हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता तो हम जिंदा नहीं रह पाते. जन्म के बाद, अक्सर सबसे ज़्यादा ख़याल रखने वाली माँ होती है इसलिए उस समय के दौरान माँ बच्चे में एक गहरा रिश्ता बन जाता है. क्योंकि उस समय माँ और बच्चा हमेशा साथ-साथ होते हैं, बच्चे को समय माँ और बच्चा हमेशा साथ-साथ होते हैं, बच्चे को लगता है कि वो अपनी माँ का ही एक हिस्सा है और उन्हें ख़ुद की कोई समझ नहीं होती. Bonding के बाद आता है separation और individuality. अगर bonding अटैचमेंट का स्टेज है तो separation वो स्टेज है जिसमें बच्चा ख़ुद की पहचान ढूँढने लगता है. वो अब अपनी माँ से अलग पहचान बनाना चाहते हैं. ये वो स्टेज है जब पेरेंट्स को ये समझना शुरू करना चाहिए कि उनके बच्चे की सोच, विचार और राय अलग होने लगेंगे. वेंडी का रिश्ता अपनी माँ के साथ ज़्यादा अच्छा नहीं था. वेंडी ने कई किताबें पढ़ीं और उसने आमने सामने खुलकर अपनी माँ से सवाल जवाल करने का फैसला किया. लेकिन जैसे ही उसकी माँ का फ़ोन आता उसका दिल पिघल जाता और वो सब कुछ भूल जाती. फ़ोन पर उसकी माँ उसे लेक्चर देने लगती और वेंडी को लगता जैसे उसकी माँ अपने अलावा किसी और की सुनना ही नहीं चाहती थीं. वेंडी अपनी माँ से कहना चाहती थी कि वो बड़ी हो चुकी थी और अब उन्हें इस तरह वेंडी को कंट्रोल नहीं करना चाहिए जैसे वो तब किया करती थीं जब वो बच्ची थी. लेकिन वेंडी ऐसा चाह कर भी नहीं कर पाई. उसे डर था कि अगर उसने सच कह दिया तो शायद उसकी माँ से उसका रिश्ता और भी ख़राब हो जाता. इस तरह, वेंडी कभी अपने लिए बाउंडरीज़ नहीं सेट कर पाई और हमेशा अपनी माँ की इच्छाओं की गुलाम बनी रही. Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Henry Cloud and John Townsend Ten Laws of Boundaries लॉ #7. एक कहावत है “As you sow, so you reap” यानी जैसा आप बोएँगे वैसा ही आप काटेंगे जिसका मतलब है कि हमारे हर एक्शन का कुछ ना कुछ रिएक्शन ज़रूर होता है. जैसे अगर आप बहुत ज़्यादा पैसा खर्च करते हैं तो फ्यूचर में आपके पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं बचेंगे. लेकिन कई बार कुछ लोग इसमें रुकावट डाल देते हैं जैसे ऊपर वाले एग्ज़ाम्पल में अगर आपने अपना सारा पैसा खर्च कर दिया है तो आपकी मम्मी आपको एक्स्ट्रा पैसे दे देती है जिस वजह से आपको अपने ज़्यादा ख़र्च करने का क्या अंजाम हुआ वो कभी पता नहीं चलता. किसी भी काम को करने से उसका क्या असर होगा अगर आप ये नहीं समझ पाए तो आप वही गलती दोबारा भी करेंगे. क्योंकि आपकी मम्मी ने एक्स्ट्रा पैसे देकर आपकी बाउंड्री को पार कर ली है, आप कभी नहीं सीखेंगे कि आपके एक्शन का क्या रिएक्शन हुआ. लॉ2#. दूसरा है लॉ ऑफ़ रिस्पांसिबिलिटी. असल में देखा जाए तो ज़िम्मेदारी लेने का मतलब होता है एक दूसरे से प्यार करना. हालांकि, प्यार करने का मतलब है कि आपको एक टसरे का सटाग तनकर सले तरे है कि आपको एक दूसरे का सहारा बनकर अच्छे बुरे वक़्त में मौजूद होना चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपको दूसरों का हर काम करना चाहिए. क्योंकि अंत में हम सबको ख़ुद अपनी ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए. इसलिए हर इंसान खुद के लिए ज़िम्मेदार होता है. बाउंड्रीज़ हमें इसे मज़बूत बनाने में मदद करती है. हालांकि, हमें एक दूसरे के साथ दया का व्यवहार करना चाहिए लेकिन कभी-कभी ये भी ज़रूरी होता है कि लोगों को उनके पापों का परिणाम भुगतने देना चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो इससे उनकी हिम्मत बढ़ती है. मान लीजिए कि आपका एक रूममेट है जो रूम को गंदा और बिखरा हुआ रखता है. आपने उसे कई बार टोका लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि उसका आलस सिर्फ़ आपको परेशान कर रहा है उसे नहीं. वो तब तक उस गलती को नहीं सुधारेगा जब तक उसे कोई तकलीफ़ नहीं होगी इसलिए उसे ख़ुद एक untidy इंसान होने की सज़ा भुगतने देनी चाहिए. लॉ3#. लॉ ऑफ़ पॉवर का मतलब है कि आपमें इस बात को स्वीकार करने की एबिलिटी है कि आपकी कुछ ऐसी प्रोब्लम्स हैं जिन्हें आप अकेले सोल्व नहीं कर सकते. एग्ज़ाम्पल के लिए, अगर आपको पूरा दिन सिगरेट पीने की आदत है तो पहले आपको इस बात को स्वीकार करना होगा कि आपको सिगरेट की लत है. अगर आप इसे नकारते रहेंगे तो आप अपनी मदद नहीं कर पाएँगे और ना ही आप दूसरों से मदद लेंगे. लेकिन एक बार जब आप इसे एक्सेप्ट कर लेते हैं और लेकिन एक बार जब आप इसे एक्सेप्ट कर लेते हैं और भगवान् से सपोर्ट और आपको रास्ता दिखाने के लिए प्रार्थना करते हैं तो वो आपकी लत छुड़ाने में आपकी मदद करने के लिए आपकी लाइफ में लोगों को भेजना शुरू कर देते हैं. लॉ 4#. लॉ ऑफ़ रिस्पेक्ट का मतलब है हमें दूसरों की बाउंड्रीज़ या सीमाओं का भी ठीक उसी तरह सम्मान करना चाहिए जिस तरह हम उनसे उम्मीद करते हैं. अगर कोई आपको ना कहे और आप उसका सम्मान करते हैं तो बदले में वो भी आपके ना का सम्मान ज़रूर करेंगे. हम सभी के पास वो सब कुछ करने का फ्रीडम है जो हम करना चाहते हैं इसलिए जब लोग अपने फ्रीडम का इस्तेमाल कर हमें ना कहते हैं तो हमें नाराज़ नहीं होना चाहिए. एग्ज़ाम्पल के लिए, अगर आप किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए ओवरटाइम काम करने का प्लान बना रहे हैं और अगर आपका कोई टीम मेंबर इसके लिए मना कर देता है तो उन पर गुस्सा ना हों. हो सकता है कि ओवरटाइम काम नहीं करने के पीछे उसके पास कोई कारण या कोई जायज़ वजह हो. इसलिए उसके टाइम का सम्मान करें क्योंकि वो भी आपके टाइम का सम्मान करते हैं. लॉ 5#. लॉ ऑफ़ मोटिवेशन हमें सही कारणों के लिए और सही काम के लिए मोटीवेट करता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि हम रिजल्ट से डरते हैं. ज़्यादातर लोगों के मन में डर होता है कि अगर उन्होंने किसी के लोगों के मन में डर होता है कि अगर उन्होंने किसी के request को ना कह दिया तो कोई उन्हें पसंद नहीं करेगा या उसका साथ छोड़कर चला जाएगा और इस डर की वजह से वो हमेशा हाँ कहते रहते हैं. स्टैन का मानना है कि किसी से कुछ लेने के बजाय किसी को कुछ देना ज़्यादा बेहतर होता है. इस सोच के बावजूद जब भी वो दूसरों को समय देता था तो उसे ख़ुशी नहीं मिलती थी. लोग जब भी उससे कोई चीज़ या मदद मांगते तो वो हमेशा हाँ कहता. इससे स्टैन का मन उदास रहने लगा. डॉ. हेनरी ने स्टैन को समझाया कि वो हाँ इसलिए नहीं कहता क्योंकि वो दिल से कुछ करना चाहता है बल्कि इसलिए कहता है क्योंकि वो डरता है कि अगर उसने ना कहा तो क्या होगा. उन्होंने कहा कि उसे प्यार से मोटीवेट होना चाहिए नाकि डर से. लॉ 6#. लॉ ऑफ़ इवैल्यूएशन हमें ये सोचने के लिए encourage करता है कि दूसरे हमारी पर्सनल बाउंड्री के बारे में क्या फील करते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमें किसी को भी अपनी बाउंड्री को तोडने देना चाहिए. कई बार जिंदगी में ऐसा भी होगा जब आप अपनी बाउंड्री की रक्षा करने में दूसरों को चोट पहुंचाएंगे. लेकिन कोई ऐसा जानबूझकर नहीं करता. इसे आपको अपने रिश्ते को मज़बूत करने के एक मौके के रूप में लेना चाहिए. सैंडी ने क्रिसमस की छुट्टियां अपने दोस्तों के साथ बिताने का फैसला किया. उन लोगों ने स्किंग को चोट पहुंचाएंगे. लेकिन कोई ऐसा जानबूझकर नहीं करता. इसे आपको अपने रिश्ते को मजबूत करने के एक मौके के रूप में लेना चाहिए. सैंडी ने क्रिसमस की छुट्टियां अपने दोस्तों के साथ बिताने का फैसला किया. उन लोगों ने स्किंग (skiing) करने का प्रोग्राम बनाया. सैंडी की माँ उसके साथ त्यौहार मनाना चाहती थी और उन्हें सैंडी के बाहर जाने से दुःख पहुंचा था लेकिन अपनी बेटी की ख़ुशी देखकर उन्होंने उसे जाने की परमिशन दे दी. उनकी बस यही इच्छा थी कि सैंडी अपने दोस्तों के साथ खूब एन्जॉय करे. लॉ 7#. लॉ ऑफ़ proactivity का मतलब है कि हमारी लाइफ में घटने वाली घटनाओं पर बिना सोचे समझे रिएक्शन देने के बजाय एक्टिव होकर एक्शन लेना चाहिए. प्रोएक्टिव लोग ख़ुद चार्ज लेकर सोच समझकर एक्शन लेते हैं. वो छोटी-छोटी बातों पर गलत तरीके से रियेक्ट करने से खुद को रोकते हैं और सिर्फ एक्शन लेने पर ध्यान देते हैं. प्रोएक्टिव लोग रिएक्टिव लोगों की तरह नहीं होते जो हमेशा सिर्फ़ शिकायत करते हैं या नेगेटिव बातें करते हैं. अपने नेगेटिव इमोशन या भड़ास को निकालने के बजाय प्रोएक्टिव लोग इसे healthy और पॉजिटिव तरीके से एक्सप्रेस करते हैं. वो दूसरों से वैसा ही प्यार करते हैं जैसा ख़ुद से करते हैं. Boundaries: When to Say Yes, How to Say No to Ta… Henry Cloud and John Townsend लॉ 8#. लॉ ऑफ़ envy यानी इर्ष्या हमें याद दिलाता है कि दूसरों के पास जो है उसे पाने की इच्छा करना हमारी सोच को बहुत छोटा और सीमित कर देता है. अगर हमें दूसरों की सक्सेस से इर्ष्या होती है तो वो हमें अंदर से ख़ाली और खोखला बना देता है और हम एक अधूरापन महसूस करने लगते हैं. दूसरों के पास क्या है इस पर फोकस ना करें. इसके बजाय इस पर फोकस करें कि आप ख़ुद को कैसे इम्प्रूव कर सकते हैं. इस बात पर सवाल उठाने के बजाय कि आपके दोस्तों के रिलेशनशिप हमेशा अच्छे क्यों रहते हैं और आपके नहीं, उस बारे में सोचें कि आप उस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए क्या कर सकते हैं. हो सकता है कि शायद आपको अपने सोशल मैनर्स या व्यवहार को सुधारने की ज़रुरत हो या नए लोगों से मिलने की ज़रुरत हो. अपने दोस्तों से जलना आपके रिश्ते को मज़बूत या ठीक नहीं करेगा लेकिन ख़ुद को इम्प्रूव करने से आपके रिश्तों ज़रूर बेहतर होने लगेंगे. लॉ 9#. लॉ ऑफ़ एक्टिविटी हमें पहल करने की याद दिलाता है जब अपनी बारंडीज सेट करने की बात लॉ9#. लॉ ऑफ़ एक्टिविटी हमें पहल करने की याद दिलाता है. जब अपनी बाउंड्रीज़ सेट करने की बात आती है तो वो एकदम अचानक या तुरंत सेट नहीं हो सकती. इसके लिए हमें बहुत सारे ट्रायल एंड एरर मेथड यूज़ करने पड़ते हैं लेकिन एक बार जब आप अपनी बाउंड्रीज़ को अच्छे से सेट कर लेते हैं तब आप फिजिकल, मेंटल, सोशल रूप से अपना ज़्यादा ख़याल रख पाएंगे. सिर्फ आप ख़ुद को बेहतर तरीके से समझते हैं इसलिए अपनी बाउंड्रीज़ आपको ख़ुद सेट करनी चाहिए. आपको अपनी सीमाएं बनाने की पहल करनी होगी. अगर दूसरे लोग आपके लिए ऐसा करते हैं तो बहुत सी चीजें गलत हो सकती हैं. इसकी तुलना हम एक चिड़िया के बच्चे से कर सकते हैं जो अंडा तोड़कर बाहर आने वाला है. अगर उसके बजाय आप अंडे को तोड़ेंगे तो यकीनन चिड़िया का बच्चा मर जाएगा लेकिन अगर आप ख़ुद उसे चोंच मारकर अंडे से बाहर इस दुनिया में आने देंगे सिर्फ तभी वो जिंदा बच सकता है. लॉ10#. लॉ ऑफ़ एक्सपोज़र का मतलब है अपनी बाउंड्रीज़ को लोगों को जताना. क्योंकि जिंदगी में हमारे कई अलग-अलग तरह के रिश्ते होते हैं इसलिए बाउंड्री भी सबके लिए एक तरह से अलग हो जाती है. रिलेशनशिप में हद आपको खुद डिसाइड करनी होगी बाउंड्री भी सबके लिए एक तरह से अलग हो जाती है. रिलेशनशिप में हद आपको ख़ुद डिसाइड करनी होगी नहीं तो आपके रिश्तों को नुक्सान होगा. एग्जामाप्ल के लिए, अगर आप हमेशा अपने बच्चों के नखरे और ज़िद को पूरा करते हैं और आपने कभी भी माँ बच्चे के बीच कोई हद या बाउंड्री नहीं बनाई तो कुछ समय के बाद आपको उन पर गुस्सा आने लगेगा, चिड होने लगेगी और दूसरी तरफ़ आपके बच्चे आपके प्यार को महसूस नहीं कर पाएँगे क्योंकि उससे ज़्यादा उन्हें आपकी नाराज़गी महसूस होने लगेगी. कन्क्लूज़न इस बुक में आपने सीखा कि ना कहने में कोई बुराई नहीं है. हमेशा हाँ कहना या बेमन से हाँ कहना हमारे अंदर गुस्सा भर देता है और हम दुखी होने लगते हैं. इसलिए कभी-कभी लोगों की डिमांड को ना कहना भी बहुत ज़रूरी है. इसके लिए आपको अपनी बाउंड्री या हद ख़ुद सेट करनी होगी ताकि आप ख़ुद की रक्षा कर सकें और कोई आपकी अच्छाई का फ़ायदा ना उठा सके. इसी तरह आपको दूसरों की बाउंड्री का सम्मान भी करना होगा. अगर कोई आप ना कहे तो नाराज़ ना हों बल्कि उसे भी समझने की कोशिश करें, आपने ये भी समझा कि बाउंड्री का मतलब दीवार नहीं होता. ये भी समझा कि बाउंड्री का मतलब दीवार नहीं होता. वो हमें सेफ़ रखने वाले एक फेंस की तरह होता है जिसमें एक गेट भी है इसलिए आप फ़ैसला कर सकते हैं कि आपको कहाँ हाँ कहना है और कहाँ ना. ना कहने का मतलब ये नहीं है कि आप सेल्फिश हैं बल्कि ये ख़ुद का सम्मान करने के बारे में भी है. आपने अपने भार के लिए खुद ज़िम्मेदारी लेने के बारे में भी जाना और इस बात को भी समझा कि कई बोझ ऐसे होते हैं जिन्हें हम अकेले नहीं उठा सकते और तब हमें दूसरों से मदद लेनी चाहिए. आपने तीन तरह के बाउंड्री के स्ट्रगल के बारे में भी जाना जो हैं compliance, avoidance और control. कब हाँ कहना है और कब ना इस बात को सीखना बहुत ज़रूरी है और एक बात हमेशा याद रखें कि अपना भार दूसरों पर कभी ना डालें. जब आप लोगों को हद पार करने देते हैं तब वो चीज़ आपको दुखी और बेचैन बनाए रखती है. आपको अपनी बाउंड्री को क्लियर तरीके से सेट करना होगा. अगर आप किसी के request के लिए हाँ कहते हैं तो उसे पूरा करें क्योंकि वो आपको ख़ुशी देगा. हालांकि, भगवान् चाहते हैं कि हम सभी एक-दूसरे की मदद करें लेकिन उन्होंने हमें कुछ ऐसी ज़िम्मेदारियाँ भी दी हैं जिन्हें हमें अपने दम पर निभाना चाहिए. compliance, avoidance 3it control. chal हाँ कहना है और कब ना इस बात को सीखना बहुत ज़रूरी है और एक बात हमेशा याद रखें कि अपना भार दूसरों पर कभी ना डालें. जब आप लोगों को हद पार करने देते हैं तब चीज़ आपको दुखी और बेचैन बनाए रखती है. आपको अपनी बाउंड्री को क्लियर तरीके से सेट करना होगा. अगर आप किसी के request के लिए हाँ कहते हैं तो उसे पूरा करें क्योंकि वो आपको ख़ुशी देगा. हालांकि, भगवान् चाहते हैं कि हम सभी एक-दूसरे की मदद करें लेकिन उन्होंने हमें कुछ ऐसी ज़िम्मेदारियाँ भी दी हैं जिन्हें हमें अपने दम पर निभाना चाहिए. कभी भी सिर्फ ये सोचकर हाँ ना करें क्योंकि आप डरते हैं कि लोग आपको प्यार नहीं करेंगे या आपसे नाराज़ हो जाएँगे. हाँ तब कहें जब वो काम दूसरों के साथ-साथ आपको भी ख़ुशी दे. भगवान् ने हमें अपनी मर्जी से चीज़ों को चुनने की आज़ादी दी है. हमें अपनी और दूसरों की मर्यादा का सम्मान करते हुए इस तोहफ़े का सही इस्तेमाल करना चाहिए.

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